प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे सरस्वती सिन्धु ( हड़प्पा ) संस्कृति एवं वैदिक युग के वारे में बात करेंगे |
सरस्वती सिन्धु ( हड़प्पा ) संस्कृति एवं वैदिक युग
नमस्कार दोस्तों,एक वार फिर से स्वागत है आप सभी का हमारे व्लॉग एम पी बोर्ड नेट में आज की इस पोस्ट में हम सरस्वती सिन्धु सभ्यता के वारे एवं उसके नगरों के वारे में पड़ेगे
सरस्वती सिन्धु प्रस्तावना-
उत्तर पाषाण काल से आगे चलकर मनुष्य बर्बरता से उठकर सभ्यता के युग में प्रवेश किया। विश्व की आदिम सभ्यता नदियों की घाटियों में विकसित हुई। भारत में मानव सभ्यता के प्रथम ठोस अवशेष सिन्धु घाटी में पाये जाते हैं। सिन्धु नदी के तट पर परिष्कृत, सुसभ्य मानव रहते थे। इस सभ्यता के अवशेष प्रायः सिन्धु घाटी क्षेत्र में पाये जाने के कारण इसका नाम सिन्धु सभ्यता पड़ा। इसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है |
1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने अविभाजित पंजाब के मोन्टगोमरी जिले के हड़प्पा नामक स्थान से कछ प्राचीन खण्डहरों की खोज की। सरस्वती सिन्धु से पूर्व यह धारणा प्रचलित थी कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता वैदिक सभ्यता थी, किन्तु सिन्धु घाटी में उत्खनन के पश्चात् प्राप्त अवशेष ने इस धारणा को बदल दिया। ऋग्वैदिक सभ्यता से शताब्दियों पूर्व की यह सभ्यता पश्चिम की एलम में मेसोपोटामिया, सुमेर, यूनान की सभ्यता से अधिक उन्नत थी।
1922 ई. में राखालदास बेनर्जी ने सिन्ध के लरकाना जिले में बौद्ध स्तूपों की खोज करते हुए कुछ टीलों की खुदाई करवाई जहाँ से उन्हें भूगर्भ में पक्की नालियों और कमरों के अवशेष मिलें इसके पश्चात् इस घुरे क्षेत्र में सघन उत्खनन कार्य करवाया गया, जिसमें अनेक ध्वंसावशेष और महत्वपूर्ण पुरातात्विक॑ सामग्री प्राप्त हुई । हड़प्पा में दयाराम साहनी द्वारा करवाई गई खुदाई में एक छोटे दुर्ग के अवशेष मिले इसके उत्तरी प्रवेश द्वार और रावी नदी के तट के बीच अन्न भंडार श्रमिक आवास और इंटों से जुड़े गोल चबूतरे थे जिनमें अनाज रखने के लिए कोटर बनने थे।
इस सभ्यता की खोज में पुरातत्व विभाग जिन स्थानों में खुदाई करवाई गई उनमें हड़प्पा पंजाब के मोन्ट गुमरी जिले में मोहन जोदड़ो सिन्ध के लरकाना जिले में चन्हूदड़ो और नाल बलोचिस्तान प्रमुख हैं इन प्रमुख केन्द्रों के अतिरिक्त आसपास की चालीस बस्तियों की खुदाई के द्वारा इस सभ्यता के बीच का अन्तर हड़प्पा संस्कृति के विस्तार को प्रदर्शित करता है। इस सभ्यता के अवशेष सौराष्ट्र से लेकर पूर्वी राजस्थान और पूर्वी पंजाब तक प्राप्त होते हैं।
सरस्वती सिन्धु (हड़प्पा) संस्कृति के प्रमुख स्थल-
हड़प्पा सभ्यता या संस्कृति की खोज के आरम्भिक चरणों में इसके अवशेष प्रमुख रूप से सिन्धु नदी के तटीय क्षेत्रों में पाये गये थे। इस सभ्यता के क्षेत्र के विस्तार को देखते हुए. इसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थान हड़प्पा के नाम पर इसे हड़प्पा संस्कृति कहा गया। हड़प्पा संस्कृति, सिन्ध, बलूचिस्तान पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश के सीमान्त प्रदेश काठियावाड़ और इसके पूर्वी भागों में फैली थी।
