अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए कल्याण योजनाएँ , पंचवर्षीय योजनाएँ, PANCHVARSHIYE YOJNNAYE, MP BOARD, 2024

अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए कल्याण योजनाएँ , पंचवर्षीय योजनाएँ, PANCHVARSHIYE YOJNNAYE, MP BOARD, 2024

प्रस्तावना –

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2 अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए कल्याण योजनाएँ
2.2 अनुसूचित जातियों जनजातियों की योजना कार्यक्रम-

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए कल्याण योजनाएँ , पंचवर्षीय योजनाएँ के वारे में बात करेंगे |

अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए कल्याण योजनाएँ 

 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की पंचवर्षीय योजनाएँ-

अनुसूचित जातियों जनजातियों केन्द्र सरकार और राज्य सरकार ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण के लिए विशेष प्रयत्न किये है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में इनके कल्याण के लिए विशिष्ट कार्य किये गये हैं। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में आदिवासी विकास (जनजातीय कल्याण) के लिए 19.9 करोड़ रु. का बजट प्रावधान किया गया था जो सातवीं योजना में बढ़कर 6,955 करोड़, आठवीं योजना में 21 ,000 करोड़ रु. हो गया और दसवीं योजना में लगभग 1,754 करोड़ रु. का प्रावधान है।

ये आंकड़े चौंकाने वाले और भ्रम पैदा करने वाले हैं। इतनी अधिक धनराशि के व्यय के पश्चात्‌ भी जनजातियों का जितना विकास हुआ है, इसका गम्भीरता से मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। पाँचवीं योजना में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उत्थान के लिए नयी रणनीति अपनायी गयी। जिन क्षेत्रों में 50% या इससे अधिक जनजातियां रहती हैं, उन्हें अलग दर्जा देकर उनके लिए अलग से उप-योजनाएँ तैयार करने की बात कही गयी। 19 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में जनजाति उप-योजनाएँ प्रारम्भ की गयी।

इन उप-योजनाओं का उद्देश्य जनजाति और गैर-जनजाति क्षेत्र के विकास की दूरी को कम करना और जनजातीय लोगों के जीवन में सुधार लाना है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जनजातियों का सभी प्रकार का शोषण समाप्त करने, विशेष रूप से भूमि, साहूकारी, कषि और वनउपज में होने वाले शोषण को समाप्त करने को प्राथमिकता दी गयी। इन उप-योजनाओं के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों द्वारा वित्त (धन) दिया जाता है।

योजना में इन परियोजनाओं का विस्तार कर 75 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या को इनके अन्तर्गत लाने का प्रावधान किया गया। छठी योजना में जनजातीय क्षेत्रों में प्रशिक्षण,आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सुविधाओं को उच्च प्राथमिकता दी गयी। आदिम जनजातियों के लिए परियोजना रिपोर्ट और कार्यक्रम बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया।

छठी योजना में जनजातीय कल्याण पर 5,535 करोड़ रुपये खर्च किये गये। सातवीं पंचवर्षीय योजना में अनुसूचित जनजातियो के कल्याण हेतु केन्द्र द्वारा 7,072.63 -करोड़ रुपए खर्च किए गए। उन राज्यों में जहां जनजातियों की बहुलता है ‘जनजाति उप-योजना’ के अन्तर्गत 30 लाख परिवारों को अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया। जनजातीय क्षेत्रों में कृषिगत बहु-उद्देशीय सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया गया। स्थानान्तरित ‘कृषि पर रोक लगाने के प्रयत्न किये गये।

लगभग दो लाख जनजातीय परिवार जो कि बन प्रदेशों में स्थितं 5 हजार गाँवों में निवास करते हैं, का उस भूमि पर कोई अधिकार नहीं है, जिसे वे जोतते हैं। उन्हें विकास की सुविधा देने के प्रयत्न किये गये। जनजातीय स्त्रियों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता दी गई तथा “महिला समितियाँ’ स्थापित की गईं। उनकी शिक्षा के लिए भी प्रयत्न किये गये।

आठंवीं पंचवर्षीय योजना में अनुसूचित जनजातियों के विकास से सम्बन्धित विभिन्न योजनाओं पर 12,500 करोड़ रुपए खर्च किए गए। दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) में जनजातीय कल्याण पर 1,754 कंरोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया था। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आ्थिक सहायता देने के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति वित्त और विकास निगम की स्थापना की गई है। देश में वर्तमान में इस प्रकार के निगम 24 राज्यों में कार्यरत हैं। 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की योजना कार्यक्रम-

पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए केन्द्र एवं ग़ज्य सरकारों द्वारा कई प्रकार की परियोजनाएँ चलायी गयी हैं जो निम्न प्रकार हैं 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की छात्रवृत्तियाँ

अनुसूचित जातियों और जनजातियों के छात्रें को उनके संरक्षकों की आय के आधार पर मेट्रिकोत्तर छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती हैं। मैट्रिक से ऊपर की कक्षाओं के लड़कों के लिए 1,000 रु, और लड़कियों के लिए 1,200 रु. श्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था है।

जहाँ 1944-45 में मैट्रिक से ऊपर की कक्षाओं के लिए अध्ययन करने वाले अनुसूचित जातियों के 114 तथा 2002-03 में अनुसूचित जनजातियों के 105 छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी गयी,वहाँ इन दोनों ही श्रेणियों के विद्यार्थियों के लिए ऐसी छात्रवृत्तियों की संख्या बढ़कर अब 20 लाख से अधिक पहुँच गई। विद्यार्थियों की सुविधा हेतु वर्ष 1978-79 से “बुक बैंक” योजना भी चालू की गयी है। 

 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की प्रशिक्षण एवं शिक्षण व पथ-

