जंतु खाद्य संसाधन
जंतु खाद्य संसाधन की प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत के बारे में पढ़ेंगे |
जन्तु जनित खाद्य संसाधनों की आवश्यकता एवं महत्व : सीमित है व जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है । हमारी आहार की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। केवल एशिया महाद्वीप में ही संसार के लगभग 61% घर अल्पपोषण का शिकार हैं । यह समस्या ग्रामीण क्षेत्र में बहुत अधिक गंभीर है । अत: उत्तम आहर प्राप्ति हेतु खाद्यान्न उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ जन्तु खाद्य संसाधनों के संरक्षण संबंधी एवं दोहन की भी अति आवश्यकता है।
जंतु खाद्य संसाधन क्या है ?
जीव जंतुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों के समूह को जंतु खाद्य संसाधन कहते हैं, जीव जंतुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं: जैसे
हमें दूध, अंडा, मुर्गा, मछली, मूंग, शहद, पनीर, नमक, झींगा, मांस, मक्खन, सरसों का तेल, और गाजर आदि जैसे खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं
मनुष्य आहार में जन्तु जनित खाद्य पदार्थ प्रमुख रूप से दुधारू पशुओं, अंडे देने वाले पक्षियों तथा मांस उत्पादक जन्तुओं से प्राप्त होते हैं। भारत में गाय, भैंस व बकरी दूध उत्पादन के लिए, मुर्गी अंडा तथा मांस उत्पादन के लिए, भेड़, बकरी, सूकर व मछली मांस उत्पादन हेतु व्यावसायिक स्तर पर पाली जाती हैं। आजकल खरगोश पालन भी हमारे देश में एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में स्थान ले रहा है।
भारतीय डेयरी पुरुष डॉ. वर्गीस कुरियन
भारत के मिल्कमेन के नाम से विख्यात डॉ. वर्गीस कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल में हुआ था। आपने डेयरी इन्जीनियर के रूप में व्यावसायिक सेवा प्रारंभ की तथा दूध विकास कार्यक्रम (आपरेशन फ्लड) की संकल्पना को साकार करके श्वेत क्रांति में बहुमूल्य योगदान दिया। आपको श्वेत क्रांति का जनक (Father of White Revolution) कहा जाता है। आपने भारत में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना भी की।
हमें अपनी बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्न के साथ-साथ उत्तम गुणों वाले जन्तु जनित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने चाहिए। जिससे उन्हें संतुलित आहार उपलब्ध हो सके। जन्तु खाद्य संसाधनों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता उचित देखरेख, समुचित पोषण, प्रजनन, नस्ल सुधार एवं विभिन्न रोगों की रोकथाम करके बढ़ायी जा सकती है।
इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने श्वेत क्रांति एवं नीली क्रांति के माध्यम से क्रमशः दूध एवं मछली उत्पादन बढ़ाने का सराहनीय प्रयास किया। श्वेत क्रांति की व्यापक सफलता के बाद आज हमारा देश नीली क्रांति (मछली पालन) की ओर बढ़ रहा है
जन्तु जनित खाद्य पदार्थों का महत्व :-
जन्तुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों का कम उपयोग किया जाता है, परन्तु कृषि पर दबाव एवं खाद्यान्न की सीमितता को देखते हुए इन खाद्य संसाधनों का निम्नांकित महत्व है –
- इन खाद्य संसाधनों से खाद्यान्न की बचत होती है।
- वैकल्पिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते हैं ।
