निरक्षरता (Niraksharta)
निरक्षरता का अर्थ :-
निरक्षरता का अर्थ है किसी भी लिखित शब्द को पढ़ने या समझने में अयोग्य होना निरक्षरता कहलाता हैं | अपनी भाषा के शब्द और यदि कोई व्यक्ति पढ़ने या लिखने में अयोग्य हो तो हम उसे अनपढ़ कहते हैं।
निरक्षरता क्या है Niraksharta kya hai –
निरक्षरता भारतीय लोकंतत्र के लिए एक अभिशाप है। साक्षर नागरिक अपने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिवेश को समय के साथ सामंजस्य स्थापित कर न केवल स्वतः अपितु समाज और राष्ट्र की प्रगति में सहायक बनकर लोकतंत्र को मजबूत करता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि लगभग 60 वर्ष की अवधि में स्वतंत्र भारत अपने नागरिकों को पूर्ण साक्षर नहीं बना सका है।
सन् 2011 की जनगणना से उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल 74.04 प्रतिशत नागरिक ही साक्षर हैं और लगभग 26% प्रतिशत नागरिक जो बिहार मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और राजस्थान के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में निवास करते हैं, निरक्षर हैं । निरक्षर जनता न तो स्वतंत्रता के महत्व को समझती है और न ही लोकतंत्र को। ऐसे व्यक्ति प्रभावशाली व्यक्तियों की कही गयी बातों को सत्य मानकर उनकी राय में अपनी राय मिलाकर निर्णय ले लेता है ।
यह जनता का जनमत नहीं माना जा सकता है। भारतीय जनगणना आयोग के अनुसार “साक्षर वह व्यक्ति है जिसमें समझदारीपूर्वक लिखना, व पढ़ना आता है ।” इस परिभाषा के अनुसार मात्र पढ़ना या लिखना पर्याप्त नहीं है, उसे इसकी समझ भी आवश्यक है। उसे मालूम होना चाहिए कि वह जो पढ़ रहा है। उसका अर्थ भी समझ रहा है या नहीं । यदि वह अर्थ नहीं समझ पाता है तो वह साक्षर नहीं निरक्षर ही समझा जायेगा ।
निरक्षरता के कारण निम्न लिखित है-
निरक्षरता से आर्थिक विपन्नता –
भारत में अपनी आर्थिक विपन्नता (गरीबी) से ग्रस्त नागरिक जब सारा दिन केवल परिवार के पट की ज्वाला को शांत करने के लिये रोटी का साधन जुटाने में लगातार लगा रहता है, तो कब वह साक्षरता की उपयोगिता और महत्व को समझे और स्वयं एवं अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने की बात सोच पाता है ।
निरक्षरता से सामाजिक असमानता –
भारतीय समाज अतीत से अपनी जाति प्रथा से इतना विभक्त रहा है कि उच्च वर्ग सदा सत्ता से प्राप्त लाभों का उपभोग करता आ रहा है। निम्न वर्ग सामाजिक असमानता से प्रभाव ग्रस्त रहते हुए अपनी स्मिता की रक्षा के लिए ही लगा रहता है। शिक्षा से मिलने वाले लाभ से उसका कभी वास्ता नहीं पड़ा। अत: उसके महत्व को न समझ पाने के कारण निरक्षरता में ही जीता चला आ रहा है। शिक्षा का क्षेत्र भी मात्र उच्च वर्ग के लिए ही खुला था ।
निरक्षरता से साक्षरता के प्रति जन जागरण में कमी-
प्रारंभ से ही केन्द्र एवं राज्य की सरकारों द्वारा आर्थिक विकास को ही सामने रखकर नीति निर्धारण किया जाता रहा है। शिक्षा के प्रति झुकाव की कमी के कारण ये सरकारें अपनी आय का न्यूनतम भाग ही शिक्षा, विकास व प्रसार में खर्च करती रहीं । परिणाम- स्वरूप प्रशासन में बैठे अधिकारीगण भी साक्षरता के प्रति उपेक्षा का भाव रखते आये। कुछ वर्षों से साक्षरता के प्रति सरकार जागरूक हुई है, किन्तु इसके विकास के लिये जन–धन व साधनों की कमी निरक्षरता को दूर करने में असफल रही है।
दक्षिण के राज्यों में शिक्षा के प्रति सरकार ने विशेष ध्यान देकर अपने राज्यों को पूर्ण साक्षर बना लिया है पर उत्तर के हिन्दी भाषी राज्यों के ग्रामीण बहुल क्षेत्र पूर्ण निरक्षर हैं। शासन ने कभी भी अपने नागरिकों को शिक्षा की आवश्यकता और महत्व को समझाने के लिये जन-जागरण कार्यक्रम नहीं चलाये । जो भी कार्य हुए आँकड़ों में प्रदर्शित होते रहे । वास्तविकता इनसे पीछे रही ।
निरक्षरता से साक्षरता साधनों का अभाव –
शासन द्वारा अभी तक निरक्षरता दूर करने के प्रति संवेदनशील न होने के कारण सामान्य रूप से जो साक्षरता अभियान चलाये जा रहे हैं उनमें मूलभूत साधन, विद्यालय, शिक्षक और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का अभाव बना हुआ है । अधिकारी सिर्फ आँकड़ों के खेल द्वारा निरक्षरता कम होने का दावा करते आये हैं जबकि व्यवहार में ये दावे खोखले सिद्ध होते रहे हैं ।
निरक्षरता से रुढिवादिता –
परिवारों की पुरानी पीढ़ियाँ शिक्षा के प्रति सदैव उदासीन रहीं। उनका मुख्य कार्य जहाँ बालकों को पारिवारिक व्यवसाय व कर्म को आगे बढ़ाने एवं बालिकाओं को चूल्हा–चक्की और परिवार की सेवा को अच्छी तरह से सँभालने पर अधिक जोर देने पर रहा है। फलतः शिक्षा कभी भी परिवार की मुख्य आवश्यकता नहीं बन सकी ।