मौलिक अधिकार और कर्तव्य II
मौलिक अधिकार कि परिभाषा –
मौलिक अधिकार और कर्तव्य उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता |
न्यायालय संबंधी रिट –
- परमादेशन्यायालय – किसी अधिकारी या संस्था को उसके कानून द्वारा तय सार्वजनिक कर्त्तव्य के पालन के लिए आदेश जारी करता है।
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण बंदी- बनाए गए ध्यक्ति को सशरीर सामने प्रस्तुत करने का आदेश न्यायालय, मंबंधिंत अधिकारी को देता है।
- अधिकार- पृच्छा का लेख तब जारी किया जाता. है, जब कोई व्यक्ति/अधिकारी या संस्था ऐसा कार्य हते हैं, जिसका उसे कानूनी दृष्टि से करने का कोई अधिकार नहीं है।
- उत्प्रेषण- इसका लेख उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय या प्राधिकरण को उसमें चल है मालों के अभिलेखों की जाँच हेतु भेजने के लिए देता है।
- प्रतिषेधउच्च- न्यायालयों द्वारा छोटे न्यायालयों को उस समय दिया जाता है, जब वे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहे हों ये लेख मंत्रियों एवं अधिकारियों के विरुद्ध भी जारी किया जा सकता है।
- सभी लेख मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध जारी किये जाते हैं।
राज्य के नीति निदेशक तत्व-
भारत के संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना कर सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करने के लिये नीति निदेशक सिद्धांतों को सम्मिलित किया गया है। नीति निदेशक तत्व संविधान निर्माताओं द्वारा केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों को नीतियों के निर्धारण के लिये दिये गये दिशा निर्देश हैं।
ये शासन प्रशासन के समस्त अधिकारियों हेतु व्यवहार के मार्ग दर्शक सिद्धांत भी हैं। इनके अनुसार ही सभी कार्य संपन्न हों यह अपेक्षा की गई है, परन्तु इनके अनुसार कार्य न होने पर नागरिक न्यायालय में अपील नहीं कर सकता, जैसा वह मौलिक अधिकारों के सन्दर्भ में कर सकता है। नीति निदेशक तत्व राज्य के कर्त्तव्य माने गये हैं। ये भारतीय संविधान की विशेषता हैं तथा समाजवादी और उदारवादी सिद्धांतों को ध्यान में रखकर जोड़े गये हैं।
नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। इनका उद्देश्र आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना और समाज के ढांचे को बदलकर भारतीय जनता को सही अर्थों में समान एवं स्वतंत्र बनाना है। ये संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 तक में वर्णित है। इनका उद्देश्य भारत को
(1) कल्याणकारी राज्य में बदलना।
(2) गाँधीजी के विचारों के अनुकूल बनाना। :
(3) अन्तर्राष्टीय शांति के पोषक राज्य के रूप में विकसित करना। ,
गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व-
- ग्राम पंचायतों का गठन एवं उन्हें स्वशासन की इकाई बनाना।
- कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
- नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबंदी (औषधियों को छोड़कर)
- पिछड़ी एवं अनुसूचित जाति तथा जनजातियों की शिक्षा एवं ऑर्थिक हितों का संवर्धन तथा उन्हे शोषण से बचाना।
- कृषि और पशुपालन वैज्ञानिक ढंग से करना।
- दुधारू व बोझ ढोने वाले पशुओं की रक्षा एवं करना
- राष्ट्रीय व ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की सुरक्षा
- पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, बन एवं वन्य जीवों की रक्षा।
- सारे देश में दीवानी तथा फौजदारी कानून बनाना।
- लोक सेवा में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को पृथक करने का प्रयास।
कल्याणकारी व्यवस्था-
- देश के संसाधनों के प्रयोग लोककल्याण के लिए हों।
- महिला व पुरुषों को जीविका के समान साधन उपलब्ध कराना।
- महिलाओं व पुरुषों को समान कार्य के लिये समान वेतन हो और उनके तथा बच्चों के स्वास्थ व शक्ति का दुरुपयोग न हो।
- धन और उत्पादन के साधन कुछ लोगों के हाथ में न हों, वरन् उनका उपयोग व्यापक जनहित में हो।
- बच्चों और नवयुवकों की आर्थिक एवं नैतिक पतन से रक्षा हो।
- सभी को रोजगार और शिक्षा मिले, बेकारी एवं असमर्थता में राज्य सहायता करें।
- सभी को गरिमामय जीवन स्तर, पर्याप्त अवकाश एवं सामाजिक सांस्कृतिक सुविधाएँ प्राप्त हों सभी के भोजन एवं स्वास्थ के स्तर में सुधार हो।
- कार्यस्थल, लोगों हेतु न्यायपूर्ण दशाओं की व्यवस्था करें।