प्रदर्शन केंद्र अनुसूचित जातियों और जनजातियों को रोजगार में सहायता देने के लिए दो कार्यक्रम परीक्षा-पूर्व प्रशिक्षण केद्ध  तथा शिक्षण व पथ-प्रदर्शन केन्द्र  प्रारम्भ किये गये हैं। इन लोगों का नौकरियों में प्रतिनिधित्व बढ़े, इस उद्देश्य से वर्तमान में 101 परीक्षा-पूर्व प्रशिक्षण केन्द्र कार्यरत हैं। इलाहाबाद और तिरुचिरापल्ली में इन्जीनियरिंग सेवाओं की परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं।

अनुसूचित जनजातियों के आवेदकों में आत्मविश्वास पैदा करने एवं साक्षात्कार सम्बन्धी ज्ञान देने के लिए दिल्‍ली, कानपुर, जबलपुर और चेन्नई में शिक्षण एवं पथ-प्रदर्शन केन्द्र स्थापित किये गये हैं। प्राथमिक विद्यालय खोलने के नियमों में कुछ ढील दी गई है।

300 के स्थान पर 200 लोगों की आबादी के लिए एक किलोमीटर के दायरे में एक प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक स्तर तक सभी राज्यों के सरकारी-स्कूलों में शिक्षा-शुल्क की समाप्ति, 86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 में 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, कस्तूरबा गांधी स्वतंत्र विद्यालय योजना का उद्देश्य अ.जा., अ.ज.जा. वर्गों की महिलाओं में साक्षरता को बढ़ावा देता है।

10 प्रतिशत से कम साक्षरता (महिलाओं में) जहां है वैसे जिलों में 500 आवासीय स्कूल खोलने का प्रस्ताव है। प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 25 छात्रवृत्तियां, 20 रिसर्च एसोशिएट शिप, 50 फेलोशिप प्रदान करता है। समाज विज्ञानों के लिए 50 जूनियर फेलोशिप देता है। माध्यमिक स्तर पर 13,000 छात्रवृत्तियाँ पूर्णया अ.ज., अ.ज.जा. के छात्रों के लिए रखी जाती हैं। 146 जिलों की कम महिला साक्षरता जिलों के रूप में पहचान की गई हैं।

अनुसूचित जातियों जनजातियों की जनजाति क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण-

जनजाति युवकों की विघटनकारी गतिविधियों से रोकने एवं उन्हें रोजगार के अवसर देने के लिए 1992-93 से केन्द्र ने जनजाति क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करने की योजना प्रारम्भ की। वर्तमान में ऐसे 25 केन्द्र कार्यरत हैं। 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की छात्रावास- 

जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों व जनजातियों की छात्राओं के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है, वहाँ नये बालिका छात्रावास बनाए जाते हैं। इसी प्रकार से सन्‌ 1989-90 से ही जनजाति छात्रों के लिए बालक छात्रावास भी बनाए गए हैं। जनजाति उपयोजना क्षेत्र में 1990-91 से ही आश्रम स्कूल की योजना प्रारम्भ की गई है। इसमें 50% खर्च केन्द्र सरकार देती है तथा 50% राज्य सरकारें। वर्ष 1998-99 तक 27 आश्रम विद्यालय बनाए गए 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की पहाड़ी क्षेत्रों का विकास योजना- 

जिन पहाड़ी क्षेत्रों में जनजाति के लोग रहते हैं, उनके विकास हेतु यह योजना केन्द्र द्वारा चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत पुल व सड़कों का निर्माण तथा ऊर्जा उत्पादन के प्लाण्ट लगाए गए हैं। 

कम साक्षरता वाले क्षेत्रों में जनजाति छात्रों की शिक्षा की योजना-

1993-94 से उन क्षेत्रों में प्रारम्भ की गई है जहाँ स्त्रियों की साक्षरता का प्रतिशत दो से भी कम है।:यह योजना 8 राज्यों के 48 जिलें में चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य महिला साक्षरता में शत-प्रतिशत वृद्धि करना है। इस योजना में छात्रावारों की भी व्यवस्था की गई है। यह योजना स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से चलाई जा रही है। 

विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रवृत्तियाँ-

सन्‌ 1955 से ही विदेशों में पढ़ने वाले अनुसूचित जातियों व जनजातियाँ के मेधावी छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी. जा रही हैं। यह छात्रवृत्ति प्रति वर्ष अनूसूचित जनजातियों के छ: छात्रों को दी जाती है। : 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की जनजातीय अनुसन्धान संस्थाएँ- 

इस समय देश में जनजातियों सम्बन्धी अनुसन्धान करने के लिए अनेक अनुसन्धान केन्द्र हैं। इनके कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए एक 30 सदस्यीय केन्द्रीय अनुसन्धान सलाहकार परिषद का गठन किया गया है। यह परिषद्‌ अनुसन्धान संस्थाओं के नीति-निर्माण में पथ-प्रदर्शन का कार्य करती है। वर्तमान में देश में ऐसे 14 अनुसन्धान संस्थान हैं। 

अनुसूचित जातियों जनजातियों की सहकारी समितियाँ-

जनजातीय लोगों का शोषण रोकने के लिए सरकार की मदद से जनजातीय क्षेत्रों में वन-श्रम, बहु-उद्देशीय श्रम-ठेका एवं निर्माण, क्रय-विक्रय तथा साख सहकारी समितियों की व्यापक मात्रा में स्थापना की गयी है जो कि सही दिशा में एक कदम है। इस सन्दर्भ में सरकार ने ट्रीफेड की स्थापना की है जो फसलों को बेचने एवं भण्डारण में मदद करती है तथा मन्दी आने पर उत्पादकों को सरकार से आर्थिक सहायता दिलवाती है। 

 

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