प्रस्तावना –
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ, बिनय साहू, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । तो दोस्तों बिना समय व्यर्थ किये चलते हैं, आज के आर्टिकल की ओर आज का आर्टिकल बहुत ही रोचक होने वाला है | क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे पुरापाषाण मध्य नवपाषाण, प्रागैतिहासिक युग एवं प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत। पुरापाषाण काल। मध्यपाषाण काल। नवपाषाण काल। पहिए का आविष्कार, 2024 के वारे में बात करेंगे |
पुरापाषाण मध्य नवपाषाण पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति सर्वप्रथम कहाँ हुई यह एक विवाद का विषय है। कुछ विद्वानों के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई थी। भारत में मनुष्य का अस्तित्व पाषाण काल के पूर्व से पाया जाता है। विद्वानों का अनुमान है कि लगभग अस्सी करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीवन के लक्षण प्रंकट हुए। जीवों के क्रमिक विकास में करोड़ों वर्ष लगे। मनुष्य की उत्पत्ति वानर जाति के प्राणी से विकसित होकर हुई थी।
यह घटना कुछ लाख वर्ष पूर्व की मानी जाती है। पशु स्तर से उठकर सभ्य होने में मनुष्य को सहस्रों वर्ष लग गये। आदि मानव का इतिहास सभी देशों में समान रहा,है जिसका चित्रण इतिहासकारों द्वारा जीवशास्त्र, मानवशास्त्र और पुरातत्व के आधार पर किया जाता है। विद्वानों के मतानुसार भारत में आदि मानव का मूल स्थान दक्षिण में था पहले हिमयुग के अंत में वह.पश्चिमोत्तर भारत कौ ओर चला गया।
शिवालिक की पहाड़ियों तथा पंजाब के उत्तरपश्चिमी क्षेत्रों में आदि मानव के अस्तित्व के प्रमाण मिले हैं। भारत में मानव सदृश प्राणी का अस्तित्व एक करोड़ 20 लाख से 90 लाख वर्ष पूर्व तक माना गया है। प्रागैतिहासिक युग में लगभग दस हजार साल पहले मानव भारत में विकसित दशा में पाया जाता था इसके प्रमाण वे पाषण उपकरण हैं जो असम से लेकर कच्छ तथा कश्मीर और पंजाब से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी और डेल्टा में प्राप्त हुए हैं।
संसार के विभिन्न भागों में खुदाइयों के फलस्वरूप अनेक प्रकार के औजार तथा हथियार मिले हैं, ये औजार, सुन्दर, भद्दे पॉलिशदार, बिना पॉलिशदार पत्थर के बने हुए हैं। इनकी बनावट से पुरातत्वविद मानव के भोजन, रहन-सहन तथा जीवने रक्षा के उपायों का अनुमान लगाते हैं
मानव तथा पशुओं के जीवाश्म का वैज्ञानिक अध्ययन करके जीव-विज्ञानियों तथा मानव शरीर विशेषज्ञों ने आदि मानव तथा प्रागैतिहासिक युग के पशुओं का अध्ययन कर अनेक निष्कर्ष निकाले हैं।
आदिमानव चित्रकला के प्रति-प्रेम रखता था। यूरोप तथा भारत में विभिन्न क्षेत्रों में जंगली भैंसा, सुअर, हिरन, साँड़, रेनडियर, गैंडे आदि के चित्र मिले हैं, इन चित्रों का अध्ययन फर प्रागैतिहासिक मानव की धार्मिक तथा सांस्कृतिक रुचियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। (उदा.- म. प्र. में भीमबेटका की गुफा आदि)
