प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे रियासतों का विलीनीकरण। ब्रिटिश केबिनेट मिशन का निर्णय। देशी रियासतों के शासकों की प्रतिक्रिया। सरदार पटेल और देशी रियासत। रियासतों को सौंपे गये दो दस्तावेज व विलीनीकरण। पहला दस्तावेज-इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन। दूसरा दस्तावेज-स्टेडस्टिल एग्रीमेंट”। जूनागढ़ और हैदराबाद के विरुद्ध कार्यवाही। रियासतों का विलीनीकरण। बाह्य विलय पद्धति। “क’ श्रेणी के राज्य। ख’ श्रेणी के राज्य। “ग श्रेणी के राज्य। “घ श्रेणी के राज्य। के वारे में बात करेंगे |
रियासतों का विलीनीकरण
रियासतों का विलीनीकरण आवश्यकता :-
रियासतों का विलीनीकरण स्वतंत्रता के पश्चात् देशी रियासतों की राजनीतिक स्थिति का निर्णय एक चुनौतीपूर्ण कार्य था स्वतंत्रता के समय देश के अंदर छोटी-बडी 600 रियासते एवं रजवाडे थे। ये सभी अपने आंतरिक प्रबंधन के लिये स्वतंत्र थे। देश के अंदर स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाले राज्यों या रियासतों की उपस्थिति उसकी संप्रभुता और व्यवस्थित शासन व्यवस्था की स्थापना में अड़ंगा था।
देशी राजा ब्रिटिश शासन से भारत को स्वतंत्रता देने के साथ ही उन्हें पूर्ण स्वतंत्र अधिकार प्रदान करने की माँग कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार भी समझौतों और संधियों के कारण देशी रियासतों को इस स्थिति में स्वतंत्र करने के लिए वचन बद्ध थे। अत: ब्रिटिश सरकार के सामने देशी राज्यों के भविष्य के प्रश्न का शीघ्र स्थायी हल निकालना आवश्यक था।
रियासतों का विलीनीकरण देशी रियासतों के शासकों की प्रतिक्रिया:-
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने देश में स्थित लगभग 600 रियासत व रजवाड़ों को यह सुविधा प्रदान की कि वे इच्छानुसार या तो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखें अथवा भारत या : पाकिस्तान में अपना विलय कर लें। इस तरह अंग्रेज जाते-जाते न केवल भारत की अखंडता को संकट में डाल दिया बल्कि देश की एकता को खतरे में डाल दिया।
भारतीय नरेश भी अपने को पूर्ण स्वतंत्र मानते हुए अपनी शर्तों पर दोनों देशों से संबंध बनाने की बात सोचने लगे। इन रियासतों में देश की कुल जनसंख्या की एक चौथाई संख्या तथा भारत के कुल क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत हिस्सा आता था।
इन रियासतों की जनता अधिनियम में रखे गये प्रावधानों से असंतुष्ट थी। उसकी यह धारणा थी कि अंग्रेजों ने उनकी भावनाओं की अवहेलना करते हुए शासकों को निर्णय करने का अधिकार दे दिया।
फलस्वरूप आल इंडिया स्टेंट पीपुल्स कान्फ्रेंस के नेतृत्व मैं रियासतों की जनता ने प्रजामंडल आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। अधिनियम का लाभ उठाकर जहाँ बड़ी-बड़ी रियासतों के नरेशों ने अपने राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने का निर्णय लेकर प्राचीन राजतंत्र की पुनः स्थापना के स्वपन देखने लगे, वहीं ऐसी रियासतों जहाँ मुस्लिम शासक थे,
पाकिस्तान ने अपने राज्य में विलय कराने के लिये धर्म के नाम पर दबाव डालना शुरू कर दिया। कुछ शासक भारत ब पाकिस्तान की सरकारों से अधिक अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु सौदेबाजी करने लगे। भारत सरकार अपनी राजनीतिक सीमा के अंदर स्थित रियासतों के स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के विरुद्ध थी। अतः इन रियासतों से निबटने के लिये कठोर निर्णय लेने का निश्चय कर लिया।
रियासतों का विलीनीकरण सरदार पटेल और देशी रियासत:-
भारत सरकार ने इन रियासतों से वार्ता कर समझौते का वातावरण तैयार करने का दायित्व तत्कालीन केद्रीय सरदार वबलल्लभ भाई पटेल को सौंपा श्री पटेल ने सभी रियासतों के शासकों से भारत की अखंडता और राष्ट्रीय एकता नाम पर संघ में विलीन हो जाने की मार्मिक अपील की और इन राज्यों को अपनी प्रतिरक्षा, आवागमन, दूरसंचार, मुद्रा और विदेशी संबंधों में भारत के प्रति निर्भरता को ध्यान में रखकर जनहित में विवेकपूर्ण निर्णय लेने को कहा।