- जन्तु जनित खाद्य पदार्थ पौष्टिक होते हैं ।
- जन्तु पालन से व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है ।
- अनेक उद्योगों हेतु कच्चा माल जैसे चमड़ा, बाल, हड्डियाँ इत्यादि प्राप्त होते हैं।
खाद्य संसाधन प्रदान करने वाले जन्तु तथा प्रमुख पशु एवं पक्षियों की मुख्य नस्लें
भारत वर्ष में खाद्य संसाधन प्रदान करने वाले जन्तुओं की प्रमुख प्रजातियां गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मछली, शूकर, खरगोश एवं अन्य समुद्री जन्तु जैसे केकड़े, आयस्टर एवं झींगा है । हमारे देश में शाकाहारी व्यक्तियों की प्रधानता है, अत: दुग्ध उत्पादक पशुओं जैसे गाय, भैंस, बकरी का विशेष महत्व है। मांस उत्पादन की दृष्टि से बकरी, भेड़, शूकर मछली एवं खरगोश जन्तुओं का महत्व है। इसी प्रकार अण्डा तथा माँस उत्पादन के लिए मुर्गियों का महत्वपूर्ण स्थान है ।
गौपालन –
गाय को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व प्राप्त है । यह हमें दूध एवं कृषि कार्य तथा आवागमन हेतु पशुधन प्रदान करती है। भारत में गाय की लगभग 30 नस्लें प्रचलित हैं । जिन्हें तीन श्रेणीयों में बांटा गया है।
दूधारू नस्लें (Milk Breed )-
ये नस्लें दूध उत्पादन अधिक करती हैं। किंतु इनके बछड़े कृषि कार्य हेतु उपयोगी नहीं होते हैं। लाल सिन्धी, साहीवाल, गिर, देवनी
भारवाही नस्लें (Drught Breed )-
ये नस्लें दूध बहुत कम देती हैं कितु इनके बछड़े कृषि कार्य एवं बोझा ढोने हेतु उत्तम हैं। अमृत महल, दांगी, कांगयाग, मेवाती, खिल्लारी
- साहीवाल नस्ल की गाय
- खिल्लारी नस्ल की गाय
द्विउद्देशीय नस्लें (Dual Purpose Breed ) –
इन नस्लों की गाय दूध उत्पादन अधिक करती हैं तथा इनके बछड़े भी कृषि कार्य हेतु उत्तम होते हैं। हरियाणा, थारपारकर, अंगोल, कृष्णवेली । भारतीय नस्ल की गायों के अतिरिक्त हमारे देश में विभिन्न विदेशी नस्ल की गायों को भी पाला जाता है।
गाय की प्रमुख विदेशी नस्लें – होलिस्टीन फ्रीसियन, ब्राउनस्विस, आयर शायर एवं जर्सी हैं। इन विदेशी नस्ल की गायों की दूध उत्पादन क्षमता देशी गायों की तुलना में अधिक होती है । उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से गाय की संकर नस्ले तैयार की गई हैं। प्रमुख संकर नस्लें निम्न प्रकार हैं-
करन स्विस –
यह साहीवाल नस्ल की गाय व ब्राउन स्विस नस्ल के सांड के बीच संकरण से विकसित की गयी है । इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता 3200 लीटर प्रति ब्यांत है ।
करन फ्राई –
यह थारपारकर नस्ल की गाय व होलिस्टीन फ्रीसियन नस्ल के सांड के बीच संकरण से विकसित की गई है। इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता 3600 लीटर प्रति ब्यांत है।
जरसिंध –
यह लाल सिंधी नस्ल की गाय व जर्सी नस्ल के सांड के बीच संकरण से विकसित की गई है। इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता 3700 लीटर प्रति ब्यांत है ।
मध्यप्रदेश में गाय की अनेक नस्लें पाली जाती है किंतु निमाड़ी एवं मालवी नस्ल म.प्र. की मूल नस्लें हैं जो कि क्रमशः निमाड़ एवं मालवा क्षेत्र में प्रमुखता से पायी जाती हैं । मुर्रा भैंस
भैंस की प्रमुख नस्लें –
