वाहित मल उपचार की विधियां एवं उनके प्रकार एवं उपचार कक्षा 9वीं, Methods and types of sewage treatment, their treatment and class 9th, mp board, 2024

वाहित मल उपचार की विधियां एवं उनके प्रकार एवं उपचार कक्षा 9वीं, Methods and types of sewage treatment, their treatment and class 9th, mp board, 2024

वाहित मल उपचार की विधियां

वाहित मल का भौतिक उपचारः-

वाहित मल उपचार की विधियां एवं उनके प्रकार एवं उपचार वाहित मल में मिले कूड़े करकट को छानकर पृथक कर दिया जाता है। शेष वाहित मल को क्लोरीन गैस द्वारा उपचारित करके जलाशयों में छोड़ दिया जाता है । 

वाहित मल का सेप्टिक टैंक द्वारा जैवीय उपचार :-

 शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन की सतह से नीचे सेप्टिक टैंक बनाया जाता हैं। ऊपरी पदार्थों पर सूक्ष्म जीवों की क्रिया होती है जिससे तरल पदार्थ व गैसें बनती है। तरल पदार्थ पाईप के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं व गैसे वायुमण्डल में मिल जाती हैं।

अपशिष्टों की गलत या अवैध डंपिंग से ड्रेनेज तंत्र प्रभावित होता है जिससे नालियाँ अवरूद्ध हो जाती हैं तथा पानी रूकने से नालियों का पानी सड़कों पर आ जाता है जिससे बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है।

इसलिए ड्रेनेज तंत्र की नियमित सफाई होनी चाहिए, बिना स्वीकृति वाले कनेक्शन पर रोक लगनी चाहिए तथा अवैध डंपिंग को नियंत्रित करना होगा तभी ड्रेनेज सुविधा का हम लाभ उठा सकते हैं। 

अपशिष्ट प्रबंध की भारतीय शैली :- 

यह सर्वविदित है कि अपशिष्ट पदार्थ एवं इनके कारण होने वाली हानियाँ आधुनिक जीवन शैली की देन हैं। भारतीय जीवन शैली में अपशिष्ट पदार्थ अत्यंत कम मात्रा में निकलते हैं तथा ये पदार्थ सरलता से अपघटित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न उत्सवों एवं सामूहिक कार्यक्रमों के दौरान हमारे यहाँ दोने- पत्तलों में भोजन करने की परम्परा है। इस प्रक्रिया में अपशिष्ट पदार्थ कम निकलते हैं तथा अपघटन योग्य होते है। इनका पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। 

इन सबके विपरीत पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने के कारण उत्सवों के दौरान निकलने वाले ( प्लास्टिक एवं थर्मोकोल ) अपशिष्टों की मात्रा भी अधिक होती है एवं पर्यावरण पर इनका प्रभाव घातक होता है। अतः जीवन शैली का आधार भारतीय होने पर अपशिष्टों की समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। 

क्या आप जानते हैं 

  1. पॉलीथीन की पत्नियों को खाने से प्रतिदिन औसत 5 गायों की मौत हो रही है। 
  2. भारत में लगभग 15 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट का उत्पादन प्रतिदिन होता है। 
  3. एक टन शहरी कचरे से लगभग 900 घनमीटर जैविक गैस (बायोगैस) बन सकती है। कस्बों की तुलना में शहरों में ठोस अपशिष्टों का उत्पादन पांच गुना ज्यादा होता है। मूत्रालयों से आने वाली तीखी गंध, अमोनिया गैस की होती है। 

इन प्रश्नों के उत्तर स्वंय खीजिए? 

प्रश्न 1 अपशिष्ट उत्पादन के प्रमुख स्त्रोत कौन-कौन से हैं? 

प्रश्न 2 अपशिष्ट कितने प्रकार के होते हैं? 

प्रश्न 3 अपशिष्टों का प्रबंधन क्यों आवश्यक है? 

