निरक्षरता दूर करने के उपाय व सुझाव
निरक्षरता लोकतंत्र की सफलता के लिए शत–प्रतिशत साक्षरता एक अनिवार्यता है। भारत में निरक्षरता जैसे अभिशाप को दूर करने के लिये निम्नांकित सुझाव उपयोगी हैं-
निरक्षरता को राष्ट्रीय नीति का मुख्य अंश बनाना —
लोकतंत्र में सभी नागरिकों को उत्तम शिक्षा प्रदान करना सरकार का नैतिक कर्तव्य है । अतः राष्ट्रीय स्तर पर निरक्षरता निवारण राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिए। जिसे केन्द्र एवं राज्य सरकारें मानने के लिये बाध्य हो। इस राष्ट्रीय नीति में एक निश्चित समय सीमा में सम्पूर्ण नागरिकों को साक्षर बनाने और प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा निः शुल्क प्रदान किये जाने संबंधी प्रावधान किये जावे और इसका सघन प्रचार-प्रसार कार्यक्रम प्रावधान किये जावे और इसका सघन प्रचार-प्रसार कार्यक्रम बनाया जाये।
सभी राज्य इसमें अनिवार्य रूप से सहयोग करें। वर्तमान में भारत सरकार साक्षरता मिशन और राजीव गाँधी शिक्षा मिशन के माध्यम से देश भर में साक्षरता अभियान चला रही है जिससे निरक्षरता घटने के संकेत मिलने लगे हैं ।
महिला साक्षरता को प्राथमिकता-
कहा गया है कि परिवार ही बच्चे की प्रथम पाठशाला है और माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती है । अत: परिवार को साक्षर बनाने के लिये महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा की विशेष व्यवस्था और सुविधाएँ प्रदान की जायें। प्रत्येक क्षेत्र में कन्या व घरेलू महिलाओं के लिए पाठशालाएँ खोली जायें। मध्यान्ह में भी घरेलू महिलाओं के लिए विशेष कक्षाएँ चलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
निरक्षरता को दूरस्थ क्षेत्रों एवं पिछड़े वर्ग में शिक्षा का विस्तार-
प्राय: देखा जाता है कि नगर से दूरस्थ क्षेत्रों और पिछड़े वर्गों के आवास क्षेत्रों में शिक्षा विस्तार की योजनाएँ कागज में सिमट कर रह जाती हैं। पाठशाला भवन, शिक्षकों के लिये आवास सुविधा, पिछड़े वर्ग के लिये विशेष शिक्षा अभियान का अभाव भी साक्षरता के लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकते हैं। वर्तमान में शासन इस दिशा में सचेत होकर इन क्षेत्रों में शिक्षा की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये प्रयत्नशील हैं ।
प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन एवं स्नातक स्तर के छात्रों को इनसे जोड़ना –
साक्षरता अभियान के अन्तर्गत वयस्क लोगों के लिए उनके निवास स्थान के निकट प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिये। इस अभियान में स्नातक स्तर के छात्रों को जोड़ने के लिये विश्वविद्यालय परीक्षा के अन्तर्गत सैद्धांतिक परीक्षा के साथ व्यावहारिक परीक्षा को सम्मिलित करने का प्रावधान किया जाये जिससे छात्र डिग्री लेने के पूर्व प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेकर व्यावहारिक परीक्षा दे सकेंगे। आवश्यकतानुसार प्रौढ़ शिक्षा के लिये रात्रिकालीन कक्षाएँ भी चलाने की व्यवस्था की जायें। इससे मजदूर वर्ग लाभान्वित होगा ।
गरीबी रेखा में रहने वालों के लिए विशेष सुविधा –
शासन का कर्तव्य है कि वह एक नीति के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले समुदाय के लिये विशेष शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत अलग से विद्यालय खोले, जहाँ इस समुदाय के बच्चों को निःशुल्क पाठ्यपुस्तक, अभ्यास पुस्तिकाएँ, लेखन सामग्री और मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था की जाये। इस तरह के विद्यालय के लिये विशेष शिक्षक नियुक्त किये जावे जो शिक्षा विभाग के अन्तर्गत स्थानांतरण प्रक्रिया से अलग रहें ।
सभी वर्ग के बच्चो के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का प्रावधान-
