प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे सरस्वती सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन के वारे में बात करेंगे
सरस्वती सिंधु ( हड़प्पा ) सभ्यता का सामाजिक जीवन
उत्तर पाषाण काल से आगे चलकर मनुष्य बर्बरता से उठकर सभ्यता के युग में प्रवेश किया। विश्व की आदिम सभ्यता नदियों की घाटियों में विकसित हुई। भारत में मानव सभ्यता के प्रथम ठोस अवशेष सिन्धु घाटी में पाये जाते हैं। सिन्धु नदी के तट पर परिष्कृत, सुसभ्य मानव रहते थे। इस सभ्यता के अवशेष प्रायः सिन्धु घाटी क्षेत्र में पाये जाने के कारण इसका नाम सिन्धु सभ्यता पड़ा।
इसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने अविभाजित पंजाब के मोन्टगोमरी जिले के हड़प्पा नामक स्थान से कछ प्राचीन खण्डहरों की खोज की। भारत में सिंधु-सरस्वती सभ्यता के स्थानो के नाम कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी आदि है |
सरस्वती सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन-
उत्खनन से प्राप्त अपशेषों के आधार पर हड़प्पा संस्कृति के लोगों के जीवन के सम्बन्ध में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे लगभग एक ही श्रेणी के लोग थे। इनका सामाजिक जीवन निम्न बिन्दुओं के आधार पर देखा जा सकता है-
सरस्वती सिंधु सभ्यता का आहार–
लोगों के भोजन में अन्न, फल, मांस, अण्डे, दूध आदि शामिल था। गेहूँ मुख्य खाद्य पदार्थ के रूप में लाया जाता था। सुअर, भेड़ व मुर्गों का मांस तथा मछली व कछुए का मांस प्रयोग में लाया जाता था। फलों में तरबुज, अनार, नींबू, खजूर आदि के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का वस्त्र–
प्राप्त मूर्तियों के निरीक्षण से ज्ञात होता है कि हड॒प्पा संस्कृति के लोग किस तरह को वेशभूषा का उपयोग किया करते थे। वे सूती व ऊनी वस्त्र का प्रयोग करते थे। पुरुष एक लम्बी शाल या दूपट्टा दायें कन्धे के नीचे से लेकर बाँये कन्धे के ऊपर फेंककर ओढ़ते थे। स्त्रियों सिर पर विशेष प्रकार का वस्त्र पहनती थीं जो सिर के ऊपर पंखे की तरह उठा रहता था |
पुरुष दाढ़ी और मूँछ रखते थे बालों को काटकर छोटा कर दिया जाता था या फिर उन्हें लपेटकर जूड़ा बाँधा जाता था या स्त्रियाँ अपने केशों को चोटी के रूप में शीश पर कई तवृत्तों में लपेटती थीं कभीकभी बालों को जूड़ा बनाकर पीछे फीते बाँध लेती थी, श्रृंगार के लिए दर्पण का प्रयोग किया जाता था जो धातु पर चमकदार पॉलिश करके बनाये जाते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का आभूषण–
हड़प्पा संस्कृति में लोग आभूषण के बहुत शौकीन थे। हार, बाजूबन्द, कुण्डल कड़े और अँगुठियों का प्रयोग किया जाता था.। स्त्रियों द्वारा कई लड़ों वाली करधनी, कान के काँटे, कर्ण फूल तथा पायल का प्रयोग किया जाता था धनी लोग सोने, चाँदी तथा हाथी दाँत और बहुमूल्य पत्थरों, गोमेद, स्फटिक आदि के आभूषणों का प्रयोग करते थे साधारण जन ताॉबे, सामान्य पत्थर, पकी मिट॒टी और हड्डी आदि का उपयोग करते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का मनोरंजन–
उनन्नत और उत्कृष्ट संस्कृति के निवासियों में मनोरंजन और आमोद-प्रमोद के साधनों का प्रयोग करने की प्रवृत्ति पाई जाती है | बच्चों के लिए मिट्टी के खिलौने, मिट्टी की पहियेदार, छोटी-छोटी गाड़ियाँ और बैल बनाये जाते थे। बच्चे स्वयं भी अपने लिए मिट्टी के खिलौने बनाते थे।
पुरुष वर्ग में अपने मनोरंजन के लिए मुख्य रूप से पासों के खेल खेले जाते थे क्योंकि हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के पासे में बड़ी संख्या में मिले हैं। अन्य मनोरंजन के साधनों में जंगली पशुओं के आखेट, गोलियों का खेल, नृत्य संगीत, पशुओं के युद्ध आदि का प्रयोग किया जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का गृहस्थी के उपकरण–
दैनिक जीवन में काम में लाये जाने वाले उपकरणों में अनेक प्रकार के बर्तन, घड़े थालियाँ, रकाबियाँ कटोरें, गिलास, चम्मच, झाड़ियाँ आदि थे। कुछ अन्य प्रकार की वस्तुएं जिनमें सुई, कैंची, हाथी दांत तथा हडिडयों से बने कन्घे, चाकू, हँसिया, कुल्हाड़ी, छेनी, आरी, छुरी आदि प्राप्त हुए हैं। इन वस्तुओं को ताॉबे, मिट्टी या कांसे से बनाया जाता था तथा विभिन्न प्रकार से इनकी सजावट की जाती थी। विभिन्न रंगों के वक्षों, पुष्पों, पत्तियों, पशु पक्षियों के चित्र तथा वृत्तादि से इन वस्तुओं को आकर्षक रूप से बनाया जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का पाषाण तथा अन्य धातुओं की वस्तुए-
पाषाण को उपलब्धता सीमित होने के कारण विशिष्ट वस्तुओं के निर्माण के लिए ही इसका प्रयोग होता था जैसे–द्वार, चौखट, चक्की, मूर्ति, खिलौने आदि। सोना चाँदी, ताँबा, टीन, सीसा, पीतल, आदि धातुओं का उपयोग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का सामाजिक रचना–
हड॒प्पा संस्कृति से प्राप्त अवशेषों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ का समाज मात्सत्ता प्रधान था। इनका सामाजिक जीवन युद्ध एवं आक्रमणों से रहित शान्तिपूर्ण था।
सरस्वती सिंधु ( हड़प्पा ) सभ्यता का सामाजिक जीवन