प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के समक्ष चुनौतियाँ । प्रस्तावना। शरणार्थी समस्या। शरणार्थियों का आगमन। शरणार्थी समस्या का स्वरूप। शरणार्थी समस्या का प्रभाव। नेहरू-लियाकत समझौता। बांग्लादेश संकट और शरणार्थी समस्या। के वारे में बात करेंगे |
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के समक्ष चुनौतियाँ
मित्रता के लिये हम सम्चे विश्व कि ओर हाथ बढ़ाना चाहते हैं।”
– श्रीमती इंदिरा गाँधी
प्रस्तावना-
स्वतन्त्रता के पश्चात् विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की आधारशिला लाखों भारतीयों के बलिदान और सम्पूर्ण भारतवासियों के अथक निरंतर स्वाधीनता आन्दोलन पर रखी गयी है। 5 अगस्त 1947 को भारत को स्वाधीनता के साथ अपने विभाजन का कटु सत्य स्वीकारते हुए अपने पश्चिमी और पूर्वो अंग से अलग हुए नये राष्ट्र पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकारना पड़ा। यह ऐसी त्रासदी थी, जिसके परिणाम सुखद नहीं रहे ।
यह विभाजन अंग्रेजों की , फूट डालो और राज्य करो” से प्रेरित द्वि-राष्ट्र सिद्धांत (Two nation theory) से भारतीय मुस्लिम लीग को धार्मिक उन्माद पर नये इस्लामी राष्ट्र की स्थापना करने की सनक सवार हो जाने का परिणाम था। अपने अस्तित्व में आने के साथ ही पाकिस्तान ने इस्लामी रूडीबादी का दामन थामकर भारतीय मुसलमानों को धर्म के नाम पर पाकिस्तान में जाकर बसने का आह्वान किया ॥
पाकिस्तान सरकार का यह व्यवहार न केवल साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने बल्कि भारत-पाक संबंधों में कटुता का कारण बना । कटुता के ये बीज आज कॉँटीली झाड़ियों में परिवर्तित होकर दोनों देशों के संबंधों में कंटक पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस कटुता की चुभन ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया, जिनमें सबसे प्रमुख शरणार्थी समस्या और कश्मीर विवाद हैं।
स्वतन्त्रता के पश्चात् शरणार्थी समस्या-
इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान की माँग रखने वाली मुस्लिम लीग भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की धारा एक में वर्णित दो औपनिवेशिक राज्यों की स्थापना के अनुसार मुस्लिम बहुल लोगों को मिलाकर पाकिस्तान के निर्माण से पूर्णतः संतुष्ट नहीं थी। उसका लक्ष्य भारत के सभी मुसलमानों के लिए नये राष्ट्र का निर्माण करना था जो इसलिए संभव नहीं था | क्योंकि यह समुदाय सदियों से सारे भारत के अलग-अलग प्रांतों में अल्प ये वहुल संख्या में निवास करता आ रहा था |
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान निर्माण के साथ ही भारत में निवास कर रहे सभी मुस्लिमों को धर्म के नाम पर भारत छोड़कर पाकिस्तान में आकर बसने का आह्वान किया। ओर पाकिस्तान में निवास कर रहे लाखो हिन्दुओं को पाकिस्तान छोड़ने के लिए विवश करना शुरू कर दिया। यहाँ से साम्प्रदायिक तनाव बड़ा, जो शरणार्थी समस्या का कारण बना।
स्वतन्त्रता के पश्चात् शरणार्थियों का आगमन-
भारत का विभाजन भारतीय इतिहास की सबसे भयंकर त्रासदी थी सदियों से भारत में साथ रहने के बाबजूद विभाजन ने मुस्लिसम- हिंदूओं के मध्य भाई-चारे की भावना को शत्रुता में बदल दिया। कट्टरपंथी मुल्लाओं ने स्थानीय मुस्लिमों को साथ लेकर हिन्दुओं पर तरह-तरह के जुल्म ढाने शुरू कर दिये। सिंध, पंजाब और ब्लोचिस्तान के हिन्दुओं के मकानों में आग लगाना शुरू कर दिया।
स्त्रियों के सतीत्व हरने की घटनाएँ बड़ने लर्गीं । इससे भारत-पाक संबंधों में कट॒ता बढ़ने लगी | भारत ने पाकिस्तान की सरकार से अपने नागरिकों के जान- माल की सुरक्षा का दायित्य निभाने एवं कट्टरपंथो मुल्लाओं द्वारा हिन्दुओं पर किये जाने वाले अत्याचारों को बंद करने की अपील करते हुए यह सुझाल दिया कि शांति के साथ-साथ हिन्दू और ‘मुसलिम वर्ग को इस बात का निर्णय करने कि छूट दें कि वे किस देश में रहना चाहते हैं।
