पुरापाषाण काल
पुरापाषाण काल का समय-
पुरापाषाण काल में विद्वानों के अनुसार यह काल छह लाख वर्ष पूर्व से लेकर पचास हजार वर्ष पूर्व का माना गया है यह युग आदि मानव का था। ये आदि मानव हड्डियों और पत्थरों के अत्यन्त सादे और अनगढ़ औजारों का उपयोग करते थे।
क्षेत्र-इस काल के प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर इतिहासकारों का अनुमान है कि भारत में पुरापाषाण काल का मनुष्य गंगा के मैदान को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में जैसे- पंजाब, राजपूताना, गुजरात, मध्य भारत, कनटिक, मैसूर, बिहार, आसाम, बंगाल और दक्षिणी भारत में अस्तित्व में रहा होगा।
पुरापाषाण काल कि विशेषताएँ-
पुरापाषाण काल भौगोलिक परिस्थिति–
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार इस काल में चार बार हिमयुग आये जिनका अंतराल लगभग एक लाख वर्ष का था – और जिन्होंने पृथ्वी की कायापलट कर दी। जिन क्षेत्रों में गर्मी पड़ती थी वहाँ अधिक ठंड पड़ने लगी। लम्बे समय तक हिमपात के कारण वनस्पतियाँ और जीव जन्तु नष्ट हो गये। मानव की अनेक जातियाँ नष्ट हो गयीं और कुछ गुफाओं में रहकर और आग का प्रयोग करके बचने में सफल हुए। हिमयुग की समाप्ति पर हजारों वर्षों के उपरांत धीरे-धीरे गर्मी पड़ने लगी। इस समय हिमयुग से बची हुई मानव जाति क्रमंश: उन्नति करने लगी।
पुरापाषाण काल का निवास स्थान–
पुरापाषाण काल का मानव जंगली पशुओं के समान नग्न अवस्था में यहाँ-वहाँ विचरण करता था और सघन वक्षों के नीचे तथा पहाड़ी गुफाओं एवं कन्दराओं में रहता था। इनके नाखून लम्बे और देह पर लम्बे बाल हुआ करते थे। इनके मस्तिष्क का अधिक विकास नहीं हुआ था। धीरे-धीरे इनमें चेतना, बुद्धि, साहस और चतुराई का विकास हुआ तब वे झील, तालाब और नदी के निकट छोटे-छोटे समूहों में रहने लगे। वर्षा, धूप ठण्ड से बचने के लिए गुफाओं में रहते थे।
पुरापाषाण काल में भोजन सामग्री-
इस काल में मनुष्य वन के फल, फूल और कन्दमूल तथा आखेट में सरलता से मारे गये पशुओं के मांस और नदियों तथा झीलों से पकड़ी गई मछलियों से अपनी उदरपूर्ति करते थे। कृषि और पशुपालन के अभाव में उनकी खाद्य सामग्री सीमित थी।
पुरापाषाण काल में आग की खोज –
पुरापाषाण काल के मानवो की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज आग की खोज थी । इन्होंने पहली वार पत्थरों के रगड़ने से आग उत्पन्न होते देखा होगा। आग के सहारे आदिमानव ने जंगली पशुओं से स्वयं की रक्षा की और शिकार किये गये पशुओं के मांस को पकाना सीखा।
पुरापाषाण काल में औजार और हथियार-
अपने आसपास के हिंसक पशुओं से स्वयं की रक्षा करने एवं छोटे पशुओं के शिकार के लिए आदि मानव ने पाषाण के हथियार बनाए | अपने दैनिक जीवन में वस्तुओं को काटने, तोड़ने, फोड़ने, चीरने, छीलने, खोदने, जोड़ने तथा छेद करने के लिए उन्होंने अनेक प्रकार के औजार बनाये थे। ये हथियार और औजार अनगढ़ और बेडौल होते हुए भी आदि मानव की संजनशीलता के उदाहरण थे । इनकी सहायता से वे पशुओं को मारकर उनकी खाल और हड्डी निकालते थे और उनसे वस्त्र तथा हथियार और औजार बनाते थे।
पुरापाषाण काल में सामाजिक जीवन-
इस काल का मनुष्य मुख्यत: आखेट और मछलियों को मारने का कार्य करता था। हिंसक और बलशाली पशुओं के आखेट तथा उनसे अपनी रक्षा करने के लिए आदिमानव क्रमश: समूह में रहने लगे विद्वानों के अनुसार इस बात की भी सम्भावना है कि वे पेड़ों की टहनियों और पत्तियों से बनी झोपड़ियों में रहने लगे थे। आरंभ में वे नग्नावस्था में ही रहते थे किन्तु बाद में क्रमश: उनमें लज्जा की भावना का विकास हुआ और वे वृक्षों की छाल, पत्तों या पशुओं की खाल से अपने शरीर को ढँकने लगे। इस काल के मनुष्यों की आवश्यकताएँ सीमित थीं। वे कृषि और पशुपालन से अपरिचित थे।
पुरापाषाण काल में धार्मिक जीवन-
बर्बर और वन्य जीवन होने से इस काल में धार्मिक या लोकोत्तर भावनाओं का जन्म नहीं हुआ था। दैनिक जीवन में संघर्ष पूर्ण होने के कारण उन्हें चिंतन मनन का समय नहीं मिलता था।
पुरापाषाण काल में मृतक संस्कार-
उत्खनन से प्राप्त अवशेषों में उनके मृतकों की न तो कोई समाधियाँ प्राप्त हुई हैं न ही दाह के अवशेष, न किसी प्रकार की अन्य जानकारी जिससे उनके मृतक संस्कार से सम्बन्धित विधि का ज्ञान हो संभवत: वे लोग मृतकों के शरीरों को पृथ्वी पर इधर-उधर फेंक देते थे, जिन्हें पशु-पक्षी खा जाते थे कालान्तर में शवों के अवशेष मिट्टी में मिलकर नष्ट हो जाते थे।
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