भारत में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय

भारत में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय, जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, भारत में बचत दर निम्न होने के कारण, भारत में बचत दर में वृद्धि हेतु उपाय | MP BOARD 2024

प्रस्तावना –

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2 भारत में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय

नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे भारत में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय, जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, भारत में बचत दर निम्न होने के कारण, भारत में बचत दर में वृद्धि हेतु उपाय के वारे में बात करेंगे |

भारत में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय

भारत में पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि के उपाय निम्नलिखित हैं-

भारत में पूंजी निर्माण जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण- 

भारत में पूँजी निर्माण की दर पर जनसंख्या दृद्धि कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । अत: भारत में पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि हेतु आवश्यक है कि जनसंसूया वृद्धि क्‍्ने नियंत्रित किया जाए, जिससे बचत दर बढ़े व पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन मिले 

भारत में पूंजी निर्माण की उचित कर प्रणाली- 

भारतीय कर प्रणाली के दोषों ने बचत दर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, अत: यह आवश्यक है कि भारतीय कर प्रणाली को उदार बनाया जाए, जिससे राजस्व पर भी प्रतिकूल भ्रभाव नहीं पड़े और आमजन को बचत हेतु प्रोत्साहन गिले॥

भारत में पूंजी निर्माण की वित्तीय संस्थाओं का  विकास- 

पूँजी निर्माण में वित्तीय संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | ये वित्तीय संस्थाएँ ही लोगों की बचतों को एकत्रित कर विनियोग में सहायता करती है ॥ अतः: भारत में पुजी निर्माण की दर में वृद्धि के लिए वित्तीय संस्थाओं में बुद्धि की जाना आजश्यक है 

भारत में पूंजी निर्माण की उत्पादक कार्यों में विनियोग को प्रोत्साहन – 

भारत में अनुत्पादक कार्यों सें विनियोग की बढती प्रवृत्ति ने बचत दर को कम कर किया है। अतः ऐसे उपायों को अपनाना चाहिए एज ऐसी योजनाओ का निर्माण किया जाना लाहिए, जिससे उत्पादक कार्यों में विनियोग की प्रवृत्ति क्ये प्रोत्साहन मिले ये भारत में पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि हो। 

भारत में पूंजी निर्माण की सार्वजनिक उपक्रमों में सुधार-

 भारत के संर्वजनिक उपक्रंमों ने बचत दर पर प्रतिकूल प्रभाव नगण्य ही है। अतः सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्ध, प्रशासन एवं तकनीक में सुधार किया जाना चाहिए, जिससे उपक्रमों को लाभ पर चलाया जा सकें एवं पूँजी निर्माण में वृद्धि हो। 

भारत में पूंजी निर्माण की महँगाई पर नियंत्रण- 

भारत में बढ़ती महँगाई ने लोगों की बचत को समाप्त कर दिया है।. भारत में एक व्यक्ति जितनी आय अर्जित करता है, उसमें से अधिकांश भाग महँगाई की भेंट चढ़ जाता है जिससे बचत हो ही नहीं पाती है। अतः पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि हेतु शासन को चाहिए कि वह महँगाई को नियंत्रण करें। 

भारत में पूंजी निर्माण की नये उद्योगों की स्थापना हेतु प्रोत्साहन- 

नये उद्योगों की स्थापना हेतु प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे नये-नये रोजगार अवसरों का सृजन हो, उत्पादन स्तर में वृद्धि हो लोगों की आय बढ़े व बचत को प्रोत्साहन मिलें। अतः पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि हेतु नये-नये उद्योगों की स्थापना हेतु प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए एवं प्रतिबन्धों को कम करना चाहिए। 

भारत में पूंजी निर्माण की उदारवादी मौद्रिक नीति- 

सरकार की मौद्रिक नीति स्थानीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों को प्रभावित करती है। अतः सरकार की मौद्रिक नीति इस प्रकार की होना चाहिए, जिससे उद्योग धन्धों को प्रोत्साहन मिले। आयात-निर्यात में वृद्धि हो एवं बचत की दर में वृद्धि हो। सरकार की उदारवादी मौद्विक नीति पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करती है। 

