अपशिष्ट पदार्थ किसे कहते हैं?, अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत, APSHISHT PADARTH - MP BOARD, 2024

अपशिष्ट पदार्थ किसे कहते हैं?, अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत, APSHISHT PADARTH – MP BOARD, 2024

अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत

अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत की प्रस्तावना –

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत के बारे में पढ़ेंगे |

मानव जनसंख्या के बढ़ने से तथा प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण आज प्रकृति में अनेक विकृतियाँ बढ़ गई हैं, जिससे पर्यावरण में अनेक प्रकार के प्रदूषण आज मौजूद हैं। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरंतर वृद्धि हो रही है जिससे अनेक समस्याएँ आ रही हैं ।

अपशिष्ट पदार्थ किसे कहते हैं?

अपशिष्ट यानि कचरा या व्यर्थ पदार्थ, अर्थात् ‘उपयोग के बाद त्यागा गया व्यर्थ पदार्थ चाहे वह घर से निकला हुआ हो, कारखाने से या कृषि से, जो कि अपने आस-पास के वातावरण को प्रभावित करता है, अपशिष्ट पदार्थ कहलाता है।’ 

अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत – 

अपशिष्ट पदार्थ के स्रोत निम्नलिखित हैं –

घरेलू अपशिष्ट :- 

वे पदार्थ जो घरों में साफ सफाई के दौरान निकलते हैं, उन्हें घरेलू अपशिष्ट पदार्थ कहते हैं। जैसे:- कागज के टुकड़े, काँच, ग्लास्टिक व जीपी मिट्टी के टुकड़े, पॉलिथीन, सब्जियों के छिलके, मलमूत्र इत्यादि । 

औद्योगिक अपशिष्ट :- 

उद्योगों से प्रात अपशिष्ट औद्योगिक अपशिष्ट कहलाते हैं। इनमें कारखानों से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ, जहरीला धुआँ तथा राख आदि ‘शामिल हैं। ये औद्योगिक अपशिष्ट, पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।

वायु जल तथा मृदा को प्रदूषित करते हैं। कारखानों से निकलने वाली राख में कैडमियम, क्रोमियम, पारा, सीसा आदि अनेक विषैले पदार्थ होते हैं। जो औद्योगिक अपशिष्ट को और अधिक घातक बना देते हैं। 

कृषि जनित अपशिष्ट :-

 इस श्रेणी में वे अपशिष्ट आते हैं जो कृषि गतिविधियों से प्राप्त होते हैं। इस तरह के अपशिष्ट में पौधों के बचे डंठल, पत्ते, घास, फूल, छिलके, अनाज का भूसा आदि होता है। कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत में इस प्रकार के अपशिष्ट की मात्रा काफी अधिक होती है। ये अपशिष्ट कृषि कार्य को भी प्रभावित करते हैं । 

व्यावसायिक अपशिष्ट :-

 ये वे पदार्थ हैं जिन्हें बाजार की दुकानों तथा सब्जियों और फलों की दुकानों से कचरे के रूप में फेंका जाता हैं। जैसे काँच के टुकड़े, गत्ते व कागज के टुकड़े, प्लास्टिक व पॉलीथीन, सड़ी गली सब्जियाँ आदि। ये भी घरेलू अपशिष्ट के समान प्रभावकारी होते हैं । 

अपशिष्ट पदार्थों के स्त्रोत –

घरेलू अपशिष्ट कागज, काँच, प्लास्टिक व चीनी मिट्टी के टुकड़े, पॉलिथीन, सब्जियों के छिलके, मलमूत्र इत्यादि । औद्योगिक अपशिष्ट कारखानों से निकलने वाली राख में कैडमियम, क्रोमियम, पारा, सीसा आदि विषैले पदार्थ, औद्योगिक अपशिष्ट जल आदि ।

कृषि जनित अपशिष्ट पौधों के बचे डंठल, पत्ते, घास, फूल, छिलके, अनाज का भूसा । व्यावसायिक अपशिष्ट काँच के टुकड़े, गत्ते व कागज के टुकड़े, प्लास्टिक व पॉलीथीन । 

इन प्रश्नों के उत्तर स्वंय खोजिए

प्रश्न 1. कृषि जनित अपशिष्ट से आप क्या समझते है ?

 प्रश्न 2. औद्योगिक अपशिष्ट को समझाइये ? 

क्रियाकलाप 

उद्देश्य :- 

पॉलीथीन और प्लास्टिक के कचरे से होने वाले दुष्परिणामों से विद्यार्थियों को अवगत कराना ।

 विधि :- 

विद्यार्थी अपने घर और विद्यालय के आस-पास पाये जानेवाले पॉलीथीन और प्लास्टिक के कचरे को देखकर उसके दुष्परिणामों की सूची बनाएं। जैसे:- जमीन को खराब करता है । दैनिक जीवन में पॉलीथीन व प्लास्टिक का उपयोग पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, जिससे स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। 

अपशिष्ट पदार्थों के कारण आज हम विभिन्न प्रकार की समस्याओं अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन की आवश्यकता का सामना कर रहे हैं। इसलिए अपशिष्ट प्रबंधन आज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है। ‘अपशिष्टों का सही उपयोग एवं निपटान ही अपशिष्ट प्रबंधन कहलाता है। ” 

अपशिष्टों के कारण भूमि, जल तथा वायु का प्रदूषण होता है जो मानव तथा अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इससे अनेक संक्रामक बीमारियाँ, त्वचा तथा श्वास संबंधी रोग तथा कैंसर जैसी भयानक बीमारियाँ भी हो सकती हैं।