इसका फैलाव उत्तर में-जम्मू से दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था, प्रो. गार्डन चाइल्ड के अनुसार यह सभ्यता मिस्र से भी अधिक विस्तृत क्षेत्र मेंफैली ‘ तक हडप्पा संस्कृति के 1000 से ज्यादा स्थानों का पता लग -है, इस संस्कृति के प्रमुख केन्द्रों में हड़प्पा, मोहन जोदड़ो, चन्हुद़ो व रगपुर, लोथल, ” और संघोल है।
हड़प्पा संस्कृति के निर्माता–हड़्प्पा संस्कृति के निर्माता कौन हैं, यह एक विवादित विषय रहा है सिन्धु घाटी में जिन मानव शरीर के अवशेष प्राप्त हुए है उन॑ंसे यह समस्या हल नहीं हुई। जिस. तरह की मानव खोपडियाँ यहाँ मिली हैं इनके आधार पर संसार की सभी प्रजातियों आर्य, आग्नेय, भूमध्यसागरीय, द्रविड़, किरात का यहाँ अस्तित्व सिद्ध हो सकता है। एक समृद्ध व्यापारिक केन्द्र होने के कारण विभिन देशों के लोगों का यहाँ आना सम्भव हो सकता है, किन्तु यहाँ के मूल निवासी कौन थे यह प्रश्न विवादित है। यहाँ से प्राप्त अस्थि पंजरों का अध्ययन करने के पश्चात् कर्नल स्युऊल तथा डॉ. गुहा ने यहाँ के निवासियों की चार प्रजातियों को बताया है,
(1) आदि आस्ट्रोलायड,
(2) मंगोलियन,
(3) भूमध्यसागरीय और
(4) अल्पाइन।
कुछ विद्वानों का मत है कि इस सभ्यता को भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने जिन्हें आइबिरियन कहा जाता है इस सभ्यता को जन्म दिया है। कुछ विद्वान ट्रविड़ों को इस सभ्यता का जनक मानते हैं किन्तु इस सम्बन्ध में उचित तथा पुष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं। वेदों और पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार आरयों को पश्चिमोत्तर भारत में असुर जाति से संघर्ष करना पड़ा था। जब आर्य मध्यप्रदेश से अपना प्रसार कर रहे थे आर्यों से पराजित होकर असुर जाति ईरान, अककांट, सुमेर, अरीड़िया आदि बस गई । यही असुर सिन्ध सभ्यता के निर्माता थे।
अन्य विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति ऋग्वैदिक सभ्यता की परवर्तिनी थी ये विद्वान आर्यों को सिन्धु सभ्यता के जनक मानते हैं इनके विरोध में यह कहा गया है कि सिन्धु सभ्यता का प्रारम्भिक खुदाई में श्वान एवं अश्व की हडि्डियाँ नहीं मिली किन्तु बाद की खुदाइयों में इन पशुओं की हडिडयाँ प्राप्त होने से इस धारणा को बल मिलता है कि यह सभ्यता आर्य असुर मिश्रित सभ्यता थी। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यह एक विवादित विषय है।
सरस्वती सिन्धु (हड़प्पा) संस्कृति के मुख्य नगर व अन्य क्षेत्र –
हड़प्पा Harappa –
पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में रावी नदी के सूखे हुए मार्ग पर लाहौर और मुल्तान के बीच हड़प्पा नामक स्थल अवस्थित है। वैदिक साहित्य में इसे हरियूपिया कहा गया है। हड़प्पा संस्कृति के सम्बन्ध में सर्वप्रथम प्रामाणिक लेख मेसन नामक अंग्रेज यात्री का है जिसने सन् 1826 में इसके खण्डहरों को देखा था। इसी प्रकार सन् 1831 में पंजाब के राजा रणंजीत सिंह से मिलने गये अंग्रेज कर्नल बंर्स ने भी इस खण्डहर को देखा और उसके टूटी-फूटी गढ़ी का उल्लेख किया।
