निरक्षरता Niraksharta
illiteracy in hindi
निरक्षरता भारतीय लोकतंत्र स्थापना के 54 वर्ष बीत जाने के बाद भी आर्थिक असमानता के कारण अपनी आधी जनसंख्या को निरक्षरता के अभिशाप से मुक्त नहीं कर सका है। आर्थिक विपन्नता (निर्धनता) से ग्रस्त नागरिक जब सारा दिन केवल पेट की ज्वाला शान्त करने के लिए रोटी का साधन जुटाने में लगा रहता है, तो कब स्वयं को साक्षर बनाने और अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए धन और समय दे सकता है
निरक्षरता लोकतंत्र के लिए अभिशाप है। निरक्षर व्यक्ति लोकतंत्र द्वारा प्रदत्त अधिकारों, राजनीतिक प्रक्रियाओं, दलों की राजनीति पर विद्वानों के बिचारों को न तो जान सकता है और न ही समझ सकता है। सुनी-सुनायी बात सदा सत्य नहीं होती। पर निरक्षर भारतीय नागरिक प्रभावशाली नेताओं की कही गई बातों को सही मानकर उनकी राय में अपनी राय मिलाकर लोकतंत्र को कमजोर बनाता है। यह जनमत जनता का नहीं, नेताओं द्वारा थोषा गया मत है। निरक्षरता से लोकतंत्र पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को इस प्रकार देख जा सकता है
निरक्षरता के निम्नलिखित दुष्पप्रभाव हैं
निरक्षर लोगों का स्वार्थ सिद्धि में प्रयोग-
व्यक्ति की दरिद्रता और निरक्षरता का चतुर नेता भरपूर लाभ उठाते हैं। थोड़ी-सी धन राशि वितरित कर उन्हें अपने अनुकूल सोचने, समझने और कार्य करने के लिए अपने पक्ष में ले लेते हैं। उनकी इस सरलता या मजबूरी का लाभ राजनीतिक दल सत्तारूढ़ होने में लगाते हैं।
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विचारधारा का स्वतंत्र न हो पाना-
निरक्षर व्यक्ति गरीब होता है। प्रतिदिन पेट को भरने के लिए आवश्यक धन को कमाने की युक्ति सोचने और उसके अनुसार काम करने में उसका जीवन लगा होता है। इससे उसका दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। जहां लाभ वहां बास की तर्ज पर वह चतुर नेताओं की आर्थिक सहायता से बिक जाता है। क्षेत्रीयता, सम्प्रदायवादी उनकी इस प्रवृत्ति का अनुचित लाभ उठाकर कई बार राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाते हैं। निरक्षर व्यक्ति की विचारधारा स्वतन्त्र नहीं हो पाती है।
राजनीतिक भावनाओं की समाप्ति है-
जनता में राजनीतिक जागृति ही लोकतंत्र की सफलता है। पर यह तभी सम्भव है जब जन साक्षर के साथ-साथ पढ़े-लिखे हों। निरक्षर व्यक्ति न तो राजनीति समझता है, ओर न हो राजनीतिक दलों के लच्छेदार भाषणों के पीछे छिपी उनकी स्वार्थपूर्ण आकांक्षाएँ। फलत: वह न तो अधिकारों का सही उपभोग कर सकता है, न ही कर्त्तव्य बोध से राष्ट्र सेवा। राजनीतिक जागृति कर यह शून्यता उसे सही प्रत्याशी अथवा दल का चुनाव करने में अयोग्य बनाती है और देश की राजनीति में भागोदारी करने से वंचित कर देती है।
अकुशल नेतृत्व को बल चुनाव के समय धूर्त, स्वार्थी और तानाशाही प्रवृत्ति के राजनीतिक नेता निरक्षर जनता की कमजोरी का लाभ लेकर सत्तारूढ़ होने के प्रयास करते हैं। यदि ऐसा व्यक्ति सत्ता पर कब्जा कर लें तो देश में लोकतंत्र के स्थान पर तानाशाही शासन की स्थापना होते देर नहीं लगेगी।