भारत में पूंजी निर्माण की परिवहन एवं संचार सुविधाओं का विस्तार- 

परिवहन एवं संचार सुविधाओं का विस्तार . उद्योगों के विकास में सहायक तो होता ही है साथ ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि करता है एवं उत्पादन लागत में कमी करता है, जिससे बचत को बढ़ावा मिलता है। अतः पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि के लिए परिवहन एवं. संचार सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। 

भारत में पूंजी निर्माण की तकनीकी का प्रयोग- 

उच्च तकनीकी का प्रयोग उद्योगों की उत्पादन क्षमता एवं कुशलता में वृद्धि करता है, जिससे उत्पाद॑न में वृद्धि होती है एवं लागतों में कर्मी आती हैं। लागतों में कर्मी आने से लाभ की मात्रा बढ़ जाती है एवं बचत को प्रोत्साहन मिलता है अतः तकनीकी का प्रयोग पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करता है। 

भारत में पूंजी निर्माण की बचत-

बचत से आशयएक व्यक्ति या फर्म द्वारा अपनी मौद्रिक आय में से उपभोग पर व्यय करने के बाद जो राशि बचा ली जाती है, वह बचत कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति या फर्म द्वारा अपनी आय में से उपभोग के पश्चात्‌ बचाया गया भाग ही बचत कहलाता है। 

भारत में पूंजी निर्माण की बचत की दर –

भारते में बचत की दर को सकल राष्ट्रीय आय के प्रतिशत के रूप में निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है | 

 एक वर्ष में सकल बचत की राशि 

    चालू कीमतों पर सकल राष्ट्रीय आय 

भारत में नियोजन काल से अब तक की बचत की दर आर्थिक सर्वे 2001-02 पर आधारित निम्न तालिका से प्रदर्शित किया जा सकता है

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि, नियोजन काल में बचत की दर में दुगुने से भी अधिक की वृद्धि हुई है। नियोजन काल में बचत की दर निरन्तर बढ़ती रही है, किन्तु प्रारम्भ के वर्षों में इसमें तेजी से वृद्धि हुई है। |

 भारत में बचत का अनुमान नियोजन काल में बचत के अनुमान केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा तैयार किये हैं। घरेलू बचत के अनुमान के लिए अर्थव्यवस्था को तीन भागों में बाँटा गया  हैं परिवार क्षेत्र, निगम क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र में विभाजित किया जाता है। परिवार क्षेत्र की बचत दो रूपों में होती है, एक तो भौतिक परिसम्पत्ति के रूप में, जैसे कि परिवार क्षेत्र का कृषि विनिर्माण तथा व्यवसाय में स्थायी विनियोग और इसके द्वारा रखा गया स्टॉक

दूसरा रूप, वित्तीय परिसम्पत्तियों से सम्बन्धित होता है, जैसे कि करेंसी, शुद्ध जमाएँ तथा ऋणपत्र में निवेश, बीमा के प्रीमियम, भविष्य निधि के योगदान तथा अल्प बचत योजनाओं के अन्तर्गत जमा राशियाँ। निगम क्षेत्र के अन्तर्गत निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संयुक्त पूँजी प्रमण्डल तथा पूँजीकृत सहकारी समितियाँ शामिल की जाती हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र में सहकारी क्षेत्र के विभागीय एवं गैर-विभागीय उपक्रम तथा केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के.” प्रशासन शामिल किये जाते हैं। सरकारी प्रशासन की बचतें चालू व्ययों के ऊपर चालू प्राप्तियों का अतिरेक होती हैं। सरकारी उपक्रमों एवं वैधानिक नियम की शुद्ध बचतों का अनुमान उनके वार्षिक खातों के आधार पर लगाया जाता है। 

