प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे संचार सामाजिक अधोंसंरचना,संचार का अर्थ,संचार के साधन,डाकघर का महत्व के वारे में बात करेंगे |
संचार सामाजिक अधोंसंरचना
संचार सामाजिक अधोंसंरचना भूमिका सूचना तकनीक एक नवीनतम सेवा क्षेत्र है औद्योगिक विकास व व्यापार क्षेत्र में इसका उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। डाक सेवा के साधनों में समय लगता था। अब इन्टरनेट सेवा से कम से कम समय में सूचना एक स्थानसे दूसरे स्थान तक पहुँचना सम्भव हो गया है। यह क्षेत्र और विकसित होते जा रहा है।
संचार का अर्थ-
संचार का अर्थ है कि सूचनाओं को यथा स्थान और यथा व्यक्ति तक समय से पहुँचाने का उपक्रम करना। संचार सूत्रों के माध्यम से सूचनाएँ, जानकारियाँ आदि एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचाए जाते हैं।
संचार साधनों के कारण ही विश्व के दूर-दूर कोनों में घटने वाली घटनाएँ इतनी जल्दी रेडियो और अखबारों एवं टेलीविजन में आ जाती हैं। आज वायरलैस द्वारा एक सैकण्ड में संदेश भेजा जा सकता है| संचार के आधुनिक साधनों द्वारा यह सम्भव है कि विदेशों में होने वाली घटना का पता हमें कुछ ही समय में लग जाता है।
आज दूर-दूर तक सूचना का आदान-प्रदान करना आसान है। अतः एक स्थान से दूसरे स्थान पर संदेश भेजना संचार कहलाता है। इसके कई साधन हैं जैसे डाक, तार, टेलीफोन, फैक्स, समाचार पत्र, टेलीविजन उपग्रह, इन्टरनेट आदि। इन साधनों से किसी भी व्यक्ति के लिए यह सम्भव हो जाता है कि वह आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करे।
संचार के साधन –
संचार के महत्वपूर्ण साधनों का वर्णन निम्नलिखित हैं-
डाक सेवा-
संचार साधर्नों में डाक सेवा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आधुनिक डाक सेवा भारत में 1938 में प्रारम्भ की गई थी। 1951 में 22,116 डाकघर थे। आज इनकी संख्या 1,50,346 से अधिक गई है। स्पीड पोस्ट सेवा, मनीऑर्डर सेवा, सेविंग बैंक आदि के द्वारा पोस्ट ऑफिस नगरी और ग्रामीण क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थान है।
वर्ष 1991 से 1999 के बीच पोस्ट ऑफिसों के माध्यम से 1,149 करोड़ रुपयों क़ी बचतें हो सकीं। हाल ही के वर्षों में टेलीफोन सेवा वृद्धि से डाक बितरण के भार में कुछ कमी आई है। तार सेवा की भी यही स्थिति बन गयी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत में डाक सेवाओं का विस्तार काफी तेजी से हुआ है।
भारत में औसतन 6 हजार लोगों के पीछे एक डाकघर है। औसतन 21.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक डाकघर है। अब डाक प्रणाली का रूप भी आधुनिक होता जा रहा है। भारत में डाक सूचक अंक यानि पिनकोड सेवा वर्ष 1972 में शुरू की गई ताकि डाक तेजी से पहुँचे
द्रुत डाक या स्पीड पोस्ट-
सेवा 1 अगस्त 1988 में शुरू की गई। इस सेवा में एक निश्चित समयावधि के अन्दर डाक को पहुँचा दिया जाता है, अन्यथा पूरा डाक व्यय वापिस हो जाता है। यह सेवा देश के 67 बड़े शहरों में उपलब्ध है। डाक प्रणाली में डाकघड़ों के चार वर्ग हैं प्रधान डाकघर, उप-प्रधान डाकघर, अतिगक विभागीय उप-डाकघर और अतिरिक्त विभागीय शाखा डाकघर | उद्योगों, जनसंख्या और साक्षता की ,, में वृद्धि के साथ-साथ डाक की मात्रा भी बढ़ रही है। देश में डक प्रणाली के फैलाब के कारण उन दर दा इलाकों में भी संदेश पहुँचाना सम्भव हो पाया है। जहाँ टेलीफोन या संचार के अन्य साधन नहीं पहुँ पाए हैं।
