प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे स्वतंत्रता के समय जूनागढ़ | स्वतंत्रता के समय रियासते | जूनागढ़ रियासत की समस्या। एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका । देशी रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया के वारे में बात करेंगे |
जूनागढ़ रियासत की समस्या
स्वतंत्रता के समय जूनागढ़-
स्वतंत्रता के समय जूनागढ़ पश्चिमी भारत के काठियावाड़ के तट पर स्थित जूनागढ़ एक छोटी-सी रियासत थी। इसकी कुल जनसंख्या में 85% हिन्दू थे। परन्तु इसका शासक मुसलमान था। इसके चारों ओर बड़ोदा और भावनगर जैसी हिन्दू रियासतें थी।
इसका क्षेत्रीय आधार पर पाकिस्तान से कोई सम्पर्क नहीं था, परन्तु जूनागढ़ का नवाब गुप्त रूप से पाकिस्तान से सम्पर्क बनाए हुए था। जब विलय सम्बन्धी दस्तावेज हस्ताक्षरों के लिए उसके पास भेजे गए तो भारत सरकार उत्तर की प्रतीक्षा करती रही। अखबार की इस सूचना से आश्चर्य हुआ कि उसने पाकिस्तान में विलय का निर्णय ले लिया है।
सितम्बर 1947 ई. में जूनागढ़ रियासत ने पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी, जबकि राज्य की अधिकांश जनता हिन्दू थी, जो भारत में रहना चाहती थी। राज्य के नागरिकों ने अपने नवाब के निर्णय का विरोध किया और एक सस्वतन्त्र अस्थायी हुकुमत” की स्थापना कर ली। जूनागढ़ के लोगों ने भारत सरकार से सहायता माँगी।
नवाब पाकिस्तान भाग गया और भारतीय सेना ने रियासत में प्रवेश कर शासन व्यवस्था पर अपना अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् जूनागढ़ के दीवान शाहनबाज भुट्टो (जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता) ने 8 नवम्बर, 1947 को जूनागढ़ के भारत में विलय से सम्बन्धित एक पत्र भारत सरकार को लिखा ।
श्री भुट्टे की प्रार्थना स्वीकार कर ली गयी, और 9 नवम्बर 1947 को भारत ने जूनागढ़ का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। बाद में 20 जनवरी 1948 में जनमत संग्रह कराके जूनागढ़ रियासत को भारत संघ में शामिल कर लिया गया। जनमत-संग्रह में 1,80,000 मतदाताओं में से केवल 91 मत पाकिस्तान में विलय के पक्ष में पड़े।
हैदराबाद रियासत की समस्या-
भारतीय रियासतों में हैदराबाद रियासत की एक विशेष स्थिति थी। यह भारत की सबसे बड़ी रियासत (82,313 वर्ग मील का क्षेत्र) थी। इसका शासक (उस्मान अली खाँ) मुसलमान था, जबकि राज्य की अधिकांश जनता 86% हिन्दू थी। प्रारम्भ में पाकिस्तान ने हैदराबाद को इस भ्रम में रखा कि मुसीबत के समय उसका साथ देगा, फलत: निजाम एक स्वतन्त्र राज्य स्थापित किये जाने का सपना संजोये था। उसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत में मुस्लिम वर्चस्व स्थापित करना था।
29 नवम्बर 1947 को हैदराबाद ने भारतीय संघ से एक वर्ष के लिए ‘यथास्थिति सन्धि” नामक एक अस्थाई समझौता किया कि 15 अगस्त 1947 से पहले की स्थिति कायम रहे। यह समझौता केवल भ्रमीत करने के उद्देश्य से किया गया था। निजाम ने समझौते का पालन नहीं किया और पाकिस्तान के सहयोग और निजाम के आशीर्वाद से राज्य के मुस्लिम रजाकारों ने राज्य की हिन्दू जनता पर भयंकर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया और मारकाट, लूटमार तथा हत्याओं के माध्यम से इस क्षेत्र में भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी। इससे हिन्दुओं की स्थिति या अत्यन्त सोचनीय हो गई थी।
हैदराबाद रियासत का निजाम भारत में ‘स्टेट्स डिपार्टमेन्ट‘ को निरन्तर विलय के सम्बन्ध में भ्रमित करता रहा एवं विलय सम्बन्धी वार्ता को बहाने बनाकर आगे बढ़ाता रहा। फिर लार्ड माउण्टबेटन ने भी विलय हेतु प्रयास किया परन्तु निजाम ने उक्त वार्ता को अपनी हठधर्मिता के चलते विफल कर दिया और अंदरूनी रूप से सेना व शस्त्र आदि में वृद्धि करने हेतु निरन्तर प्रयासरत रहा। अंत में भारत सरकार ने हैदराबाद की रियासत को भारत में विलय हेतु कठोर निर्णय लेते हुए फौज की सहायता लेने का निर्णय किया।
