पूँजी निर्माण एवं बचत

पूँजी निर्माण एवं बचत-आशय-परिभाषाएँ-रूप-प्रकार-कारण-निर्माण-प्रक्रिया-साधन-महत्त्व | CAPITAL FORMATION AND SAVING | BY-MPBOARD.NET | 2024

“पूँजी निर्माण एवं बचत”

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1 “पूँजी निर्माण एवं बचत”

 

पूँजी निर्माण एवं बचत प्रत्येक राष्ट्र की मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए उच्च पूँजी निर्माण दर का होना आवश्यक है। पूँजी निर्माण की दर ही किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास की गति को निर्धारित करती है। उच्च पूँजी निर्माण दर उद्योगों के विस्तार व विकास में सहायता करने के साथ-साथ लोगों का जीवन स्तर भी उच्च करती है।

रोजगार अवसरों में वृद्धि करती है। आधारभूत संरचना के विकास में गति आती है। कल्याण सुविधाओं का विस्तार होता है। यदि राष्ट्र में पूँजी निर्माण की दर उच्च हो तो अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती जाती है। इसलिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था हेतु उच्च पूँजी निर्माण दर अत्यन्त आवश्यक है।

पूँजी निर्माण एवं बचत से आशय-

 साधारणतः पूँजी निर्माण वह धन है, जिसे समाज के लोगों द्वारा उपभोग न करके बचत के रूप मेंएकत्र कर उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त किया जाता है। संकुचित अर्थ में पूँजी निर्माण का आशय है समाज द्वारा वर्तमान उत्पादन को, भविष्य में पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन के लिए एकत्र करके रखना एवं वर्तमान में उसका उपभोग न करना।

व्यापक अर्थ में पूँजी निर्माण का आशय उन समस्त तत्वों से होता है, जिससे आर्थिक विकास में गति आती है। जैसे समाज के लोगों की शिक्षा, कुशलता, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि। अतः व्यापक अर्थ में पूँजी निर्माण में भौतिक एवं अभौतिक दोनों तत्व सम्मिलित होते हैं।

पूँजी निर्माण एवं बचत की परिभाषाएँ –

”यदि कोई. समाज अपनी पूँजी की मात्रा को बढ़ाना चाहता है तो उपभोग की तुलना में उत्पादन अधिक होना चाहिए। यही नहीं, चूँकि पूँजी घिसती भी है, अतः पूँजी की वर्तमान पूर्ति की रक्षा हेतु भी उपभोग पर उत्पत्ति अधिक होनी चाहिए | प्रो. बाघ

“’चूँजी निर्माण का आशय है कि समाज अपनी समस्त उत्पादक क्रिया को वर्तमान उपभोग की वस्तुओं में ही नहीं लगाता, वरन्‌ उसके एक भाग को पूँजीगत वस्तुओं जैसेउपकरणों, औजारों, मशीनों एवं परिवहन सुविधाओं , संयंत्र एवं साज-सज्जा आदि को जुटाने के लिए प्रयुक्त करता है, जिससे भविष्य में होने वाले उत्पादन में वृद्धि हो।” प्रो. नर्क्से

पूँजी निर्माण एवं बचत के रूप –

 

पूँजी निर्माण के दो प्रकार या रूप निम्नानुसार होते हैं-
    1. सकल पूँजी निर्माण|
    2. शुद्ध पूँजी निर्माण।

सकल पूँजी निर्माण-

जब किसी राष्ट्र की सीमाओं में एक निर्धारित अवधि में जितनी भी पूँजीगत बस्तुएँ निर्मित होती है तो. उनका कुल योग सकल पूँजी निर्माण कहलाता है।

शुद्ध पूँजी निर्माण-

जब किसी राष्ट्र की सकल पूँजी निर्माण में उस अवधि में होने वाली घिसावट (हास) को घटा देते हैं तो शेष को शुद्ध पूँजी निर्माण कहा जाता है। इसे“निम्नलिखित सूत्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

शुद्ध पूँजी निर्माण = सकल पूँजी निर्माण – हास

पूँजी निर्माण एवं बचत की प्रक्रिया-

पूँजी निर्माण एक ऐसी दीर्घकालीन प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे सै चलती रहती है पूँजी निर्माण की प्रक्रिया को निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में समझा जा सकता है –

      1. वास्तविक बचत का निर्माण
      2. बचतों का एकत्रीकरण
      3. बचत का विनियोग

 