1853 और 1857 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने हड़प्पा के खण्डहरों का निरीक्षण किया। परन्तु 1920 ई. तक इतिहासकारों को इस सभ्यता के बारे में लेश मात्र भी ज्ञान नहीं था। इस स्थल के उत्खनन व अध्ययन में सर जॉन मार्शल एवं दयाराम साहनी के नाम भी उल्लेखनीय हैं । हड़प्पा दो खण्ड़ों (पूर्वी एवं पश्चिमी ) में विभकत है। पूर्वी खण्ड को क्षेत्रीय लोगों ने नष्ट कर दिया है, पश्चिमी खण्ड में किलेबन्दी कृत्रिम चबूतरे पर पायी गयी है। पुरातत्वविदों ने प्राप्त सामग्री के आधार पर यह सिद्ध किया
मोहन जोदड़ो Mohen jodaro –
पाकिस्तान में सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर मोहनजोदड़ो अवस्थि हे इसका शाब्दिक अर्थ प्रेतों का टीला होता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के बीच की दूरी 500 ‘किमी थी, किन्तु सिन्धु नदी के माध्यम से दोनों जुड़े थे। इस स्थल के उत्खनन में पुरातत्वविद् राखालदास बनजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है #इस स्थल में सात तहों की व्यवस्थित ख़ुदाई के परिणामस्वरूप विकसित सभ्यता की जानकारी मिली यह सम्पूर्ण क्षेत्र ।
अ्ककलव कच्ची ईंटों का चबूतरा बनाकर ऊँचा उठाया गया है और सारा निर्माण कार्य इस चबूतरे के ऊपर किया बरी ईंटों से दीवार बनाकर किलेबन्दी की गयी थी, मीनारें और बुर्ज बनाये गये थे। यहाँ कौ सड़कें एक-दूसरे को समकोण (90″) पर काटती हैं, पक्की ईंटों से कई मंजिल वाले मकान के अवशेष, विशिष्ट जल प्रणाली, विभिन्न खण्डों में विभकत नगर एक व्यवस्थित जीवन की ओर इंगित करते हैं।
चन्हुदड़ो Chanhudaro –
डॉ. मैके को इस क्षेत्र की खुदाई में तीन संस्कृतियों के अवशेष उपलब्ध हुए हैं, इन सभ्यताओं के अवशेष लगभग 8 मीटर गहराई के नीचे जल में पड़े हुए हैं। यह स्थल सिन्ध प्रान्त में ही मोहनजोदड़ो से 130 किमी दूर स्थित है। इस स्थल को सीबी और जैकोबाबाद के बीच सिन्धु नदी की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार माना जाता है। इस स्थल के छोटे ही भाग का उत्खनन हुआ जिसमें मनके बनाने के कारखाने का अवशेष मिला है।.
कालीबंगा Kalibanga –
उत्तरी राजस्थान के गंगानगर जिल में घग्घर नदी के तट पर कालीबंगा स्थित है ‘ जिसका शाब्दिक अर्थ काले रंग की चूड़ियाँ होता है। इस स्थल का उत्खनन कार्य स्वाधीनता के पश्चात् सन् 1960 में किया गया । यहा मकान बने थे जबकि मोहनजोदड़ी के मकान पक्की इंटों से बने थे। जल निकासी की सुविधा इस नगर में नहीं थी। इस नगर के पूर्वी भाग में यज्ञ अनुष्ठान के अवशेष और . पश्चिमी भाग में कब्रिस्तान के अवशेष मिलते हैं। यहाँ खुदाई में मिलने वाली अन्य वस्तुओं में बर्तन, ताँबे के औजार, चूड़ियाँ, अंकित मोहरें, बाट, खिलौने मिट्टी की मूर्तियाँ अधिक उल्लेखनीय हैं।
लोथल Lothal –
गुजरात प्रान्त के अहमदाबाद जिले में खंभात की खाड़ी के ऊपर लोथल अवस्थित है। इस स्थल के उत्खनन से जानकारी मिलती है कि किसी समय इस नगर का विस्तार 3-5 किमी से अधिक किन्तु 5 किमी से कम रहा होगा। पूरी नगरी एक दीवार से घिरी हुई थी। इसके पूर्वी भाग में पक्की ईंटों का तालाब जैसा घेरा मिलता है। यहाँ उत्खनन से आभूषण, मुहरें, ताँबे की चूड़ियाँ, मछली पकड़ने के काँटे, आरा, पहिया, घोड़ा, पाषाण के बाट इत्यादि सामान मिले हैं। यहाँ के मकानों में गन्दे पानी के निकास की व्यवस्था थी।