अफसोस कि पाकिस्तान ने भारत की अपील पर कोई अनुकूल प्रतिक्रिया न देते हुए हिन्दुओं पर आतंक का वातायरण बनाये रखना कट्टरपंथी मुसलिम संगठनों ने स्थनीय गुंडों के साथ हिंदुओं पर इतना कहर ढाया कि वे अपना घर बार, जमीन-जायदाद और व्यवसास छोड़कर चले अपने परिवार सहित भारत की ओर जो भी साधन उपलब्ध हो सका,उसका उपयोग करते हुए भागने लगे। भागते हुए परिवारों की गुण्डों ने हत्या करना शुरू कर दिया जिसकी भारत में प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई ।
शरणार्थी समस्या शरणार्थी समस्या का स्वरूप-
‘ विभाजन के वाद दोनों देशों में प्रारंभ साम्प्रदायिक दंगों ने शरणार्थी समस्या को जन्म दिया । समान्य रूप से जब किसी देश के नागरिक राजनीतिक विद्रोह, प्रकृति के कहर, युद्ध, आतंकयाद, मौसमी त्रासदी अथवा अप्रत्याशित मानवी कारणों से मजबूर होकर आत्म रक्षा के लिए किसी अन्य देश की सीमा का उल्लंघन करते हुए वहाँ शरण लेने के लिए विवश हो जाते हैं, तो इस तरह के लोगों को शरणार्थी कहा जाता है |
तथा इनके व्यवस्थापन, सुरक्षा, भोजन, आवास की व्ययस्था ही शरणार्थी समस्या कहलाती हैं ये शरणार्थी अपने देश कि स्थिति में सुधार होने पर वापस भेज दिये जाते हैं,
पर कुछ परिस्थितियों में अपनी जान-माल की सुरक्षा की गारंटी अपने वतन में न होने की आशंका से शरण लिये देश में की स्थायी रूप से निवास करने का निवेदन करते हैं। विभाजन के बाद शुरू हुए साम्प्रदायिक दंगे का स्वरूप अत्यंत वीभत्स था। पंजाब के प्रथम भारतीय गवर्नर सर चंदूलाल द्विवेदी के अनुसार केवल इस प्रांत में 2•25 लाख व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
भारत पहुँचने वाली रेलगाडियाँ खून से लथपथ लाशों और आहतों से पटी डुई थीं। भारतीयों ने यह दृश्य देखकर प्रतिक्रिया स्वरूप भारत के विभिन्न प्रदेशों में मुस्लिमों के विरुद्ध दंगे और आगजनी की घटनाएँ दुहराने लगे। भारत सरकार और स्वयं महात्मा गाँधी ने दंगे प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर मुस्लिमों के विरुद्ध नरसंहार को रोकने के लिये पद यात्रा की।
बंगाल के नोआखाली में गाँधीजी ने हिंसा रोकने के लिये अनशन प्रारंभ कर दिया। शनै: शनै: दंगे शांत हुए । इन दंगों का प्रभाव यह पड़ा कि भारत से भी लाखों की संख्या में सुसलमान पाकिस्तान जाने लगे। इन सभी मुसलमानों को सुरक्षा के साथ रेलगाड़ियों से पाकिस्तान सीमा तक पहुँचाने की व्यवस्था भारत सरकार ने की थी।
शरणार्थियों के रूप में भारत में पहुँचने वाले समूहों की अत्यंत दर्दनाक स्थिति का अनुभव श्री एल. एस. उपाध्याय की इस घटना से संदर्भित पुस्तक में दिये गये इन वाक्यों को पढ़ने से किया जा सकता है ……. बूड़ी औरतें अपने बेटों के कंधों का, “गर्भवती महिलाएँ अपने पतियों का सहारा लिये, माताएँ अपने दूध-पीते अच्चों को गोद में उठाए, भूखे प्यासे आगे बड़ते चले जा रहे थे। …… सेकड़ों मील तक चलता था।
औरतें पुरूष अपने सिरों पर बड़े- बड़े गट्ठर लादकर जिनमें इन लुटे हुए लोगों कि गृहस्थी का बचा खुचा सामान होता है–कुछ बर्तन, शिवाजी और गुरुनानक कि एक तस्वीर या एक कुरान | ये शरणार्थी हिंदू मुसलमान, सिख और अनपढ़ किसान थे । सबसे खराब हालत तो उन शरणार्थियों कि थी जो कमजोर, छोटे या बूड़े थे और बीच रास्ते में ही दम तोड़ते हुए अपना सफर पूरा ना कर सकें ।
शरणार्थियों की इस विशाल संख्या का व्यवस्थापन एक कठिन कार्य था। लाखों परिवारों की सुरक्षा, आवास और भोजन व्यवस्था के लिये सारे देश के प्रमुख नगरों के समीप शरणार्थी शिविर स्थापित किये गये, हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारियों और स्वयंसेवी संगठनों ने अस्थायी निवास के लिये टेंट लगाये, स्वच्छता और जल की व्यवस्था की तथा मुफ्त भोजन का प्रबंध किया।