वास्तविक बचत का निर्माण

वास्तविक अयंत का निर्मार्ण उपभोग में कमी लाकर किया जाता है। वास्तविक बचत॑ राष्ट्र के लोगों की बचत करने की इच्छा और बचत करने की क्षमता से होती है। अनुत्पादक कार्यों में भी व्यय न करके वास्तविक बचत निर्मित की आ सकती है। ‘

बचतों का एकत्रीकरण-

राष्ट्र कै लोगों द्वारा की गई नयत को बीमा कम्पनियों, बैंकों, डाकघरों एवं विभिन्‍न वित्तीय संस्थाओं द्वारा एकत्र करना पूँजी निर्माण की दूसरी अवस्था है। ये संस्थाएँ बचतों को एकत्र कर विनियोग प्रक्रिया में सहायता प्रदान करती है।

बचत का विनियोग-

जनता से एकत्र बचतों को बैंक, बीमा एवं वित्तीय संस्थाएँ, योग्य साहसियों को ऋण के रूप में उपलब्ध कराती है और ये साहसी उम्त बचत को उत्पादक कार्यों में लगाकर पूँजी निर्माण करते हैं। ये साहसी स्वयं के जोखिम पर बचतों को इस प्रकाश विनियोजित करते हैं, जिससे नयी पूँजीगत परिसम्पत्तियाँ का निर्माण होता है।

पूँजी निर्माण एवं बचत के साधन-

 

घरेलू साधन विदेशी साथन-

1. पारिवारिक क्षेत्र की बचतें
2. सरकारी क्षेत्र की बचतें
3. निगम क्षेत्र की बचतें

विदेशी साधन –

1. पूँजी हस्तांतरण
2. शुद्ध ऋण

आर्थिक विकास में पूँजी निर्माण एवं बचत का महत्व-

प्रत्येक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पूँजी निर्माण पर निर्भर करती है। यदि पूँजी की दर उच्च है वो अर्थव्यवस्था विकसित होगी, जबकि ।नम्न पूँजी निर्माण की दर अर्थव्यवस्था को कमजोर कर देगी। अत: आर्थिक विकास हेतु पूँजी निर्माण एक महत्वपूर्ण तत्य है। आर्थिक विक्लास की प्रक्रिया में पूजी निर्माण के महत्व को निम्त्रांकित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

 

1. प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग-

किसी राष्ट्र की ऊनति व घिकास के लिए प्राकृतिक संसाधन महत्वपूर्ण तत्य होते हैं, लेकिन उमका समुचित उपयोग किया जाये तो के सलाप किसी काम के नहीं रहते हैं। अतः प्राकृतिक संसाधनों के उचित विदोहन हेतु पूँजी निर्माण की आचश्यकर्त होती है, जिससे उपलब्ध प्राकृतिक ससाधनों का संतुलित व पूर्ण विदोहन कर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकें।

2. अधोसंरचना के विकास के लिए-

किसी राष्ट्र की अर्धध्यवस्था को मजबूत होने के लिए अधोसंरचना का सहारा लेना पड़ता है। अतः संचार, परिवहन, विद्युत बाँध, पुल आदि अधोसरचनात्मक इकाइयों के लिए पूँजी निर्माण की आवश्यक्रता होती है।

3. आधुनिक तकनीकी के प्रयोग हेतु-

वर्तमान में कम संसाधनों से ज्यादा उत्पादन केबल आधुनिक तकनीकी के प्रयोग से ही सम्भव है। अत: आधुनिक तकनीकी के प्रयोग एवं विस्तार हेतु पूँजी निर्माण आवश्यक होता है। आधुनिकी तकनीकी के प्रयोग के उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ लागतें भी कम होती जाती है।

4. उद्योगों के विकास हेतु-

राष्ट्र में अर्थव्यवस्था उद्योगों से ही विकास के पथ पर अग्रसर होती है। अतः उद्योगों का विकास आवश्यक होता है। बिना पूँजी के उद्योगों का विकास सम्भव नहीं -है। अतः उद्योगों के विकास हेतु पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है।

5. रोजगार में यूद्धि हेतु-

बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण रोजगार के अवसर आनुपातिक रूप से कम होते जाते हैं एवं बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगती है। अतः ‘नये-नये उद्योगों को स्थापित कर एवं सेवाओं का विस्तार कर रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। अतः रोजगार अवसरों में वृद्धि हेतु पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है।

 

