क्षेत्रीयता के विकास के कारण
क्षेत्रवाद या क्षेत्रीयतावाद के जन्म या विकास के कारणों का अध्ययन निम्नांकित भागों में किया जा सकता हैं ।
क्षेत्रीयता के विकास के कारण आर्थिक कारण-
क्षेत्रवाद की उत्पत्ति का सबसे प्रमुख कारक आर्थिक विकास है। स्वाधीनता के बाद देश में आर्थिक विकास ने जब गति पकड़ी तो प्रत्येक अविकसित अथवा अर्धविकसित क्षेत्रों में यह आशा बाँधी कि केन्द्र एवं राज्य सरकारें अपनी आर्थिक विकास योजनाओं में उनके क्षेत्र को शामिल करेंगे।
किन्तु राजनीतिक सत्ता के दुरुपयोग व प्रभावी नेताओं के विशेष क्रियाकलापों के कारण सभी अविकसित क्षेत्रों में समान आर्थिक विकास नहीं हुआ । परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्र तो बहुत विकसित होने लगे तो अन्य क्षेत्र विकास के लाभ से पूर्णत: वंचित रह गये । इससे इन क्षेत्रों के मन में रोष, द्वेष की भावना पनपने लगी और 8 क्षेत्रवाद पनपने लगा।
क्षेत्रीयता के विकास के कारण भौगोलिक कारण (असमानता ) बहुधा भौगोलिक –
कारण क्षेत्रीय भावना का प्रभावपूर्ण कारक बन जाता है। भारत चार स्पष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त है। ये क्षेत्र भौगोलिक दशाओं में विपरीत है । इनमें भाषा, संस्कृति, रहन–सहन, आर्थिक विकास में अंतर दिखाई पड़ता है । अतः किसी एक क्षेत्र का विकास दूसरे क्षेत्र में संकीर्ण भावना को पनपने का अवसर देता है। उत्तर और दक्षिण क्षेत्रों में विकास के अंतर से ही दक्षिण में क्षेत्रवाद अधिक पनपा ।
क्षेत्रीयता के विकास के कारण भाषा एवं जातिगत विभिन्नता —
भारत में क्षेत्रवाद की भावना भाषा से अधिक जुड़ी हुई है इसी भाषा को लेकर स्वाधीनता के बाद भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए उग्र आंदोलन हुए थे अभी भी लोगों में राष्ट्रीय भाषा हिंदी के स्थान पर अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रति अत्यधिक संवेगात्मक लगाओ है जो अन्य भाषाओं के प्रति उपेक्षा का भाव पान प्रकार प्रदेशिकता के बीच में तनाव और दूरी बढ़कर क्षेत्रीयता का विकास करता है
इसी तरह जिन क्षेत्रों में किसी जाति विशेष की प्रधानता होती है वह भाषागत होकर उग्र प्रवृत्ति भी धारण कर सकती है हरियाणा महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश में इसी जातिगत भिन्नता के चलते तीव्र आंदोलन हुए और नए राज्यों का निर्माण हुआ इसके विपरीत पंजाब में खालिस्तान की मांग एक पृथकतावादी विचार है जो जोड़ने के स्थान पर विभाजन को प्रेशर देती है इसका प्रतिकार किया जाना आवश्यक है
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क्षेत्रीयता के विकास के संस्कृतिक कारण-
भारत भौगोलिक परिस्थितियों के साथ-साथ सांस्कृतिक दृष्टि से भी बात हुआ है प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र का अपना एक विशिष्ट सांस्कृतिक जीवन दर्शन रहा है जिस पर वे गर्व करते हैं और अन्य संस्कृतियों से अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ बताकर अपने व्यवहार से दूरी बढ़ते रहते हैं और उदाहरणर्थ उत्तरी क्षेत्र को अपनी वैदिक सभ्यता और आर्य संस्कृति पर गर्व है
सिंधु घाटी की सभ्यता पश्चिमी भारत और मध्य के मैदाने के लोगों के लिए गौरव गाथा था दूसरी और दक्षिण भारत के क्षेत्र का यह दावा है कि उनके यहां भारतीय संस्कृति और धर्म अपने मौलिक रूप में अभी भी विद्यमान है वे ही भारत के क्षेत्र के दावे झूठे ना होते हुए भी क्षेत्रवाद की संकीर्ण मनोवृत्ति के विकास में सहायक सिद्ध रहे हैं और इससे उनमें दूरी आज तक बनी हुई है
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क्षेत्रीयता के विकास के राजनीतिक कारण-
क्षेत्रवाद के जन्म में स्वार्थी राजनीतिकों का विशेष हाथ रहा है सत्ता का ऐसा मद है जिसे प्राप्त करने के लिए जब सृष्टि के आदिकाल में देवताओं और राक्षसों में कलह तक हो गया था तो कलयुग में स्वार्थी नेता क्षेत्रीय भावना को भड़काकर नए राज्य अपने और उसे पर कब्जा करके सत्ता सुख है भोगने की लालसा कैसे त्याग सकते हैं
इन नेताओं में जो केंद्र में प्रभाव रखते थे अपने क्षेत्र के लिए शिक्षा उद्योग रोजगार परिवहन से संबंधित अनेक योजनाएं स्वीकृत कराकर अपना क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने में सफल हो गए जो स्थानीय क्षेत्रीय नेता बच गए उन्होंने क्षेत्रीयता के विकास के नाम पर केंद्र की अपेक्षा पूर्ण नीति का हवाला देते हुए पृथक राज्य के निर्माण की मांग करते हुए क्षेत्रीय दल गठित कर लिए आज की राजनीति में ऐसे क्षेत्रीय दलों का बड़ा गोल वाला है इससे क्षेत्र का विकास कम पर इन दलों के नेताओं का आर्थिक राजनीतिक का अवश्य बड़ा है
क्षेत्रीयता के विकास के अंतर राज्य विवाद-
राज्यों में आपसी विवाद भी क्षेत्रवाद की भावनाओं को बढ़ाने में सहायक हुए हैं उदाहरण स्वरूप चंडीगढ़ के विषय में हरियाणा और पंजाब में काफी तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है नदी पानी को लेकर आंध्र प्रदेश कर्नाटक और चेन्नई के बीच विवाद अभी चल रहा है तेलंगाना राज्य की मांग भी इसके एक कारण है पंजाब दिल्ली और हरियाणा के मध्य जल विवाद क्षेत्र के बीच कटुता पैदा कर क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते हैं
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