भारत सरकार ने शरणार्थी समस्या से निपटने के लिये एक स्वतंत्र मंत्रालय स्थापित किया जिसका मुख्य कार्य शरणार्थियों की सहायता करने के साथ-साथ प्रत्येक विस्थापित परिवार द्वारा पाकिस्तान में छोड़ी गयी सम्पत्ति का ब्यौरा एकत्रित करना था।
भारत ने सम्पत्ति का पूरा आकलन कर पाकिस्तान से उसकी क्षतिपूर्ति की माँग की । पाकिस्तान ने भी क्षतिपूर्ति के आँकड़े अस्तुत किये । कई साल इनके सत्यापन में निकल गये । कुछ लाख को छोड़कर सभी हिन्दू और मुसलमान द्वारा भारत और पाकिस्तान में छोड़ी गयी सम्पत्ति की क्षतिपूर्ति पर सहमति जनी।
भारत ने भारत छोड़कर गये मुस्लिमों की सम्पत्ति को क्षतिपूर्ति पाकिस्तान को कर दी, किन्तु पाकिस्तान द्वारा आज तक अनेक आपत्तियों और बहानों के द्वारा निश्चित की गयी क्षतिपूर्ति का पूरा भुगतान नहीं किया गया है।इस शरणार्थी समस्या ने दोनों देशों की सरकारें और जनता के मध्य इतनी कटुता और निराशा भर दी है, जो आज तक दूर नहीं हो सकी है।
स्वतन्त्रता के पश्चात् शरणार्थी समस्या का प्रभाव-
शरणार्थी कहीं से आये उन्हें शरण स्थल में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भावात्मक संवेदों से गुजरना पड़ता है। उसी तरह शरणस्थली बने। राज्य को उनके व्यवस्थापन, पुनर्वास की समस्या से निपटने हेतु अकुत सम्पत्ति खर्च करते हुए उनकी सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है । पाकिस्तान से आये शरणार्थियों से उपजें प्रभाव का अनुभव निम्नांकित तथ्यों के अध्ययन से कर सकते हैं-
स्वतन्त्रता के पश्चात् शरणार्थियों के व्यवस्थापन और पुनर्वास से बढ़ा आर्थिक बोझ-
पाकिस्तान से विस्थापितों को दिल्ली के बहुत बड़े क्षेत्र में बनाये गये अस्थायी शिविरों में रखा गया जहाँ उनके आवास, भोजन, जल, स्वच्छता और सुरक्षा के विशेष प्रबंध किये गये साथ ही पंजाब के कुछ क्षेत्रों में भी इसी तरह की व्यवस्था की गयी। पूर्वी पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को, बंगाल, असम, त्रिपुरा आदि प्रदेशों में बसाया ग़या। इन सब व्यवस्थाओं में भारत को अथाह धनराशि खर्च करना पड़ी जो भविष्य में उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने का कारण बनी।
स्वतन्त्रता के पश्चात् शरणार्थियों द्वारा पाकिस्तान में छोड़ी गयी सम्पत्तियों की क्षतिपूर्ति की समस्या-
व्यवस्थापन मानकों के साथ भारत सरकार के का शरणार्थी व्यवस्थापन एवं पुनर्वास मंत्रालय द्वारा शरणार्थियों द्वारा पाकिस्तान में छोड़ी गयी सम्पत्तियों के आँकड़े प्रमाणी सहित एकत्रित करना शुरू किया। आँकड़ों से पता चला कि लगभग एक करोड़ गैर-मुस्लिमों को पाकिस्तान में लगभग 50 हजार लाख रुपये की चल-अचल सम्पत्ति छोड़कर भागना पड़ा था।
इसी तरह भारत से पाकिस्तान गये मुस्लिम भारत में अपनी दस हजार लाख रुपये की जायदाद छोड़कर गये थे। भारत तत्संबंध में पाकिस्तान को छोड़ी गयी सम्पत्ति का ऑकलन पेश कर उससे क्षतिपूर्ति की माँग की।
पाकिस्तान ने भी अपनी ओर से क्षतिपूर्ति के आँकड़ें भारत को सौंपे। दोनों सरकारों के अधिकारियों की प्रथम बैठक 29 अगस्त 1947 को हुई। दोनों सरकारों ने एक दूसरे के द्वारा सौंपे गये आँकड़ों के सत्यापन के लियें’ समय देने पर सहमति हुई ।
इस पर कोई निर्णय- लेने पर सालों लग गये। अंत में 1955. को दोनों देशों के मध्य एक समझौता हुआ, जिसमें एक-दूसरे के यहाँ के बैंकों या लाकरों में जमा खातों के स्थानांतरण किये जाने की सहमति साथ ही एक-दूसरे के यहाँ छोड़ी गयी अचले सम्पत्तियों का आकलन, शरणार्थियों को मुआवजे के रूप में दिया जाना स्वीकार किया गया। यह समझौता पूरी ईमानदारी से पाकिस्तान द्वारा आज तक निभाया नहीं गया।
