क्षेत्रीय असंतुलन के दुष्प्रभाव
KSHETRIYE ASANTULAN KE DUSHPRABHAV
नमस्कार दोस्तों, एक वार फिर से मैं आप सभी का स्वागत है mpboard.net में हूँ, बिनय साहू और आप देख रहे है mpboard.net तो दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम पड़ेगे क्षेत्रीय असंतुलन के दुष्प्रभाव क्या होते है |
क्षेत्रीय असंतुलन के दुष्प्रभाव निम्नलिखित दिखाई पड़ सकते हैं-
क्षेत्रीय असंतुलन क्षेत्रीयता की भावना को जन्म देती है और स्वायत्तता तथा नये प्रदेश की माँग उठने लगती है झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड राज्यों का निर्माण इसी का परिणाम है। उत्तर पूर्वी राज्यों का जन्म भी इसी क्षेत्रीय असंतुलन के कारण हुआ था। वर्तमान में तेलंगाना विदर्भ राज्य, महाकोशल और गोरखालैण्ड में इसी क्षेत्रीय भावना के परिणामस्वरूप अलग राज्य की माँग को लेकर आन्दोलन चलाये जा रहे हैं। इससे प्रभावित राज्यों में तनाव और हिंसा की आशंका बनी रहती है।
भारत में क्षेत्रीय असंतुलन के कारण केन्द्र राज्य सम्बन्धों में तनाव बढ़ने लगता है। आर्थिक नियोजन से नये उद्योगों की स्थापना, परिवहन, विस्तार आदि विषयों में केन्द्र से पर्याप्त सहयोग प्राप्त न होने पर राज्यों में हठधर्मिता, आन्दोलन और शांति भंग होने की संभावना बढ़ती है। कभी–कभी भारत के प्रधानमंत्री उत्तर का होने पर तो दक्षिण से राष्ट्रपति लिये जाने की माँग को लेकर भी तनाव की स्थिति जब–तब उत्पन्न होती दिखाई पड़ती है।
क्षेत्रीय असंतुलन से स्वार्थी नेतृत्व व संगठन को बल–
क्षेत्रीय असंतुलन से पीड़ित क्षेत्र ऐसे संगठनों की स्थापना को प्रोत्साहित करते हैं जो उनकी माँगों को पुरजोर से उठाने और उसके लिए जन समर्थन जुटाने में सहायक हो। इन संगठन का नेतृत्व इन माँगों के माध्यम से सत्ता पर दबाव बढ़ाकर अपनी स्वार्थ सिद्धि करने सत्ता पर काबिज होने का स्वप्न भी देखते रहते हैं। हकीकत में ऐसे संगठनों और उनके नेताओं से न तो क्षेत्रीय जनों को लाभ पहुँचता है और न ही विकास के मार्ग खुल पाते हैं। यह अलग बात है कि क्षेत्रीयता की आड़ में इन्हें पनपने का अच्छा मौका मिल जाता है।
क्षेत्रीय असंतुलन से राष्ट्रीय हितों और एकता को खतरा-
क्षेत्रीय असंतुलन के कारण संकीर्ण क्षेत्रीय भावना उत्पन्न होने से राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय हितों के लिये खतरा बढ़ जाता है। जब कुछ क्षेत्रों के लोग दूसरे क्षेत्रों को विकसित और समृद्ध होता देखते हैं तो उनमें ईर्ष्या की भावना जाग्रत होती है। इससे पृथकत्व और अलगाववाद को समर्थन मिलने लगता है। क्षेत्रों के मध्य आपसी मनमुटाव, द्वेष और हिंसा फसाद की स्थिति बनने लगती है राष्ट्रीय अस्थिरता से राष्ट्रहित और एकता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
क्षेत्रीय असंतुलन से हिंसात्मक राजनीति का उदय–
क्षेत्रीय असंतुलन के परिणामस्वरूप केन्द्र से क्षेत्र विशेष को अधिक स्वायत्तता और अधिक आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए स्थानीय नेता शांतिपूर्ण आन्दोलन के स्थान पर हिंसात्मक राजनीति का सहारा लेते हैं। उनकी दृष्टि में हिंसात्मक आन्दोलन से केन्द्र शीघ्र वार्ता और समझौते के लिये टेबिल बैठक के लिये बाध्य हो सकती है। मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, असम, तेलंगाना आदि क्षेत्रों में हिंसात्मक राजनीति का उदय इसी कारण हुआ है |
क्षेत्रीय असंतुलन से पिछड़ेपन की हताशा में वृद्धि-
क्षेत्रीय असंतुलन का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव आर्थिक विकास में पड़ते अंतर से स्पष्ट दिखायी पड़ता है। पिछड़े क्षेत्रों की जनता अपने आर्थिक विकास के न हो पाने से हताशा की भावना से ग्रस्त होकर कोई भी गलत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाती है, जिससे राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने लगा है। यदि सम्पूर्ण देश का संतुलित विकास नहीं होगा, तो विघटनकारी तत्वों को प्रश्रय प्राप्त होगा, नक्सलवाद जैसे संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनने लगेंगे और देश विभाजन, राष्ट्रीय एकता में विभाजन का खतरा बढ़ने लगेगा।