डाकघर हमारे दैनिक डीवन का विभिन्न अंग बन गया है। व्यावसायिक जगत के लिए तो की सेवाएं अपरिहार्य सी है। व्यापार, उद्योग, वाणिज्य, व्यवसाय तथा विविध सेवा क्षेत्रों में । जीवन पंगु हो जाता है। भारत में डाक विभाग की स्थापना सन् 1855 में हुई। तभी से यह निरन्तर महत्वपूर्ण सेवाएँ कर रहा है। वर्तमान में यह विभाग केन्द्रीय सरकार संचार मंत्रालय के अधीन है। जैसे-जैसे व्यवत्ता। का विकास तथा विस्तार होता जाता है, डाकधर की महत्ता एवं उपादेयता भी बढ़ती जाती है।
डाकघर का महत्व –
डाकघर के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-
समाचार-
प्रेषण डाकघर द्वारा सामान्य जनता तथा व्यावसायिक जगत के समाचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाये जाते हैं। पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय, लिफाफे, रजिस्ट्री, पार्सल, वी.पी.पी., बीमा, बुकपोस्ट पैकेट आदि के माध्यम से समाचार, वस्तुएँ, व्यावसायिक पत्र, रेलवे रसीद, आर्डर, बिल आदि का प्रेषण करना डाकघर की बहुमूल्य.सेवा है जो दिन-रात चलती रहती है।
शीघ्र संचार सेवा-
डाकघर ने शीघ्र संचार की सुविधाएं प्रदान कर, सारे विश्व को एक बाजार एवं परिवार का स्वरूप दे दिया है। टेलीफोन, तार, टेलेक्स, फेक्स, टेलीविजन आदि के जाये व्यावसायिक जगत में विश्व के किसी भी कोने में स्थित कार्यालय से या व्यक्ति से कुछ ही क्षणों में सम्पर्क हो जाना कल्पनातीत उपलब्धि है। ‘
बैंकिंग सेवा-
डाकघर द्वारा प्रदान की जाने वाली बैंकिंग सेवा का भी अपना महत्व है। जनता से छोटी-छोटी बचत एकत्र कर देश के आर्थिक विकास की योजनाओं (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, इंदिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र, बचत खाते, मासिक आय योजना इत्यादि) को लागू करके डाकघर द्वारा बचतों के गतिशीलन तथा पूँजी निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया गया है।
धन प्रेषण सेवा-
डाकघर द्वारा मनीऑर्डर, पोस्टल ऑर्डर, बीमा, टिकट आदि के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक धन भेजने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया जाता है।
व्यापार सेवा-
डाक द्वारा व्यापार के संचालन से डाकघर व्यावसायिक जगत की बहुमूल्य सेवा करता है।
अन्य सामान्य कार्य –
उपर्युक्त बातों के अलावा डाकघर द्वारा कई प्रकार की सामान्य सेवाएँ भी की जाती हैं। जैसे परिचय पत्र जारी करना, पोस्ट बॉक्स तथा पोस्ट बैग की सुविधा देना खिड़की पर सुपुर्दी सेवा, वायरलेस आदि के लायसेंस जारी करना आदि।
दूर संचार-
डाक की तुलना में दूर संचार अधिक तेज गति के कारण ज्यादा प्रभावशाली प्रणाली है। मान लीजिए, आप बैंगलोर में चल रहे किसी क्रिकेट मैच की प्रगति के बारे में सूचना अपने बैंगलोर में रह रहे मित्र से ले सकते हैं, लेकिन इस प्रकार की सूचना से आपको कोई आनंद नहीं मिलेगा। यदि आप टी.वी के सामने बैठकर मैच को देखें तो आपको प्रत्येक क्षण का आनन्द मिलेगा।
इसी प्रकार यदि आप कहीं दूँ होस्टल पर रह हैं और किसी अचानक आई आवश्यकता के कारण अपने माता-पिता से पैसा मंगवार्नी चाहते हैं, तो आप ऐसा संदेश टेलीफोन द्वारा भेजना पसन्द करेंगे न कि डाक द्वारा, क्योंकि डाक द्वार ध्षंदेश प्रदान करने में समय लगता है। दूर संचार केवल मनोरंजन और आपात स्थिति के लिए ही न होकर व्यवसाय, व्यापार औ बणिज्य कार्यों का एक अभिन्न अंग बन चुका है।
मान लीजिए, दिल्ली का कोई व्यापारी लदन के व्यापार को निर्यात करना चाहता है लंदन के व्यापारी को वस्तुओं के बारे में जानकारी चाहिए। यदि यह चना उसे पत्र द्वारा दी जाए तो यह सूचना उस तक पहुँचने में कम से कम एक सप्ताह तो लग ही जाएगा | सम्भव है कि इस दौरान वह व्यापारी अपना ऑर्डर ही खो बैठे। इससे बचने के लिए वह सूचना टाइप करेगा और उसे फैक्स मशीन द्वारा भेज देगा या मेल कर देगा । इससे उसे शीघ्र सूचना प्राप्त होगी। दूर संचार मैं इसी प्रकार के आधुनिक और शीघ्र संचार माध्यम आते हैं।