नेहरू-लियाकत समझौता-
दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने अप्रैल 1950 के मध्य एक समझौते के अंतर्गत दोनों देशों ने अपने यहाँ निवास कर रहे अल्पसंख्यकों की जान माल की सुरक्षा और विकास के समान अवसर के संवैधानिक अधिकार प्रदान किये जायेंगे। कट्टर पंथी दलों के दबाव में पाकिस्तान अल्पसंख्यक को हितों का सरंक्षण करने में असफल रहा है आज भी पाकिस्तान से 10 हिंदू परिवार भारत में शरण ले रहे हैं।
पुनर्वास की समस्या-
पाकिस्तान से भारत आये गैर मुस्लिम शरणार्थी जिनमें सिक्ख और हिन्दु (सिंधी) प्रधान थे। पंजाब, दिल्ली, मुम्बई शहरों कै आसपास बस गये। भारतीयों के साथ शीघ्र हीं ‘घुलमिल गये पर पाकिस्तान गये मुस्लिमों को अनेक कष्ट उठाने पड़े। पं
जाबी मुसलमान तो लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में बस गये और उन्होनें शीघ्र ही पाकिस्तान की संस्कृति और भाषा से सामंजस्य बना लिया किन्तु उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, हैदराबाद से गये मुस्लिम शरणार्थी करांची और उससे लगे सिंध प्रान्त में बसाये गये वे वहाँ कि सांस्कृतिक और भाषायी पृष्ठभूमि से सामंजस्य नहीं बैठा पाये। पाकिस्तान भी उन्हें आज भी मुहाजिर (शरणार्थी) कहा जाता है।
वे राजनीतिक अधिकारों के लिये आज भी संघर्षरत है। पाक में आज भी अल्पसंख्यक हिन्दू और ईसाई समाज अपने ऊपर निरंतर हो रहे अत्याचार से पीड़ित होकर भारत में शरण लेने आ रहे हैं।
ताजे आँकड़ों के अनुसार राजस्थान और पंजाब के बाघा बार्डर से 25 परिवार तीर्थयात्रा का वीसा लेकर भारत आ रहे हैं और समय समाप्त होने पर पाकिस्तान नहीं लौट रहे हैं। विश्व के समाचार पत्रों में इस तरह के समाचार प्रकाशित होने पर स्वयं पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जरदारी ने सिंध सरकार से हिन्दुओं की सुरक्षा और उनके यहाँ से पलायन को रोकने हेतु आवश्यक मानवीय कदम उठाने का निर्देश देने के लिए बाध्य होना पड़ा था।
बांग्लादेश संकट और शरणार्थी समस्या
भारत को दूसरी बार शरणार्थी समस्या के साथ सामना तथा कथित पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से (जो आज बांग्लादेश कहा जाता है) में पाकिस्तान के विरुद्ध प्रारंभ जन आन्दोलन के समय करना पड़ा। सन् 1970 में पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति याह्या खाँ के अत्याचारों सें पूर्व पाकिस्तान की जनता इतनी त्रस्त हो गयी कि उसने अवामी लीग के प्रमुख शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में तानाशाही के विरुद्ध जन आन्दोलन प्रारंभ कर दिया।
याहया खाँ ने आन्दोलन को कुचलने के लिये सैनिक शक्ति का प्रयोग किया। सैनिकों द्वारा की गयी अमानुषिक कार्यवाही से बचने के लिये आतंकित लाखों बांग्लादेशी भागकर भारत में शरण लेने के लिये आये।
भारत ने अचानक उत्पन्न शरणार्थी समस्या से बचने के लिये पाकिस्तान को अपने नागरिक वापस लेने का अनुरोध किया पर पाकिस्तान द्वारा अनसुनी कर देने और उसके सैनिकों द्वारा सीमा रक्षक भारतीय सैनिक टुकड़ियों पर गोलाबारी जारी रखने से मजबूर होकर भारत को 1970-71 में सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी और पूरे पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्र कर नये राष्ट्र बांग्लादेश को जन्म दिया भारत-पाक के मध्य 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता । जिसके अन्तर्गत पाकिस्तान ने बांग्लादेश को नये राष्ट्र के रूप मान्यता दी बांग्लादेश के प्रधानमंत्री ने बंगाली शरणार्थियों को शनैःशनै: अपने देश में वापस बुला लिया और शरणार्थी समस्या हल हो गयी
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