प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे जैनमत के मूल सिद्धांत के बारे में पढ़ेंगे |
जैनमत के मूल सिद्धांत
वर्धमान महावीर ने जिन सिद्धांतों का प्रचार किया वही जैन धर्म के मूल सिद्धांत हैं जो निम्नलिखित हैं
जैनमत में निवृत्ति का मार्ग-
इसके अनुसार संसार में मनुष्य दुखों से पीड़ित है मानव जीवन में सुख शान्ति नहीं है। समस्त जीवन वासना और तृष्णाओं से भरा है, किन्तु उनकी संतुष्टि नहीं होती है इसके कारण मनुष्य के जीवन में दुखों का प्रवाह है। संसार की प्रमुख समस्या दुख और दुख का निरोध है। इसलिए संसार को त्यागकर भिक्षु बनकर इन्द्रिय निग्रह कर तपस्या द्वारा कैवल्य की प्राप्ति की जाये अतः जैन धर्म मूलतः निवृत्ति का मार्ग है।
जैनमत में अनीश्वरवाद और सृष्टि की नित्यता-
जैन धर्म में ईश्वर को स्वीकार नहीं किया जाता है । सृष्टि को नित्य माना गया है और इसके संचालन के लिए ईश्वर जैसी किसी शक्ति की आवश्यकता नहीं मानी जाती है।
जैनमत में आत्मवादिता-
जैन धर्म में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार. किया गया है इसके अनुसार जीवन केवल मनुष्यों और पशुपक्षियों में ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों, जल और पत्थरों में भी है। कण-कण में भी जीव का वास है विश्व में जीव तथा अजीव दो मूल पदार्थ हैं जीव का अर्थ आत्म है जो मनुष्य की अतिरिक्त प्राकृतिक वस्तुओं में भी है। महावीर स्वामी स्वतः आत्मा की अमर में यकीन रखते थे।
जैनमत में कर्म और पुनर्जम-
महावीर के अनुसार आत्मा निर्भय सर्व दृष्ट, ज्ञान, साथन, आतदमय और क्रियाशील है आत्मा अपने कर्मों से जीवन मरण या पुनर्जन्म के चक्कर में पड़ जाती है अपनी साधना और तपस्या से ज्ञान प्रात करके वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है।
जैनमत में निर्वाण-
पूर्वजमम के कर्म फलों से मुक्ति हो निर्वाण है तप, अनशन, व्रत आदि से पूर्वजन्मों के संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं एवं नये कर्मों का निर्माण नहीं होता है कर्मों के विनाश से आत्मा जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है यही निर्वाण प्राप्त होता हैं
जैनमत में त्रिरत्न-
साधना व विनय के मार्ग में कैवल्य या मोक्ष की प्राप्ति के लिए महावीर ने तीन साधन बतलाये जिन्हें जैन धर्म में त्रिलल कहा जाता है।