नदी, तालाबों तथा अन्य जल स्रोतों में विषैले पदार्थों के विर्सजन से जलीय जीवों के मरने की भी संभावना बढ़ जाती है । इन समस्याओं का एक ही समाधान है – अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन । 

अपशिष्ट पदार्थों का वर्गीकरण :-

 अपशिष्ट पदार्थों के उचित निपटान के लिए इनका वर्गीकरण करना बहुत आवश्यक है । वर्गीकरण करने का प्रमुख लाभ है कि इससे अपशिष्टों के निपटान की उचित विधि का चयन करने में सहायता मिलती हैं।

विभिन्न क्षेत्रो में अलग-अलग प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ निकलते हैं ये ठोस, द्रव या गैस रूप में होते है एवं इनमें से कुछ अपघटित हो जाते है व कुछ अपघटित नहीं होते हैं। अपघटन की क्रिया व अपशिष्ट की प्रकृति के आधार पर निम्नांकित तालिका पूर्ण कीजिए। यदि इसकी पूर्ति करने में कोई कठिनाई आती हैं तो अन्य साथियों एवं शिक्षक की सहायता लीजिए। 

अपशिष्ट पदार्थों का निपटान या प्रबंधन-:

 चूंकि अपशिष्ट पदार्थ कई प्रकार के होते हैं तथा ये अलग-अलग अवस्थाओं में पाए जाते हैं, इसलिए इनके प्रबंधन की विधियाँ भी अलग-अलग हैं, जो इस प्रकार हैं- 

डंपिंग (Dumping ) :- 

कचरे को इकट्ठा कर गहरे गड्डे में डालकर ढँक देतें हैं । इस विधि द्वारा अपशिष्ट पदार्थों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से हम वंचित रह जाते हैं 

अवैध डंपिंग ( Illegal Dumping ) :- 

निर्धारित स्थान के अतिरिक्त कहीं पर भी डंपिंग करना अवैध डंपिंग कहलाता है। अवैध तरीके से डंप किया गया अपशिष्ट पदार्थ वर्षा के जल तथा घरेलू जल की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं तथा हमारे ड्रेनेज तंत्र को भी अवरूद्ध कर सकता है। अतः ऐसे हानिकारक अपशिष्ट जिनमें प्रदूषकों की सान्द्रता ज्यादा हो, को उचित विधि से डंप करना चाहिए।

कम्पोस्टिंग (Composting ):-

 यह कार्बनिक ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन की सबसे उपयुक्त तकनीक है। हमारे कचरे में 40-60 प्रतिशत मात्रा जैविक कचरे की होती है। यदि कचरा जिसमें घास, फूस, गोबर, खराब भोजन, कचरा, सब्जियों के छिलके आदि हो, को एक गड्डे (कम्पोस्ट पिट) में डालकर इस कचरें को मिटटी से ढक दें तथा हर पंद्रह दिन में कचरे को पलटते रहे तो 3-4 माह में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जायेगी। इस प्रकार हमारी कचरे की समस्या तो हल होगी ही साथ ही हमें अत्यंत उपयोगी जैविक खाद भी प्राप्त होगी। 

वर्मी कम्पोस्टिंग (Vermi composting ) :-

 यह आधुनिक तकनीक है जिसमें केंचुओं तथा सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा कम्पोस्टिंग क्रिया कराई जाती है। यह तकनीक अत्यंत सरल है तथा काफी लाभकारी एवं प्रचलित तकनीक है इस विधि से खाद तैयार करने में सिर्फ 25 से 30 दिन का समय लगता हैं। इस विधि को नीचे चित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया गया हैं। 

वर्मी कम्पोस्टिं के लाभ :-

  1. वर्मी कम्पोस्टिंग से जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। 
  2. इससे भूमि की जलधारण या जलग्रहण क्षमता में वृद्धि होती है। 
  3. पौधों की रोगरोधी क्षमता में वृद्धि होती है। 
  4. वर्मी कम्पोस्टिंग मिट्टी को नरम एवं हवायुक्त बनाती है। 
  5. इसके द्वारा प्राप्त खाद का प्रयोग फल, फूल एवं सब्जियों के उत्पादन में किया जाता है । 

ड्रेनेज (Drainage ) :-

 ड्रेनेज का अर्थ है निकासी । सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि मल मूत्र को बहा दिया जाए तो इनका उपचार स्वयं ही हो जाता हैं परंतु ऐसा नहीं है। जब अनउपचारित मल, नालियों तथा नदियों के पानी में बहा दिया जाता है, तो जलीय जंतुओं को श्वसन के लिए ऑक्सीजन नहीं मिलती है जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। अतः मल मूत्र का उपचार क्रमबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए। ये क्रम निम्नलिखित हैं 

  1. नालियों से निकला हुआ पानी, पाखानों, स्नानघर तथा रसोई घर से निकले अपशिष्टों को एकत्रित कर निस्तारित करना । 
  2. मोटे पदार्थों को अलग निस्तारित करना । 
  3. मल के तरल व मोटे भाग को पृथक पृथक निस्तारित करना । 
  4. उपचारित वाहित मल का क्लोरीनेशन करके नादियों में छोड़ना । 
  5. वाहित मल उपचार की विधियों 
  6. भौतिक उपचार जैवीय उपचार 
  7. छानना एवं प्रारंभिक उपचार 
  8. मलकुण्ड 
  9. सेप्टिक टैंक 
  10. सार्वजनिक मल 
  11. उपचार संयंत्र 

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