भारत में इन तीनों क्षेत्रों का योगदान सकल बचतों में चालू बाजार कीमतों पर प्रतिशत के रूप में आर्थिक सर्वे 2001-02 की रिपोर्ट के आधार पर निम्न तालिका में स्पष्ट किया गया है

भारत में पूंजी निर्माण की बचत दर निम्न होने के कारण –

भारत में बचत दर विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा कम है। बचत दर की तालिका से स्पष्ट होता है क़िं बचत दर निरन्तर बढ़ती जा रही है, परन्तु यह बचत दर उस अनुपात में नहीं बढ़ी है, जिस अनुपात में भारत की बचत दर को सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु होना चाहिए था। भारत में बचत दर निम्न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

भारत में पूंजी निर्माण की बढ़ता भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी-

 भारत में विभिन क्षेत्रों में बढ़ते भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी ने भारत की बचत दर को निम्न किया है। भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी के कारण वस्तु एवं सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती है, जिससे व्यक्ति की आय का बड़ा भाग व्यय हो जाता है एवं बचत करने के लिए उसके पास कुछ नहीं बचता। 

भारत में पूंजी निर्माण की अनुत्पादक व्ययों में वृद्धि– 

दिखावे की बढ़ती प्रवृत्ति ने वर्तमान में अनुत्पादक व्ययों में बेहताशा वृद्धि कर दी है, जिससे आय का एक बड़ा भाग आवश्यक वस्तुओं के पश्चात्‌ अनुत्पादक व्ययों में खर्च कर दिया जाता है, जिससे बचत नगण्य हो जाती है। 

आय की नीची दर-

 भारत में आज भी लगभग आधे से अधिक जनसंख्या गरीबी के स्तर पर है। अधिकांश व्यक्ति केबल अपनी रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं को क्रय करने जितना ही कमा पाते हैं। आय की यही नीची दर बचत करने के अवसर ही नहीं देती जिससे बचत दर कम हो जाती है। 

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की असफलता- 

भारत के सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों की असफलता ने बचत की दर पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। सार्वजनिक उपक्रमों का हानि में चलना बचत के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है। जब लाभ ही नहीं होगा तो बचत का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता। अतः भारत में बचत दर को नीची करने में सार्वजनिक उपक्रमों की अहम्‌ भूमिका रही है।

 वित्त सुविधाओं की कर्मी- 

भारत में उद्योगों के विस्तार एवं नये-नये उद्योगों की स्थापना हेतु वित्त सुविधाओं का अभाव है। पहले ही बचत की दर नीची है एवं वित्त सुविधाओं की अपर्याप्तता ने इस दर को ओर नीचे कर दिया है ।-वित्त सुविधाओं की कर्मी से बचतें करने हेतु प्रोत्साहन नहीं मिलता है। 

उत्पादन का निम्न स्तर-

 भारत में संसाधनों की कर्मी नहीं है। संसाधन की दृष्टि से भारत एक धनी राष्ट्र है| परन्तु यहाँ पारम्परिक उत्पादन प्रणाली के प्रयोगों ने उत्पादन स्तर को निम्न रखा है साथ ही लागतों में वृद्धि की है, जिससे बचतें हतोत्साति हुई है। . 

असंतुलित विकास- 

भारत में विकास की योजनाओं ने उतनी सफलता अर्जित नहीं की जितनी उनसे अपेक्षाएँ थी। विकास की दीषपूर्ण नीतियों ने असंतुलित विकास को बढ़ाया, जिससे भारत के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का योगदान नहीं मिल पाया है। असंतुलित विकास के कारण योजनाओं का व्यय तो बढ़ा है पर लाभ कम हुए है, जिससे बचत दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 

बचत के प्रति लगाव न होना- 

भारत में व्यक्ति बचत के प्रति उतना जागरूक नहीं है जितना कि एक विकासशील राष्ट्र के नागरिक को होना चाहिए। गरीबी एवं अशिक्षा के कारण बचत के प्रति लगभग 65% जनसंख्या बचत के लारभों से परिचित नहीं हैं इस कारण बचत में उनका योगदान भी नगण्य है। अत: बचत के प्रति लगाब न होना भी भारत में नीची बचत वर का एक बड़ा कारण है। 

महँगाई- 

भारत में महँगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिस गति से महँगाई ने विकराल रूप धारण किया है उसके अनुपात में लोगों की आय बहुत ही कम बढ़ी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों की आय उनकी आवश्यकता की वस्तुओं को महंगे दामों में क्रय करने में खर्च हो जाती है एवं षचत के लिए उनके पास कुछ नहीं बचता |  

दोषपूर्ण कर प्रणाली- 

भारत की दोषपूर्ण कर प्रणाली ने अमीर लोगों को कर चोरी हेतु धोत्साहिते किया है, जिससे सरकार के राजस्व में कमि आई है और बचतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 

भारत में बचत दर में वृद्धि हेतु उपाय-

भारत में बचत दर पर वृद्धि हेतु उपाय किये जाने चाहिए-

बचतों को प्रोत्साहन-

 भारत में बचत दर में वृद्धि हेतु आम जन करे बचत को  लाभ  से अवगत  करा कर उन्हें बचतों के प्रति प्रोत्साहित किया जाया चाहिए। छोटी-छोटी बचते  एक बड़ी बचत कर रूप धारण कर सकती है एवं बचत दर में वृद्धि कर सकती है। 

संतुलित व स्थवस्थित कर प्रणाली – 

भारत  में कर प्रणाली इस प्रकर होनी चाहिए, जिससे अमीर कर चोरी हेतु प्रोत्साहित न हो एव गरीबो  पर कम से कम कर भर पड़े जिससे वे बचत करने मे सक्षम  हो सके। ऐसी संतुलित ब व्यवस्थित कर प्रणाली बचतो  को बढाने में सहायक होनी ॥ 

महगाई पर नियंत्रण – 

बढ़ती महँगाई ने  दिन-दिन लोगो  की बचत क्षमता का  हास्य किया है, अतः सरकार क्यो ऐसे उपाय करने चाहिए, जिससे महगाई  को नियंत्रित  किया जा  सके एवं लोगो  को  मूत्य पर उत्तम वस्तुएँ प्राप्त  हो जिससे वे बचत करने में सक्षम  हो सके ॥

उत्पादक  व्ययों में वृद्धि- 

अनुत्पादक व्ययों   में कमी करना चाहिए एवं उत्पादन बायो में वृद्धि की जाना चाहिए जिससे उत्पादन में वृद्धि हो लागत में कमी आए एवं बचतो को प्रोत्साहन मिले उत्पादक देशों में वृद्धि बचत में वृद्धि करती है

सार्वजनिक उपक्रमों में सुधार- 

सार्वजनिक उपक्रमों का हानि  में चलना बचतो को कम करता है अतः सार्वजनिक उपक्रमों में प्रबंध प्रशासन एवं तकनीकी में परिवर्तन कर उन्हें लाभदायक बनाया जाना चाहिए जिससे क्षेत्र की दर में वृद्धि हो

संतुलित विकास की नीति- 

भारत में क्षेत्रवाद विकास की अपेक्षा संतुलित विकास की नीति अपनाना चाहिए इससे उत्पादन में वृद्धि होती है एवं लगाते कम होती हैं जिससे लाभ की मात्रा में वृद्धि होती है एवं वस्त्रों में प्रोत्साहन मिलता है

उच्च तकनीकी का प्रयोग – 

भारत में उत्पादर दृद्धि हेतु उच्य त्डरोजते के जो प्त कत्र दिया जाना चाहिए। उच्च तकनीदी के प्रयोग से उत्पादर बर्च है। गेजणर के अचस्खें दे दृद्धि हेजे है एवं लागतें घटती है, जिससे लाभ बढ़ता है एवं बचत वी सम्पस्स दस्त है॥

