सामाजिक व आर्थिक असमानता 

सामाजिक व आर्थिक असमानता ,political science class 12th, samajik va aarthik asamanta

सामाजिक व आर्थिक असमानता 

सामाजिक व आर्थिक असमानता  भारतीय लोकतंत्र की स्थापना के साथसाथ अनेक समस्याएँ भी उभरकर सामने आयीं जिसके कारण महात्मा गांधी का समानता और समरसता के साथ अनेकता में एकता स्थापित करने का सपना अभी भी अधूरा है

भारतीय संविधान द्वारा स्थापित प्रजातांत्रिक व्यवस्था समान प्रतिनिधित्व, स्वतंत्र चयन, विधि के शासन, अवसर की समानता और उपलब्ध संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और सामाजिक न्याय उपलब्ध कराये जाने का दायित्व केन्द्र एवं राज्य सरकारों को सौंपा गया है

स्वतंत्रता के पाँच दशक बाद भी भारत सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं में जी रहा है जिन्हें सुलझाना आवश्यक है

आइये इन भारतीय संविधान द्वारा स्थापित प्रजातांत्रिक व्यवस्था समान प्रतिनिधित्व स्वतंत्र चयन विधि का शासन अवसर की समानता संसाधनों का न्याय संगत विसरण और सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने के लिए यह दायित्व केन्द्र एवं राज्य सरकारों को सौंपा गया हैं

असमानताओं के मूल में उपस्थित कारणों को समझकर उसके निराकरण के उपायों पर विचार करें। 

सामाजिक असमानता 

भारतीय लोकतंत्र के व्यावहारिक रूप को प्रभावित करने वाला एक अत्यधिक मुख्य तत्व सामाजिक असमानता है। इसके मूल में सदियों से स्थापित वर्ण व्यवस्था है, जो कार्य विशेषीकरण के सिद्धान्त के आधार पर समाज को चार वर्ग में विभाजित करके रख दिया है।

इसमें वंश, रंग, लिंग, धर्म और भाषा ने मिलकर भारतीय लोकतंत्र को वर्गतंत्र में परिवर्तित करके रख दिया है। इस तरह किसी समाज में जाति, वंश, रंग, धर्म, लिंग व कार्य के आधार पर विभाजन कर उसे उच्च या निम्न वर्ग का भेदभाव करना ही सामाजिक असमानता है । भारत में सामाजिक असमानता निम्न रूपों में देखी जा सकती है 

सामाजिक व आर्थिक असमानता से जाति प्रथा –

जाति प्रथा के रूप में समाज के विभिन्न वर्ग छोटीबड़ी जातियों में विभाजित है जो प्रथाओं, परम्पराओं और रूढ़ियों से आबद्ध है। 

सामाजिक व आर्थिक असमानता से कार्य के आधार

कार्य के आधार पर समाज को श्रेणीबद्ध कर देने से कुछ को कुलीन और अन्य को अछूत श्रेणी में बाँटकर एकदूसरे के प्रति हेय या घृणा, ईर्ष्या और द्वेष के भाव भर दिये हैं । 

सामाजिक व आर्थिक असमानता से उच्च या कुलीन वर्ग

सत्ता में सम्मान देते हुए अधिक सुविधाएँ प्रदान करते हुए अन्य को सामान्य सुविधाओं से वंचित रखना ही सामाजिक असमानता है ।

सामाजिक व आर्थिक असमानता से पूर्व काल से –

उच्च वर्ग का प्रभुत्व अछूत समझी जाने वाली जातियों के जीवन स्तर को उठाने और उन्हें समानता दिलाने का विरोध करता रहा इससे असमानता की खाई चौड़ी होती गयी ।

सामाजिक व आर्थिक असमानता से पुरुष प्रधान

भारतीय समाज महिलाओं को अयोग्य, अपात्र और आश्रित वर्ग में रखता आया है। आज भी यह प्रचलित है और वह स्त्री-पुरुष में समान अधिकार दिलाने के प्रयासों का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से विरोध करता आ रहा है।