अपशिष्ट पदार्थों के संग्रह का पारिस्थितिक संतुलन पर प्रभाव –

अपशिष्ट पदार्थ चाहे औद्यौगिक हों या घरेलू उसका उचित निपटान अत्यंत आवश्यक है। अपशिष्ट पदार्थ के उचित निपटान न होने से वे पारिस्थिक तंत्र को प्रभावित करते हैं । यदि अपशिष्ट पर्दाथों का उचित निपटान न किया जावे तो वे संग्रहित होकर पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।

अपशिष्ट पर्दार्थों में विशेषतः औद्योगिक अपशिष्ट में कई प्रकार के रासायनिक तत्व या तो पहले से मौजूद होते हैं या वे वातावरण से क्रिया कर ऐसे यौगिक, गैसों में परिवर्तित हो जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं । 

अपशिष्ट पदार्थों का किसी स्थान पर संग्रहण व गैर जिम्मेदारी पूर्ण भंडारण से जहरीले रासायनिक पदार्थ भूमि में एकत्र होकर भूजल को भी प्रदूषित करते हैं । अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के वैधानिक प्रावधान अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के वैधानिक प्रावधान उद्योगों के अतिरिक्त नगरों में स्थित विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों, अस्पतालों एवं घरों से ठोस कचरा निकलता है।

यदि इस कचरे का उचित निपटान न किया जावे, तो वह मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है । भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने नगरों में उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे के प्रबंधन एवं निपटान के लिए कई वैधानिक प्रावधान किये हैं । 

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत मंत्रालय ने नगरीय अपशिष्ट प्रबंधन एवं हाथलन नियम सन 2000 बनाये हैं। देश के समस्त नगरीय निकायों को ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिए इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इन नियमों के तहत प्रत्येक नगर निकाय को यह ध्यान रखना आवश्यक है, कि किसी भी स्थिति में नगरीय ठोस अपशिष्ट, औद्योगिक या अस्पतालो से निकलने वाले अपशिष्ट में न मिले।

प्रत्येक नगरीय निकाय को ठोस अपशिष्ट के इकट्ठा करने, कचरे के निपटान के लिए उचित स्थल का विकास करना, ठोस अपशिष्ट को निपटान स्थल तक पहुँचाने एवं निपटान की व्यवस्था करना अनिवार्य बनाया गया है।

नगरीय अपशिष्ट प्रबंधन एवं हाथलन नियम 2000 के तहत नगरीय निकायों को विभिन्न अनुमतियाँ प्रदान करने एवं निगरानी रखने का कार्य केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंपा गया है। जिले के कलेक्टर उनके अधिकार क्षेत्र में नगरीय अपशिष्ट प्रबंधन एवं हाथलन नियम 2000 के प्रत्यावर्तन के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं ।

 अपशिष्ट पदार्थों को कम करना, पुन: उपयोग एवं पुनःचक्रण :-  

 अशिष्टों का पयावरणीय प्रबंधन आज काफी महत्वपूर्ण समस्या है। ये ठोस अपशिष्ट दो प्रकार के होते हैं। 

  •  जैव अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ 
  • पुनः चक्रीकरण योग्य अपशिष्ट 

जैव अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ :- 

बायोगैस संयंत्र 

 अपशिष्ट पदार्थों का पुनः चक्रण :-

“किसी वस्तु को पुनः उपयोगी बनाना ही पुनः चक्रण कहलाता है।” पुनः चक्रण के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं कागज की पुनः लुगदी बनाई जा सकती है। कपड़ों का उपयोग झाड़न, मशीनरी वाइपर इत्यादि बनाने में किया जा सकता है।  धातुओं को गलाकर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। कारखानों से निकली राख व धूल से ईंटें बनाई जा सकती हैं। पॉलीथीन एवं प्लास्टिक को पुनः चक्रित करके हल्के किस्म का प्लास्टिक बनाया जा सकता टूटे हुए कांच का उपयोग अपघर्षी कागज (Sand paper) में किया जा सकता है। 

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