बिम्बिसार ( ई. पूर्व 544-493) 

बिम्बिसार, हर्यक वंश (ई.पूर्व 544-493 ई.पूर्व ) , Bimbisara, Haryanka dynasty 544 BC TO 493.

हर्यक वंश

प्रस्तावना –

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे | मगध के एक प्रतापी सम्राट जिसने हर्यक वंश कि स्थापना की |

आज के इस आर्टिकल में हम बिम्बिसार के जीवन के बारे में पढ़ेंगे, इन्होंने कितनी लड़ाइयां लड़ी,  राजगद्दी पर बैठे, इनके पिता का नाम क्या था, उनकी पत्नी का नाम क्या था, इनकी माता का नाम क्या था, इन्होंने किन-किन प्रदेशों पर शासन किया | अजातशत्रु एक महत्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी शासक था। उसने साम्राज्य में विस्तार के लिये निरंतर युद्ध किये आदि के बारे में पढ़ेंगे |

बिम्बिसार का पारिवारिक जीवन परिचय

जन्म 558 ई.पूर्व 
निधन 491  ई.पूर्व
जीवनसंगी का नाम कोशाला देवी, ख़ेमा,पद्मावती,आम्रपाली
मां का नाम ?
पिता का नाम भाटिया
 पुत्र का नाम अजातशत्रु
राजवंश हर्यक वंश
धर्म जैन और बौद्ध
शासनकाल (558 ईसापूर्व – 491 ईसापूर्व)

मगध में सम्राट  ने हर्यक वंश के शासन की स्थापना की। सम्राट के पिता एक साधारण सामन्त था । ईसा पूर्व छठी सदी में मगध में बार्हद्रथ वंश का पतन हो गया था । इस वंश के अंतिम अयोग्य शासक रिपुंजय को उसके मंत्री पुलिक ने मार दिया और अपने पुत्र को राजा बना दिया। पुलिक के पुत्र को बिम्बिसार के पिता ने सत्ता से हटाकर बिम्बिसार को मगध का राजा बना दिया । 

 बिम्बिसार ( ई. पूर्व 544-493) 
बिम्बिसार ( ई. पूर्व 544-493)

बिम्बिसार मगध के राजसिंहासन पर 544 ई. पू. में बैठा । उसकी राजधानी प्रारंभ में गिरिब्रज में थी । उसने थोड़े ही दिनों में अपने राज्य का विस्तार और प्रभाव बढ़ा दिया। बाद में उसने अपनी नई राजधानी राजगृह में स्थापित की, जो गिरिब्रज के पास ही थी । राजगृह काफी समय तक मगध के साम्राज्य की राजधानी बनी रही । राज्य का विस्तार –

वैवाहिक सम्बन्ध द्वारा –

सम्राट एक कुशल राजनीतिज्ञ था, उसने वैवाहिक सम्बन्धों के द्वारा अनेक राजाओं को अपना हितैषी बना लिया था । उसने चार विवाह किये – 

( 1 ) कोसल के राजा प्रसेनजित की बहन महाकोसला से,, 

(2) लिच्छिवी प्रमुख चेटक की बहन चेल्लना से, 

(3) विदेह कुमारी वासवीं से तथा, 

(4) क्षेमाभद्र (उत्तरी पंजाब) के राजा की कन्या से । इन वैवाहिक सम्बन्धों से बिम्बिसार का प्रभाव काफी बढ़ गया । 

 युद्ध के द्वारा –

सम्राट ने युद्ध के द्वारा भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया । वह एक कुशल योद्धा था। उसके शासन काल में मगध का सीमा विस्तार दो गुना हो गया था । बिम्बिसार ने अंग के राजा ब्रम्ह दत्त को मार कर उसके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया । वह एक कुशल और सफल अन्तर्राज्य सम्बन्ध रखने वाला था । वत्स, मद्र, गान्धार, कम्बोज आदि राज्यों से उसने अपने दूत सम्बन्ध स्थापित किये थे। 

शासन प्रबन्ध –

बिम्बिसार ने एक सुसंगठित और सुसंचालित व्यवस्था स्थापित की।   राज्य के कर्मचारियों के कार्यों की निगरानी वह स्वयं करता था। शासन सम्बन्धी कार्यों की उपेक्षा के लिये कठोर दण्ड की व्यवस्था थी । 

धर्म –

बिम्बिसार के राज्य की स्थिति धर्म निरपेक्ष राज्य की थी बिम्बिसार स्वयं बौद्ध धर्म से प्रभावित था। उसके काल में बौद्ध धर्म को प्रसार के लिये पर्याप्त अवसर मिला । बौद्ध भिक्षुओं पर से कर हटा लिये गये थे । उनके रहने, खाने-पीने तथा पहनने की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाती थी । गौतम बुद्ध उसके राज्य में काफी समय तक रहे थे। वह बुद्ध और महावीर दोनों का समकालीन था । वह धार्मिक रूप से उदार था बौद्ध और जैन दोनों ही धर्म के लोग उसे अपने धर्म का अनुयायी मानते थे । 

  • बिम्बिसार के लम्बे शासन काल के कारण उसके पुत्र का धीरज खो गया। उसने अपने पिता को बन्दीगृह में डाल दिया। वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई ।

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