रोग (Disease)
रोग की प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे रोगों के नाम,लक्षण,रोकथाम के बारे में पढ़ेंगे |
रोगों के प्रकार संचरणीय रोग व असंचरणीय रोग-
(1) संचरणीय ( संक्रामक ) रोग – ( Communicable Diseases )
रोगों के प्रकार ऐसे रोग जो जीवित कारकों जैसे विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ, कवक व कृमियों द्वारा होते हैं तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाते हैं। रोग कारक जीव का संचरण (फैलाव) वायु, जल, भोजन, या कीटों द्वारा होता है, इसलिए इन्हें संचरणीय रोग कहते हैं। जैसे- हैजा, टी. बी. इत्यादि ।
(2) असंचरणीय (असंक्रामक ) रोग :- (Non Communicable Diseases)
यह रोग संक्रमित व्यक्ति (रोगी) से स्वस्थ व्यक्ति में स्थानांतरित नहीं होता, इसलिए इन्हें असंचरणीय रोग कहते हैं जैसे जोड़ों में दर्द, कैंसर तथा हृदय रोग । अनेकों असंचरणीय रोग पोषक तत्वों की कमी से भी होते हैं । कुछ प्रमुख मानवीय रोगों का विवरण इस प्रकार है ।
रोग का नाम: मलेरिया प्लाज्मोडियम –
रोग का नाम | मलेरिया प्लाज्मोडियम |
रोगकारक | प्लाज्मोडियम |
रोग के लक्षण |
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रोग के रोकथाम |
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रोग के उपचार : | चिकित्सक की सलाह से क्लोरोक्वीन, कुनैन तथा मेफ्लोक्वीन जैसी दवाईयाँ लेनी चाहिए । |
रोग का नाम : इन्फ्लूएन्जा ( फ्लू )
रोग का नाम : | इन्फ्लूएन्जा ( फ्लू ) |
रोगकारक : | मिक्सोवायरस इन्फ्लूएन्जाई (वायरस ) |
रोग के लक्षण | सर्दी के साथ ज्वर आना, तेज खाँसी, छींक एवं बलगम आना , सिरदर्द एवं बदनदर्द आदि |
रोग के रोकथाम : | यह संक्रामक रोग है अतः रोगी के सीधे सम्पर्क से बचना चाहिए। साथ ही खांसते, छींकते समय मुख पर कपड़ा रखना चाहिए । |
रोग के उपचार :
| चिकित्सक के मार्गदर्शन से प्रतिजैविक (Antibiotic) दवाईयाँ लेनी चाहिए । |
रोग का नाम : पीलिया
रोग का नाम : | पीलिया |
रोगकारक हिपेटाइटिस : | जीवाणु या वायरस दोनों से हो सकता है । |
रोग के लक्षण | भूख नहीं लगना, कमजोरी आना, वजन में कमी। त्वचा, नाखून तथा आँखे पीली होना तथा मूत्र भी पीला आना । |
रोग के रोकथाम | रोगी को पर्याप्त विश्राम एवं हल्का भोजन देना चाहिए, भोजन में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होना चाहिए, रोगी को संक्रमण रहित (उबला या उपचारित) जल देना चाहिए। |
रोग के उपचार | इस रोग में मुख्य रूप से यकृत प्रभावित होता है । अतः यकृत को संक्रमण से मुक्त करने वाली औषधियाँ एवं ग्लूकोज प्रमुख रूप से दिया जाता है । पीलिया के समान हिपेटाइटिस भी यकृत का एक रोग है जो वायरस के कारण होता है यह वायरस भी दूषित जल से शरीर में प्रवेश करता है । यह वायरस A, B, तथा C तीन प्रकार का होता है । इस रोग के टीके विकसित किये जा चुके हैं। |
रोग का नाम : रेबीज (जलांतक )
रोग का नाम : | रेबीज (जलांतक ) |
रोगकारक : | रेबीज वायरस या स्ट्रीट वायरस |
रोग के लक्षण : | यह रोग कुत्ते, बिल्ली, बंदर, लोमड़ी या खरगोश जैसे प्राणियों के काटने से होता है। इन प्राणियों की लार से यह वायरस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाता है । वायरस तंत्रिका तंत्र को प्रमुख रूप से प्रभावित करता है, जिससे तीक्ष्ण सिरदर्द एवं पागलपन जैसी स्थिति हो जाती है । हाइड्रोफोबिया का रोगी जल से भयभीत होता है। रोगी का गला अवरुद्ध हो जाता है । |
रोग के रोकथाम | पालतू पशुओं को एण्टीरेबीज का टीका लगवाना चाहिए । प्रभावित व्यक्ति के घावों को स्पर्श नहीं करना चाहिए । |
रोग के उपचार | घावों का प्रतिजैविकों द्वारा उपचार करना चाहिए। |
रोग का नाम : हैजा
रोग का नाम : | हैजा |
रोगकारक : | वाइब्रियो. कॉलेरी (जीवाणु) |
रोग के लक्षण | यह रोग दूषित जल एवं भोजन द्वारा फैलता है । बार-बार उल्टी एवं दस्त होना ।निर्जलीकरण एवं भार में कमी। |
रोग के रोकथाम: | उबला हुआ या क्लोरीनयुक्त पानी पिएं | बिना पकी सब्ज़ियां और अधपकी शेलफ़िश न खाएं |स्वास्थ्य और स्वच्छता की शिक्षा दें |
रोग के उपचार : | हैजा का टीका लगवाना । चिकित्सक की सलाह से रेबीज के निर्धारित संख्या में टीके लगवाने चाहिए ।स्वच्छ पेयजल का उपयोग करना । संदूषित जल एवं भोजन से परहेज । इस रोग का संचरण मक्खियों द्वारा होता है अतः साफ सफाई पर अधिक ध्यान देना चाहिए । चिकित्सकों द्वारा उपचार करवाना । पानी की कमी पूरी करने के लिये जीवन रक्षक घोल (O.R.S.) बार-बार पिलाना चाहिए। |
जीवन रक्षक घोल बनाने के लिए एक गिलास उबले पानी में एक चुटकी नमक तथा एक चम्मच शक्कर मिलाकर बार-बार पिलाना चाहिए।
रोग का नाम : पेचिश या अतिसार
रोग का नाम : | पेचिश या अतिसार |
रोगकारक : | बैलेन्टीडिया कोलाई (प्रोटोजोआ ) |
रोग के लक्षण | मल के साथ रक्त आना ।बार- बार दस्त होना । पानी की कमी एवं कमजोरी आना । |
रोग के रोकथाम. | यह रोग भी मक्खियों द्वारा फैलाया जाता है अतः इसका नियंत्रण आवश्यक है । रोगी व्यक्ति के मल-मूत्र को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए । |
रोग के उपचार | दूषित भोजन एवं जल के सेवन से बचना चाहिए । कारबेसोन, ओरिओमाइसिन तथा टेरामाइसिन, जैसी प्रतिजैविक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए ! |
रोग का नाम : मोतीझिरा (टायफाइड)
रोग का नाम : | मोतीझिरा (टायफाइड) |
रोगकारक | साल्मोनेला टायफी (जीवाणु) |
रोग के लक्षण | सिरदर्द एवं बदन दर्द । तीव्र ज्वर होना । शरीर पर छोटे-छोटे चमकीले दानें उभरना । अधिक संक्रमण में आंतों से रक्तस्राव होता है । |
रोग के रोकथाम | यह रोग भी मक्खियों द्वारा फैलाया जाता है अतः इनका नियंत्रण आवश्यक है | |
रोग के उपचार | रोग का नाम रोगकारक |
CLASS 9TH PREVIUS YEAR SOLVED PAPER-