यदि ये रियासतें भारत में विलय करती हैं तो उन्हें अपनी सम्पत्ति के साथ कुछ राजनीतिक सुविधाएं देने का आश्वासन भी दिया। देशी नरेशों से वार्ता करने में गृह मंत्रालय के सचिव श्री वी. पी. मेनन और चेम्बर ऑफ प्रिंसेस ( नरेन्द्र मण्डल ) के चान्सलर महाराजा पटियाला व भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने प्रमुख भूमिका निभायी।
भारत गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन ने गृह सचिव श्री वी. पी. मेनन के परामर्श से देशी नरेशों की बैठक बुलायी जिसे संबोधित करते हुए उन्होंने अपनी रियासतों की नये भारत में भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्वयं अपने और अपनी जनता के हित में भारत में सम्मिलित होने हेतु 15 अगस्त सन् 1947 के पूर्व निर्णय लेने का अनुरोध किया अन्यथा नये स्वतंत्र भारत में उनके रियासतों की क्या स्थिति बनेगी इसमें ब्रिटिश सरकार से कोई सहायता की स्थिति नहीं होगी।“जिस तरह भारत इन रियासतों को देश की अखण्डता और एकता के नाम पर भारत में विलय कराने के लिये प्रयलशील था।
उसी तरह पाकिस्तान भी नवाबों को धर्म के नाम पर उन्हें रिझाने का प्रयास कर रहा था। उसके प्रभाव में आकर पश्चिम भारत की खैरपुर और बहावलपुर सहित कुछ छोटी रियासतों ने पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी ।
जूनागढ़ के नवाब भी पाकिस्तान में सम्मिलित होने के इच्छुक थे। भोपाल और हैदराबाद के नवाब अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखते हुए भारत और पाक दोनों देशों से अच्छे संबंध बनाये रखना चाहते थे। ये दोनों राज्य भारतीय सीमा के मध्य घिरे बहुसंख्यक हिन्दू जनता के राज्य थे स्वतंत्र रहने या पाकिस्तान में विलय की अनुमति दिये जाने से प्रशासनिक व्यवस्था, ‘प्रतिरक्षा की समस्या उत्पन होने व जनता द्वारा विद्रोह करने एवं युद्ध हो जाने की आशंका बन जाती ।
इस विस्फोटक स्थिति को उत्पन्न न होने देने के लिये श्री वललभ भाई पटेल ने कठोर शब्दों में रियासतों के प्रमुखों को अंतिम चेतावनी देते हुए घोषणा की कि अब देश में ब्रिटिश शासन की सर्वोच्च सत्ता की मृत्यु हो गयी है और उस पर अब कोई आँसू बहाने वाला नहीं है।
अत: सर्वोच्च सत्ता के विलोप हो जाने का अर्थ राजा-महाराजा व नवाब यह अर्थ न लगाने लग जायें कि भारत में कोई सार्वभौमिक सत्ता नहीं बची है। भारत की सरकार सर्वोच्च सत्ता का दायित्व सँभालते हुए एक उत्तरदायी सरकार के रूप में भारत के किसी भी भाग में अराजकता पनपते नहीं देखना चाहती है।
अतः शासकगण जनहित में विवेक के साथ शीघ्र निर्णय करें। रियासत के प्रमुखों ने इस घोषणा को निकट भविष्य में अपने विरुद्ध किसी संभावित सैनिक कार्यवाही की संभावना मानकर महाराजा पटियाला और लार्ड माउन्टबेटन के माध्यम से कुछ अनावश्यक सुविधाएँ भारत सरकार से माँगने का प्रयास किया किन्तु श्री पटेल ने कठोर शब्दों में भारत सरकार का अंतिम निर्णय सुना दिया
फिर देशी नरेश या तो सरकार द्वारा तैयार किये गये दो दस्तावेजों में लिखी गयी शर्तों को स्वीकार कर भारत में अपनी रियासत का विलय कर दें अन्यथा संभावित कठोर कार्यवाही के लिये तैयार रहें श्री पटेल ने देशी नरेशों को भारत में सम्मिलित होने के लिये दो दस्तावेज सौंपते हुए उनसे अपने विलय के संबंध में शीघ्र निर्णय से भारत सरकार को अवगत कराने का आग्रह किया।
रियासतों को सौंपे गये दो दस्तावेज व विलीनीकरण:-
भारत सरकार द्वारा देशी रियासतों को सौंपे गये दो दस्तावेजों की प्रमुख शर्तें इस प्रकार थीं-
इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन-
इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन- में देशी नरेशों को अपनी रियासत की प्रतिरक्षा, विदेशी मामले व संचार एवं मुद्रा संबंधी समस्त अधिकार भारत की संघीय सरकार को सौंपते.हुए भारत में अपनी रियासतों के विलय को स्वीकृति देनी होगी।
स्टेडस्टिल एग्रीमेंट-
स्टेडस्टिल एग्रीमेंट” था जिसके द्वारा अभी तक स्थापित-ब्रिटिश साम्राज्य की केन्द्रीय सरकार के स्थान पर नयी संघीय व्यवस्था की केन्द्रीय सरकार को मान्यता थी जिसे सभी राज्यों के प्रमुख स्वीकार करेंगे जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर रियासतों को छोड़कर देश की सीमा के अन्दर स्थित सभी रियासतों के शासकों ने उपर्युक्त दोनों दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर भारत में अपने राज्यों के विलीनीकरण को स्वीकार कर लिया।
रियासतों का विलीनीकरण जूनागढ़ और हैदराबाद के विरुद्ध कार्यवाही:-
जूनागढ़ के नवाब ने भारत सरकार द्वारा सौंप॑ गयें दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं किये और पाकिस्तान में विलय होने की घोषणा कर दी, जिससे उस राज्य की जनता भड़क उठी और उन्होंने संगठित होकर विद्रोह कर दिया और राज्य शासन पर अधिकार कर स्वतंत्र अस्थायी शासन की स्थापना करने की घोषणा कर दी |
जूनागढ़ का नवाब अपनी आत्मरक्षा के लिये परिवार और स्वजनों जिनमें बेनजीर भुट्टो के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो भी सम्मिलित थे, पाकिस्तान भाग गये। जनता ने भारत सरकार से जूनागढ़ में विलय किये जाने का आग्रह ‘ किया) जिसे स्वीकार कर फरवरी 1948 में जनमत संग्रह कराकर इस रियासतों को भारत में मिला लिया गया ।
हैदराबाद रियासत का नवाब अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखना चाहता था। अतः उसने अपने राज्य में भारत सरकार की संभावित सैन्य क्रार्यवाही का सामना करने के लिए रजाकांर सेना का गठन करना शुरू कर दिया तथा भारत सरकार को वार्ता के दौरों में फसाकर कुछ समय लेने का प्रयास करते प्रयास करने ‘लगा। राज्य की जनता ने नवाब की इस चाल को समझ कर जन आंदोलन शुरू कर दिये । नवाब ने इसे दबाने के लिए रजाकार सेना का प्रयोग कर दमन चक्र चलाया ।
इससे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गयी। बिगड़तें देखकर लार्ड माउंटबेटन ने नवाब पर दबाव बनाया जिसके परिणामस्वरूप नवाब ने दोनों दस्तावेज पर तो हस्ताक्षर कर दिये किन्तु अपने राज्य का भारत में विलय किये जाने का स्वीकृत पत्र भारत सरकार को नहीं सौपा । रजाकार सेना का जनता के विरुद्ध अत्याचार बढ़ रहा था। अतः भारत सरकार ने सितंबर 1948 को मेजर जनरल चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना को हैदराबाद में प्रवेश कर सम्पूर्ण शासन व्यवस्था अपने अधिकार में लेने का आदेश दिया।
पाँच दिनों तक चली कार्यवाही में सेना ने मुस्लिम रजाकार सेना का पूर्ण सफाया कर श्री रेनबोथ आई.ए.एस. की कमान में शासन व्यवस्था सँभाल ली। हैदराबाद के नवाब ने हार स्वीकार कर भारत में राज्य के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये । इसी के साथ संपूर्ण देश में रियासातों के विलीनीकरण का कार्य पूर्ण हो गया लगभग 562 रियासतें भारत में मिल गईं
रियासतों का विलीनीकरण
भारत सरकार ने अपनी सीमा में स्थित रियासतों की जनता को अन्य राज्यों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अवसर की समानता दिलाने के उद्देश्य से विलय की दो पद्धतियाँ (बाह्य एवं आंतरिक विलय) अपनायी।
रियासतों का विलीनीकरण बाह्य विलय पद्धति–
इसके द्वारा रियासतों का विलय चार प्रकार से किया गया’ ऐसी छोटी रियासतें जो आबादी में 20 लाख से कम थी और जिनकी वार्षिक आय 50 लाख से कम होने के कारण स्वावलंबी प्रान्त का स्वरूप नहीं ले सकती थी, उन्हें पड़ोसी राज्यों में मिला दिया।
- ऐसी 39 रियासतें जिन्हें संविधान सभा में स्थान प्राप्त नहीं था और जिनकी आय 10 लाख वार्षिक से कम थी। को समवर्ती राज्य उड़ीसा (25) और मध्य प्रदेश (14) में मिला दिया।