केन्द्र एवं राज्य सरकारें साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु, प्राथमिक स्तर तक सभी वर्ग के बच्चों के लिये नि: शुल्क अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान करें तथा सघन अभियान कार्यक्रम द्वारा 12 वर्ष तक के सभी बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश कराने का प्रयास करें।
गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग लें –
देश में अनेक वर्षों से सम्पन्न समुदाय और गैर सरकारी संस्थाएँ शिक्षण संस्थाएँ संचालित कर शिक्षा के प्रसार में अपना यथेष्ट योगदान देती आ रही हैं। यह सहयोग नगर से बाहर ग्रामीण दूरस्थ क्षेत्रों में फैल सके इसके लिये इन संस्थाओं को जमीन और आर्थिक सहायता द्वारा आगे आने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये । इस प्रयास से शासन को कम आर्थिक व्यय से निरक्षरता दूर करने में मदद मिलेगी।
संचार माध्यमों से प्रचार अभियान –
आज देश में संचार माध्यमों का जाल फैल गया है। अतः इन संचार माध्यमों जैसे आकाशवाणी, टी. वी. आदि पर सचित्र विज्ञापनों द्वारा निरक्षरता दूर की जा सकती है। इसके लिये ग्राम पंचायतों में टी. वी. रेडियो की व्यवस्था की जावें । राज्य एवं केन्द्र सरकार का सूचना विभाग व शिक्षा विभाग दृश्य श्रव्य से युक्त यूनिटों को ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों में भेजकर साक्षर बनने से होने वाले लाभ से नागरिक को जागरूक करें ।
कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित अधिकारी-
उपर्युक्त सुझाव तभी कारगार सिद्ध हो सकते हैं, यदि इन कार्यक्रमों में लगे अधिकारी व अन्य कर्मचारी ‘साक्षरता मिशन’ या आन्दोलन के प्रति समर्पित और कर्तव्यनिष्ठ हों। इस आन्दोलन से जुड़े अधिकारियों, शिक्षकगण व सहयोगियों को विशेष प्रशिक्षण देकर तैयार किया जावें तो उत्तम होगा।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनता का शिक्षित होना, लोकतंत्र की सफलता की पहली और अनिवार्य शर्त है। शिक्षित जनता को धूर्त एवं भ्रष्ट राजनेता सदैव के लिए मूर्ख नहीं बना सकते । इस सम्बन्ध में लिंकन का यह कथन उल्लेखनीय है कि, “जनता के एक भाग को आप सदैव के लिए मूर्ख बना सकते हैं, समस्त जनता को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं,
परन्तु समस्त जनता को आप सदैव के लिए मूर्ख नहीं बना सकते ।” शिक्षित जनता ही अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को भली-भाँति समझकर उनका उचित प्रयोग और पालन कर सकती है। शिक्षित मतदाता ही अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करके योग्य, ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ
व्यक्तियों को शासन संचालन के लिए निर्वाचित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा ही नागरिकों में लोकतंत्र की भावना के अनुरूप कर्तव्यपरायणता, सत्यनिष्ठा, त्याग, परोपकार, सहयोग, प्रेम और राष्ट्र भक्ति जैसे नैतिक, चारित्रिक एवं सुनागरिकोचित गुणों का विकास करके उनका नैतिक और चारित्रिक उत्थान कर सकती है, तथा लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की सफलता के लिए वांछित सुनागरिक का रूप प्रदान कर सकती है।
अतः लोकतन्त्र की सफलता के लिए निरक्षरता का अन्त किया जाना अति आवश्यक है। इसके लिए सार्वजनिक शिक्षा का पर्याप्त प्रचार-प्रसार होना चाहिए।प्रत्येक क्षेत्र व वर्ग के लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए। अन्यथा शिक्षा की सार्वजनिक व्यवस्था के अभाव और निरक्षरता की स्थिति रहने से लोकतन्त्र अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सकता है।
इसलिए भारत सरकार की निरक्षरता रूपी इस राष्ट्रीय कलंक को मिटाने की दिशा में सक्रिय हुई है और विगत कुछ वर्षों से, ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ के द्वारा इस कार्य के लिए प्रयास किये गये हैं। भारत में केरल ऐसा पहला राज्य है, जिसे पूर्ण साक्षर होने का गौरव प्राप्त हो चुका है। अन्य राज्यों के साथ-साथ मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के समस्त जिलों में भी साक्षरता योजनाएँ चल रही हैं।