प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे भारतीय संविधान निर्माण, संविधान सभा एवं संविधान की आवश्यकता। संविधान सभा के उद्देश्य । कैबिनेट मिशन 1945 । क्रिप्स मिशन 1942 के वारे में बात करेंगे |
भारतीय संविधान निर्माण
भारतीय संविधान निर्माण में संविधान अंग्रेजी भाषा के कॉन्स्टीट्यूशन शब्द का रूपान्तरण है। इस शब्द का प्रयोग शरीर के ढाँचे या गठन के लिए भी किया जाता है। राजनीति विज्ञान में इस शब्द का प्रयोग राज्य के ढाँचे या संगठन के रूप में किया जाता है। संविधान में राज्य के ढाँचे एवं संगठन का जिन आधारभूत नियमों एवं सिद्धान्तों का समावेश होता है। विभिन्न विद्वानों ने अपने दृष्टिकोण के अनुसार संविधान की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। जिनमें मुख्य इस प्रकार हैं
भारतीय संविधान निर्माण की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों ने संविधान को अनेक प्रकार परिभाषित किया हैं –
जवाहरलाल नेहरू के अनुसार,
“जहाँ तक सम्भव हो सके, इस संविधान को हम यद्यपि एक ठोस एवं स्थायी संविधान का रूप देना चाहते हैं, तथापि संविधानों में कोई स्थायित्व नहीं होता। उनमें कुछ लचीलापन होना चाहिए। यदि आप प्रत्येक वस्तु को कठोर एवं स्थायी बना दें तो आप राष्ट्र के विकास पर रोक लगा देंगे, क्योंकि राष्ट्र जीवित विकासशील प्राणियों का समूह होता है। किसी भी स्थिति में इस संविधान को हम इतना कठोर नहीं बना सकते कि उस बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप न बनाया जा सके।
ऑस्टिन के अनुसार,
“संविधान उन नियमों का समूह है, जो चार्ल्स बगैण्ड शासन की रूपरेखा निर्धारित करते हैं।””
ब्राइस हरमन फाइनर के अनुसार,
“संविधान मूलभूत राजनीतिक संस्थाओं की यूल्जे एक व्यवस्था है।””
चार्ल्स बगैण्ड के अनुसार,
“संविधान एक आधारभूत कानून होता है, जिसके द्वारा किसी राज्य की सरकार संगठित की जाती है और जिसके अनुसार शक्तियों अथवा नैतिक नियमों का पालन करने वाले मनुष्य तथा समाज के सम्बन्ध निर्धारित किये जाते हैं।”!
ब्राइस के अनुसार,
“संविधान ऐसे निश्चित नियमों का संग्रह होता है, जिसमें सरकार की कार्य-प्रणाली प्रतिपादित होती है और जिनके द्वारा उसका संचालन होता है।”!
ब्रुल्जे के अनुसार,
“उन सिद्धान्तों का समूह संविधान कहलाता है, जिनके अनुसार शासन की शक्तियों, शासितों के अधिकारों और इन दोनों के मध्य सम्बन्धों का समायोजन होता है।
इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर संविधान के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं
- संविधान राज्य का आधारभूत और सर्वोच्च कानून है
- संविधान कुछ नियमों या कानूनों का समूह है।
- संविधान में शासन के तीनों अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) के संगठन तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का उल्लेख रहता है।
- संविधान, राज्य अर्थात् शासन और व्यक्ति के सम्बन्धों का निर्धारण करता है।
- संविधान नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों को स्पष्ट करता है।
उक्त परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में संविधान को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है
संविधान शासकीय आचरण के उन समस्त नियमों, उपनियमों, लोकाचारों, परम्पराओं का समूह है, जिनके द्वारा शासन के विभिन्न अंगों के संगठन और उनके पारस्परिक सम्बन्धों के निर्धारण के साथ ही साथ व्यक्ति और व्यक्ति तथा राज्य अर्थात् शासन और व्यक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों का नियमन होता है।
भारतीय संविधान निर्माण संविधान की आवश्यकता-
संविधान की आवश्यकता निम्न किसी तरह के लिए संविधान की आवश्यकता राजनीतिक व्यवस्था के निरन्तर विकास हेतु करता है
- राजनीतिक “ के निरन्तर सरकार की मनमानी पर अंकुश रखने के लिए
- राजनीतिक व्यवस्था निरन्तर नागरिकों के व्यवहारों का नियन्त्रण एवं नियमन विकास हेतु राजनीतिक व्यवस्था के विकास के उद्देश्यों लिए संविधान की आवश्यकता होती है। संविधान राष्ट्र के उद्देश्यों के निर्धारण एवं प्राप्ति हेतु राजनीतिक व्यवस्था के विकास के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में सहायता करता है।
