पशु-पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण

पशु पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण,Housing and nutrition for animals and birds – MP BOARD, 2024

पशु पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण

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1 पशु पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण

 (Housing and Nutrition for Cattle and Poultry Birds ) 

पशु पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण प्रस्तावना –

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे  पशु पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण के बारे में पढ़ेंगे

पशुओं एवं अन्य जंतुओं में अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने हेतु उन्हें उत्तम आवास एवं पोषण प्रदान करना आवश्यक है। पशुधन व पक्षियों को विपरीत मौसम जैसे अधिक ठण्ड, गर्मी एवं वर्षा से बचाने के लिए प्रमुख रूप से दो प्रकार के आवास प्रचलित हैं। 

पशु-पक्षियों को आवास व्यवस्था एवं पोषण

कच्चे आवास ,पक्के आवास 

पशु पक्षियों के कच्चे आवास-

ये कम लागत के होते हैं जिन्हें लकड़ी की बल्लियाँ गाड़कर घास-फूंस की छत बनाकर व जमीन पर मिट्टी को समतल करके बनाया जाता है । 

पशु पक्षियों के पक्के आवास-

बड़े पैमाने पर पशुपालन एवं मुर्गीपालन हेतु स्थायी व पक्के आवास बनाए जाते हैं, जिनकी दीवारें पक्की एवं सुविधानुसार जालीदार, फर्श सीमेंट-कांक्रीट का बना होता है । 

एक उत्तम पशुधन एवं मुर्गियों के आवास में निम्नलिखित गुण होने चाहिए 

आवास ऊँचाई पर स्थित होना चाहिये ताकि वहां पानी एकत्रित न हो सके। आवास वाले स्थान पर बिजली एवं पानी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। 

आवास का भूतल ढालू होना चाहिये ताकि उस पर मलमूत्र एकत्रित न हो व पशु को सूखा स्थान प्राप्त हो सके। आवास में स्वच्छ वायु एवं पर्याप्त मात्रा में सूर्य के प्रकाश के आवागमन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। आवास स्वच्छ एवं जीवाणु रहित होना चाहिए । 

गाय, भैंस एवं बकरियों हेतु इकहरी या दोहरी पंक्ति वाली पशुशालाएँ प्रयोग में लायी जाती हैं । दोहरी पंक्ति वाली पशुशाला में अधिक पशु रखे जा सकते हैं। तथा इनमें पशुओं के मुँह या पूँछ आमने-सामने रखकर पशुओं को बाँधने की व्यवस्था की जाती है। सूकर पालन में प्रत्येक पशु के लिए विभाजित जगह बना दी जाती है क्योंकि उन्हें बाँधकर नहीं रखा जा सकता है। 

मुर्गी आवास 

मुर्गियों के लिए कच्चे या पक्के आवास की दो प्रणालियाँ प्रमुख रूप से अपनायी जाती हैं। 

  1. गहरी बिछावन प्रणाली (डीप लिटर प्रणाली)
  2. पिंजड़ा प्रणाली 

गहरी बिछावन प्रणाली (डीप लिटर प्रणाली) –

डीप लिटर प्रणाली में मुर्गियों को बंद कमरों में रखा जाता है। जिनके फर्श पर छः से बारह इन्च मोटी लकड़ी के बुरादे या अन्य पदार्थ की परत बिछी रहती है। दाना एवं पानी के बर्तन अलग से रखे जाते हैं । जबकि पिजड़ा प्रणाली में पक्षियों को अलग-अलग पिजड़ों में रखा जाता हैं ।

प्रत्येक पक्षी हेतु दाना एवं पानी की अलग-अलग व्यवस्था रहती है । पिजड़े का फर्श जालीदार एवं ढालू रखा जाता है जिससे पिजड़े में गंदगी नहीं होती है तथा अंडा लुड़ककर आगे की और आ जाता है जहां से एकत्रित कर लिया जाता है । 

मुर्गी आवास (पिजड़ा प्रणाली ) पशु व पक्षियों का पोषण (Nutrition of Cattle and Poultry Bird )- 

पशु व पक्षियों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए उनकी आयु, उत्पादकता एवं कार्य को ध्यान में रखकर उनका आहार निर्धारित किया जाना चाहिए। क्योंकि पशुपालन व मुर्गीपालन में आहार का प्रमुख महत्व है। अतः पशु- पक्षियों के आहार की निम्नांकित विशेषता होती हैं – 

  1. गर्भावस्था के दौरान पशु-पक्षियों को भ्रूणीय विकास हेतु पौष्टिक आहार देना चाहिए। 
  2. युवा पशुओं को अधिक प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए । 
  3. अधिक परिश्रम करने वाले पशुओं के आहार में कार्बोहाइड्रेटस की मात्रा अधिक होनी चाहिए । 
  4. जो पशु-पक्षी उत्पादन का कार्य नहीं कर रहे हो उन्हें केवल निर्वाह आहार देना चाहिए। 
  5. पशु-पक्षी का आहार मौसम एवं उनकी स्वास्थ्य दशा के आधार पर देना चाहिए । 
  6. आहार ग्रहण नहीं करने पर जीवों का स्वास्थ्य परीक्षण करवाना चाहिए । 

