क्षेत्रवाद क्या है

क्षेत्रवाद क्या है, Kshetravad kya hai ,what is regionalism in hindi ?, Class 12th, Political Science-MP BOARD NET

क्षेत्रवाद 

क्षेत्रवाद क्या है-

क्षेत्रवाद आधुनिक भारत में जिन अवधारणाओं का सामाजिक, राजनीतिक जीवन में विस्तारण हुआ है, उनमें  क्षेत्रवाद या क्षेत्रीयतावाद भी एक है। भारत विविधता का देश है। यहाँ प्रकृति, मानव और अन्य जीव प्राणी अपने रंग-रूप, वेश-भूषा, आचरण, धर्म व संस्कृति में अनेकता लिये हुए हैं। 

क्षेत्रवाद क्या है
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इनकी इस विविधता से इतना लगाव है कि जब कभी इन्हें बदलने, बिगाड़ने या नष्ट करने की कोशिश की गयी ये एक जुट होकर बड़ी शक्ति के रूप में उभरकर भारत ही क्या जिस किसी देश में ये स्थितियाँ बनी हैं, वहाँ बहुकंटक चुनौती बनकर राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करती रही हैइस संबंध में क्षेत्रीयता के वास्तविक अर्थ को समझ लेना आवश्यक है। 

सामान्य अर्थ में क्षेत्रीयता एक क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों की अपने क्षेत्र के प्रति विशेष लगाव अपनत्व की भावना है जिसे कुछ सामान्य आदर्श व्यवहारविचार और आचरण के रूप में अभिव्यक्त किया जाता हैप्रो. वोगार्डस का कथन है कि यदि किसी भौगोलिक क्षेत्र का आर्थिक साधन इस भाँति विकसित हो जाए कि उनके लिये अपनी विलक्षणता को बनाये रखना संभव हो तो वहाँ के निवासियों में सामूहिक हितों का विकास और इसके द्वारा क्षेत्रीय आदर्शों का विकास हो सकता है।

यह भावना एक प्रकार से क्षेत्रीय चरित्र है, जिसमें क्षेत्र विशेष की वहाँ के निवासियों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एकता और विचारों, भावनाओं, क्रियाओं तथा व्यवहारों में समग्रता व समानता पनपती रहती है। व्यापक अर्थ में क्षेत्रीयता राष्ट्रीयता का एक अंग है जिसमें विभिन्न जातियाँ राष्ट्र के अन्तर्गत अपनी प्रादेशिक पहचान बनाने, उसे विकसित करने की दृष्टि से अपनी भिन्नताओं में अभिन्नता के गुण मिलाते हुए अनेकता में एकता का स्वरूप धारण करते हैं

आधुनिक राजनीतिक परिवेश में सार्क, यूरोपीय संघ, दक्षिण अमेरिकी संघ, आसियान आदि संगठन क्षेत्रीयता के आदर्श उदाहरण हैं तथा नाटो, वार्सा, सीटो आदि संकीर्ण मनोवृत्ति के विघटनकारी प्रवृत्ति के क्षेत्रीय संगठन हैं। सामान्य भाषा में कहा जाये कि प्रादेशिक और राष्ट्रीयता के बीच सकारात्मक सामंजस्य आदर्श क्षेत्रीयता कही जाती है

किन्तु राष्ट्रीयता से हटकर जब यह भावना क्षेत्र विशेष के हितों को ध्यान में रखकर उसके प्रति मिथ्या गौरव में सिमट जाती है और उसके हितों विकास के लिये साम, दाम, दंड, भेद, हिंसा, अलगाववादी, विघटनकारी कार्यक्रमों पर विचार किया जाने लगता है तो यह उग्र क्षेत्रीयवाद कहलाता है 

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