प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे मानव भूगोल के बारे में पढ़ेंगे |
मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र
पादयक्रम-
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- मानव भूगोल का परिचय
- मानव भूगोल की प्रकृति
- मानव भूगोल के विषय क्षेत्र
मानव भूयोल में मानव का पृथ्वी पर केन्द्रीय स्थान है क्योंकि वही अपने प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन करके सांस्कृतिक वातावरण की रचना करता है। इस संबंध में उसकी समस्त ग्रकार की समस्याओं और क्रियाओं का अध्ययन मानव भूगोल के माध्यम से किया जाता है।
परिचय :-
भूगोल पृथ्वी और पृथ्वी से सम्बन्धित समस्त पार्थिव वस्तुओं का अध्ययन करता है, जबकि मानव भूगोल में मानव और इन पार्थिव वस्तुओं के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। उल्लेखनीय है कि मानव इस भूतल पर महत्वपूर्ण प्राणी है, क्योंकि वह प्रकृति का एकमात्र दास न होकर उसका एक महत्वपूर्ण अंग है। वह पार्थिव वस्तुओं से प्रभावित होकर उन्हें अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण विविध क्रियाओं से परिवर्तित कर अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल बना लेता है।
मानव भूगोल का विषय क्षेत्र:-
मनुष्य और भौतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों में क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं द्वारा ही मनुष्य के सांस्कृतिक वातावरण का जन्म होता है। उल्लेखनीय है कि स्वयं मानव, संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। वह पूर्णतः अकर्मण्य नहीं होता जब तक कि भौतिक परिस्थितियाँ उसे निष्प्राणित नहीं कर देती है।
फिंच और टिरिवार्थ:-
फिंच और टिरिवार्थ ने मानवीय एवं पार्थिव संस्कृति को मानव के सांस्कृतिक भूगोल का विषय क्षेत्र माना है। इस विषय क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व और वितरण, बस्तियों के स्वरूप, कृषि, व्यापार, उद्योग, खदानें, सड़कें कारखाने पालतू पशु और कृषि फसलें आदि तथ्य सम्मिलित किए हैं।
मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। कुछ विद्वान इस क्षेत्र को सीमित क्षेत्र मानते हैं। कुछ के अनुसार यह मात्र भूमि का विज्ञान, कुछ इसे अन्तर्सम्बन्धों का विज्ञान और कुछ इसे प्रादेशिक अध्ययन का विज्ञान मानते हैं। किन्तु ये विचार पूर्णतः मानव भूगोल के क्षेत्र को स्पष्ट नहीं करते।
कार्ल रिटर:-
कार्ल रिटर के अनुसार भूगोल वह विज्ञान है, जिसमें पृथ्वी के धरातल के रूपों, उसकी घटनाओं और सम्बन्धों का वर्णन इस प्रकार किया जाता है कि समस्त पृथ्वी एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में प्रकट हो तथा इस सम्पूर्ण एक रूप पृथ्वी का सम्बन्ध मनुष्य से दिखाया गया हो।