- परस्पर समीपवर्ती देशी रियासतें जो परस्पर मिला देने पर स्वावलंबी इकाई के रूप में कार्य कर सकती थीं उन्हें मिलाकर सौराष्ट् संघ, मध्य भारत संघ, कोचीन त्रावनकोर संघ, पटियाला और पूर्वी पंजाब संघ बनाये गये। इसके निर्माण में संघ रियासतों में रहने वाले लोगों की भौगोलिक, भाषायी, सामाजिक और सांस्कृतिक समानताओं का ध्यान रखा गया।
- बडी रियासतों यथा जम्मू कश्मीर, मैंसूर व हैदराबाद को प्रांत मान लिया गया।
- निम्नांकित रियासतों को मिलाकर केन्द्र शासित क्षेत्र बनाया गया जिसमें पूर्वी पंजाब की 21 रियासतों . से बना हिमाचल प्रदेश संघ, बुंदेलखंड और बघेलखंड को 35 रियासतों को मिलाकर बनाया गया विन्ध्य प्रदेश, कच्छ, बिलासपुर, भोपाल, त्रिपुरा को रियासतों को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया।
निष्कर्ष रूप में आज जो अखंड भारत है वह सरदार बल्लभ भाई पटेल की कठोर किन्तु कुशल व्यूह : रचना व दृढ़ निश्चय का परिणाम है, इसी कार्य के लिए उन्हें लौह पुरुष व अखंड भारत का निर्माता कहा जाता है फिर भी रियासतों के विलीनीकरण में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन, गृह मंत्रालय में सचिव बी. पी. मेनन तथा पटियाला महाराजा की भूमिका और उनके योगदान को भी सम्मान दिया जाना चाहिये।
रियासतों के विलीनीकरण वहाँ समुचित प्रशासकीय इकाइयों का गठन करने हेतु सरदार पटेल ने छोटे बड़े राज्यों के स्वरूप में परिवर्तन करते हुए भारतीय मानचित्र में राज्यों को चार श्रेणियों में विभक्त कर उत्तरदायी सरकारें व केन्द्र नियंत्रित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की। चार श्रेणी में राज्यों को इस तरह विभक्त किया गया।
“क’ श्रेणी के राज्य:-
इसमें पूर्व से स्थापित राज्य यथा-असम, बिहार, मुम्बई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, और पश्चिमी बंगाल, यथावत रखे गये।
“ख’ श्रेणी के राज्य:-
विलय में शामिल बड़ी रियासतें जैसे हैदराबाद, मैसूर, जम्मू-कश्मीर, मध्य भारत, पटियाला, पेप्स, सौराष्ट्र,राजस्थान, ट्रावनकोर-कोचीन रखे गये।
“ग श्रेणी के राज्य:-
इसमें अजमेर, भोपाल, दुर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, विन्ध्य प्रदेश मणिपुर तथा त्रिपुरा रखे ।
“घ श्रेणी के राज्य :–
अण्डमान और निकोबार द्वीप शामिल किये गये।
“क’ एवं “ख’ श्रेणी के राज्यों में पूर्ण उत्तरदायित्व सरकार की स्थापना की गयी “ग? श्रेणी के राज्यों में केन्द्र के नियंत्रण में उत्तरदायी सरकारें गठित की गयी। “घ’ श्रेणी के राज्य को केन्द्र के अधीन रखा गया। इसी श्रेणी में आगे चलकर 1954 में भारत-फ्रांस समझौते द्वारा प्राप्त चंद्रनगर, पाण्डिचेरी व 1961 में भारत की स्थिति पुर्तगाली उपनिवेश, गोवा, दमन, दीव, नगर हवेली भी सम्मिलित कर दिये गये।
इस प्रकार सरदार पटेल ने बडी सुझ-बूझ से स्वतंत्र भारत में सभी रियासतों को समाहित कर अखण्ड भारत को परिकल्पना का एक अध्याय पूर्ण किया। संविधान सभा में सरदार पटेल ने इस् भाव को निम्नांकित शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा-“एक आदर्श जो शताब्दियों तक एक दूर का सपना दिखाई पड़ता था, व भारतीय स्वत्नतंत्रता के प्रादुर्भाव के बाद भी एक दूर का तथा असंभव लक्ष्य दिखायी देता था, एकीकरण की इस नीति से संभव हो सका है !
निष्कर्ष रूप से आज जो-“अखण्ड भारत है, वह सरदार वल्लभ भाई पटेल को कठोर किन्तु कुशल व्यूह रचना व दृढ़ निश्चय का परिणाम है। इसी कार्य के लिये उन्हें लौह पुरुष व अखंड भारत के निर्माता कहा जाता है। रियासतों के विलीनीकरण में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन गृह मंत्रालय के सचिव श्री वी. पी. मेनन तथा पटियाला के महाराजा की भूमिका को भी सम्मान दिया जाना चाहिए।
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