प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे राजनीति विज्ञान ‘विज्ञान’ है: मुख्य तर्क, गार्नर के अनुसार, राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने के मुख्य तर्क निम्नानुसार के बारे में पढ़ेंगे |
राजनीति विज्ञान ‘विज्ञान’ है: मुख्य तर्क
राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है यह पुरानी मान्यता है। आज का चिंतन अलग है द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसके अध्ययन की विधियों में जो व्यापक और क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं, उनके आधार पर अब स्पष्टतया कॉम्टे, बकल और मेटलैण्ड की धारणाओं में उतना सत्य का अंश नहीं रह गया है। जो विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं मानते वे राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान की कसौटी पर कसते हैं, परंतु प्राकृतिक विज्ञान ही विज्ञान नहीं होते।
गार्नर के अनुसार,
‘विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित ज्ञान की उस राशि को कहते हैं जो विधिवत पर्यवेक्षण अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गई हो तथा जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध तथा वर्गीकृत हों।’ इस परिप्रेक्ष्य में राजनीति विज्ञान पर विचार करने पर यह माना जाता है कि राजनीति विज्ञान एक भौतिक बिज्ञान तो नहीं, परंतु यह एक सामाजिक विज्ञान अवश्य है।
राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने के मुख्य तर्क निम्नानुसार हैं-
राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक है–
राजनीति विज्ञान में उन पद्धतियों का प्रयोग बहुलता से किया जाता है जो मूलतः विज्ञान में प्रयुक्त होती हैं, जैसे प्रयोगात्मक, पर्यवेक्षणात्मक तथा तुलनात्मक अध्ययन पद्धतियाँ। राजनीति विज्ञान के प्रयोग वैज्ञानिक प्रयोगशाला में सम्पन्न नहीं होते क्योंकि इसका सम्बन्ध किसी पदार्थ से नहीं सम्पूर्ण समाज ही इसकी प्रयोगशाला है।
राज्य के द्वारा जो कानून या नीतियाँ बनाई जाती हैं, उनका व्यावहारिक आकलन इसी समाज रूपी प्रयोगशाला में किया जाता है। किसी भी शासन प्रणाली के पर्यवेक्षण के आधार पर उसके गुण और दोषों का आकलन किया जाता है।
राजनीति विज्ञान का ज्ञान क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित है–
किसी विषय को विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सके, इसके लिए उस विषय का ज्ञान क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, राज्य के तत्व, इसके विकास तथा इसकी भूमिका, सरकार के विभिन्न अंग तथा इनके कार्य, राज्य के प्रतिरोध की स्थिति आदि के बारे में राजनीति विज्ञान का ज्ञान न्यूनाधिक रूप से क्रमबद्ध है। इसी प्रकार विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को उनकी प्रवृत्तियों के आधार पर ही भिन्न-भिन्न वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
राजनीति विज्ञान में कार्यकारण सम्बन्ध सम्भव है-
यद्यपि यह सत्य है कि प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में कार्यकारण सम्बन्ध प्रदर्शित नहीं किए जा सकते, परंतु राजनीति विज्ञान में भी काफी सीमा तक कार्यकारण सम्बन्ध देखे जा सकते हैं । उदाहरण के लिए, कई देशों की क्रांतियों का अध्ययन करने के पश्चात् यह इंगित किया जा सकता है कि क्रांति का मूलभूत कारण असमानता होती है। इसी प्रकार यह कहा जा सकता है कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण तथा जनता की राजनीतिक सहभागिता राजनीतिक चेतना में वृद्धि करती है।
इसी प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि जिन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विपक्ष जितना अनुत्तरदायी होता है, वहाँ सरकार उतनी ही स्वेच्छाचारी होती जाती है। लार्ड ब्लाइस का यह मत यथोचित है, ‘मानव प्रकृति की प्रवृत्तियों में एकरूपता तथा समानता पाई जाती है तथा उसके कार्यों को समूहबद्ध, संयोजित एवं श्रृंखलाबद्ध करके सामान्यतया क्रियाशील प्रवृत्तियों के परिणाम के रूप में उनका अध्ययन किया जा सकता है।’
राजनीति विज्ञान में पर्यवेक्षण तथा परीक्षण सम्भव है-
राजनीति विज्ञान में भी पर्यवेक्षण और परीक्षण सम्भव है यद्यपि इसका स्वरूप भौतिक विज्ञानों से भिन्न होता है। गिलक्राइस्ट ने लिखा है, शासन विषयक प्रत्येक परिवर्तन, नया पारित किया हुआ प्रत्येक कानून और प्रत्येक युद्ध एक वैज्ञानिक प्रयोग होता है।’ इसी प्रकार गार्नर ने लिखा है, ‘ प्रत्येक नए कानून का निर्माण, प्रत्येक नयी संस्था की स्थापना और प्रत्येक नयी नीति का प्रारम्भ एक प्रयोग ही होता है।
‘ राजनीतिक व्यवस्थाओं के पर्यवेक्षण के आधार पर ही प्रकार के निष्कर्ष निकाले गए हैं कि लोकतंत्र शासन का सर्वोत्तम रूप है, व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए शक्तियों का पृथकरण आवश्यक है, नियुक्ति वाले पदों की अपेक्षा निर्वाचित पद बेहतर होते हैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होना चाहिए आदि।