मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, BIOGRAPHY OF MUNSHI PREMCHAND, मुंशी प्रेमचंद - जीवन परिचय, रचनाएं और भाषा शैली ||

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मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)

नमस्कार दोस्तों मैं हूं BINAY SAHU साहू यदि आप mpboard.net देख रहे हैं तो कुछ अच्छा देख रहे हैं तो आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे मुंशी प्रेमचंद के बारे में ,मुंशी प्रेमचंद कौन है, मुंशी प्रेमचंद क्या करते हैं, मुंशी प्रेमचंद वास्तविक नाम क्या है, मुंशी प्रेमचंद जन्म कब हुआ था, मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम क्या है, उनकी माता का नाम क्या है इनके बारे में और उनके जीवन के बारे में आज हम पढ़ेंगे इस पोस्ट में

1 बोर्ड एमपी बोर्ड
2 पाठयपुस्तक एनसीईआरटी
3 कक्षा कक्षा 11वीं
4 विषय हिंदी
5 खंड  गद्य खंड 
6 अध्याय अध्याय 1
7 अध्याय का नाम नमक का दरोगा
8 लेखक का नाम मुंशी प्रेमचंद
9 अभ्यास पुस्तिका पाठ्यपुस्तक एवं अतिरिक्त
10 वर्ग एनसीईआरटी समाधान

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय munshi premchand ka jeevan parichay in hindi

  • मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) भारतीय साहित्य के विख्यात और प्रख्यात कथाकारों में से एक थे। मुंशी प्रेमचंद असली नाम धनपत राय (Dhanpat Rai) था और उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम अज्जाद हुसैन था।
  • प्रेमचंद को बचपन से ही शिक्षा और समाज सुधार के प्रति रुचि थी। उनके पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने शिक्षा पूरी करने के लिए अपने भाई के साथ लखनऊ जाना तथा वहां अध्ययन किया।
  • प्रेमचंद ने अपनी साहित्यिक रचनाएँ उर्दू और हिंदी भाषा में की। उनकी पहली कहानी “दुखी जीवन की कहानी” 1907 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद, उनकी लिखी रचनाएँ धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगी और उन्हें “मुंशी प्रेमचंद” के नाम से पुकारा जाने लगा।
  • प्रेमचंद के लेखन से समाज में उठते समस्याओं, जनजीवन की पीड़ा और दरिद्रता के मुद्दे उजागर हुए। उनकी रचनाएँ सामाजिक न्याय, स्वदेशी आन्दोलन, राष्ट्रीय एकता और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा देने वाली थीं।
  • कहानियों के अलावा, प्रेमचंद ने कई उपन्यास, नाटक और लघु निबंध भी लिखे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – “गोदान”, “निर्मला”, “रंगमंच”, “गबन”, “करमभूमि” और “शतरंज की खिलाड़ी “।
  • मुंशी प्रेमचंद का देहांत 8 अक्टूबर, 1936 को हुआ और उनका निधन वाराणसी में हुआ। उनकी साहित्यिक योगदान को सम्मान और प्रशंसा की जाती है और वे आज भी भारतीय साहित्य के महान कथाकारों में से एक के रूप में याद किए जाते हैं।

मुंशी प्रेमचंद की प्रस्तावना munshi premchand ki prastavna 

मुंशी प्रेमचंद, भारतीय साहित्य के शानदार ग्रंथकार और कहानीकार हैं, जिनकी रचनाएँ समाज की अभिवृद्धि और सामाजिक सुधार के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में जानी जाती हैं। उनका असली नाम धनपत राय था और वे 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के एक छोटे से गाँव में पैदा हुए थे। प्रेमचंद का साहित्य उर्दू और हिंदी भाषा में उत्कृष्ट था और उनकी कहानियाँ उत्तर भारतीय संस्कृति, समाज, राजनीति और व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को छूती हैं।

प्रेमचंद की रचनाएँ गाँवी और शहरी जीवन, गरीबी और धनवानता, संस्कृति और परंपरा, विद्रोह और अनुशासन, प्रेम और विवाह, शिक्षा और अशिक्षा जैसे विविध विषयों पर आधारित हैं। उनकी रचनाओं में व्यक्ति के मन की गहराई, भावनाएँ, और जीवन के विविध पहलू विशेषतः प्रेम, दरिद्रता, और समाजिक न्याय के मुद्दे प्रमुख रूप से प्रकट होते हैं।

प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास “गोदान”, “निर्मला”, और “गबन” आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य के श्रेष्ठ उदाहरण माने जाते हैं। उनकी रचनाएँ समाज के सभी वर्गों तथा उम्र के लोगों को प्रभावित करती थीं और उनके साहित्यिक योगदान को सम्मान और प्रशंसा की जाती है।

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं, और उनकी कहानियाँ एक सच्ची मानवीय दर्शन को प्रस्तुत करती हैं जो समाज की समस्याओं और परिस्थितियों को अनुभव करते हुए हमें समझाती हैं। प्रेमचंद का लोकप्रिय व्यक्तित्व, विचारधारा और साहित्यिक योगदान उन्हें एक महान कथाकार के रूप में स्थायी रूप से बनाए रखते हैं।

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प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं munshi premchand ki rachnaye

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान हैं। उनकी रचनाएँ उर्दू और हिंदी भाषा में हैं और उनके लेखन की विशेषता है कि वे समाज की समस्याओं, व्यक्तियों के भावनात्मक अनुभवों, और जीवन के विविध पहलुओं को छूते हैं। उनकी रचनाएँ शिक्षा, समाज सुधार, स्वदेशी आंदोलन, राष्ट्रीय एकता, और मानवता के मूल्यों पर ध्यान देती हैं।