6. प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि हेतु-

पूँजी निर्माण की सहायता से नये-नये उद्योग स्थापित होते हैं सेवा क्षेत्र का विस्तार होता है, जिसके फलस्वरूप रोजगार अवसरों -में वृद्धि होती है और प्रतिव्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय दोनों में भी वृद्धि होती है। अतः प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए पूँजी निर्माण एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तत्व है।

 

7. उत्पादन में वृद्धि हेतु राष्ट्र के उत्पादन में वृद्धि हेतु-

नये-नये उद्योगों की स्थापना, पुराने उद्योगों का विकास, सेवाओं का विस्तार एवं तकनीकी का प्रयोग होता है अतः इन सभी कार्यों में पूँजी की आवश्यकता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। अतः उत्पादन में वृद्धि हेतु पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है।

8. श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि हेतु-

उत्पादन में वृद्धि के लिए तकनीकी के प्रयोग के साथसाथ श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि आवश्यक होती है। अतः श्रमिकों को तकनीकी के प्रयोग हेतु कुशल बनाने के लिए प्रशिक्षण एवं शिक्षा की आवश्यकता होती हैं। अतः श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि हेतु भी पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है।

9. राष्ट्र की आत्मनिर्भरता में वृद्धि हेतु-

जब राष्ट्र का आयात उसके निर्यात की अपेक्षा अधिक होढा है को वह राष्ट्र अन्य राष्ट्रों पर अधिक निर्भर होता है लेकिन एक राष्ट्र अपनी सीमाओं में पूँजी द्वारा आयाब की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन आरम्भ करता है तो वह आत्मनिर्भर होता जाता है। अतः एक राष्ट्र की आत्मनिर्भरता में वृद्धि हेतु पूँजी निर्माण बहुत आवश्यक होता है।

10. आर्थिक कल्याण में वृद्धि हेतु-

आर्थिक कल्याण राष्ट्र के विकास का सूचक होते हैं। जिस गशष्ट्र की कल्याणकारी गतिविधियाँ अधिक होती है, उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था उतबी ही मजबूत हाठी है। अठ: आर्थिक कल्याण जैसेशिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, परिवहन, आवास आदि के लिए पूँजी निर्माण की बहुत आवश्यकता होती है।

11. विदेशी भुगतान संतुलन हेतु-

एक राष्ट्र के निर्यात जब आयात की तुलना में कम होते हैं दो उसकी विदेशी भुगतान संतुलन की स्थिति प्रतिकूछ होती है। अतः विदेशी भुगतान सन्तुलन को अनुकूल बनाने हेतु उत्पादन में वृद्धि एवं नये उद्योगों की स्थापना आवश्यक होती है, जिससे पूँजी की आवश्यकता होवी है। इसलिए विदेशी भुगतान सन्तुलन को प्रतिकूल से अनुकूल बनाने हेतु पूँजी निर्माण आवश्यक है।

भारत में पूँजी निर्माण एवं बचत –

भारत में पूँजी निर्माण का आकलन भारतीय रिजर्ब बैंक तथा केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वास किया जाता है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ‘भौतिक’ परिसम्पत्तियों तथा स्टॉक में वृद्धि के आधार पर करता है। इसके बाद विदेशी पूँजी के अतः प्रवाह का समायोजन कर का आँकलन करता है, बहीं भारतीय गिजर्व बैंक ‘घरेलू बचतों’ के आधार पर पूँजी निर्माण का आकलन सकल घरेलू उत्पादन (507) के प्रतिशत के छूप में पूँजी निर्माण को व्यक्त किया जाता है|

 उपरोक्त तालिका के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में सकल पूँजी निर्माण का प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन यह गति संतोषजनक नहीं है। 2000-01 के आँकड़ों में तो यह नीचे हो गई है। अतः भारत में पूँजी निर्माण की दर अन्य राष्ट्रों की तुलना में कम है जो एक अत्यन्त चिन्तनीय पहलू है।.**

भारत में पूँजी निर्माण एवं बचत दर कम होने के कारण-

  • भारत में पूँजी निर्माण की दर बहुत कम है। भारत की पूँजी निर्माण की दर सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से कम है। भारत में पूँजी निर्माण की दर के कम होने के प्रमुख कारणों को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-

योग्य साहसियों की कमी-

भारत में पूँजी निर्माण दर कम होने का कारण भारत में योग्य साहसियों की कमी है। लोग यहाँ एक सुरक्षित नौकरी की इच्छा रखते हैं, परन्तु उद्योगों की स्थापना हेतु साहस नहीं जुटा पाते हैं, जिसके फलस्वरूप बचत निर्माण दर कम रहती हैं