मजलिस-इत्तेहाद-उल-मुसलिमीन के अध्यक्ष एवं रजाकारों के नेता कासिम रिजवी ने कहा था कि “वह एक दिन सम्पूर्ण भारत की विजय करके दिल्ली के लाल किले पर निजाम का आसफजाही झण्डा फहरायेगा।” फलस्वरूप भारत सरकार ने सैनिक कार्यवाही को आवश्यक समझा और 13 सितम्बर 1948 को भारतीय सैनिक हैटराबाद रियासत में घुस पड़े।
निजाम ने सुरक्षा परिषद् में गुहार लगायी। संयुक्त राष्ट्र संघ के भय से भारत सरकार ने घोषणा की वह “लड़ाई की क्रिया” नहीं बल्कि केवल एक “पुलिस कार्रवाई” थी, जिसका उद्देश्य “रियासत के भीतर शान्ति और स्थिरता स्थापित करना था।”” 5 दिन की कार्रवाई के बाद 18 सितम्बर को साढ़े चार बजे दिन में हैदराबाद रियासत की फौज के कमाण्डर मेजर जनरल एल. एड्स ने भारतीय सेना के कमाण्डर मेजर जनरल जे.एन.चौधरी के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया।
हैदराबाद के मामले को मेजर जनरल जे.एन.चौधरी के नियन्त्रण में रख दिया गया और उन्हें वहाँ का सैनिक-गर्वनर नियुक्त कर दिया गया। कासिम रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा रजाकारों का संगठन तोड़ दिया गया एवं लायक अली मंत्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया।
22 सितम्बर 1948 को निजाम ने समुद्री तार भेजकर सुरक्षा परिषद से हैदराबाद का मामला उठा लिया। इस भ्रकार हैदराबाद को भारतीय संघ में मिला लिया गया। भारत सरकार ने इस गुप्त सैनिक कार्यवाही का नाम ऑपरेशन पोलो” रखा था।
26 जनवरी 1950 को स्वतन्त्र भारत के संविधान में हैदराबाद को भाग ‘ख’ के अन्तर्गत राज्य की स्थिति ब्रदान की गयी तथा निजाम को उसका राजप्रमुख बना दिया गया। 1956 को शब्ब पुनर्गठन अधिनियम के तहत राजप्रमुख का पद समाप्त कर दिया गया तथा हैदराबाद को भाषा के आधार पर 3 भागों में विभाजित कर दिया गया मराठी भाग (मराठवाड़ा) बम्बई में, कन्नड़ भाग मैसूर में तवा तेलगू भाग (तेलंगाना) आन्प्र देश में मिला दिया गया।
स्वतंत्रता के समय जूनागढ़ और हैदराबाद एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका –
जिस समय भारत स्वतंत्र हुआ था उस समय देशी रियासतें 562 थी और वे विलय के रूप में एक जटिल समस्या बनी हुई वीं। कानूती तौर से वे भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए स्वतंत्र थी और यदि ये चाहती तो स्वतंत्र भी हर सकती थी। यह स्वाभाविक है कि यदि ये देशी रियासतें अपने कानूनी अधिकार का उपयोग कर प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य बने रहने का निर्णय ले लेती तो देश में अराजकता फैल जाती।
हम सरदार पटेल के आभारी हैं कि उनके नेतृत्व में देशी रियासतों के विलय की समस्या समय पर ही हल हो गई। देशी रियासतों के भारत संघ में विलय से भारत कौ एकता को जो खतरा था, वह टल गया! यह एक ऐसी उपलब्धि हैं, जिस पर भारत की जनता और सरकार को गर्व की अनुभूति होती है। इससे भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक एकता सरल हो गई और इसने देशी रियासतों के मन में राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की भावना विकसित की।
अनेक देशी रियासतें स्वेच्छापूर्षक 15 अगस्त, 1947 से पूर्व ही भारत संघ में शामिल हो गईं। केबल जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ने कुछ समस्या पैदा की। परन्तु कालान्तर में वह भी सरदार पटेल के प्रयासों से सुलझ गई। इसी प्रकार का कार्य जर्मनी में बिस्मार्क द्वारा किया गया था। इसीलिए सरदार पटेल को ‘भारत का बिस्मार्क‘ कहा जाता है।