- (9 बच्चों के लिये अनिवार्य नि:शुल्क शिक्षा का प्रबंध हो । 86 वे संविधान संशोधन 2002 द्वारा 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों हेतु शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना
अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा-
- अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
- राज्यों के मध्य न्याय व सम्मानजनक संबंधों को बनाए रखना।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं संधियों का आदर करना।
- अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता से निपटाने का प्रयास करना।
उपर्युक्त सभी नीति निदेशक तत्वों से लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहयोग मिलेगा। की सफलता का मूल्यांकन इन आधारों पर हो सकेगा । सामाजिक, आर्थिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था हेतु द्वारा राजनैतिक दंगों पर नियंत्रण रखा जा सकेगा । इससे राष्ट्र निर्माण और विश्वशांति की स्थापना में सहयोग मिलेगा। ये संविधान निर्माताओं की पवित्र इच्छाएँ हैं, सामाजिक एवं आर्थिक आदर्श के सिद्धांत तथा लोकमत का आईना है।
मौलिक अधिकार एवं नीति निदेशक तत्यों में अन्तर-
मौलिक अधिकार व नीति निदेशक तत्वों में महत्वपूर्ण अंतर निम्नलिखित हैं: –
- मौलिक अधिकारों की व्यवस्था निषेधात्मक है, जबकि नीति निदेशक तत्व सका है| ” अधिकार सरकार को कुछ कार्य करने से रोकते हैं, जबकि नीति निदेशक तत्व सरकार को को पूरा करने का निर्देश देते हैं।
- मौलिक अधिकारों के पीछे कानूनी शक्ति होती है। नीति निदेशक तत्वों के पीछे जममत की. * होती है।|यदि शासन के किसी कानून से नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उसकी रक्षा के लिये उस कानून को अवैध घोषित कर सकता है। नीति निदेशक तत्वों के विरुद्ध यदि कानून बनता है, तो न्यायालय उसे अवैध घोषित नहीं कर सकता । परन्तु जनमत का भय होने से इन * की अवहेलना राज्य आसानी से नहीं कर सकता।
- मौलिक अधिकार नागरिकों के लिए है, जबकि नीति निदेशक तत्व सरकार के कर्तव्य है। ये के नीति निर्माण एवं व्यवहार के लिये दिये गए निर्देश हैं।
- मौलिक अधिकारों का उद्देश्य राजनीतिक प्रजातंत्र की स्थापना है, जबकि नीति निदेशक तत्वों का उद्देश्य आर्थिक सामाजिक प्रजातंत्र की स्थापना
मौलिक कर्त्तव्य –
जब भारत के संविधान का निर्माण हुआ था तब उसमें सिर्फ मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया था, इसमें कर्त्तव्यों की कोई व्याख्या नहीं की गई थी, जबकि अधिकार एवं कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। केवल मूल अधिकारों की व्याख्या होने से नागरिक अपने अधिकारों के लिये तो जागरूक हो गए, परन्तु कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहे। इस कमी के पूरा करने के लिये संसद ने सन् 1976 में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा एक नया भाग 4(क) जोड़कर नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया।
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह-
(क) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।
(ख) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
(ग) देश की रक्षा करे और आहान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
(घ) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखें।
(च) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान श्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो,ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हो।
(डः) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
(त) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें।
(छ) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
(ज) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
(झ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे, जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू सके; और
(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।
मौलिक कर्त्तव्यों का पालन राज्य के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्य है –
अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम अधिकारों की प्राप्ति कर्त्तव्यों की पूर्ति के बिना नहीं कर सकते । अगर नागरिक अपने मौलिक कर्त्तव्यों को पूरा करेंगे तो उन्हें अपने मूल अधिकारों की प्राप्ति में सरलता होगी। अगर नागरिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते तो अव्यवस्था होगी और वातावरण अशान्त होगा । मौलिक कर्त्तव्यों की पूर्ति स्वस्थ सामाजिक वातावरण का निर्माण करती है।
संविधान में मौलिक अधिकार और मोलिक कर्त्तव्यों के बीच कोई कानूनी सम्बन्ध निश्चित नहीं किधा गया है। इनकी अवहेलना करने पर दण्ड की व्यवस्था नहीं है, परन्तु हमारा राष्ट्र के प्रति यह दायित्व है। मौलिक कर्त्तव्य देश की सांस्कृतिक विरासत, राष्ट्रीय संपत्ति, व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रगति, देश की सुरक्षा व्यवस्था आदि को सुदृढ़ बनाने, पर्यावरण संरक्षित रखने में सहायक है। अत: मौलिक कर्त्तव्यों का पालन राज्य के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है।
भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ-
- पहली अनुसूची- राज्य, संघ राज्य क्षेत्र
- दूसरी अनुसूची – राष्ट्रपति और राज्यपालों के विषय में उपबंध, लोकसभा का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति, उपसभाषति, राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद् के सभापति व उपसभाषति के बारे में उपब्ध |]
- तीसरी अनुसूची- शपथ ओर प्रतिज्ञान के प्रारूप
- चोथी अनुसूची- राज्य सभा में स्थानों का आवंटन
- पाँचवीं अनुसूची- अनुसूचति क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन व नियंत्रण तिपुण और मिजोरम के जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
- छठी अनुसूची- असम, मेघालय, ग्िपुण और मिजोरम के जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
- सातवीं अनुसूची- संध सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची
- आठवीं अनुसूची- भाषाएँ
- नौवीं अनुसूची- कुछ अधिनियम और विनियमों का विधिमायौकणण प्रधण संशोधन द्वारा स्थापित
- दसवीं अनुसूची– दल परिवर्तन के बारे में उपकन्ध 32 | संशोधन द्वारा स्थापित।
- ग्यारहवीं अनुसूची- पंचायतों की शक्तियों तथा परपिकार 1: वें साविधानिक संशोषन 190? द्वाग खाता
- बारहवीं अनुसूची– नगरपालिका की शत्तियों । वें संविधानिक संशोधन 1992 द्वारा स्थापित
अध्याय : एक नजर में
- संविधान से आशय- संविधान नियमों की एक समष्टि है जिसमें सरकार के विभिन्न अंगों, उनके गठन तथा अधिकार क्षेत्र तथा सरकार एवं नागरिकों के मध्य सम्बन्धों को परिभाषित किया जाता है।
- संविधान की परिभाषाएँ अरस्तू के अनुसार“संविधान उस पद्धति का प्रतीक होता है जो किसी राज्य द्वारा अपनाई जाती है।
- स्वराज्य का अर्थस्वराज्य जन प्रतिनिधियों द्वारा कायम एक ऐसी व्यवस्था है जो जनता की आकांक्षाओं द्वारा आशाओं के अनुकूल हो।
- कैबिनेट मिशन द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् मार्च, 1946 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री इटली ने भारत के राजनीतिक गतिरोध दूर करने के सुझाव देने के लिए एक मिशन भेजा जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया। इसके तीन अंग्रेज सदस्य थे
- लार्ड पैथिक लारेन्स
- सर स्टेफर्ड क्रिप्स
- ए.वी. अलेक्जेण्डर।
- संविधान की विशेषज्ञ समिति जुलाई 1946 को संविधान सभा के लिए सामग्री तैयार करने के उद्देश्य से जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। इस समिति के अन्य सदस्य आसिफ अली, के.एम.मुंशी, एन.गोपालस्वामी आयंगर, के.टी.शाह, डी.आर. गाडगिल, हुमायूँ, कबीर और के.संथानय थे।
- संविधान की प्रारूप समिति संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे व राज्य सदस्य थे अल्लाद कृष्णास्वामी अय्यर एन.गोपालस्वामी आयंगर, के.एम.मुंशी, टी.टी. कृष्णचारी, मो. सादुल्ला, एन.माधव अमन।
- भारतीय संविधान के स्त्रोत भारतीय संविधान के प्रमुख स्त्रोत थे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के आदर्श, सन् 1935 का भारत शासन अधिनियम, ब्रिटिश संविधान, अमरीकी संविधान, आयरलैण्ड का संविधान, कनाडा का संविधान,आस्ट्रेलिया का संविधान, जर्मनी का संविधान।
- भारतीय संविधान का निर्माण भारतीय संविधान का निर्माण 2 वर्ष 11 माह, 18 दिन में हुआ। इस निर्माण कार्य में 64 लाख रुपए व्यय हुए। संविधान के प्रारूप पर 114 दिन चर्चा हुई। अन्तिम रुप से पारित संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान 26 जनवरी, 1950 से लागू हुआ।