“उपयोगिता व सम्बन्धित नियम”
केनेथ ई. बोल्डिंग– उपभोक्ता का अन्तिम उत्पाद, भौतिक उत्पाद नहीं होता है। इसे न तो देखा जा सकता है, न छुआ जा सकता है और न ही इसका आस्वादन किया जा सकता है। यह उत्पाद वस्तुतः मनोवैज्ञानिक उत्पाद होता है, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में उपयोगिता कहा जाता है ……
उपयोगिता का अर्थ (Uyogita ka arth) –
दैनिक जीवन में हम भिन्न-भिन्न वस्तुओं को उपयोग में लेते हैं। ऐसा क्यों किया जाता है ? उत्तर स्पष्ट है। हम उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना चाहते हैं, जिनसे हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है या जिनसे हमें सन्तुष्टि मिलती है। अर्थशास्त्र की भाषा में किसी वस्तु के जिस गुण से मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाता है, उसे उपयोगिता कहते हैं।
उदाहरण के लिए रोटी से मनुष्य की भूख शांव हो जाती है, अतः हम कह सकते हैं कि उसमें उपयोगिता है। इस प्रकार, उपयोगिता से आशय किसी वस्तु तथा सेवा की किसी मानवीय आवश्यकता को संतुष्ट करने की शक्ति से होता है।
उपयोगिता की परिभाषा (Uyogita ki paribhasha) –
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने उपयोगिता की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं
- प्रो . बाघ-‘’मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की क्षमता ही उपयोगिता है।”
- प्रो. एडवर्ड नेविन-अर्थशास्त्र में उपयोगिता का अर्थ उस संतुष्टि से है, जो किसी व्यक्ति को धन के उपयोग से प्राप्त होती है।”
- प्रो. केनेथ ई. बोल्डिंग-“उपभोक्ता का अन्तिम उत्पाद भौतिक उत्पाद नहीं होता। इसे नवो देखा जा सकता है, न छुआ जा सकता है और न ही इसका आस्वादन किया जा सकता है। यह उत्पाद वस्तुत: मनोवैज्ञानिक उत्पाद होता है, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में उपयोगिता कहा जाता है।उपयोगिता की धारणा व्यक्ति की आन्तरिक भावनाओं से संबंधित है। इसका कोई रूप नहीं होता और न ही यह भौतिक रूप से दिखाई देती है। यह तो बस्तु के उपभोक्ता की मनोवैज्ञानिकता पर निर्भर करती है।
उपयोगिता के लक्षण या विशेषताएँ (Uyogita k lakshan ya visheshtaye) –
उपयोगिता के लक्षण निम्न प्रकार हैं-
- उपयोगिता हानिकारक एवं लाभदायक दोनों प्रकार के पदार्थों में होती हैजिस वस्तु के उपभोग से मनुष्य को संतुष्टि होती है, चाहे बह लाभदायक हो या हानिकारक बह उपयोगिता कहलाती है जैसेशराब, सिगरेट, चाय, दूध आदि।
- उपयोगिता सापेक्षिक होती हैकिसी बस्तु की उपयोगिता झप़्य, स्थान, व्यक्ति और परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग होती है।
- उपयोगिता व्यक्तिगत होती हैव्यक्ति की इच्छा, ढथि, आदत, फैशन, बावावरण आदिपर उपयोगिता निर्भर करती है।
- उपयोगिता अदृश्य होती हैकिसी वस्तु की उपयोगिता को हम अनुभव तो करते हैं, किन्तुवह दिखाई नहीं देती।
- उपयोगिता अनुमानित होती हैकिसी वस्तु के उपभोग मरे हमें क्रितनी उपयोगिता मिलेगी, इसका हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।
