नव पाषाण काल बीस हजार वर्ष पूर्व से छह हजार वर्ष पूर्व के बीच का काल माना जाता है। इस काल के उत्तरार्ध में प्राचीन नदी घाटियों की सभ्यताओं का उदय हो चुका था। भारत में नवपाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष बुर्जहोम (कश्मीर), सिन्धु प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम, मध्यप्रदेश, हैदराबाद, ब्रह्मगिरि (मैसूर), दक्षिणी भारत में वेलारी, अर्काट ‘पट्टावरम (मद्रास) आदि स्थानों में प्राप्त हुए हैं।
नव पाषाण काल की जलवायु प्राचीन पाषाण काल की तुलना में मानव के लिए अनुकूल थी। यह समशीतोष्ण जलवायु थी न अधिक शीत, न अधिक आर्द्र और न ही अधिक गरम | ऐसी अनुकूल जलवायु में मनुष्यों की संख्या में अधिक वृद्धि हुई और उन्होंने अपने परिश्रम और अनुभव से अनेक आर्थिक और वैज्ञानिक परिवर्तन किये। इससे उनकी सभ्यता और संस्कृति का विकास तेजी से हुआ।
“इस काल में मानव औजार पाषाण के होते हुए भी पहले की अपेक्षा अधिक सुन्दर, सुडौल व श्रेष्ठ थे। इस समय पत्थर की चिकनी और सुन्दर दिखने वाली कुल्हाड़ी सारे भारत में प्रयोग में लायी जाने लगी थी इसके अलावा पत्थर कें फलकों का भी उपयोग होने लगा था। ये औजार सुन्दर होने के साथ ही अत्यधिक धारदार होते थे। पत्थरों के साथ ही हड्डियों, सींगों और लकड़ी के औजार और हथियारों का भी प्रयोग किया जाता था।
कृषि कार्य का आरंभ होना नवपाषाण काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इस काल का मानव भोजन का संग्रहकर्ता से उत्पादक बन गया। बीज के मिट्टी में अंकुरित होकर अनाज के दानों का ढेर पैदा होने को प्रक्रिया को मानव ने ध्यान से देखा होगा। इससे उसे भोजन प्राप्ति का आसान तरीका मिला और उसने धीरे-धीरे कृषि करना आरंभ कर दिया। नवपाषाण काल में संभवत: गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का, फल, सब्जियों आदि को खेती करना आरंभ किया गया होगा। कृषि कार्य में काम आने वाले औजारों, कुल्हाड़ी, कुदाल, हँंसिया आदि के आविष्कार के साथ-साथ संभव हैं उन्होंने हल का भी आविष्कार किया होगा।
नवपाषाण काल में पशुओं की उपयोगिता को मनुष्य ने समझ लिया और पशुपालन का आरंभ कर दिया था। मानव का सबसे पहला पालतू पशु कुत्ता था। बाद में बकरी, सुअर, भेंडु एवं गाय आदि को भी पालना आरंभ कर दिया गया। समय के साथ आवश्यकता पड़ने पर मानव ने सवारी और माल ढोने के लिए घोड़ों, गधों, खच्चर और ऊँटों को पालना आरंभ किया। पशुपालन से अनेक लाभ प्राप्त हुए जैसे कि कृषि कार्य,माल ढोने, सवारी करने, दूध व मांस प्राप्ति में आसानी हुई।
कृषि कार्य ने मानव को एक स्थान में स्थाई निवास करने को विबश कर दिया, व्यवस्थित जीवन कृषि कार्य के कारण ही हो पाया। मानव को खानाबदोश एवं घुमक्कड़ जीवन छोड़कर . एक स्थान में अपना स्थाई निवास बनाना पड़ा। लोगों ने मिट्टी, लकड़ी एवं घास-फूस के सहारे अपने घर बनाने. प्रारम्भ किये। धीरे-धोरे बस्तियों का विकास हुआ।
