निरक्षरता का दुष्प्रभाव
निरक्षरता से व्यापक दृष्टिकोण का अभाव —
निरक्षरता व्यापक दृष्टिकोण का अभाव शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान, समझ और स्थितियों को पहचानने, उनसे होने वाली लाभ–हानि का आकलन कर स्वयं स्वविवेक से निर्णय करने की योग्यता प्रदान करती है। दुर्भाग्यवश भारत का निरक्षर नागरिक आज के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तनों से प्राप्त होने वाले लाभ से अपरिचित होने के कारण उससे वंचित हैं। उसकी अनभिज्ञता या सरलता से सम्पन्न वर्ग व राजनीतिक दल सदा लाभ लेते रहे, पर उसे ऊपर उठाने के लिए कभी प्रयास नहीं किये ।
निरक्षरता से राजनीतिक जागृति शून्य –
जनता में राजनीतिक जागृति ही लोकतंत्र की सफलता का पैमाना माना जाता है। यह तभी संभव है जब जन साक्षर हों व पढ़े–लिखे हों । निरक्षर नागरिक को न तो यह पता है कि संविधान ने मूल अधिकारों द्वारा उन्हें कितना सम्पन्न और क्रियाशील नागरिक बनने का अवसर दिया है और न ही उसे राज्य व समाज के प्रति कर्त्तव्य बोध से सेवा करने के प्रति जागरूक किया है।
वह तो आज भी राजनीतिक शून्यता में जीते हुए समाज के सम्पन्न वर्ग और राजनीतिक दलों के हाथ का खिलौना बनकर रह गया है। वर्तमान भारत में जातिगत, दलगत व वोट बैंक जैसी राजनीतिक बुराइयाँ निरक्षरता से अनुचित लाभ उठा रही हैं।
निरक्षरता से चतुर नेता के प्रभाव में आना –
व्यक्ति की दरिद्रता और निरक्षरता का भरपूर लाभ चतुर और स्वार्थी नेता उठाते हैं। ये नेता लच्छेदार भाषणों, थोड़ी सी आर्थिक सहायता और सुनहरे भविष्य का चित्रपट दिखाकर अपने वश में कर लेते हैं। राजनीतिक सूझबूझ की कमी के चलते निरक्षर व्यक्ति “जहाँ लाभ वहाँ ” वास की तर्जे पर चतुर नेता की मधुशिक्त वाणी और रुपये की खनखनाहट सुनकर उनके अनुकूल सोचने और समझने लगता है, जिसका लाभ वे राजनीतिक सत्ता हथियाने में लगाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं ।
निरक्षरता से सामाजिक विकास में बाधक-
निरक्षरता से व्यक्तिहीन भावना से ग्रस्त होकर हर सुधार को संकुचित दृष्टिकोण से आँकता है। परिणामत: निरक्षरता अनायास ही समाज को सभ्य और असभ्य समाज में विभाजित कर, सामाजिक असमानता और परस्पर द्वेष की भावना विकसित कर देती है। इससे सामाजिक विकास बाधित होने लगता है ।
निरक्षरता से राजनीतिक अधिकारों के लाभ से वंचित रहना –
लोकतंत्रीय शासन में प्रत्येक नागरिक को अनेक राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं जो न केवल उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए सहायक होते हैं । अपितु उसे राजनीतिक व्यवस्था में सजग भागीदारी निभाने का अवसर भी प्रदान करते हैं। दुर्भाग्य से निरक्षर व्यक्ति इन अधिकारों को न समझ पाने के कारण अधिकार लाभ से न केवल वंचित रह जाते अपितु चतुर राजनेताओं और अधिकारियों की बातों में आकर अधिकारों का दुरुपयोग कर बैठते हैं। परिणामतः सजग और समर्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता है ।
निरक्षरता से सजग जनमत का अभाव –
लोकतंत्र में सजग, जनमत का विशेष महत्व होता है । यही सरकार को नीति निर्धारण, प्रबंधन और जन सुविधाओं के विकास में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है। सजग जनमत साक्षर नागरिक से ही बन सकता है। लोकतंत्र ‘सिरों की गिनती’ से नहीं वरन विवेकपूर्ण, सजग और शिक्षित जनता की भागीदारी से होती है ।
न कि शासक सत्ता, न ही तानाशाह हो सके और न ही प्रभावशाह हो सके और न ही प्रभावशाली राज नेताओं व्यावसायियों के हाथ की कठपुतली बन कर न रह सके। निरक्षरता से लोकतंत्र कमजोर होता है। और लोकतांत्रिक मूल्य को हानि पहुँचती है।