मौर्य साम्राज्य का उदय
मौर्य साम्राज्य का इतिहास चन्द्रगुप्त मौर्य भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अंश है। यहीं से भारत का इतिहास तिथिबद्ध अनुक्रम से दिखता हैं । मौर्य साम्राज्य की स्थापना में विष्णुगुप्त चाणक्य का सर्वाधिक प्रमुख योगदान था । वह अत्यन्त कुशल राजनीतिज्ञ और प्रबल कूटनीतिज्ञ था ।
वह उत्तरापथ की राजनीतिक दुर्बलता को समझता था और चाहता था कि छोटे-छोटे राज्य संगठित होकर एक शक्तिशाली साम्राज्य बने । उसने नन्दों से इस सम्बन्ध में सहायता चाही किन्तु उसका निरादर किया गया। चाणक्य नन्दों की लालची आर्थिक नीति और निरंकुश शासन से अप्रसन्न था। वह नन्द वंश के विरुद्ध किसी योग्य व्यक्ति की तलाश में था । चन्द्रगुप्त मौर्य के रूप में उसे वह व्यक्ति मिला ।
चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई. पू. 322-298)-
चन्द्रगुप्त क्षत्रियों के मोरिय अथवा मौर्य वंश में उत्पन्न हुआ था। मौर्यों का स्वतंत्र गणराज्य कोलिय और मल्ल गणतंत्रों के बीच स्थित था। बौद्ध ग्रंथों महावंश और दिव्यावदान बोधिवंश में मौर्यों को क्षत्रीय माना गया है। मध्य कालीन उत्कीर्ण लेखों में इन्हें सूर्यवंशी क्षत्रीय कहा गया है
चन्द्रगुप्त के पिता नन्दों की सेना में अधिकारी थे । उसकी प्रतिभा से डरकर नन्दों ने उसे मरवा दिया। चन्द्रगुप्त भी नन्द सेना में कार्य करता हुआ सेनाध्यक्ष पद तक पहुँचा। चन्द्रगुप्त की बढ़ती ताकत से नन्द उससे डरने लगे और उसके विरुद्ध षड्यंत्र करने लगे। चन्द्रगुप्त ने अपना पद त्याग दिया एवं गुप्त रूप से रहते हुए नन्दों के विनाश के लिए साधन एकत्रित करने लगा ।
इसी समय चन्द्रगुप्त की भेंट विष्णुगुप्त चाणक्य से हुई। चाणक्य भी ऐसे योग्य व्यक्ति की तलाश में घूम रहा था, जो नन्दों के विनाश में उसका साथ दे। दोनों के उद्देश्य एक ही थे। चन्द्रगुप्त गणतन्त्र पैदा हुआ था उसने छोटे-छोटे राज्यों को नन्दों की सैनिक शक्ति के सामने नष्ट होते देखा था एक संगठित और केन्द्रित साम्राज्य की शक्ति और महत्व को वह समझता था ।
चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द साम्राज्य पर प्रथम आक्रमण –
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने मिलकर विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के पास एक बड़ी सेना एकत्रित की और पाटलिपुत्र पर चढ़ाई कर दी । नन्दों की सशक्त सेना से उन्हें पराजित होना पड़ा। शीघ्र ही उन्हें उस भूल का अनुभव हो गया, जो सीधे शक्ति केन्द्र पर आक्रमण करके उन्होंने की थी । साम्राज्य की शक्ति केन्द्र के पास प्रबल होती है । वहाँ उसका सामना करना और उसे हराना बहुत ही दुष्कर कार्य होता है इसके विपरीत साम्राज्य की सीमा और उसके बाहर के प्रदेशों में साम्राज्य के प्रति असन्तोष होता है और राज्य की शक्ति वहाँ दुर्बल होती है ।
इसलिए चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने यह निश्चय किया कि साम्राज्य के बाहर सैन्य शक्ति एकत्रित कर आक्रमण किया जाए । चन्द्रगुप्त और चाणक्य इसके पश्चात् उत्तरापथ चले गये वहाँ वे सैन्य शक्ति एकत्रित करने लगे। संयोगवश इसी समय सिकन्दर इस क्षेत्र में अपना सैन्य अभियान चला रहा था । चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर से मगध साम्राज्य के विरुद्ध सहायता प्राप्त करना चाहा किन्तु चन्द्रगुप्त के गर्वीले व्यवहार से सिकन्दर क्रोधित हो गया। उसने चन्द्रगुप्त के वध की आज्ञा दे डाली किन्तु चन्द्रगुप्त वहाँ से बचकर निकल गया ।