- उपयोगिता धनात्मक और ऋणात्मक हो सकती हैयह वस्तु की मात्रा फ निर्भर करती – है। अधिकतम सन्तुष्टि के बिन्दु पर तो धनात्मक और उनके बाद ऋणात्मक उपयोगिता मिलती है।
- उपयोगिता तीव्रता पर आधारित होती हैकिसी वस्तु को प्राप्त करने की व्यक्ति की जितनी तीज्र इच्छा होगी, उससे उतनी अधिक उपयोगिता मिलती है।
- उपयोगिता और लाभदायकता दोनों अलग-अलग हैंकोई वस्तु लाभदायक नहीं हो फिर भी किसी व्यक्ति विशेष के लिये उसमें उपयोगिता हो। उटाह्रण के लिये स्वास्च के लिये शराब नुकसानदायक होती है, लेकिन एक शरानी के लिये उसमें अत्यधिक उपयोगिताहोती है।
- ‘उपयोगिता’ शब्द का कोई नैतिक या वैधानिक महत्व नहीं होता बिना लायसेन्स के बन्दूक रखना गैर-कानूनी है, लेकिन उस डाकू के लिये बन्दूक की अत्यधिक उपयोगिता है, जिसने किसी याँव में डाका डालने की योजना बना रखी है।
उपयोगिता की माप (Uyogita ki map) –
वस्तु तथा की उपयोगिता को मापने के लिये किसी यंत्र या उपकरण का आविश्कर नहीं हुआ है। जिस प्रकार ताप को थर्मामीटर द्वारा और दबाव को दाब-यंत्र द्वारा मापा जा सेवा सकता है, उस प्रकार उपयोगित् कम प्रत्यक्ष रूप से नहीं मापा जा सकता है ।. अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात् किसी क्स््तु या सेवा की उपयोगिता को हम केवल अनुमान द्वारा माप सकते हैं। यह अनुमान दो प्रकार से संभव है-
- इकाइयों द्वारावस्तुओं की उपयोगिता की हम आपस में तुलना करके बता सकते हैं कि कौन-सी वस्तु अधिक उपयोगी है, और कौन-सी कम। यदि हम चार किलो गेहूँ देकर दो किलो चाक्ल लेने को तैयार हैं, तो ऐसा माना जायेगा कि गेहूँ की अपेक्षा चावल की उपयोगिता अधिक है। यह क्रियात्मक घाष है, जो प्राथमिकता के क्रम पर आधारित है।
- मुद्रा द्वाराव्यक्ति किसी वस्तु को प्राप्त करने हेतु जितनी अधिक मुद्रा की मात्रा देने को तैयार होगा है, उसके लिए उम्र वस्तु की उतनी अधिक उपयोगिता होती है। किसी वस्तु या सेवा के बल्ले में दी जाने वाली मुद्रा की इकाई ही उसकी उपयोगिता की माप है। सीमांत, औसत और कुल उपयोगिताइसी विश्लेषण पर आधारित है।
उपयोगिता के भेद या प्रकार (Uyogita k bhed ya prakar) –
अर्थशास्त्र में उपयोगिता वा तुष्गुण को तीन बर्गों में विभक्त किया गया है-
- (1)सीमांत उपयोगिता
- (2) कुल उपयोगिता
- (3) औसत उपयोगिता।
- सीमांत उपयोगिता– जब व्यक्ति किसी वस्तु का उपभोग करता है, तो बह एक के बाद दूसरौ, दूसरी के बाद तीसरी और तीसरी के बाद चौथी अर्थात् क्रमानुसार इकाइयों का उपभोग करता जाता है। इस प्रकार किसी समय विशेष पर उपभोग की जाने वाली अन्तिम इकाई को हो सीमांत इकाई और उससे प्राप्त होने बाली उपयोगिता की सीमांत उपयोगिता कहते हैं।
थ्रो. एली के अनुसार-
“किसी व्यक्ति के प्रास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमांत॑ इकाई की उपयोगिता या तुष्टियुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु विशेष की सीमांत उपयोगिता या सीमांत हुष्टियूण कहा जाता है।”
सीमांत उपयोगिता के रूप( Seemant uyogita k roop) –
- एक समय में एक ही वस्तु की लगातार इकाइयों के उपभोग करने से उसकी आवश्यकता की तीव्रता कम होती जाती है और एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि जब वस्तु की और इकाई का उपभोग किया जाय तो उपयोगिता के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होने लगती है। अतएवं सीमांत उपयोगिता के निम्नलिखित तीन रूप होते हैं
