क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय संतुलित आर्थिक विकास कार्यक्रम को बढ़ाना–
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय केन्द्रीय शासन का कर्तव्य है कि वह सभी क्षेत्रों के लिये समान आर्थिक विकास की योजना बनाये। इसमें पिछड़े क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये । विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये और उनके क्रियान्वयन पर सतत् नजर रखी जानी चाहिये।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर अधिक बल-
प्राय: विकास योजनाओं में शहरों के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र की ओर कम ध्यान दिया जाता रहा है । अत: केन्द्र राज्य का कर्त्तव्य है कि वह स्वयं एवं राज्य सरकारों को ग्रामीण विकास को ध्यान में रखकर विकास योजनाएँ तैयार करें।
वहाँ कुटीर एवं लघु उद्योग की स्थापना करायें तथा कृषि के उन्नयन के लिये सिंचाई, बीज, खाद एवं उन्नतशील कृषि यंत्रों की व्यवस्था के लिये किसानों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें ।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय अर्धविकसित आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा-
भारत के दूरस्थ अंचलों में अनेक जनजातीय वनवासी या गिरिवासी क्षेत्र हैं जो अविकसित हैं। इन क्षेत्रों के विकास के नाम पर कुछ जातीय संगठन अपना प्रभुत्व बढ़ाने का प्रयास करते हैं। विदेशी इस क्षेत्र की प्रचुर प्राकृतिक संपदा का दोहन करने के लिये कुछ आर्थिक सहायता के माध्यम से वहाँ की अर्थ व्यवस्था पर कब्जा करना चाहते हैं। कुछ धार्मिक संगठन यहाँ धर्मान्तरण के माध्यम से अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना चाहते हैं।
केन्द्र एवं राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि वे संकुचित क्षेत्रीय भावना से ऊपर उठकर इन अविकसित क्षेत्रों के भोले–भाले नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुरक्षा प्रदान करें, जिससे मूल निवासियों को संरक्षण प्राप्त हो। इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक संपदा को ध्यान में रखकर ऐसे उद्योगों की स्थापना करें जिससे इन मूलवासियों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों और उनका आर्थिक विकास हो, क्षेत्र विकसित हो।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय कृषि विकास पर विशेष बल –
भारत मूलत: कृषि प्रधान देश रहा है। यहाँ की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर रहती है। यदि कृषि के विकास के लिए भूमि की उर्वरता, सिंचाई के साधनों, उन्नत बीजों, रसायनिक खादों एवं उन्नतशील कृषि उपकरणों के साधन उपलब्ध नहीं कराये जाये, तो आर्थिक असमानता बढ़ेगी और क्षेत्रवाद, अलगाववाद जैसी समस्याएँ उत्पन्न होने लगेंगी। अतः कृषि विकास पर केन्द्र एवं राज्यों को विशेष बल देना होगा।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय क्षेत्रीय समस्याओं पर शीघ्र ध्यान दिया जाना–
केन्द्र यदि क्षेत्रीय समस्याओं पर शुरू से ध्यान देते हुए उनके निराकरण के लिये प्रयास करना शुरू कर दें तो तीन चौथाई क्षेत्रीय समस्याएँ शीघ्र ही हल हो जायेंगी । इसमें संकुचित राजनीति का सहारा लेकर इन समस्याओं को राज्य की समस्या कहकर टालने का प्रयास नहीं करना चाहिये। यदि क्षेत्रीय समस्या केन्द्र एवं राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों से दूर हो सकती है तो इस दिशा में दोनों सरकारों को त्वरित कार्यवाही करनी चाहिये ।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय प्रचार माध्यमों का सहयोग लेना-
प्राय: क्षेत्रीय समस्याएँ केन्द्र से संबंधित होती हैं। इनके शीघ्र निपटारा न किये जाने से यह अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकती हैं। अत: प्रचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से केन्द्र प्रभावित लोगों को इस समस्या के समाधान हेतु किये जा रहे प्रयासों से अवगत कराते हुए उन्हें सहनशीलता बनाये रखने की अपील करना चाहिये। इससे शांति बनी रहेंगी।
क्षेत्रीय असंतुलन के उपाय केन्द्र राज्यों के बीच सौहार्द्रपूर्ण संबंध –
केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के मध्य सौहार्द्रपूर्ण पारस्परिक सम्बन्ध अनेक समस्याओं के शांति पूर्ण समाधान में सहायक हो सकते हैं। इससे दोनों के मध्य वैचारिक एकता कायम होगी, समन्वित कार्य योजना बन सकेगी और क्रियान्वयन में एक–दूसरे को प्रशासनिक, नैतिक और आर्थिक सहयोग मिलते रहने, समस्या का हल ढूँढ़ने में सफलता मिलेगी
इन उपायों के अतिरिक्त केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में यथा संभव सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिये जिससे क्षेत्रीय पक्षपात पूर्ण नीतियों का खंडन हो सके और केन्द्रीय सरकार संतुलित और समन्वित नीतियों और आर्थिक विकास की योजनाओं के लिये सारे राष्ट्र का मौखिक समर्थन प्राप्त कर सकेगी उपर्युक्त सभी उपाय एक–दूसरे के पूरक हैं और इसी रूप में अपनाये जाने से क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करने में कारगार सिद्ध हो सकते हैं।
इससे नागरिकों में संकुचित भावना के स्थान पर सहृदयता, सद्भावना और उदारता के भाव जाग्रत होंगे जो राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय एकता के लिये सशक्त कवच का कार्य करेंगे।