नवपाषाण युग में मानव ने चमड़ा, पेड़ की छालों, पशुओं के बालों आदि का उपयोग वस्त्र के रूप में करना प्रारम्भ कर दिया था। स्थाई एवं समूहों में निवास करने के कारण वस्त्रहीन रहने में शायद लज्जा. का अनुभव होने लगा था इसलिए शरीर को ढकना प्रारंभ किया गया। वस्त्रों के निर्माण के लिये तकली तथा ‘ कपड़ा बुनने की करघा आदि मशीनों का जन्म भी शायद इसी काल में हुआ। बालों को विभिन्न प्रकार से सँवारना, पत्थर, कौड़ी, सोप, हड्डी आदि के आभूषणों को पहनना भी इस काल में प्रारम्भ हुआ।
इस युग में मानव ने चाक की सहायता से बर्तन बनाना सीख लिया। बर्तनों को आग में पकाकर मजबूत कर उनमें अनाज या द्रव पदार्थ रखने योग्य बना लिया।“पकी मिट्टी न तो पानी में घुल सकती थी और न पानी रखने से उसकी कोई क्षति हो सकती थी। मिट्टी के बर्तनों का निर्माण नवपाषाण कालीन मानव के लिये एक बड़ी सौगात थी।मट्टी के पके बर्तनों के कारण अनेक प्रकार की सुविधाएँ होने लगीं। तरल पदार्थों अथवा बचे हुए भोजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में आसानी होने लगी।
इस काल में मानव द्वारा किया गया पहिए का आविष्कार महान श्रेणी में आता है, इस आविष्कार ने मानव के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया इसने जीवन को तीक्र गति प्रदान कर दी सर्वप्रथम शायद मोटी लकड़ी के गोले को काटकर चाक बनाया होगा और इसका उपयोग मिट्टी के बर्तन बनाने में किया गया होगा। कालान्तर में इस काल का मानव लकड़ी के बड़े-बड़े गोलों को लुढ़काकर ले जाने में इसकी के ली होगी और फिर बाद में पहिएदार गाड़ी का निर्माण कर वस्तुओं को ले जाने के काम में उसे लगाया होगा।
कृषि कार्य एवं पशुपालन ने नवपाषाण युग के मानव को स्थायी निवासी बना दिया। निवास के स्थायी होने से उनमें सामाजिक भावना का विकास हुआ है एक-दूसरे के सहयोग की आवश्यकता होने के कारण मानव समूह कबीलों में बदलते गये।
धीरे-धीरे एक स्थान में रहने के कारण विवाह व परिवार जैसी स्थिति बनने लगी | विवाह जैसी स्थिति बनने के कारण श्रम विभाजन का सिद्धांत प्रारंभ हुआ। स्त्रियाँ घरों में भोजन पकाने, जंगली फल ग्रा अनाज इकट्ठा करने का काम करती थीं और पुरुष शिकार के लिये जंगलों को जाता था।
स्थायी निवास के कारण कबीलों का निर्माण हुआ। प्रत्येक कबीले का एक मुखिया या सरदार होता था जिसकी आज्ञा का पालन कबीले के सभी लोग करते थे। यहीं से राजनीतिक जीवन का प्रारम्भ हुआ।
इस युग में मनुष्य ने वृक्षों, चट्टानों आदि को दैवी शक्ति मान कर उसकी पूजा, अर्चना प्रारंभ कर दिया था। इसके अतिरिक्त पृथ्वी, जह तथा सूर्य की पूजा के प्रचलन बढ़ गया था। जैसे-जैसे . जीवन आगे बढ़ता गया वैसे ही धार्मिकता का क्षेत्र भी व्यापक होता गया।
कृषि कार्य में फसलों की हानि होने अथवा शारीरिक परेशानी आने पर लोगों ने निराकरण में जब अपने आपको असमर्थ पाया तब धार्मिक भावना बलवत हुई | प्रकृति की प्रक्रिया को समझने में असमर्थ मानव के मन में किसी अज्ञात शक्ति का भय समाया और विभिन दैवी शक्तियों का जन्म होता गया।
इसके अतिरिक्त मानव जादू-टोने पर भी विश्वास करने लगा था। भूत-प्रेत एवं स्वर्ग-नरक आदि की धारणाएं भी इस नवपाषाण युग में पैदा हुई। देवी-देवताओं को प्रसन करने के लिए पशुओं की बलि देने की प्रथा का प्रचलन भी इस युग में हुआ। मर जाने पर मुर्दे को हथियार, मिट्टी के बर्तन एवं खाने-पीने की वस्तुओं के साथ जमीन में गड़ा दिया जाता