भारत में भैंस वंशीय पशु भी प्रमुख रूप से दूध उत्पादन हेतु पाले जाते हैं । हमारे देश में भैंस की लगभग दस नस्लें पायी जाती हैं जिनमें से महत्वपूर्ण नस्लों के नाम मुर्रा, भदावरी, जाफराबादी, मेहसाणा आदि हैं।
बकरी की प्रमुख नस्लें –
बकरी का दूध बच्चों, बुजुर्गों एवं मरीजों के लिए उत्तम माना जाता है। बकरी से मांस के रूप में आहार की प्राप्ति भी होती है। म.प्र. एवं भारत में बकरी की विभिन्न नस्लें पाली जाती हैं। जमुनापारी नस्ल की बकरी एक प्रमुख दुग्ध उत्पादक नस्ल है जो प्रतिदिन 1.5 से 2 लीटर दूध देती है। साथ ही इसके बच्चे (नर) मांस के रूप में उपयोग किये जाते हैं
भारत की ऊन उत्पादक नस्लें-
बीकानेरी, मारवाड़ी, भाकरवाल, करनाह, भदरवाह, गुरेज, रामपुर- वुशियार, हसन, दकनी हैं।
माँस उत्पादक नस्लें –
जालौनी मड़िया एवं निल्लोरी हैं।
मांस एवं ऊन उत्पादव नस्लें –
हिसार डेल, बेलारी, लोही कच्छी हैं। मेरिनो नामक नस्ल संसार में सबसे अधिक बारीक ऊन के लिये प्रसिद्ध नस्ल है। मेरीनों, रेम्बाउलेट, साउथडान, कोरिडेल, लीसेस्टर भेंड़ की प्रमुख विदेशी नस्लें हैं।
मुर्गी की प्रमुख नस्लें –
हमारे देश में मुर्गी की 20-25 नस्लें ही आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त एवं पालने योग्य हैं। असील, घाघस, गेम, चिटगांव, वसरा, कड़कनाथ, जर्सी जाइंट मांस के लिए पाली जाने वाली मुख्य नस्लें है ।
कड़कनाथ मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में पायी जाने वाली प्रसिद्ध नस्ल है। इसका मांस, रक्त व संपूर्ण शरीर काला होता है तथा मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। मुर्गे का वजन लगभग 1.5 किलोग्राम तथा मुर्गी का वजन लगभग 1.0 किलो ग्राम होता है। किंतु इस नस्ल की अंडा उत्पादन क्षमता बहुत कम होती है ।
असील भारत की सर्वोत्तम मांस वाली नस्ल है। इससे मांस अधिक प्राप्त होता है परंतु अंडा उत्पादन बहुत कम है।
असील नस्ल के मुर्गे का वजन 4-5 किलो ग्राम व मुर्गी व वजन 3-4 किलो ग्राम का होता है । परंतु इस नस्ल की अंडा उत्पादन क्षमता बहुत कम है। व्हाइट लैग हार्न, मिनोरकर, ऐन कोना एवं कैम्पिनस नस्लें अंडा उत्पादन हेतु पाली जाने वाली विदेशी नस्लें है ।
व्हाइट लैगहार्न संसार की सबसे अधिक अंडा उत्पादन करने वाली नस्ल है।
अन्य पशु पालन उपरोक्त पशुधन व पक्षियों के अतिरिक्त मछली एवं सूकर का भी मांस उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है ।
मछली पालन-
भारत में मछली की प्रमुख देशी नस्लें कतला, रोहू, मृगल तथा विदेशी नस्लें सिल्वर कार्प एवं ग्रास कार्प हैं। कला सबसे तेज वृद्धि करने वाली मछली है ।
शूकरपालन-
लार्ज व्हाइट यार्कशायर, मिडिल व्हाइट यार्कशायर, वेर्कशायर, चेस्टर व्हाइट, डुराक इत्यादि सूकर कीर्णी व विदेशी नस्लें है जो मांस एवं बाल उत्पादन हेतु पाली जाती हैं।
खरगोश पालन –
यह व्यवसाय भी देश में तेजी से प्रचलित हो रहा है क्योंकि खरगोश के मांस में प्रोटीन अधिक होता है एवं चर्बी व कोलेस्ट्राल कम होता है। इसके साथ-साथ उनकी तीव्र प्रजनन एवं वृद्धिदर, छोटा गर्भकाल तथा वर्ष में चार पांच बच्चे देने की क्षमता खरगोश पालन की संभावना को और अधिक लाभकारी बना देती है।
भारत में मांस के लिए खरगोश की लगभग 6 नस्लें उपलब्ध हैं ! ये नस्लें न्यूजीलैंड सफेद, ग्रेजाइंट, व्हाइट जाइंट, ब्लैकब्राउन, सोवियत चिंचिला एवं डच हैं ।