टेलीफोन सेवा-
6,07,491 ग्रामों में से 4,28,214 गाँवों में टेलीफोन सेवा उपलब्ध कराई जा सकी है। चलित फोन 5.5 मिलियन की संख्या को पार कर चुके हैं। पी.सी.ओ., एस.टी.डी. और आई.एस.डी. सेवाओं के विस्तार से व्यापार तथा सूचना क्षेत्र में एक प्रकार से क्रांति आ गई है। निरन्तर विस्तार यथा अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को देखते हुए भारत सरकार ने एक सुनिश्चित टेलीफोन नीति बनाई है।
- लम्बी दूरी की राष्ट्रीय सेवा को खुला बना दिया गया।
- प्रतिबन्ध नहीं रखे गये। निजी टेलीफोन संचालकों से अनुबन्ध किये गये हैं।
- सेल्यूलर फोन सेवा के संचालकों को लायसेन्स दिए गए हैं।
- नगरी क्षेत्र में टेलीफोन लाइन देने के लिए बेतार पद्धति अपनाई गई है।
- ग्रामीण टेलीफोन सेवा में भारी मात्रा में विनिवेश किया गया है।
- वैश्वीकरण के अन्तर्गत निजी फोन सेवा के लायसेंस का अन्तिम रूप दे दिया गया है।
- डिजीटल तकनीक व्यली चलित सेवा को नवम्बर 2001 से नये लायसेंस दिए गए और राष्ट्रीय इन्टरनेट बेकबोन चालू किया गया है।
- लम्बी दूरी के मोबाइल फोन सेवा की शर्तों को सरल बनाया गया है।
- विश्वीय सेवा शर्तों के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों को भी अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्रों से जोड़ने का काम हाथ में ले लिया गया है।
- सेल्यूलर फोन के लिए टेरिफ (तटकर) नीति को संशोधित किया गया है।
- कुशल सेवा प्रदान करने की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क से केन्द्रों को जोड़ा गया है।
भारत में टेलीफोन का प्रयोग दिन-प्रतिदिनबढ़ता जा रहा है। यह 44 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। टेलीफोन काल तीन प्रकार की होती है स्थानीय ग्राहक ट्रंक डायलिंग (510) और अन्तर्राष्ट्रीय ग्राहक डायलिंग (50) । एस.टी.डी. (51) में आप अपने ही टेलीफोन से देश के किसी भी भाग में सीधे नम्बर मिलाकर बात कर सकते हैं। आइ.एस.डी. (1500) में आप घर बैठे हुए किसी भी अन्य देश में सीधे नम्बर मिलाकर बात कर सकते हैं। 1994 की राष्ट्रीय दूर संचार नीति में यह व्यवस्था थी कि भारत के प्रत्येक गाँव में कम से कम एक पब्लिक टेलीफोन हो |
रेडियो और टी.वी,
सांतवीं पंचवर्षीय योजना तक आकाशवाणी (ऑल इण्डिया रेडियो) की पहुँच जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से सारे भारत में थी। इसके सिग्नल सभी जगह पहुँचते हैं। आकाशवाणी अब 93 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुँचती है। इस समय देश में 134 प्रसारण केन्द्र है। दूरदर्शन अभी 53 प्रतिशत जनसंख्या तक ही पहुँच पाया है। इस समय 31 दूरदर्शन केन्द्र हैं। लगभग प्रत्येक राज्य में एक दूरदर्शन केन्द्र है, जहाँ प्रादेशिक भाषाओं में भी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
बायरलैस योजना –
विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति ने संचार प्रणाली को आधुनिक बनाने में सहायता की है। इसे समय द्रतगामी और सस्ते संचार माध्यम पर जोर दिया जा रहा है। मुख्य जोर अब इस बात पर है कि दूरदराज के इलाकों में उपग्रह और ऐन्टीना के जरिए कैसे पहुँचा जाए। उपग्रह के जरिए देशों के बीच सूचना का आदान-प्रदान आसान हो गया है। प्रमुख वायरलेस साधन निम्न हो सकते है पेजिंग सेवा इसमें पेजर यंत्र के द्वारा लिखित संदेश
सैल्यूलर मोबाईल फोन