वित्तीव संस्थाओं का विश्वास- 

हस्त में दितौय संस्दपज्ये कय उरभर्ण बचत यृद्धि के बहत्क है। अतः भारत में क्तीय संस्थाओं कय दिस्‍सस किश जप्स च’हिए, जिससे रक्त के शक करण में शज्े आए एवं वितियोगों को प्रोत्साहन मिलें। बचत दर में दृद्धि हेतु जित्श संस्ुपले का व्ल्किप्स ऊत्यम्श आवस्वक है। | – 

भ्रष्टाचार पर नियंत्रण-

 व्याप्त भ्रष्टाचार के बचत यह असल है॥ धारक सरकार को भ्रष्टाचार कर पूर्वद, अंकुश सगारा च”हिए, जिससे जम्पपपोरी थे कज्सत्कपक्रो रूझे का महँगाई कम हो, जिससे लोगों की बचत हेतु क्षमता में वृद्धि हे। भष्टायार स्टिक््ण से शणल श्र के शुद्धि अवश्य होगी। उचित मौदिक विधि  भारत शासर की दे”ट्रिक रवि एस अकज होख आल, जिरखे महँगाई न बढ़े एवं उद्योगों के दिस्तार को बड़ाया दिसरें।

इससे रोजफर के अत्वस्रों थे दृद्धि होप्के है श्थ प्रतिव्यक्ति आब एवं बचत बढ़ती है। अत उचित फह्िक र”ति की सर॑त्त से पते बलल श्र के इडि की जा सकती है। 

महत्वपूर्ण तथ्य

पूजी निर्माण के दो प्रकार या रूप होते हैं

  1.  सकल पूँजी निर्माण एवं
  2. शुद्ध पूँजी निर्माण
  • पूँजी निर्माण से आशय पूँजी निर्माण का आशय उन समस्त भौतिक एवं अभौतिक तत्वों से होता है, 
  •  पूँजी निर्माण जब किसी राष्ट्र की सीमाओं में एक निर्धारित अवधि में जितनी भी पूँजी यत वस्तुएँ निर्मित होती है तो उनका कुल योग सकल पूँजी निर्माण कहलाता है । 
  • शुद्ध पूँजी निर्माण जब किसी राष्ट्र की सकल पूँजी निमणि में से उस अवधि में होने वाला हास घटा देते हैं तो शेष को शुद्ध पूँजी निर्माण कहा जाता है ।
  • पूँजी निर्माण की प्रक्रिया पूँजी निर्माण की प्रक्रिया निम्न तीन अवस्थाओं में चलती है
  • वास्तविक बचत का निर्माण 
  • बचतों का एकत्रीकरण  
  • बचत का विनियोग 

 

पूँजी निर्माण के घरेलू साधन –

  • पारिवारिक क्षेत्र की बचतें 
  • सरकारी क्षेत्र की बचतें 
  •  नियम क्षेत्र की बचतें। 

पूँजी निर्माण के विदेशी साधन-

  • पूँजी हस्तांतरण 
  •  शुद्ध ऋण । 

बचत से आशय- 

एक व्यक्ति या फर्म द्वारा अपनी मौद्रिक आय में से उपभोग पर व्यय करने के बाद जो राशि बचा ली जाती है, वह बचत कहलाती है। 

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

  1. भारतीय रिजर्व बैंक …………. के आधार पर पूँजी निर्माण का आकलन करता है। 
  2. व्यक्ति या फर्म द्वारा अपनी आय में से उपभोग पश्चात्‌ बचाया गया भाग ……… कहलाता है। 
  3. सकल पूँजी निर्माण – …….:.:..:: शुद्ध पूँजी निर्माण । 
  4. सरकारी क्षेत्र की नचतें पूँजी निर्माण के …………. साधन है। 
  5. पूँजी निर्माण की प्रक्रिया ……… …… अवस्थाओं में चलती है। 

 

उत्तर -घरेलू नचतों (2) बचत (3) हास (4) घरेलू (5) तीन। सही विकलय का चयन कीजिए

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