  1. गोदान: गोदान मुंशी प्रेमचंद का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन की कहानी सुंदर रूप से बखुबी दिखाई गई है। इस कहानी में किसानों की गरीबी, सांप्रदायिक विवादों का प्रकटीकरण, और मानवता के मूल्यों के प्रति उनकी संवेदना को बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है।
  2. निर्मला: यह उपन्यास एक माँ के प्रेम और बलिदान की कहानी है। निर्मला के मानसिक विकृति और उसके सास-ससुराल में होने वाली दुर्व्यवहारों का वर्णन उनके लिए न्याय करता है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने एक नारी के अंतर्निहित भावनाओं को गहराई से व्यक्त किया है।
  3. गबन: यह उपन्यास बंदूकधारी भूमिदारों और दलितों के मध्य होने वाले न्याय-अधिकारी के जीवन की कहानी है। इसमें सामाजिक न्याय के मुद्दे पर विचार किया गया है और भूमिदारों द्वारा ग़रीब लोगों के उत्पीड़न का प्रकटीकरण किया गया है।
  4. रंगभूमि: यह नाटक भारतीय नाटक के महत्वपूर्ण नाटकों में से एक है। इसमें राजनीति और सामाजिक मुद्दों के माध्यम से भारतीय समाज के स्वर्णीम युग का वर्णन किया गया है।
  5. रामा: यह एक लघुकथा है, जो महिला शिक्षा के महत्व को बताती है। इस कथा में रामा नामक एक गरीब लड़की की सफलता की कहानी है, जो शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन को समृद्धि से भरती है।
  6. शतरंज की खेलाड़ी: यह एक लघुनिबंध है, जो शतरंज के खिलाड़ी के द्वारा जीवन के खेल की तुलना में समाज के राजनीतिक खेल को बताता है।
  7. मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ भारतीय साहित्य में एक ऐसे उदाहरण हैं, जो समाज के संबल, दुर्बल, और विभिन्न वर्गों के लोगों के मन की बात सुंदर ढंग से प्रस्तुत करते हैं। उनकी रचनाएँ सामाजिक न्याय, भावनात्मक गहराई, और व्यक्तित्व के मूल्यों को उजागर करती हैं और उन्हें समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करती हैं।

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मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली munshi premchand ki bhasha shaili

  • मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली अत्यंत सरल और सामान्य भाषा पर आधारित होती थी। उनके लेखन में साधारण लोगों की आसानी से समझ में आने वाली भाषा का प्रयोग होता था जिससे वे अपने विचारों को आसानी से प्रकट कर सकते थे। उन्होंने अपने लेखन में संस्कृति और लोकप्रिय भाषा को बहुत खुशनुमा तरीके से जोड़ा।
  • प्रेमचंद के लेखन में संस्कृति और सामाजिक मुद्दों के सम्बन्ध में एक संतुलित भावनात्मक अनुभव होता था। उन्होंने अपने कहानियों और उपन्यासों में समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करते हुए भाषा का बहुत अच्छा उपयोग किया था। उनकी भाषा शैली सरलता, सुविधाजनक वाक्य रचना, और संवेदनशीलता के साथ भरी होती थी।
  • प्रेमचंद के लेखन में उनकी भाषा शैली ने लोगों के दिलों में जगह बना ली थी। उनकी रचनाएँ लोगों को समझने में आसानी प्रदान करती थीं और उनके कहानी-समस्याओं के समाधान को खोजने में मदद करती थीं। उनके लेखन में गांवी और शहरी जीवन के विविधता, भारतीय समाज की समस्याओं का वर्णन करते हुए भाषा का जबरदस्त उपयोग किया गया था।
  • प्रेमचंद की भाषा शैली में एक और खूबसूरत विशेषता थी – वे अपने लेखन के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने और समाज में सुधार के लिए प्रेरित करने का प्रयास करते थे। उनके रचनात्मक शब्दचय और भाषा का उपयोग लोगों को उनके लेखन में सम्मिलित करके उन्हें आकर्षित करता था।
  • आज भी, मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली का जादू सर्वत्र दिखता है और उनके लेखन का प्रभाव लोगों के मन में जीवंत है। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए संदेश और मूल्य आज भी समय के साथ बदले हुए भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य में स्थान munshi premchand ka sahitya me sthan

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य में स्थान भारतीय साहित्य के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके लेखन ने समाज की अभिवृद्धि और सामाजिक सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी रचनाएँ समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन के मुद्दों पर बल देती हैं और सामान्य लोगों की आसानी से समझ में आने वाली भाषा का प्रयोग करती हैं।

प्रेमचंद की रचनाएँ गोदान, निर्मला, गबन, रंगभूमि, रामा, शतरंज की खेलाड़ी, इत्त, गुलामगिरी, राजसिंग्यों, वरदान, वृद्ध और अन्य कई उपन्यास और कहानियों से भरे हुए हैं। उनके द्वारा लिखी गई कहानियाँ एक सच्ची मानवीय दर्शन को प्रस्तुत करती हैं और उनके लेखन में समस्याओं के समाधान की खोज की जाती है।

मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में स्थान इसलिए है क्योंकि उनके लेखन से सामाजिक सुधार, व्यक्तिवाद, राष्ट्रीय एकता, मानवता के मूल्यों के प्रसार, और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर लोगों के दिलों में जगह बन गई है। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए संदेश आज भी सभी वर्गों के लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्हें अपने जीवन में सुधार लाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके साहित्य में स्थान का यह महत्वपूर्ण कारण है।

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