बचत दर की निम्नता-

भारत में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है, जिससे उसकी आय का अधिकतम भाग उपभोग पर व्यय हो जाता है एवं उसके पास बचत करने के लिए धन नहीं बचता। बचत दर की यह निम्नता भारत में पूँजी निर्माण की दर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है और पूँजी निर्माण कमहोता है।

बढ़ती उपभोग प्रवृत्ति-

आधुनिक भारत में युवाओं में उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वेदिखावे के लिए अनावश्यक व अनुत्पादक वस्तुओं का उपभोग करते हैं, जिससे बचत के लिए धन ही नहीं बचता है और पूँजी निर्माण दर कम हो जाती है

जनसंख्या वृद्धि-

बढ़ती जनसंख्या बचत को प्रभावित करती है। बढ़ती जनसंख्या से उपभोग में वृद्धि हो जाती है एवं बचतें कम होती जाती है। बढ़ती जनसंख्या की माँगों को पूरा करने के लिए व्यय हे वृद्धि करना आवश्यक हो जाता है, जिससे बचतें कम हो जाती है एवं पूँजी निर्माण की दर नीची ही जातीहै

श्रमिकों की अकुशलता

भारत में अधिकांश श्रम अकुशल है। अकुशल भ्रम के कारण उत्पादन दर नीची रहती है एवं लागतों में वृद्धि होती है, जिससे बचत का हिस्सा कम हो जाता है। उत्पादन कम होने एवं लागतों में वृद्धि होने से पूँजी निर्माण की दर कम हो जाती है।

तकनीकी का अभाव-

भारत में तकनीकी का अभाव है। आज भी भारत में अधिकांश लोग पारम्परिक तरीकों से उत्पादन कार्यों में संलग्न है, जिस कारण उत्पावन का स्लर तो नीचा रहता है शुणवत्ता स्तर में भी गिरावट आती जाती है, जिससे बचर्ते कम होती है और पूँजी निर्माण की दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

सार्वजनिक उपक्रमों की विफलता-

भारत में सार्वजनिक उपक्रमों की विशालता ही उनकी विफलता का प्रमुख कारण है। साथ ही अकुशल प्रबन्ध ने उन्हें हानि के पथ पर दौड़ा दिया है। भारत में सार्वजनिक उपक्रमों की विफलता ने बचत दर को नीचे ला दिया है, जिससे पूँजी निर्माण दर में कमी आई है।

विनियोग प्रोत्साहन का अभाव-

भारत में पूँजी निर्माण की दर में कर्मी रहने का एक मुस्यय कारण बविनियोग हेतु प्रोत्साहन का अभाव है। जिन लोगों के पास बडी-बडी बचते रखी हुई है वे उन बचतों को विनियोग नहीं कर रहे हैं और ना ही कोई उन्हें विनियोग हेतु प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे पूँजी निर्माण दर में वृद्धि नहीं हो रही है।

वित्तीय सुविधाओं का अभाव-

भारत जैसे विशाल राष्ट्र में उपलब्ध वित्तीय सुविधाएँ बहुत कम हैं जो कि बड़े पैमाने पर आवश्यक पूँजी की माँग को पूरा नहीं कर या रही है, जिससे नये उद्योगों की स्थापना नहीं हो पा रही है और उत्पादन में रोजगार अवसरों में वृद्धि नहीं हो रही है। अतः वित्तीय सुविधाओं का अभाव भी पूँजी निर्माण की दर में बाधक है।

दोषपूर्ण नियोजन-

भारत में अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएँ पूर्ण की जा चुकी है, लेकितल इन योजनाओं की दोचपूर्ण नीतियों ने एवं भ्रष्टाचार ने इन योजनाओं को असफल कर दिया है, जिससे इन योजनाओं के उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाये एवं भारत में पूँजी निर्माण की दर निम्न हो गई है

दोषपूर्ण कर प्रणाली-

भारत में सरकार द्वारा राजस्व ग्राप्ति हेतु भारी मात्रा में विभिन्‍न प्रकार के कर ज्यादा दर से कर आरोपित किये जाते हैं, जिससे लोगों की आय का भाग कम हो ज्याता है एन उनकी बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः भारत में पूँजी निर्माण की दर को कम करने में दोचपूर्ण ज्कर प्रणाली भी जिम्मेदार है ।

इन्हें भी पड़े :-

 

समाप्त

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