(1) धनात्मक सीमान्त उपयोगिता
(2) शूम्यात्मक सीमान्त उपयोगिता
(3) ऋणात्मक सीमान्त उपयोगिता
- धनात्मक सीमांत उपयोगिता- किसी वस्तु के उपभोग से जब तक हमें पूर्ण सन्तुष्टि नहीं होजाती, तब तक हमें उस वस्तु की आवश्यकता महसूस होती रहती है तथा हर इकाई के उपभोग से कुछ न कुछ संतुष्टि प्राप्त होती जाती है, उसे हम धनात्मक सीमांत उपयोगिता कहते हैं।
- शून्यात्मक सीमांत उपयोगिता- जब किसी वस्तु की अगली इकाई के उपभोग से हमें संतुष्टिप्राप्त नहीं होती है और उपभोग न करने पर किसी प्रकार की हानि भी नहीं होती है, तब उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता शून्य होती है।
- ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता- किसी वस्तु के उपभोग से हमें जब हानि होने लगती है, तो वह उपयोगिता ऋणात्मक कहलाती है।
सीमांत तुष्टिगुण के विभिन्न रूपों का सारणी द्वारा स्पष्टीकरण
उक्त सारणी में अभिषेक जब पहला केला खाता है, तो उसको 50 तुष्टिगुण प्राप्त होता है। यदि इसके बाद वह और केले का उपयोग जारी रखता है तो क्रमशः उसे दूसरे से 40, तीसरे से 30, चौथे से 20 पाँचवें से 10 तथा छठे से 0 उपयोगिता प्राप्त होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अभिषेक केले की इकाइयों की संख्या में जैसे-जैसे वृद्धि करता जाता है,
उसे प्रत्येक अगली इकाई से घटती दर पर सीमांत तुष्टिगुण या उपयोगिता प्राप्त होती है। यह क्रम केवल पाँचवें केले तक ही जारी रहेगा। यहाँ पर होने वाला सीमांत तुष्टिगुण केवल 10 ही रह जाता है। इस तुष्टिगुण को धनात्मक कहते हैं।छठे केले के उपभोग से उसको शून्य तुष्टिगुण प्राप्त होता है। यही संतुष्टि की उच्चतम सीमा है।
यदि इस सीमा के बाद भी बह केले खाना जारी रखता है, तो सातवाँ एबं आठवाँ केला उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रहेगा।सातवें तथा आठवें केले से ऋणात्मक तुष्टिगुण प्राप्त होगा। उसको संतोष प्राप्ति के स्थान पर कष्ट का अनुभव प्राप्त होगा।
सीमांत तुष्टिगुण के विभिन्न रूपों का रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण –
प्रस्तुत चित्र में ‘अ’ ‘द’ रेखा पर केले से प्राप्त ञ तुष्टिगुण को दर्शाया गया है। अ “ब’ रेखा धनात्मक घनात्मक लुष्टिगुण तुष्टिगुण तथा अ द रेखा ऋणात्मक तुष्टिगुण को बताती हैं। अ ‘स’ रेखा उपभोग की इकाइयाँ दर्शाती है। केले की पाँचवीं इकाई तक प्राप्त होने वाला तुष्टिगुण या उपयोगिता धनात्मक है, छठे केले से शून्य है ३० रे सूत्यात्मक दुष्टिपुण तुष्टिगुण प्राप्त होता है।
प्राप्त सीमान्त उपयोगिता यह कर ३ हर इस बात को प्रकट करता है कि अब केले का उपयोग बन्द कर देना चाहिए। इस अवस्था को ही अधिकतम संतुष्टि का बिन्दु कहते हैं। इस स्थिति के बाद भी यदि. 710. केला की इकाइयाँ…ऋणात्मक उपभोग जारी रखा जाता है, तो ऋणात्मक तुष्टिगुण दः तुष्टिगुण प्राप्त होगा।
सीमांत उपयोगिता को प्रभावित करने वाले तत्व-