- सरकार की मनमानी पर अंकुश रखने के लिए संविधान में सरकार और नागरिक दोनों के अधिकार ब कर्तव्य उल्लेखित होते हैं। सरकार अपनी शक्तियों का प्रयोग संविधान की व्यवस्थाओं के अन्तर्गत ही करती है। यदि सरकार जन विरुद्ध कोई कार्य मनमाने ढंग से करती है तो उसे संविधान के आ्रावधानों के तहत रोका जा सकता है। अत: संविधान सरकार के मनमाने कार्यों पर अंकुश लगाने हेतु आवश्यक होता है।
- नागरिकों के व्यवहारों का नियन्त्रण एवं नियमन संविधान राष्ट्र के नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों का निर्धारण करता है। इन अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के अनुसार ही नागरिकों को व्यवहार करना पड़ता है। अत: संविधान नागरिकों के व्यवहारों के नियन्त्रण एवं नियमन हेतु आवश्यक है।
- राष्ट्र के उद्देश्यों के निर्धारण एवं प्राप्ति हेतु संविधान राष्ट्र के उद्देश्यों को उल्लेखित करता है एवं उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संस्थागत संरचना प्रदान करता है। अत: राष्ट्र के उद्देश्यों के निर्धारण एवं प्राप्ति हेतु संविधान आवश्यक है।
भारतीय संविधान निर्माण की माँग-
भारतीय संविधान की माँग एवं भारतीय संविधान के निर्माण की पृष्ठ भूमि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता एक ऐसी सरकार की कामना कर रही थी, जो उसकी अपनी हो तथा स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उपजी आकांक्षाओं को पूरा कर सके। नेताओं ने वायदा किया था कि स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत में लोकतंत्र व न्याय के आदर्शों पर आधारित सरकार बनेगी । अत: इन विचारों व आदर्शों को साकार करना बहुत आवश्यक समझा गया।
आधुनिक काल में उक्त आदर्शों व संरचनाओं को जिस प्रलेख में स्थान दिया गया, उसे संविधान कहते हैं। भारत का संविधान एक संविधान सभा द्वारा निर्मित किया गया था | यह सभा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हुई थी, तथा इसने संविधान में शामिल करने के लिए कुछ आदरशों को चुना था।
इनमें लोकतन्त्र के लिए प्रतिबद्धता तथा सब व्यक्तियों के लिए न्याय, समानता व स्वतंत्रता शामिल थे। इसमें संकल्प दोहराया गया था कि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य होगा । संविधान निर्माता भूखे लोगों को भोजन जुटाने, वस्त्रहीन व्यक्तियों को वस्त्र जुटाने तथा शोषित वर्ग का शोषण समाप्त करने के प्रति बहुत चिंतित थे।
एक न्यायप्रिय समाज के निर्माण हेतु निर्माताओं ने अधिकारों, लक्ष्यों, संस्थाओं आदि के रूप में इन आदर्शों का उचित स्थानों पर समावेश किया है । संविधान की मूल भावना के अनुरूप इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु संविधान के प्रारंभ में ही प्रस्तावना का प्रावधान है। प्रस्तावना को संविधान के राजनैतिक दर्शन का प्रतिबिंब माना जाता है।
भारतीय संविधान की माँग 1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना ‘ जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी कि भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें। इस धारणा को सर्वप्रथम अभिव्यक्ति उस “स्वराज्य विधेयक” में मिली, जिसे लोकमान्य गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। बाद में 1922 में महात्मा गाँधी द्वारा यह उदगार व्यक्त किया गया कि“भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा।””
1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाये। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रवर्तन के बाद कई राज्यों में भारतीय सरकारों का गठन हुआ और राज्य विधान सभाओं में कांग्रेस दल के सदस्यों को बहुमत प्राप्त हुआ । राज्य विधान सभाओं द्वारा प्रस्ताव पारित करके भारतीयों द्वारा निर्मित संविधान की माँग की गई।
इसके बाद दिसम्बर, 1936 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा के अर्थ और महत्व की व्याख्या की।
