मध्य पाषाण काल

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मध्य पाषाण काल

मध्य पाषाण काल समय-

पुरापाषाण काल एवं नवपाषाण काल के मध्य का समय मध्य पाषाण काल कहलाता है यह काल लगभग 15000 से 10000 ई. पूर्व तक रहा। इस काल के अवशेष छोटा नागपुर, पंजाब, मध्य भारत, गुजरात और कृष्णा नदी के दक्षिणी क्षेत्र में मिले हैं। मध्यपाषाण कालीन मानव पहाड़ी गुफाओं में, झरनों, नदियों तथा झीलों के तटों में टहनियों और पत्तों से झोपडियाँ बनाकर रहने लगे थे। वे छोटे-बड़े समूहों में भी रहते थे।

वनों से प्राप्त कन्दमूल एवं फल, आखेट से मारे गये पशु-पक्षियों के मांस, झीलों एवं नदियों से प्राप्त मछलियाँ उनकी भोजन सामग्री थी। इस काल के हथियार एवं औजार पूर्व की अपेक्षा सुघ्चड़ और सुन्दर थे। इनमें फरसा, बाण, भाला एवं हथौडी, काटने, छीलने एवं तराशने के औजार शामिल थे। मध्यपाषाण काल के प्राप्त भित्तिचित्रों एवं शैलचित्रों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि इस युग के लोग जादू टोने जैसे किसी तरह के धार्मिक कृत्य करते थे। इन लोगों ने शवों को दफनाना आरभ कर दिया था।

मध्य पाषाण काल की विशेषताएँ-

मध्य पाषाण काल निवास-

इस काल में मानव, समूहों से शैलाश्रयों में स्थायी निवास करने लगा था। इन समूहों में बच्चे, महिलः व पुरुष होते थे। वे नदी, झीलों व झरनों के तटों पर पत्तों की झोपड़ियों में भी रहने लगे थे। गुफाओं में शायद वे अधिक निवास करते रहे होंगे।

मध्य पाषाण काल औजार व हथियार-

इस काल के औजार पूर्व काल के औजारों से अति सूक्ष्म किन्तु कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ थे। औजारों के निर्माण व आकृति से ही युग विभाजन किया जा सका। औजारों में अब चकमक पत्थर भी उपयोग में लाया जा रहा था। उनके औजार आकार में छोटे, सुन्दर और सुडौल होते थे। इस काल में धारदार तथा नुकीले औजारों का विशेष प्रचलन था जो भालों और तीरों के अग्रभाग के रूप में उपयोग किया जाता था। औजारों में भाला, हथौड़ा, फरसा, गँडासा, कुल्हाड़ी आदि का प्रयोग किया जाता था।

मध्य पाषाण काल भोजन सामग्री-

वनों से प्राप्त होने वाले कन्द-मूल, फल के अतिरिक्त शिकार किये गये जानवरों के मांस से वे अपनी जिंजीविषा की पूर्ति करते थे। इसके साथ ही मछली भी खाकर अपनी भूख मिटाते थे।

मध्य पाषाण काल सामाजिक जीवन-

इस काल में मानव समूह कृषि, पशुपालन से अनभिज्ञ था, किन्तु कुछ जानवरों से वह परिचित हो गया था, जिनमें मछली, मगर, कुत्ता, बैल, घोड़ा, गाय आदि प्रमुख हैं । इस समय लोग व्यवसाय व मनोरंजन के रूप में शिकार करते थे। | सम्भवतया वे चकमक पत्थर की प्राप्ति से अग्नि से परिचित हो चुके थे, किन्तु प्रमाण अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। गुफाओं में जहाँ पर वे रहते थे, अपनी दैनंदिनी की कुछ यादगार घटना को रेखांकित अवश्य करते थे

मध्य पाषाण काल धार्मिक भावना-

पुरातत्ववेत्ताओं की मान्यता है कि इस काल नें मानव कुछ धार्मिक विश्वास जैसे जादू-टोना आदि सीख रहा था। मृत व्यक्ति के शव को अब गाड़ने (दफनाने) की परम्परा शुरू हो चुकी थी। मृत व्यक्ति को बैठे हुए मुद्रा में दफना दिया जाता शव तथा औजार और खाद्य सामग्री रखना किसी धार्मिक कर्म की ओर प्रवृत्त करते हैं।

मध्य पाषाण काल अवशेष-

मध्य पाषाण काल के अवशेष- राजस्थान प्रांत के बागोर में, कृष्णा नदी के दक्षिण में, पूर्वी | भारत, दक्षिणी उ. प्र. तथा मध्य प्रदेश में पाये जाते है। अभी इस क्रम में पुरातत्वदताओं द्वारा अन्य स्थानों पर भी सघन उत्खनन कार्य जारी है।

मध्य पाषाण काल  –

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