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कुपोषण एवं अल्पपोषण 

 

कुपोषण एवं अल्पपोषण प्रस्तावना –

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे  कुपोषण एवं अल्पपोषण के बारे में पढ़ेंगे |

कुपोषण एवं अल्पपोषण क्या है ?

कुपोषण बच्चों का शारीरिक विकास एवं मानसिक विकास तथा वृद्धि उनकी आयु के अनुसार मापदंडो अनुरूप न होना ही कुपोषण कहलाता है | ऐसे बच्चे अन्य अपनी ही आयु के बच्चों से शरीरिक या मानसिक रूप से कामजोर होते हैं | कुपोषण निम्न कारण हो सकते हैं

  • भोजन की कमी
  • दूषित जल
  • दूषित वातावरण
  • बीमारियां

अल्पपोषण जब किसी व्यक्ति के आहार में ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, तो इसकी वजह से उम्र के हिसाब से व्यक्ति के वज़न और लंबाई में  कमी देखी जा सकती है, उसे अल्पपोषण ही कहते है | जब कोई व्यक्ति कम भोजन करता है या भोजन में पोषक तत्वों के कम होते है अल्पपोषण के आदि कारण हैं | अल्पपोषण निम्न कारण हो सकते हैं

दूसरे शब्दों में, घेंघारोग से ग्रसित महिला अल्पपोपण अर्थात अपर्याप्त पोषण, जब पोषक तत्व शरीर की आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त नहीं होते हैं तो इसे अल्पपोषण कहते हैं। हमारे देश में अनेक व्यक्ति संतुलित भोजन नहीं ले पाते हैं, जिससे अल्पपोषण के कारण, उनका शरीर अस्वस्थ, निर्बल व रोगग्रस्त हो जाता है। 

  • पोषक तत्वों की कमी
  • भोजन की कमी

कुपोषण एवं अल्पपोषण के अन्तर्निहित निम्न कारण हो सकते हैं-

  • गरीबी
  • समाज में महिलाओं की कमज़ोर स्थिति
  • जागरूकता में कमी
  • सामाजिक मान्यताएं
  • अशिक्षा

कुपोषण एवं अल्पपोषण एक नज़र में

  • संतुलित भोजन न मिलने से उत्पन्न स्थिति को कुपोषण या हीनताजन्य रोग कहते हैं। कुपोषण की स्थिति भोज्य तत्वों की अधिकता व कमी दोनों कारणों से हो सकती है।
  •  कुपोषण का शिकार व्यक्ति कमजोर तथा रोगी हो जाता है। बच्चों में कुपोषण अधिक पाया जाता है, जिससे उनमें शारीरिक व मानसिक विकार उत्पन्न हो सकता है। 
  • आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, व वसा की कमी होने पर “प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण” (Protein Energy malnutrition) हो जाता है। इस रोग के रूप में क्वाशिओरकर और सूखारोग मुख्य है । क्वाशिओरकर रोग में बच्चे निस्तेज हो जाते हैं, त्वचा खुरदुरी हो जाती है, पेट सूज जाते हैं। 
  • सूखा रोग में उपरोक्त लक्षणों के अलावा बच्चों की त्वचा ढीली होकर लटक जाती है। इन रोगों के रोगी बच्चों को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीनयुक्त आहार देकर रोगमुक्त किया जा सकता है। 

इसके अतिरिक्त आहार में विभिन्न खनिजों व विटामिनों के अभाव से भी शरीर में अनेक प्रकार के रोग होते हैं जैसे लोहे के अभाव में रक्ताल्पता (Anaemia), कैल्शियम एवं फास्फोरस  तथा विटामिन D की कमी से बच्चों में रिकेट्स, आयोडीन की कमी से घेंघा ( goitre) रोग, विटामिन A की कमी से रतौंधी, विटामिन B की कमी से बेरी बेरी तथा पेलाग्रा एवं विटामिन C की कमी से स्कर्वी नामक रोग हो सकते हैं ।

इनके बारे में हम पूर्व में अध्ययन कर चुके हैं। जिस प्रकार पोषणहीनता से रोग उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार आवश्यकता से अधिक भोजन लेना भी हानिकारक होता है। इससे व्यक्ति मोटापे से पीड़ित हो जाता है जिससे हृदय तथा रक्तचाप संबंधी अनेक विकार हो सकते हैं। 

कुपोषण एवं अल्पपोषण के FAQ-

इन प्रश्नों के उत्तर स्वयं खोजिए : 

भोज्य पदार्थों में मिलावट –

भोजन में मिलावट का अर्थ उसमें खाने एवं न खाने योग्य अन्य पदार्थो का मिलना है जैसे दूध में पानी एवं घी में चर्बी मिलाना आदि । शरीर का स्वास्थ्य भोजन के प्रकार पर निर्भर करता है। यदि हम संतुलित तथा बिना मिलावट का भोजन लेते हैं तो हमारा शरीर स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट तथा निरोगी रहता है पर यदि हमारा भोजन अपर्याप्त, असंतुलित तथा मिलावट युक्त होता है |

तो हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाता है । हमारे दैनिक आहार में प्रयुक्त होने वाले सभी भोज्य पदार्थ अधिकतर मिलावटी हो सकते हैं। भोजन में निम्नलिखित तरीकों से मिलावट हो सकती है। 