कांग्रेस के संविधान सभा के गठन की मांग की उपेक्षा ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती थी किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध की आवश्यकता तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दबावों के कारण ब्रिटिश सरकार इस बात पर सहमत हो गयी कि भारतीयों द्वारा भारतीय संविधान का निर्माण अपेक्षित है।
क्रिप्स मिशन 1942-
ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टम चर्चिल ने मार्च 1942 में यह घोषणा की कि भारत की संवैधानिक समस्या का हल खोजने के लिए सर स्ट्रेफर्ड क्रिप्स भारत का दौरा करेंगे। इसे ही क्रिप्स मिशन की संज्ञा दी गई। स्ट्रैफर्ड क्रिप्स ने भारत में विभिन्न दलों और जनता के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करने के पश्चात् एक संविधान निर्माता सभा की गठन का सुझाव दिया जो प्रांतीय विधायिका के सदस्यों द्वारा आनुपातिक 45 प्रतिनिधित्व के अनुसार चुनी जायेगी। इसमें देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित होंगे। दि स्ट्रैफर्ड क्रिप्स के प्रस्तावों को सभी दलों ने अस्वीकार कर दिया जिसके फलस्वरूप 11 अप्रैल 1942 ई. को क्रिप्स प्रस्ताव वापस ले लिया गया है।
कैबिनेट मिशन 1945-
में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद मार्च 1946 में ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री एटली ने ब्रिटिश मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों-सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, लार्ड पेथिक लारेंस, ए.बी. एलेग्जेण्डर को भारत भेजा, जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया । कैबिनेट मिशन ने भारतीय संविधान सभा के गठन के सम्बन्ध में निम्नांकित प्रस्ताव किए
- प्रांतों को आवंटित स्थानों को उनमें निवास करने वाली प्रमुख जातियों में उनकी संख्या के आधार पर विभाजित कर दिया जाएगा। विभाजन साधारण, मुसलमान तथा सिख (केवल पंजाब के लिए) के लिए किया जाए।
- भारत को एक संघ बनाया जाये जिसमें देशी रियासत और ब्रिटिश भारतीय प्रांत दोनों सम्मिलित हों। |
- एक संविधान सभा का गठन है, जिसमें कुल 38 सदस्य हों
- संघ में अवशिष्ट शक्तियों प्रांतों के पास हो।
- देशीय रियासत के सदस्य भी संविधान सभा में शामिल होंगे और 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि होगा। कांग्रेस द्वाग इस योजना को स्वीकार कर लिया गया लेकिन मुस्लिम लींग द्वारा इस योजना का इसलिए विरोध किया गया कि इस योजना में मुस्लिम लींग के पाकिस्तान के निर्माण अर्थात् भारत-विभाजन को मान्यता नहीं दी गयी थी।
संविधान सभा-
भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा हुआ है। सर्वप्रथम 1934 में संविधान सभा के निर्माण की माँग की गयी। स्वराज पार्टी ने मई 1934 में तथा कांग्रेस ने 1936 में फैजपुर अधिवेशन में इस मांग को दोहराया। 1942 के क्रिप्स प्रस्ताव में संविधान सभा के निर्माण की बात कही गयी थी। 1946 के केबिनेट मिशन प्लान में दी गयी प्रक्रिया के आधार पर नवम्बर, 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए ।
संविधान सभा में जनसंख्या के आधार पर (लगभग एक मिलियन या दस लाख पर एक) प्रतिनिधि निर्धारित किए गए। चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल मत संक्रमण प्रणाली द्वारा हुए। देशी रियासतों से उनसे विचार करके प्रक्रिया निर्धारित की गयी। प्रान्तों में मुस्लिम, सिख तथा स्राधारण चुनाव क्षेत्र बनाए गए। कुल सदस्य संख्या 389 रखी गयी जिसमें 292 प्रान्तों से निर्वाचित सदस्य, 95 देशी रियासतों से तथा 4 कमिश्नरी क्षेत्रों से निर्धारित किए गए।
प्रान्तों के सदस्यों के लिए हुए चुनाव में 73 सीट मुस्लिम लीग को तथा 208 कांग्रेस को, 8 स्वतन्त्र एवं अन्य सीट विभिन्न लघु राजनीतिक संगठनों को प्राप्त हुई। संविधान निर्माण के लिए साठ देशों के संविधान का अध्ययन किया गया । विभिन्न समितियों क़ा गठन किया गया । जैसे प्रक्रिया समिति, वार्ता समिति, संचालन समिति, कार्य समिति, अनुवाद समिति, ‘सलाहकार समिति, संघ समिति, वित्तीय मामलों की समिति, झण्डा समिति, भाषा समिति, प्रारूप समिति आदि । संविधान निर्माण में प्रारूप समिति का विशेष महत्व था। डॉ. बी.आर, अम्बेडकर इस समिति के अध्यक्ष थे।