स्वतंत्रता के समय जूनागढ़ और हैदराबाद देशी रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया-
जैसे-जैसे देशी रियासतें भारत संघ में शामिल होने लगी, सरदार पटेल ने विलय के लिए चार सूत्री प्रक्रिया बनाई। प्रथम सूत्र के अनुसार छोटी-छोटी देशी रियासतों को पड़ोसी प्रान्त में शामिल कर दिया गया। यह विलय की प्रक्रिया जनवरी 1948 ई. में आरम्भ हुई। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की 39 देशी रियासतें, उड़ीसा और मध्य-प्रदेश में क्रमश: शामिल कर दी गईं। कोल्हापुर को छोड़कर दक्षिण की सभी रियासतें 19 फरवरी 1948 ई. को बम्बई प्रान्त में शामिल कर ली गई।
इसी प्रकार की विलय प्रक्रिया द्वारा दो सौ सोलह देशी रियासतों को पड़ोसी राज्यों में शामिल कर दिया गया। दूसरी प्रक्रिया के अनुसार अनेक देशी रियासतों को संगठित कर एक प्रान्त का रूप दिया गया जिससे प्रशासन सुचारू रूप से चल सके। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप 15 फरवरी 1948 को संयुक्त काठियावाड़ (सौराष्ट्र) का निर्माण हुआ। इसमें तीस से अधिक देशी रियासतें शामिल थी। सौराष्ट्र के अनुरूप देश के विभिन्न भागों में जैसे राजस्थान, मध्य भारत, ट्रावनकोर-कोचीन और पटियाला तथा पूर्वी पंजाब संघ (पैप्सू) का निर्माण हुआ।
तीसरे कुछ अकेले देशी-रियासत को और कुछ को समूह रूप में केन्द्र शासित क्षेत्र के रूप में संगठित किया गया। इनका अधिकारी चीफ-कमिश्नर होता था। शिमला की 22 देशी रियासतों का विलय कर हिमाचल प्रदेश बना। अन्य केन्द्र शासित क्षेत्र के रूप में विकसित होने वाली देशी रियासतों में भोपाल, बिलासपुर, कच्छ और मणिपुर त्रिपुरा थी।
इस प्रक्रिया द्वारा 61 देशी रियासतों को संगठित कर केन्द्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया। अन्त में वे बड़ी देशी रियासतें थीं जिनका विलय भारत संघ में किया गया था। इनमें मैसूर, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर की रियासतें आती हैं। भारत संघ में इनका अलग स्थान बना रहा। इस प्रकार सरदार पटेल ने बिना रक्त-पात के देशी रियासतों के विलय के जटिल कार्य को सम्पन्न किया और देश में एकता और अखण्डता स्थापित की।
जिस समय जनवरी 1950 ई, को भारत का संविधान देश में लागू किया गया, उस समय देश के विशाल क्षेत्र को 4 प्रकार के राज्यों की प्रशासनिक इकाइयों में बाँठा गया था। इनका विवरण तालिका में दिया गया है। भारत के राज्य और केन्धशासित क्षेत्र श्रेणी-क श्रेणी-ख श्रेणी-ग श्रेणी-घ असम, हैदराबाद, अजमेर, अन्डमान और निकोबार द्वीप समूह, बिहार, जम्मू-कश्मीर, भोपाल, बम्बई, मैसूर, बिलासपुर, मध्य प्रदेश, पेप्सू,कुर्ग, मद्रास, राजस्थान, दिल्ली, उड़ीसा, सौराष्टर, हिमाचल प्रदेश, पूर्वी पंजाब, ट्रावनकोर-कोचीन, कच्छ, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत विन्ध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पटियाला, मणिपुर, त्रिपुरा इस प्रकार भारत संघ में 4 विभिन्न श्रेणी के ग़ज्य थे।
श्रेणी क में 9 राज्य थे जो पहले ब्रिटिश भारत के प्रान्त थे। श्रेणी ख में तीन बड़ी रियासतें और रियासतों के संगठन तथा 5 विलय की गई रियासतों दे संघ थे। इस प्रकार इसमें आठ राज्य थे। श्रेणी ग में कुछ पुराने भारतीय राज्य थे और कुछ भूतपूर्व चीफ कमिश्रर के प्रान्त थे। केन्द्र शासित प्रदेश संख्या में दस थे। इसके अतिरिक्त अन्डमान-निकोबार द्वीप समूह को श्रेणी घ में रखा गया। सातवें संशोधन (1956) द्वारा राज्यों और भारत संघ में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए गए |