कहीं-कहीं कुए भी मिले हैं। यहाँ एक बन्दरगाह के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं लोथल में सबसे महत्वपूर्ण चीज के रूप में एक. विशाल गोदी (बन्दरगाह) मिली है इसमें जहाजों को समुद्र की ओर ले जाने का समुचित प्रबन्ध था। अनुमान होता है कि कभी यहाँ का सुदूर पश्चिमी देशों से व्यापारिक सम्बन्ध रहा होगा।
यह स्थल हरियाणा प्रांत के हिसार जिलेमें स्थित है। यहाँ पर कच्ची व पक्की ईंटों के अवशेष समान रूप से मिलते हैं । यहाँ प्राप्त अवशेष कालीबंगा के नगर योजना के आस-पास ही बैठते हैं।
रोपड़ Ropar –
हड़प्पा से लगभग 354 किमी पूर्व की ओर स्थित रोपड़ में कोटला निहँग खाँ के स्थान पर सन् 1953 में खुदाई की गई थी, खुदाई श्री यज्ञदत्त के संरक्षण में की गई थी । खुदाई में 6 सतरें प्राप्त हुई हैं। प्रथम सतह हड़प्पा सभ्यता की समकालीन है | इससे यह पता चलता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता का विकास सतलज नदी के किनारे पर स्थित रोपड़ तक था। इसमें तन स्थान लोकप्रिय हैं । ये रोपड़, संघोल और चण्डीगढ़ के समीर के स्थल हैं।
मिताथल Mitathal-
सन् 1968 में श्री सूरजभान के नेतृत्व में खुदाई का काम प्रारम्भ किया गया। यह स्थान हरियाणा राज्य के हिसार जिले का एक गाँव है, जहाँ खुदाई के दौरान पत्थर के मनके, चमकदार रंगीन कंगन, मिट्टी के पकाये गये रंग-बिरंगे खिलौने, पशुओं की मूर्तियाँ, पॉलिशदार बर्तन, पत्थर के बाट, छीटी-छोटी गाड़ियों के पहिये तथा हाथी दाँत के पिन प्रांप्त हुए हैं।एक खलिहान की आकृति में स्थान प्राप्त हुआ है। यहाँ की गलियाँ और सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी बनी हैं। ये सभी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिलती-जुलती हैं।
संघोल Sanghol-
रोपड़ के समीप पंजाब के लुधियाना जिले में संघोल नामक स्थान में यह सभ्यता प्राप्त हुई है। यह रोपड़ से 32 किमी दूर स्थित है। सन् 1968 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने यहाँ की खुदाई करवाई थी जिसमें अनेक प्रकार की वस्तुएं प्राप्त हुई थीं। प्राप्त वस्तुओं में अनेक प्रकार की बर्तन, मोहरें, मूर्तियाँ, मिट्टी के भवन आदि मिले हैं। यहाँ से प्राप्त वस्तुएँ हड़प्पा में मिली वस्तुओं से मिलती-जुलती हैं जिससे यह अन्दाज लगाया जाता है कि शायद यह स्थान हड़प्पा संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा होगा।
उपर्युक्त स्थानों के अतिरिक्त भी हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित स्थान प्राप्त हुए हैं। इनकी संख्या लगभग 1000 तक हो गई है। इस सभ्यता का विस्तार पंजाब, सिन्ध, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू, गुजरात, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी उत्तरप्रदेश तथा उत्तरी अफगानिस्तान तक था। इस प्रकार यह संभ्यता देश के बहुत बड़े क्षेत्र में फैली हर्ट थी।
सरस्वती सिंधु के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न / Frequently Asked Questions (FAQ) About Saraswati Sindhu
सिंधु सरस्वती सभ्यता की खोज किसने की थी?
Ans – 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने अविभाजित पंजाब के मोन्टगोमरी जिले के हड़प्पा नामक स्थान से कछ प्राचीन खण्डहरों की खोज की।
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