प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे गरीबी एवं बेरोजगारी के बारे में पढ़ेंगे |
भारत में गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण
गरीबी एवं बेरोजगारी:-
कठिन है क्यों सभी बेरोजगार व्यक्ति रोजगार कार्यालय में पंजीयन नहीं कराते हैं। भिन्न-भिन्न अध्ययन, सर्वेक्षण एवं जाँच से बेरोजगार लोगों की संख्या का अनुमान मात्र लगाया जा सकता है।
योजना काल में बेरोजगार लोगों की स्थिति एक अध्ययन के अनुसार निम्न प्रकार बताई गई हैयोजना + बेरोजगार (लाख में) प्रथम योजना के प्रारम्भ में 33 द्वितीय योजना के प्रारम्भ में 53 तृतीय योजना के प्रारम्भ में 71 चतुर्थ योजना के प्रारम्भ में 96 पाँचवीं योजना के प्रारम्भ में 126 छठी योजना के प्रारम्भ में 171 सातवीं योजना के प्रारम्भ में हे 221 आठवीं योजना के प्रारम्भ में 280 नर्वी योजना के प्रारम्भ में 370 दसवीं योजना के प्रारम्भ में 500 अल्प बेरोजगारी का तो कोई अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता।
विशेषज्ञों की ऐसी राय है कि भारतीय कृषक वर्ष भर में 4 से 6 माह तक बेरोजगार रहता है। अदृश्य बेरोजगारी भी दिनों-दिन बढ़ती न रही है। शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। भिन्न-भिन्न राज्यों में बेरोजगारी की स्थिति अलग-अलग है। कृषि प्रधान राज्यों में बेरोजगारी अधिक पाई जाती है।
भारत में बेरोजगारी के कारण:-
भारत में बढ़ती हुई बेरोजगारी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-
तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या:-
भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। वर्तमान में यह 2.1 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही है जबकि रोजगार के अवसरों में इस दर से वृद्धि नहीं हो रही है।
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली:-
देश में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। यहाँ शिक्षा सिद्धान्त-प्रधान शिक्षा है जबकि इसको व्यवसाय प्रधान होना चाहिए।
हस्त कला एवं लघु उद्योगों की अबनति:-
बेरोजगारी बढ़ाने में हस्तकला एवं लघु उद्योगों ने भी काफी योगदान दिया है। इन उद्योगों की उन्नति का मुख्य कारण मशीनों के प्रयोग में वृद्धि होना है। जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। .
त्रुटिपूर्ण आर्थिक नियोजन:-
भारत में अपनाई गई आर्थिक नियोजन की नीति दोषपूर्ण है। हमारे देश के लिये रोजगार-प्रधान योजनाओं की अधिक आवश्यकता है जिसकी उपेक्षा की गई है। अत: बेरोजगारी की मात्रा में निरन्तर वृद्धि होती चली गई।
पूँजी निर्माण की धीमी गति:-
देश में पूँजी निर्माण की गति बहुत ही धीमी एवं निम्न रही है जिसके कारण उद्योगों, व्यवसायों व सेवाओं का विकास भी धीमी गति से ही हुआ है जबकि जनसंख्या के तीव्र गति से वृद्धि के कारण रोजगार सुविधाएँ उस दर से नहीं बढ़ पायी हैं।
भारतवर्ष विकासशील देश होने के कारण यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश में स्वचालित प्रशी्ें लगायी जा रही हैं। कृषि में यनत्रीकरण की गति बराबर बढ़ रही है। इन सभी का परिणाम यह हुआ है कि अब पहले की तुलना में कम व्यक्तियों से वही कार्य कराया जा सकता है| इस प्रवृत्ति ने बेरोजगारी में वृद्धि की है।
स्त्रियों द्वारा नौकरी:-
स्वतंत्रता से पूर्व बहुत थोड़ी-सी स्त्रियाँ ही नौकरी करती थीं, लेकिन आज इनकी संख्या एबं इनका प्रतिशत पहले से कहीं अधिक है। इससे पुरुषों मैं बेरोजगारी बढ़ी है।
विदेशों से भारतीयों का आगमन:-
पिछले कुछ वर्षों सरे भारतीय मूल के निवासियों को कुछ देशों द्वारा निकाला जा रहा है। इन देशों में, ब्रिटेन, लंका, यूगेण्डा, कीनिया आदि प्रमुख हैं। इन देशों से भारतीयों के आने से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।
दोषपूर्ण विचार:-
इस देश में बेरोजगारी का एक महत्वपूर्ण कारण शिक्षित व्यक्तियों द्वारा केवल नौकरी की इच्छा रहती है। वे स्वयं कोई उत्पादन कार्य प्रारम्भ नहीं करना आहते हैं। इस दोषपूर्ण विचार से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।
मजदूरी व उत्पादकता में अन्तर:-
देश में नियोजन होने के कारण मुद्रा प्रसार बना हुआ है जिससे मूल्य वृद्धि होती रहती है। इससे प्रभावित होकर श्रमिकों की माँग पर श्रमिकों के लेतन व भत्ते बढ़ा दिये जाते हैं जिससे वस्तुओं की लागत और मूल्य बढ़ जाते हैं, लेकिन वस्तुओं की माँग कम हो जाती है। इससे उत्पादन कम करने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हो जाती है।
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