1947 में देशी रियासतों के विलय को महान और रक्तहीन क्रान्ति कहा गया है। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी देशी रियासतों में एकोकरण और लोकतंत्र की प्रक्रिया सुगमतापूर्वक हो गई। शुरू में राजाओं को प्रिवीपर्स के रूप में बड़ी राशि देने का विश्वास दिया गया। यह वित्त विभाग पर एक भारी बोझ था।
इसके अतिरिक्त राजाओं को अपनी पदवियाँ और विशेष अधिकार तथा सुविधाएं रखने की अनुमति भी दी गई। परन्तु 1969 ई. में राजाओं की पदवियाँ (महाराजा, नवाब) समाप्त कर दी गईं और साथ ही प्रिवीपर्स भी बन्द कर दिया गया। अब वे भी दूसरे नागरिकों के समान हो गए। एकीकरण और विलय की नीति के कारण समस्त भारत एक राजनीतिक ढाँचे के अन्तर्गत आ गया।
यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इसके फलस्वरूप ही भारत में लोकतंत्र की प्रक्रिया आरम्भ हुई जिसकी भारत के संदर्भ में बहुत आवश्यकता थी क्योंकि भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया था और उसे एक कल्याणकारी राज्य का रूप धारण करना था। सरदार पटेल के इस कथन में बहुत सच्चाई है कि जो आदर्श शताब्दियों से स्वप्न बना हुआ था और जिसे प्राप्त करना बहुत ही कठिन प्रतीत होता था, वह स्वतंत्रता के बाद एकीकरण की नीति से प्राप्त हो गया।
अध्याय : एक नज़र में
- 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को माऊण्टबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन हुआ और भारत एवं पाकिस्तान नामक दो देश बने।
- भारत विभाजन से शरणार्थियों के पुनर्वास एवं उनकी सम्पत्तियों के निबटारे की समस्या उत्पन्न हुई।
- भारत की स्वतन्त्रता के कुछ घण्टों में विभाजन की खबर से भारत एवं पाकिस्तान में साम्प्रदायिक दंगे आरंभ हो गये
- सन् 1950 में पं. जवाहरलाल नेहरू व लियाकत अली के मध्य शरणार्थियों की स्थायी सम्पत्तियों की वापसी व स्थानांतरण संबंधी समझौता हुआ जिसे नेहरू-लियाकत समझौता कहते हैं।
- भारत विभाजन हेतु मुस्लिम वर्ग की धर्मान्धता, कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति व अंग्रेजों की कुटिल नीति जिम्मेदार थी।
- भारत विभाजन के फलस्वरूप लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत से पाकिस्तान गये एवं इतने ही पाकिस्तान से भारत आये।
- भारत विभाजन के समय हुए साम्प्रदायिक दंगों में लगभग 2 लाख से 5 लाख के मध्य लोग मारे गये।
- भारत की स्वतन्त्रता के समय 562 देशी रियासतें थीं।
- भारत के एकीकरण में समस्यापरक रियासत जूनागढ़ में भारत ने सेना भेजकर जनमत संग्रह करवाया तथा जनमत संग्रह के आधार पर 20 जनवरी, 1949 को जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय हुआ।
- कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को विलय समझौते पर हस्ताक्षर कर कश्मीर का भारत में विलय कर दिया।
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- कबालियो ने ………. पर आक्रमण किया।
- स्वतन्त्रता के समय कश्मीर के महाराज हरि सिंह डोगरा थे
- स्वतन्त्र भारत में स्थापित “स्टेट्स डिपार्टमेन्ट’ के सचिव थे
- सरदार पटेल को भारत का विस्मार्क कहा जाता है
- सिक्ख शरणार्थी अधिकांशत: ………. में बसे।
- नेहरू-लियाकत समझौता सन् 8 अप्रैल 1950 में हुआ थानेहरू-लियाकत समझौता सन् 8 अप्रैल 1950 में हुआ था।
प्रश्न 2. सत्य और असत्य का चयन कीजिए
- जूनागढ़ रियासत गुजरात प्रान्त में स्थित थी।
- नेहरू-लियाकत समझौता सन् 1950 में हुआ था।
- स्वतन्त्रता के समय भारत में कुल 11 प्रान्त थे।
- जम्मू-कश्मीर की सीमाएँ भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लगी हुई है।
- शरणार्थियों के लिए सबसे बड़ी समस्या पुनर्वास की थी।
- लेडी माउण्टबेंटन ने स्वयं शरणार्थी शिविरों में पुनर्वास कार्य का निरन्तर निरीक्षण किया।
- सर चन्दूलाल द्विवेदी पंजाब के पहले भारतीय गवर्नर थे।
♥ समाप्त ♥
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