क्षेत्रीय असंतुलन के कारण 

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क्षेत्रीय असंतुलन के कारण

Kshetriya Asantulan Ke Karan

आंध्रप्रदेश में उपजाऊ भूमि है सिंचाई के पर्याप्त साधन हैंकृषि के लिये अनुकूल जलवायु है अतः ये क्षेत्र विकसित हैंइसी तरह किसी प्रदेश में पहाड़ अधिक है तो कहीं पठार हैंकहीं बर्फ पड़ती है, तो कहीं घने जंगल हैंइस तरह भौगोलिक संरचना से व्यापार, व्यवसाय कृषि अथवा उद्योगों की स्थापना से क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखना असंभव है। 

क्षेत्रीय असंतुलन के कारण 

क्षेत्रीय असंतुलन के राजनीतिक कारण-

क्षेत्रीय असंतुलन के राजनीतिक कारण से प्राय : शासन की अविवेकपूर्ण आर्थिक नीतियों से क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ता हैकेन्द्र में क्षेत्र विशेष के प्रभावशाली नेताओं उनके अधिकाधिक प्रतिनिधित्व के बाहुल्य से पूँजी निवेश में असंतुलित व्यवहार, क्षेत्र के हितों को नुकसान पहुँचाते हैंफलस्वरूप क्षेत्रहित को ध्यान में रखकर प्रभावशाली नेता क्षेत्रीय दल गठित कर केन्द्र पर दबाव की राजनीति खेलने लगते हैं

तेलगु देशम, असमगण परिषद्, मिजो नेशनल फ्रंट अकाली आदि क्षेत्रीय दल आजकल भारतीय राजनीति में किंग मेकर की भूमिका निभा रहे हैं और जब तब क्षेत्रीयता की माँग रखकर स्वायत्तता की माँग करते रहते हैं । 

क्षेत्रीय असंतुलन के आर्थिक कारण- 

क्षेत्रीय असंतुलन के आर्थिक कारण से  भौगोलिक स्थिति के कारण कुछ क्षेत्रों को बिना किसी विशेष प्रयास से आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैंइससे दूसरे क्षेत्र के नागरिकों में ईर्ष्या और द्वेष की भावना उभरती हैआर्थिक सुविधाओं से उस क्षेत्र के नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा उठता है, तो दूसरी ओर अविकसित क्षेत्रों में प्राकृतिक संपदा व्यापार व्यवसाय के लिये परिवहन और संचार सुविधाओं के अभाव में विपन्नता का प्रतिशत बढ़ने से असंतोष बढ़ता है और अधिक आर्थिक सुविधाओं की माँग बढ़ने लगती हैइनके पूरे होने से पृथकता और अलगाव के आन्दोलन शांति और व्यवस्था को बिगाड़ने लगते हैं । 

क्षेत्रीय असंतुलन के संघीय व्यवस्था:

 संविधान द्वारा भारत में संघीय व्यवस्था स्थापित की गयी है जिसके अनुसार केन्द्र के साथ प्रत्येक राज्य में एक अलग सरकार होती हैराज्य की सरकारें जब संघ सरकार से अतिरिक्त सुविधा और कार्य विशेष के लिये अधिक धनराशि या अधिक अधिकार की माँग करती है और संघ सरकार उन्हें पूरा करने में असमर्थता दिखाती है या माँग से कम धन उपलब्ध कराती है, तो राज्य सरकारें स्वयं लोगों को केन्द्र की उपेक्षा पूर्ण नीति का हवाला देकर प्रादेशिक भावनाएँ भड़काने का प्रयास करती हैं

इसके उदाहरण उन राज्यों में अधिकतर देखने में आते हैं, जहाँ केन्द्र और राज्य में अलगअलग राजनीतिक दलों की सरकारें स्थापित होती हैंसीमा विवाद नदी पानी के बटवारें जैसी समस्याएँ क्षेत्रीय असंतुलन बनाने में कारक रही हैं 

क्षेत्रीय असंतुलन के मानव पूँजी का अभाव:-

 किसी क्षेत्र के विकास में वहाँ के नागरिकों की श्रमिक क्षमता का बहुत बड़ा योगदान होता हैयह मानव पूँजी के रूप में आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाती हैजहाँ पंजाब, गुजरात, आंध्र, केरल जैसे राज्यों में हुए आर्थिक विकास में वहाँ के नागरिकों की श्रमिक क्षमता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी हैं, वहीं बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड जैसे राज्यों में नागरिक यथेष्ठ परिश्रमी और प्रशिक्षित होने के कारण विकास की दौड़ में पीछे रह गये हैं। 

क्षेत्रीय असंतुलन के सांस्कृतिक एवं धार्मिक कारण-

सांस्कृतिक एवं धार्मिक कारणों से भी क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ता है, सांस्कृतिक कला केन्द्रों और धार्मिक स्थलों की प्रसिद्धि से ये क्षेत्र ज्यादा विकसित होते हैं यहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ते रहने से केन्द्र को भी इन क्षेत्रों के विकास में रुचि लेना पड़ता है

रेल, सड़क परिवहन, होटल की सुविधा बढ़ती है, जिससे कम प्रसिद्ध कला केन्द्र और अर्ध विकसित धार्मिक पर्यटन स्थल वाले राज्य के लोगों में अपने यहाँ विकास के लिये केन्द्र की रुचि होते देखकर क्षेत्रीय उपेक्षा की भावना भड़कने में देर नहीं लगती। 

क्षेत्रीय असंतुलन के अन्य कारण :- 

भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से आज देश में राष्ट्रीय भाषा के स्थान पर क्षेत्रीय भाषा को अधिक महत्व दिये जाने से क्षेत्रीय असंतुलन की संभावना बनी रहती हैइससे अपनी भाषा के प्रति अति संवेगात्मक लगाव, अन्य प्रादेशिक भाषाओं के प्रति हेय दृष्टि, प्रादेशिकता की भावना को भड़काकर समुदायों के बीच असंतोष और कटुता बढ़ाने संबंध बिगाड़ने में मदद देता है जो उचित नहीं है

सरकारें अपनी प्रादेशिक भाषा को प्राथमिकता देने और अन्य भाषाओं के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार से भाषावाद राज्यों के मध्य संबंध बिगड़ते हैं, जैसे कर्नाटक राज्य में सम्मिलित मराठी भाषी बेलगाँव क्षेत्र के प्रति सरकार का उपेक्षा भाव क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ रहा है। 

इन कारणों से स्पष्ट हो जाता है कि क्षेत्रीय असंतुलन या प्रादेशिकता की भावना भारतीय लोकतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है जिसके दुष्प्रभाव इस तरह देखने में रहे हैं। 

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