- वस्तु की मात्रा व्यक्ति के पास वस्तु अधिक मात्रा में है, तो उनकी सीमांत उपयोगिता कमतथा वस्तु कम मात्रा में है, तो वस्तु की सीमांत उपयोगिता अधिक होती है।
- स्थानापन्न वस्तुएँ किसी वस्तु की स्थानापनन वस्तु होने की दशा में वस्तु की सीमांत उपयोगिता कम होती है, जैसे चाय के स्थान पर कॉफी का प्रयोग और जिन वस्तुओं की कोई स्थानापन वस्तु नहीं होती, उनकी सीमांत उपयोगिता अधिक होती है।
- व्यक्ति की आयव्यक्ति की आय अधिक होने पर भी वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता कम होती है तथा व्यक्ति की आय कम होने पर वस्तु की सीमांत उपयोगिता अधिक होती है।
कुल उपयोगिता ( kul Uyogita ) –
- किसी दिये हुए समय में किसी वस्तु की समस्त इकाइयों का उपभोग करने से जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उसके योग को कुल उपयोगिता कहते हैं।
- प्रोफ़ेसर मेयर्स के अनुसारकिसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग के परिणामस्वरूप प्राप्त सीमांत उपयोगिता के योग को ही कुल उपयोगिता कहते हैं।
इस सारणी से यह स्पष्ट होता है कि केले की एक इकाई का उपभोग करने से 50, दो इकाई उपभोग करने से 90 और इसी प्रकार पाँच इकाइयाँ उप्रभोग करने से कुल 150 उपयोगिता प्राप्त होती है। प्रोफेसर गोसेन ने इस नियम की सर्वप्रथम व्याख्या की थी। इसे गोसेन का प्रथम नियम या तृप्ति का नियम कहा जाता है।
कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने सीमांत उपयोगिता हास नियम की परिभाषाएँ निम्न प्रकार दी हैं
- प्रो. मार्शल-“अन्य बातें समान रहने पर किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु के स्टॉक : की मात्रा में वृद्धि होने पर जो अतिरिक्त लाभ उसे मिलता है उसकी मात्रा प्रत्येक वृद्धि के साथ घटतीजाती है।
- प्रो. ब्रिग्ज-“किसी समान वस्तु के भण्डार में अधिक इकाइयों की वृद्धि होने से उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटती जाती है।”
- चेपमैन-“ किसी वस्तु की जितनी भी अधिक मात्रा हमारे पास होती है, उस वस्तु की मात्राओं में वृद्धि के लिए हम उतने ही कम इच्छुक होते हैं अथवा उतनी ही अधिक हम उसकी अतिरिक्त वृद्धियाँ नहीं चाहते हैं।””
- एडवर्ड नेविन-“किसी वस्तु के उपभोग के क्रम में प्रत्येक वृद्धि के साथ उस वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों से प्राप्त होने वाली उपयोगिता घटती जाती है।
- प्रो. गोसेन- जैसे-जैसे हम लोग किसी एक संतोष की अधिकतम मात्रा को प्राप्त करते जाते हैं, वैसे-वैसे वह सन्तोष पूर्ण सन्तुष्टि ग्राप्त होने तक घटता जाता है।””
- प्रो, बोल्डिंग- “अन्य सभी वस्तुओं के उपभोग को यथास्थिर रखते हुए, जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु के उपभोग को बढ़ाता जाता है, वैसे-वैसे परिवर्तनशील वस्तु की सीमांत उपयोगिता अनिवार्य रूप से घटती चली जानी चाहिये।”
इन परिभाषाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि किसी वस्तु के निरन्तर उपभोग के कारण उस बस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घटती चली जाती है, किन्तु कुल उपयोगिता एक निश्चित बिन्दु तक बढ़ती जाती है जिसे पूर्ण संतुष्टि का बिन्दु कहते हैं और इसके बाद कुल उपयोगिता भी घटने लगती है।