यह आम टेलीफोन से भिन डर है। आम टेलीफोन एक निश्चित स्थान पर होता है। लेकिन सैल्यूलर फोन द्वारा एक निश्चित क्षेत्र में ५ फहीं भी हो सड़क पर चल रहे हों, नस में हो या फिर कार में हों आप फोन कर सकते हैं और फोन फ मं, प्राप्त कर सकते हैं। *
इन्टरनेट सेवा–
इस सेवा में कम्प्यूटर के माध्यम से संदेश भेजे और ऋ, किए जा सकते हैं। इस सेवा के अन्तर्गत हम कम्प्यूटर पर संदेश टाइप करते हैं और यह संदेश किसी अ-छ लगे कम्प्यूटर पर, चाहे संसार के किसी भी भाग में हो, स्वयं ही टाइप हो जाता है। इस सेवा के माध्यम हे सारे विश्व में शिक्षा, अनुसंधान और व्यवसाय सम्बन्धी सूचना का आदान-प्रदान होता है। इन्टरनेट रे का वास्तविक उदाहरण है। एक चीनी डाक्टर ने चीन में एक ऑपरेशन किया, जिसको करने की विद्च अमरीका में बैठे एक डाक्टर ने इंटरनेट द्वारा बताई।
तार –
शीघ्र संदेश भेजने के साधनों में तार सबसे अधिक प्रचलित साधन है| अब तो ग्रार्मो तथा कम्बों me तार विभाग ने तार सुविधा प्रदान कर दी है। वार द्वारा समाचार शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान झे पहुँच जाते हैं। जिन लोगों के पास टेलीफोन या फेक्स सुविधा नहीं है, वहाँ तो तार शीघ्र संदेश भेजने क्र एकमात्र साधन है। यह डाकघर द्वारा ही दिए जा सकते हैं। इन्हें हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में भेज जा सकता है।
तार के प्रकार-
तार का वर्गीकरण सुपुर्दगी, राज्य की सुविधा, भाषा की दृष्टि से, जनता की सुविधा की दृष्टि पे गंतव्य स्थान की दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रकार से किया गया है। इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
साधारण तार-
वे तार होते हैं, जिनके संदेश पर साधारण दर से शुल्क लिया जाता है और जो तार कार्यालय द्वारा सामान्य रूप से निर्दिष्ट अवधि में नाँटे जाते हैं, इन्हें क्रमानुसर वितरित किया जाता है। .
एक्सप्रेस या शीघ्र गति के तार-
वे तार होते हैं जो साधारण तार की तुलना में तेज गति से प्रेषित किए जाते हैं। जैसे ही तार का संदेश संबंधित कार्यालय को ग्राप्त होता है, उसे समय इनको वितरित कर दिया जाता है। अर्थात् इन्हें वितरित करने की निर्दिष्ट अवधि नहीं होती है ‘ इर तारों के संदेश पर शुल्क की दर साधारण तार की दुगुनी होती है।
राज्य तार-
जो तार शासकीय कार्यालय द्वारा शासकीय कार्य से सम्बन्धित होपे हैं, उन्ें शाज्य तार की संज्ञा दी जाती है। ऐसे तार के ऊपर “राज्य’” (5७8०) लिखा रहता है। इन प्राथमिकता के आधार पर भेजा जाता है। इन पर शुल्क हेतु सरकारी स्टाम्पूस प्रयुक्त किए जाते हैं, ताकि कर्मचारी अपने स्वयं के कार्य के लिए इनका उपयोग न कर सके |
तुरन्त तार-
ये तार सरकारी काम के लिए होते हैं जो सरकारी आदेश के अन्तर्गत सरकार द्वारा अधिकृत विभागों द्वारा प्रयुक्त किए जाते हैं। इन पर “फ्कुआ८’ (अंठि आवश्यक) शब्द लिखा रहता है। तार कार्यालय में जब ऐसे तार प्राप्त होते हैं तो इनका वितरण प्राथमिकर्त के आधार पर सर्वप्रथम किया जाता है। अर्थात् इन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। इनका वितर्ष चौबीस घण्टे होता रहता है।
अन्तर्देशीय तार-
वे तार होते हैं, जो देश की सीमा के भीतर प्रेषित कि ह जाते हैं। ऐसे तार साधारण या एक्सप्रेस दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
विदेशी तार-
जो तार देश की सीमा के बाहर अर्थात् दूसरे देश में प्रेषित किए जाते हैं, उन्हें विदेशी तार कहते हैं। इन्हें केबल ग्राम भी कहते हैं । इनकी शुल्क की विशेष दरें होती हैं। ये तार साधारण भी हो सकते हैं और एक्सप्रेस भी।
THE END
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