प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना,शासन व्यवस्था की स्थापना में संविधान की आवश्यकता,भारतीय संविधान के निर्माण हेतु संविधान सभा का गठन,भारतीय संविधान की माँग,भारतीय प्रशासन से संबंधित सुझाव,संविधान सभा के गठन हेतु सुझाव के वारे में बात करेंगे |
“वे सभी नियम जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी राज्य की संप्रभुता के विभाजन अथवा प्रयोग को प्रभावित करते हैं, संविधान कहलाते हैं।”
-डायसी
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना में संविधान की आवश्यकता
कभी आपने सृष्टि कौ गतिविधि का सूक्ष्मता से अवलोकन किया है। इसकी हर रचना एकनिश्चित नियम के तहत संचालित होती दिखायी पड़ेगी। इसी तरह प्रत्येक राज्य में उसकी जीवन पद्धति अर्थात् शासन: संचालन के लिये सदैव ही किसी-न-किसी रूप में कुछ-न-कुछ नियमों का अस्तित्व अवश्य रहा है इसे ही संविधान कहा गया हैं| अरस्तू ने लिखा है, “संविधान उस पद्धति का प्रतीक है जो किसी राज्य द्वारा अपने नियमन के लिये बनायी जाती है ।
राज्य का स्वरूप कोई भी हो, उसे अपने अंगों (राजनीतिक संस्थाओं) व उसके कर्णधारों की भूमिका निर्धारित एवं सुनिश्चित करने के लिए कुछं-न-कुछ नियमों को अंगीकार करना ही पड़ता है। आधुनिक समय में राज्य की शासन व्यवस्था को वैज्ञानिक ढंग से गठित करने के लिए उसके अंगों के मध्य शक्तियों और कर्तव्यों का उचित एवं निश्चित मूल्यांकन करने के लिए एक समिति का विधिवत गठन किया जाता है।
भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना
उसके द्वारा प्रत्येक नियम के पक्ष एवं विपक्षीय गुणों का विश्लेषण कर लिपिबद्ध किया जाता है जो संसद द्वारा स्वीकृत होने पर संविधान का स्वरूप धारण करता है। इस विधि संहिता के अभाव में राज्य बिना नींद के भवन के समान कभी भी ताश के पत्ते के महल के रूप में ढूंढ सकता है। इस स्थिति में जैसीनेक के शब्दों में, संविधान विहीन राज्य ना होकर अराजकता की एक व्यवस्था होगी , इसीलिए संविधान की आवश्यकता प्रत्येक राज्य के लिये निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण मानी जाती है-
भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना के लिए
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- शासन को सुव्यवस्थित बनाये रखने के लिए संविधान आवश्यक है ।
- शासन के तीन प्रमुख अंग-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के स्पष्ट कार्य क्षेत्र का सीमांकन किये जाने के लिये आवश्यक है।
- सरकार के कार्यों पर अंकुश रखने और नीति के अनुरूप कार्य करने की बाध्यता दर्शाने के लिए संविधान आवश्यक है
- राज्य के नागरिकों को शासन प्रणाली से अवगत कराने और उन्हें अपने अधिकारों व कर्तव्यों का बोध कराने हेतु संविधान की आवश्यकता होती है
- नागरिक के मौलिक अधिकारों के संरक्षण और न्यायालय की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता बनाये रखने के लिये संविधान का होना आवश्यक है,
- समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिये राज्य और नागरिकों के मध्य संबंधों के निर्धारण के किए धान आवश्यंक माना गया है।
निष्कर्ष मैं-संविधान शासकीय आचरण से संबंधित उन समस्त विधियों, नियमों, उपनियमों, लोकाचारों, अभिसमयों (Conventions) की संहिता है, जिनके द्वारा शासन के विभिन्न अंगों के संगठन और इनके पारस्परिक संबंधों के निर्धारण के साथ-ही-साथ व्यक्ति और व्यक्ति तथा राज्य और व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों का निर्धारण होता है।
पूर्व में संविधान अलिखित होते थे, जिनमें समय एवं परिस्थिति के अनुसार जन भावना को ध्यान में रखते हुए प्रथायें, परम्पराओ और अभिसमयों के रूप में राज्य को दिशा दर्शन कराते थे। समय के साथ संविधान की आवश्यकता बढ़ती गयी और यह लिखित संविधान के रूप में विकसित व निर्मित होने लगा। भारत का लिखित एवं निर्मित संविधान है जो एक संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया।
भारत की स्वतंत्रता राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रतिफल है। इस आन्दोलन की मुख्य धरोहर, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पद्धति के प्रति आस्था, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, जनमत का सम्मान तथा सर्व सहमति से व्यवस्था के द्वारा संघीय शासन व्यवस्था को महत्व आदि है |