  1. भोज्य पदार्थ असली रूप व गुण वाले न हो । 
  2. भोज्य पदार्थ में सस्ते व घटिया किस्म के पदार्थ मिले हों ।
  3. भोजन से उसके पोषक पदार्थ निकाल लिए गए हों ।
  4. भोजन में न खाने योग्य तथा वर्जित पदार्थ जैसे रंग आदि मिलाये गए हों । 
  5. भोजन संरक्षण के लिए अधिक मात्रा में संरक्षक पदार्थ (Preservatives) मिले हों। भोज्य पदार्थ संक्रमित हों । 

मिलावट का स्वास्थ्य पर प्रभाव 

भोज्य पदार्थो में हानिकारक रंगों और विषैले पदार्थो का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सरसों के तेल में भट कटैया का तेल मिलाने से लोग ड्रॉप्सी नामक संक्रामक रोग के शिकार हो जाते हैं। दालों में खेसरी दाल की मिलावट से लकवा होने की आशंका रहती है। खाद्य वस्तुओं में हानिकारक रंगों की मिलावट से कैंसर जैसे भयंकर रोग हो जाते है मिलावट की कई वस्तुएं शरीर पर धीरे-धीरे अपना विषैला प्रभाव छोड़ती हैं। 

मिलावट की रोकथाम 

  1. भोज्य पदार्थो में मिलावट साधारण प्रयोगशाला परीक्षणों द्वारा ज्ञात की जा सकती है 
  2. भोज्य पदार्थ के रंग, रूप, स्वाद तथा गुण में मिलावट का शक होने पर इसका उपयोग नहीं करना चाहिये । 
  3. आई. एस. आई. या ऐगमार्क की मोहर वाले पदार्थो को ही खरीदना चाहिए । 
  4. डिब्बे में बंद वस्तुओं पर उनकी अन्तिम तिथि देख लेनी चाहिए। 
  5. भोज्य पदार्थों के डिब्बों पर लिखे लेबिल को पूरी तरह पढना चाहिए । 

भोज्य पदार्थों में मिलावट ज्ञात करने के लिए परीक्षण 

  1. दूध- लैक्टोमीटर द्वारा दूध का घनत्व नापकर इसमें पानी या अन्य मिलावट का पता लगाया जा सकता है। 
  2. खोया खोया में स्टार्च या मैदा की मिलावट के लिए आयोडीन परीक्षण किया जा सकता है।
  3. नमक, चीनी- इनको पानी में घोलकर, छानकर व सुखाकर व तोलकर इनमें मिलावट की मात्रा ज्ञात की जा सकती है। 
  4. अनाज तथा दालें- मिलावटी पदार्थो को तौलकर व बीनकर उनका प्रतिशत ज्ञात किया जा सकता है 
  5. चायपत्ती – चाय की पत्ती को एक सफेद गीले कागज पर रखने पर यदि पीले या लाल रंग के धब्बे दिखाई दें तो पता चलता है कि इसमें रंग मिला है। 
  6. काली मिर्च – इसमें पपीते के बीज को चखकर अलग किया जा सकता है।
  7. लौंग लौंग सिकुडी हुई है इसका अर्थ है कि इसमें से तेल निकाल लिया गया है।
  8. वनस्पति तेल – तेल में सान्द्र नाइट्रिक अम्ल मिलाकर हिलाने पर यदि अम्ल की पर्त लाल या भूरी हो जाये तो इसका अर्थ है कि तेल में मिलावट है।

क्रियाकलाप –

उददेश्य :- दिये गए भोजन पदार्थ में कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) का परीक्षण करना । 

आवश्यक सामग्री: परखनली, आयोडीन घोल, भोज्य पदार्थ जैसे मावा । 

विधि : सर्वप्रथम दिए गए भोज्य पदार्थ का पानी में घोल बनाकर उसमें दो बूंद आयोडीन घोल की डालेंगे। यदि घोल का रंग नीला या काला हो जाता है तो दिए गए पदार्थ में स्टार्च की उपस्थिति की पुष्टि होती है । 

निष्कर्ष : उपरोक्त क्रियाकलाप के द्वारा भोज्य पदार्थों में स्टार्च का परीक्षण करके मिलावट की जानकारी हासिल कर सकते हैं । 

पेयजल की विशेषता –

संतुलित आहार के साथ साथ स्वच्छ जल भी हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। अशुद्ध तथा दूषित जल का प्रयोग करने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। दूषित जल के प्रयोग से होने वाले रोगों में पीलिया, मोतीझरा तथा अतिसार प्रमुख हैं।

पेयजल में धात्विक दोष भी नहीं होने चाहिए क्योंकि इनसे भी शरीर में अनेक रोग हो जाते हैं। मैग्नीशियम और कैल्शियम के सल्फेट जल में कठोरता उत्पन्न करते हैं जिनसे अतिसार तथा अन्य पाचन संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते है।

जल में फ्लोराइड भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला घटक है। इसकी अधिक मात्रा से दंत ‘फ्लोरोसिस हो जाता है जिसमें दांतो का रंग बदल जाता है। इसी प्रकार अस्थि फ्लोरोसिस में हड्डियों की संरचना में बदलाव आ जाता है अतः पेयजल में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए – 

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