भारतीय संविधान निर्माण सभा की कार्य प्रणाली-
संविधान सभा की अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गयी थी। सभा में अनेक समितियाँ व उपसमितियाँ थीं। समितियाँ दो प्रकार की थीं। एक कार्य प्रणाली के विषद्यों के मामले तथा दूसरी महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित मामले देखती थी। एक ऐसे विशेषज्ञों की परामर्शदात्री समिति थी, जो सभा के सदस्य नहीं थे | यह समिति बाहर से परामर्श देती थी।
सबसे महत्वपूर्ण समिति प्रारूप समिति थी, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर करते थे। इस समिति को कार्य संविधान को लेखबद्ध करना था! संविधान सभा की कार्य प्रणाली विधान मंडल की प्रणाली के ही समान थी। संविधान सभा के नेत सहमति की आवश्यकता के प्रति सचेत थे। अत: जहाँ तक संभव था, पूर्ण सहमति के आधार पर ही निर्णय लिए जाते थे।
इसके परिणामस्वरूप अनेक मुद्दों पर विभिन्न समझौते संपन्न हुए। संविधान सभा ने अपना कार्य भारत के भविष्य को दृष्टि में रखते हुए किया। उसके सामने कुछ निर्धारित लक्ष्य थे जो कि जन आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते थे।
भारतीय संविधान निर्माण सभा के उद्देश्य-
संविधान सभा, लगभग 200 वर्षों के औपनिवेशिक शासन, जन-आधारित स्वतंत्रता संघर्ष, देश का विभाजन व सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि की पृष्ठभूमि में स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण कर रही थी। इसीलिए संविधान निर्माता, जन-आकांक्षाओं की पूर्ति, देश की एकता व अखंडता तथा लोकतांत्रिक समाज की स्थापना के प्रति सचेत थे। सभा के अंदर भी विचारधारा संबंधी कुछ मतभेद थे।
कुछ सदस्यों का झुकाव समाजवादी सिद्धांतों के प्रति था, जबकि अन्य अनेक गाँधीवादी दर्शन से प्रभावित थे। परन्तु अधिकांश सदस्य उदारवादी दृष्टिकोण रखते थे। आम सहमति बनाने व संघर्ष को टालने के प्रयास होते रहते थे। आम सहमति “लक्ष्यपूर्ति प्रस्ताव” के रूप में 17 दिसम्बर 1946 को सामने आई, जिसे पं. जवाहरलाल नेहरू ने सभा के समक्ष प्रस्तुत किया, तथा उसे 22 जनवरी 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।
भारतीय संविधान निर्माण समितियाँ :-
संविधान निर्माण के कार्य को भली-भाँति सम्पादित करने के लिये यह निर्णय लिया गया कि इस कार्य को समितियों के माध्यम से किया जाए। लगभग 20 समितियों का निर्माण किया गया। संविधान समिति की प्रमुख समितियों का विवरण निम्न है
भारतीय संविधान निर्माण प्रक्रियागत मसलों से सम्बन्धित समितियाँ-
- वित्त और कर्मचारी समिति,
- प्रक्रिया नियत समिति
- सदन समिति,
- प्रत्यय-पत्र और समिति,
- प्रचालन समिति ,
- प्रेस गैलरी समिति,
- हिन्दी अनुवाद समिति,
- कार्य आदेश समिति,
- भारत स्वतंत्रता अधिनियम के प्रभावों के परीक्षण हेतु समिति,
- उर्दू अनुवाद समिति ।
भारतीय संविधान निर्माण तथ्यगत मसलों से सम्बन्धित समितियाँ-
- परामर्शदात्री समिति,
- राज्यों के साथ वार्ता हेतु समिति,
- संघ संविधान समिति,
- संघीय शक्ति समिति,
- प्रारूप समिति,
- प्रान्तीय संविधान समित्ति,
- मुख्य कमिश्नरी प्रान्त समिति,
- वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति।
उपरोक्त समितियों में महत्वपूर्ण समिति “प्रारूप समिति” थी जिसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे। प्रारूप समिति के अन्य सदस्य मे एन. गोपालास्वामी आयंगर,अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, के.एस. मुंशी, टी.टी. कृष्णामाचारी, मोहम्मद सादुल्ला, एन.माधव मेनन शामिल थे।
विभिन्न समितियों द्वारा सम्पन्न कार्यों के आधार पर संविधान सभा के संवैधानकि सलाहकार बी.एन. गाने द्वारा प्रारूप का निर्माण किया। इस प्रारूप में 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियाँ थीं। इस प्रारूप का – विस्तृत परीक्षण प्रारूप समिति फरवरी, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को प्रेषित किया गया। प्रारूप समिति द्वारा प्रस्तुत संविधान के प्रारूप में 315 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं।