शिशुनाग वंश ई. पू. 430-364
Shishunag dynasty BC. 430-364
शिशुनाग वंश ई. पू. 430-364 नमस्कार प्यारे दोस्तों,मैं आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । आज के इस आर्टिकल में हम शिशुनाग वंश के वारे में पढ़ने जा रहें है। Shishunag vansh के शासनकाल के वारे में पड़ेंगे | शिशुनाग के पिता के बारे में भी पढ़ सकते है। इसी प्रकार के महान व्यक्तित्व के वारे में पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट www.mpboard.net को विजिट करते रहें।
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शिशुनाग / Shishunag vansh in hindi –
शिशुनाग वंश ई. पू. 430-364 | |
शिशुनाग वंश का संस्थापक | शिशुनाग |
शिशुनाग वंश का शासनकाल | लगभग 68 वर्ष तक |
शिशुनाग वंश से पहले कौनसा राजवंश था | हर्यक वंश |
इस राजवंश की राजधानियां | मगध की प्राचीन राजधानी गिरिव्रज या राजगीर से जुड़े और वैशाली (उत्तर बिहार) |
शिशुनाग वंश के पतन का इतिहास | माना जाता है कि नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद द्वारा कालाशोक (394 ई.पू. से 366 ई.पू.) की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई और शिशुनाग वंश के शासन का अन्त हो गया। |
शिशुनाग के पुत्र | कालाशोक |
कालाशोक के पुत्र | 10 पुत्र |
शिशुनाग वंश के उत्तराधिकारी और वंश का पतन | शिशुनाग वंश के पश्चात् उसका पुत्र अशोक राजा बना उसे कालाशोक भी कहा जाता था | कालाशोक के दस पुत्र हुये थे, जिसमें नन्दीवर्धन ही योग्य शासक हुआ, किन्तु वह विलासी था । उसके समय राजपरिवार में षड्यंत्र रचे गये। उसकी शूद्र स्त्री से उत्पन्न संतान महापद्य नन्द ने शिशुनाग वंश का अंत करके नन्द वंश की स्थापना की । |
इन्हें भी पड़े |
शिशुनाग एक महत्वाकांक्षी साम्राज्यवादी सम्राट था, उसके काल में उसने वत्स प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया। शिशुनाग के अवंति के प्रोत वंश की शक्ति नष्ट करके उसे अपने राज्य में मिला लिया। उसने अपने पश्चिमी क्षेत्र के विजित राज्यों की देखरेख के लिये पाटलिपुत्र से राजधानी पुनः राजगृह में परिवर्तित कर दी ।
उसकी एक राजधानी वैशाली में भी थी | जहाँ से वह अपने साम्राज्य के उत्तरी राज्यों पर भी ध्यान रखता था। शिशुनाग ने कोसल को भी जीत लिया था। पंजाब और सीमान्त क्षेत्रों को छोड़कर सारा उत्तर उसके आधिपत्य में आ गया था यही कारण है कि नागवंश को शिशुनाग वंश कहा जाता है।
शिशुनाग वंश के उत्तराधिकारी और वंश का पतन –
शिशुनाग वंश के पश्चात् उसका पुत्र अशोक राजा बना उसे कालाशोक भी कहा जाता था । उसने राजगृह को छोडकर पुनः पाटलिपुत्र में अपनी राजधानी ।
स्थापित की । उसके शासन काल में बौद्ध धर्म की दूसरी सभा का आयोजन किया गया था जिसमें बौद्ध धर्म दो स्पष्ट सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था
(1) थेरवाद (प्राचीन पराम्परागत एवं बुद्ध के प्रवचनों को मानने वाले)
(2) महासंघिक (उदारवादी और परिवर्तनवादी) ।
इन्हीं से आगे चलकर हीनयान और महायान सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई ।
कालाशोक के दस पुत्र हुये थे, जिसमें नन्दीवर्धन ही योग्य शासक हुआ, किन्तु वह विलासी था । उसके समय राजपरिवार में षड्यंत्र रचे गये। उसकी शूद्र स्त्री से उत्पन्न संतान महापद्य नन्द ने शिशुनाग वंश का अंत करके नन्द वंश की स्थापना की ।
FAQ-
- शिशुनाग वंश के संस्थापक कौन है?
- शिशुनाग वंश के अंतिम शासक कौन थे?
- शिशुनाग वंश की राजधानी क्या थी?
शिशुनाग वंश के कितने शासक थे?
शिशुनाग वंश का प्रसिद्ध राजा कौन है?