पशु आहार के विभिन्न घटकों के स्रोत 

    1. कार्बोहाइड्रेट- गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का, बाजरा । 
    2. प्रोटीन- मूगफली, कपास या सोयाबीन की खली, विभिन्न दालें । 
    3. वसा- तिल, मूंगफली, सोयाबीन के बीज या तेल । 
    4. खनिज लवण- नमक, हरा चारा, खनिज मिश्रण । 
    5. रेशे- बरसीम, कड़बी, चरी, हरा चारा । 
    6. पानी- प्रतिदिन दो बार पानी के अतिरिक्त कभी-कभी नमक मिला पानी मिलाना चाहिए। 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर स्वयं खोजिये 

  1. प्रश्न. मुर्गियों के आवास हेतु कौन-कौन सी विधियाँ अपनायी जाती है ?
  2. प्रश्न. एक उत्तम पशु आवास में कौन-कौन सी सुविधाएँ होनी चाहिए?
  3. प्रश्न. पशु एवं पक्षियों के आहार निर्धारण हेतु किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
  4. प्रश्न.पशु आहार में कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन प्रदान करने वाले मुख्य पदार्थ कौन-कौन से हैं?

पशुओं में प्रजनन (Breeding in Animals ) 

प्रजनन जीवधारियों की वह क्रिया जिससे वे अपने समान संवति उत्पन्न कर सकते   पशुओं में नर एवं मादा प्रजनन अंग अलग-अलग होते हैं। मादा के अण्डाशय में अण्डाणु उत्पन्न होते हैं । अण्डाणु उत्पन्न होने के चक्र को रितु चक्र कहते हैं।

गाय को प्रथम बार गर्भित कराने की आयु 2.5 से 4 वर्ष के मध्य होती है । गाय के अण्डाणु उत्पादन के समय को मदकाल या गर्मी की अवस्था कहा जाता है । 

गाय के मदकाल के आने की पहचान निम्नांकित लक्षणों द्वारा की जाती है- 

  • गाय खाना पीना कम कर देती है तथा बार-बार पेशाब करती है । 
  • गाय बैचेन रहती है तथा खूंटे के चारों और चक्कर लगाती है ।  
  • गाय रम्भाती है 
  • गाय अन्य पशुओं पर चढ़ती है ।
  • गाय की योनि से एक पीला लसलसा पदार्थ निकलने लगता है। 

गाय में मदकाल 8 से 36 घंटे का होता है। इस समय में गाय को उत्तम सांड से समागम कराया जाता है । जिसके उपरांत मादा के अण्डाणु एवं नर के शुक्राणु गर्भाशय नाल में आपस में मिलकर निषेचित होकर जाइगोट का निर्माण  करते हैं |

जो गर्भाशय में भ्रूण के रूप में विकसित होता है व पूर्ण विकसित होकर बच्चे के रूप में जन्म लेता है । प्रत्येक पशु में गर्भकाल का समय अलग-अलग होता है। जो मादा पशु गर्भधारण नहीं कर पाती है वह पुन: मदचक्र (ऋतुचक्र) में प्रवेश करती है। 

पशु प्रजनन के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित प्रकार से है- 

  • पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाना। 
  • पशुओं की नस्लों में सुधार करना । 
  • पशुओं की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाना । 
  • पशुओं व जन्तुओं में वांछित गुण लाना । 

कृत्रिम गर्भाधान : 

भारत में पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा संपूर्ण देश में प्रयास किये जा रहे हैं । जिसके अन्तर्गत उत्तम नस्ल के सॉड से कृत्रिम योनि में वीर्य प्राप्त करके उसका तनुकरण एवं उचित तापक्रम पर परिरक्षण करके गाय की मद्काल अवस्था के मध्य में कृत्रिम विधि से गर्भाशय के ग्रीवा भाग में प्रवेश करा दिया जाता है।

जहाँ वीर्य में उपस्थित शुक्राणु अण्डाणु से निषेचित होकर जाइगोट का निर्माण करते हैं जो बाद में भ्रूण रूप में विकसित होकर नवजात शिशु को जन्म देता है । 

कृत्रिम गर्भाधान से लाभ- 

  • इस विधि द्वारा एक साँड से प्राप्त वीर्य से प्राकृतिक विधि की अपेक्षा लगभग 10 गुना ज्यादा मादा पशु गर्भित कराये जा सकते हैं । 
  • हिमशीतित वीर्य अधिक समय तक संचित किया जा सकता है तथा उसे दूरस्थ स्थानों तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है। 
  • पशुओं में जनन अंगों द्वारा फैलने वाले रोगों को रोका जा सकता है । 
  • छोट-छोटे पशुपालकों को सॉड रखने व उसके प्रबंध व्यय से बचाया जा सकता है। 

भ्रूण स्थानांतरण तकनीक 

यह पशु नस्ल सुधार की उन्नत व आधुनिक तकनीक है। जिसमें विकसित भ्रूण को किसी उच्च नस्ल के संगर्भित पशु से निकाल कर, मादा में स्थानांतरित कर विकसित होने दिया जाता है।

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