प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे उत्पत्ति वृद्धि नियम कि सीमाएँ के बारे में पढ़ेंगे |
उत्पत्ति वृद्धि नियम कि सीमाएँ
क्या उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होने के बाद बह अनिश्चित समय तक क्रियाशील रहेगा ? उत्तर है नहीं। जब तक साधनों के मिलने के अनुकूलतम अनुपात की ओर अग्रसर किया जाता है तब तक यह नियम लागू होगा। जब एक बार अनुकूलतम अनुपात स्थापित हो जाता है और इसके बाद यदि परिवर्तनशील साधन की मात्रा को और बढ़ाया जाता है तो उत्पत्ति हास्त नियम लागू हो जायेगा।
उत्पत्ति वृद्धि नियम के क्रियाशील होने की दशाएँ या कारण-
नियम के लागू होने के कारण निम्नलिखित हैं :-
साथनों की अविभाजकता-
श्रीमती जॉन रोबिन्सन, के मत में नियम के क्रियाशील होने का मुख्य कारण हैं : उत्पत्ति के साधनों की अविभाजकता | अविभाजकता का अर्थ है कि साधनों को प्राय: हम छोटे-छोटे टुकड़ों में नहीं बाँट सकते हैं। मैनेजर, भूमि, मशीन-औजारं के रूप में पूँजी, इत्यादि साधन एक सीमा तक अविभाज्य हैं। किसी भी एक अविभाज्य , साधन के साथ प्रारम्भ में यदि परिवर्तनशील साधन या साधनों की कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है |
अविभाज्य साधन का भलीभांति प्रयोग नहीं होता है, परन्तु परिवर्तनशील साधन की मात्रा को एक सीमा तक बढ़ाने से अविभाज्य साधन का प्रयोग अच्छी प्रकार से होने लगता है, उत्पादन अनुपात से अधिक नढ़ता है और लागत घटती है; अर्थात् उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है।पर्याप्त मात्रा में साधनों की उपलब्धता- यदि सभी आवश्यक साधर्नो की पूर्ति आसानी से और पर्याप्त मात्रा में की जा सकती है तथा प्रत्येक साधन के अनुपात में कमी या वृद्धि की जा सकती है तो परिवर्तनशील अनुपातों का नियम लागू होगा और एक सीमा तक अनुपात से अधिक उत्पादन बढ़ेगा तथा लागत गिरेगी अर्थात् उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होगा।
बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें-
कुछ उद्योगों में उत्पत्ति के साधनों को बढ़ाने से बड़े पैमाने की बाह्य तथा आन्तरिक बचतें प्राप्त होती है जिसके कारण एक सीमा तक उत्पादन अनुपात से अधिक बढ़ता है, लागत घटती है और उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है। यद्यपि यह नियम उत्पादन के सभी क्षेत्रों में लागू होता है, परन्तु कृषि की अपेक्षा उद्योगों में यह विशेष रूप से लागू होता है। इसका कारण है कि उद्योगों में सभी साधनों को आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है (जबकि कृषि में भूमि सीमित रहती है), श्रम विभाजन तथा बड़े पैमाने की बचतें आसानी से प्राप्त होती हैं तथा उद्योगों में अनुसंधान तथा परीक्षण की अधिक सुविधाएँ रहती हैं।
नियम का क्षेत्र :-
मार्शल के अनुसार, यह नियम केवल निर्माण उद्योगों में ही लागू होता है क्योंकि उद्योगों में मनुष्य का हाथ (प्रकृति की अपेक्षा) अधिक होता है। परन्तु यह विचारधारा गलत है। नियम के लागू होने के कारण मनुष्य के हाथ की प्रधानता नहीं है बल्कि अन्य कारण हैं जिनका अध्ययन हम ऊपर कर चुके हैं। जब तक उत्पत्ति के साधनों के अनुकूलतम अनुपात की स्थापना की ओर अग्रसर किया जाता है, यह नियम उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होगा।
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