अजातशत्रु का शासन काल ई.पू. 493-462

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अजातशत्रु का शासन काल ई.पू. 493-462

प्रस्तावना –

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे | मगध के एक प्रतापी सम्राट और बिम्बिसार के पुत्र जिसने पिता को मार कर राज प्राप्त किया |

आज के इस आर्टिकल में हम अजातशत्रु के जीवन के बारे में पढ़ेंगे, इन्होंने कितनी लड़ाइयां लड़ी,  राजगद्दी पर बैठे, इनके पिता का नाम क्या था, उनकी पत्नी का नाम क्या था, इनकी माता का नाम क्या था, इन्होंने किन-किन प्रदेशों पर शासन किया | अजातशत्रु एक महत्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी शासक था। उसने साम्राज्य में विस्तार के लिये निरंतर युद्ध किये आदि के बारे में पढ़ेंगे |

अजातशत्रु का जीवन परिचय –

मगध सम्राट अजातशत्रु
जन्म509 ई०पू०
मृत्यु461 ई०पू०
राज घरानाहर्यक वंश
जीवन संगनीराजकुमारी वजिरा
माँ का नामरानी कोसल देवी
पिता का नामबिम्बसार
संतानउदयभद्र, उदयिन
धर्मजैन, बौद्ध
शासन काल492 ई०पू – 460 ई०पू

साम्राज्य  में  विस्तार   

अजातशत्रु का  कौशल से युद्ध –

अजातशत्रु द्वारा अपने पिता की हत्या और उसके पश्चात् रानी महाकोसला की मृत्यु के कारण कोसल का प्रांत नरेश प्रसेनजित ने काशी वापस ले लिया। काशी वापस पाने के लिये मगध और कोसल में निरंतर युद्ध हुआ। अंत में अजातशत्रु पराजित हो गया। बन्दीगृह में रहते हुए प्रसेनजित की पुत्री से उसका प्रेम सम्बन्ध हो गया। प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वज्रा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया और दहेज में काशी का प्रदेश दे दिया । 

अजातशत्रु का  वज्जिसंघ से युद्ध –

कोसल के संघर्ष समाप्त होने के बाद अजातशत्रु ने गंगा के उस पार वज्जिसंघ पर आक्रमण किया। अपनी प्रबल वीरता और कूटनीति के कारण दस वर्ष तक चले युद्ध में अजातशत्रु की विजय हुई उसने वज्जिसंघ की राजधानी वैशाली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया । 

अजातशत्रु का मल्लगण राज्य से युद्ध-

वज्जिसंघ की विजय के पश्चात् अजातशत्रु ने पश्चिमोत्तर में बढ़कर मल्ल संघ को भी परास्त किया। उसके बाद उसके राज्य की सीमा उत्तर में हिमालय की नलहरी तक हो गई । इन विजयों के पश्चात् उसका ध्यान मालवा के अवन्ति राज्य की ओर गया । यहाँ का राजा चंड प्रोत अत्यन्त प्रभावी था। अजातशत्रु को उसके आक्रमण का भय था । उसने चण्डाप्रद्दोत से सामना करने की तैयारी की किन्तु किसी निर्णायक युद्ध से पूर्व ही उसका देहांत हो गया। 

अजातशत्रु का धर्म-

अजातशत्रु भी धार्मिक रूप से उदार था पहले उसके ऊपर जैन धर्म का प्रभाव था किन्तु बाद में वह बुद्ध के प्रभाव में आ गया। बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् उनके अवशेषों को प्राप्त कर उसने अपनी राजधानी राजगृह में स्तूप बनवाया । प्रथम बौद्ध सभा का आयोजन उसके काल में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा के सभा भवन में हुआ था । 

अजातशत्रु एक महत्वाकांक्षी धर्म सहिष्णु शासक था । उसने मगध के साम्राज्य का खूब विस्तार किया । उसके पुत्र उदयन के षड्यंत्र के कारण वह मारा गया । 

अजातशत्रु का उदयन

उदयन के अन्य नाम उदयभद्र और उदयिन भी थे । उदयन के काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना उसके द्वारा राजगृह से राजधानी को पाटलिपुत्र नामक नगर बसाकर उसमें स्थानान्तरित करना था । अवन्ति के नरेश से उसके सम्बन्ध तनावपूर्ण थे किन्तु किसी तरह का निर्णायक युद्ध उसके काल में नहीं हुआ। उदयन की हत्या एक ऐसे राजकुमार ने की जिसके पिता के राज्य को उद्यन ने जीत लिया था । 

उदयन के उत्तराधिकारी

उदयन के तीन पुत्र थे –

अनिरूद्ध, मुण्ड और नागदासक। तीनों ने क्रमश: शासन किया । इसके काल में पारिवारिक कलह बढ़ता गया । षड्यंत्र और हत्याएँ होने लगीं । राजवंश दुर्बल हो गया । जनता पितृधानी राजवंश से घृणा करने लगी थी। बढ़ते असंतोष को देखकर मंत्रियों ने काशी प्रांत के शासक शिशुनाग को बुलाकर मगध का राजा बना दिया । 

  • ऐसा विवरण मिलता है के लगभग सभी ने अपने अपने पिता की हत्या की थी। इसिलए इतिहास में इन्हें पितृहन्ता वंश के नाम से भी जाना जाता है।
  • अजातशत्रु की 500 पत्नियाँ थीं लेकिन प्रमुख पत्नी राजकुमारी वजीरा थी। काशी शहर महा-कोसल द्वारा बिम्बिसार को दहेज के रूप में दिया गया था।
  • वृजी संघ के साथ युद्ध के वर्णन में ‘महाशिला कंटक‘ नाम के हथियार का वर्णन मिलता है जो एक बड़े आकर का यन्त्र था, इसमें बड़े बड़े पत्थरों को उछलकर मार जाता था। इसके अलावा ‘रथ मुशल’ का भी उपयोग किया गया। ‘रथ मुशल’ में चाकू और पैने किनारे लगे रहते थे, सारथि के लिए सुरक्षित स्थान होता था, जहाँ बैठकर वह रथ को हांककर शत्रुओं पर हमला करता था।
  • ‘महाशिला कंटक’ का चित्र – बहुत जल्द देखने को मिलेगा

Remark –

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