आर्थिक असमानता 

आर्थिक असमानता से अभिप्राय समाज के अन्तर्गत न्यूनतम और अधिकतम आय के मध्य अंतर से है । समाज में दीन और धनी लोगों की आय प्रतिशत में व्याप्त अंतर ही आर्थिक असमानता है। भारतीय जातीय व्यवस्था ही आर्थिक असमानता का मूल कारण है।

इस व्यवस्था में प्रचलित परम्पराओं और कठोर बंधनों ने समाज के निम्न वर्ग कहे जाने वाले लोगों की व्यावसायिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया था। वे अपने पैतृक व्यवसाय से बंधे रहने के लिये बाध्य थे।

इस नियंत्रित व्यावसायिक व्यवस्था से उच्च एवं निम्न वर्ग कहे जाने वाले समुदायों के मध्य आर्थिक स्थिति का अंतर निरंतर बढ़ता ही गया-फलस्वरूप आज भारत-

  1. धनी और निर्धन वर्ग में विभाजित होकर रह गया है ।
  2. धनी वर्ग संख्या में कम होते हुए भी सम्मानीय बना है। सत्ता उसके आगे पीछे घूमती है । देश का धन इन्हीं में सिमट कर रह गया है। दूसरी ओर निम्न वर्ग अपने परिवार के भरण पोषण के लिए इन पर निर्भर होकर रह गया है। यह एक तरह से सामंतवादी व्यवस्था के हाथ का खिलौना बन गया है।
  3. समय के साथ-साथ धनी और अधिक धनी तथा निर्धन और निर्धन होता चला जा रहा है । आज निर्धन वर्ग धनी वर्ग के शोषण का शिकार बन गया है।
  4. स्वतंत्र भारत में नियोजन के माध्यम से जो भी योजनाएँ पूर्ण हुई और चल रही हैं उनसे आय के संतुलन में कोई अंतर नहीं आया है। बेरोजगारी बढ़ी है । महँगाई ने निर्धन की कमर तोड़कर रख दी है। इसका कोई निदान दिखाई नहीं देता है ।
  5. देश के आर्थिक विकास का लाभ समाज के गरीब वर्ग तक नहीं पहुँचा है ।
  6. देश के औद्योगिक विकास सभी क्षेत्रों में समानता के साथ नहीं होने से जहाँ कुछ राज्य आर्थिक दृष्टि से विकसित नहीं हो सके वहाँ कुछ राज्य आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गये हैं। यह आर्थिक समानता को बढ़ाती है ।

भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता के कारण सामाजिक और आर्थिक असमानता को समझने से इन दोनों के उत्पन्न होने के कारण समान दिखाई पड़ते हैं अतः भारत में सामाजिक आर्थिक असमानता के निम्नांकित कारण रहे- 

सामाजिक व आर्थिक असमानता से जाति प्रथा

वर्तमान समय में समाज में प्रचलित जाति प्रथा वर्णाश्रम व्यवस्था का विकृत रूप है । पूर्व में व्यक्ति की जाति उसके कर्मानुसार निश्चित होती थी किन्तु उसे कर्मानुसार उच्च या नीच जाति का नहीं माना जाता था। अब यह व्यवस्था बदल गयी।

अब व्यक्ति का जन्म जिस वर्ण में हुआ है उसे अपने वर्ग या जाति के व्यवसाय को अपनाना होगा। परम्पराओं और रूढ़ियों ने इसे कानूनी रूप प्रदान कर समाज के एक वर्ग विशेष को अछूत और दासता की जंजीर में जकड़ कर रख दिया। यही सामाजिक असमानता और आगे चलकर आर्थिक असमानता का कारण बना।

सामाजिक व आर्थिक असमानता से सामंतवादी संरचना

भारत में राजतंत्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत सामंतवादी संरचना सदियों से प्रचलित थीब्रिटिश शासन काल में इसे और दृढता प्रदान की गयी 

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