खुदाई में विभिन्न प्रकार के बर्तन, बांट, मूर्तियाँ आदि विपुल मात्रा में मिले हैं। इनका अध्ययन कर भी प्रागैतिहासिक मानव के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में पाषाण कालीन सभ्यता की खोज–
भारत में पाषाण कालीन सभ्यता की खोज का कार्य 1863 ई. से प्रारंश हुआ तब से महाराष्ट्र में गोदावरी की सहायक नदी प्रवरा के तट के साथ हो मुम्बई के निकट नेवासा में, आन्ध्र प्रटेण के गिदूलर और करीमपुरी में, तमिलनाडु में वादम दुराई अतिरपक्कम मानोजन कारन, कर्नाटक में मालप्रभा और घाटप्रभा नदियों के क्षेत्रों में, राजस्थान में भीलवाड़ा के पास नागौर में, सोहन नदी को भगे पंजाब), गौहन्द, महेश्वर, होशंगाबाद, ब्रह्मगिरि, हीरपुर, लांघनाज, कार्नूल, चिंगलपेट वेल्लोर, चवल्लुर आदि स्थानों में उत्खनन में पाषाणकालीन उपकरण पाये गये हैं।
भीमबेटका, होशंगाबाद, पंचमढ़ी, सिंघनपुर और कबर को पहाड़ी गुफाओं में पाषाण कालीन रेखाचित्र भी पाये गये हैं। इन प्रमाणों से ज्ञात होता है कि भारत में आदि मानव का उदय हुआ था और वह क्रमश: अपना विकास करता गया। विकास के दीर्घकाल का विभाजन रन पदार्थों के नाम पर किया गया जिनका उपयोग उस काल के मानव ने अपने उन औजारों एवं अन्य उपकरणों के निर्माण में किया जिनसे वे अपनी रक्षा करते थे और जीवन निर्वाह करते थे।
इस आधार पर प्रागैतिहासिक काल को दो प्रमुख भागो में बाटा गया है-(1) पाषाण काल,(2) धातुकाल | पाषाणकाल में मनुष्य अपने औजार, हथियार और व्यावहारिक उपयोग की दस्तुएं पाषाण स॑ बनाता था। धातुकाल में इन चीजों को बनाने के लिए ताबे, कासे और लोहे का उपयोग किया जाने लगा। पाषाण काल को दो भागो में बाटा जा सकता है-
(1) प्राचीन पाषाण काल (2) नवपाषाण काल।
प्राचीन पाणाण काल को पुन: दो भागों में विभाजित किया गया है-
(1) पुरापाषाण काल
(2) मध्यपाषाण काल।
पुरापाषाण काल
विद्वानों के अनुस्गर यह काल छह लाख वर्ष पूर्व से लेकर पचास हजार वर्ष पूर्व का माना गया है यह युग आदि मानव का था। ये आदि मानव हड्डियों और पत्थरों के अत्यन्त सादे और अनगढ़ औजारों का उपयोग करते थे।
क्षेत्र-इस काल के प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर इतिहासकारों का अनुमान है कि भारत में पुरापाषाण काल का मनुष्य गंगा के मैदान को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में जैसे पंजाब, राजपूताना, गुजरात, मध्य भारत, कनटिक, मैसूर, बिहार, आसाम, बंगाल और दक्षिणी भारत में अस्तित्व में रहा होगा।
पुरापाषाण काल कि विशेषताएँ-
भौगोलिक परिस्थिति–
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार इस काल में चार बार हिमयुग आये जिनका अंतराल लगभग एक लाख वर्ष का था – और जिन्होंने पृथ्वी की कायापलट कर दी। जिन क्षेत्रों में गर्मी पड़ती थी वहाँ अधिक ठंड पड़ने लगी। लम्बे समय तक हिमपात के कारण वनेस्पतियाँ और जीव जन्तु नष्ट हो गये। मानव की अनेक जातियाँ नष्ट हो गयीं और कुछ गुफाओं में रहकर और आग का प्रयोग करके बचने में सफल हुए। हिमयुग की समाप्ति पर हजारों वर्षों के उपरांत धीरे-धीरे गर्मी पड़ने लगी। इस समय हिमयुग से बची हुई मानव जाति क्रमंश: उन्नति करने लगी।
निवास स्थान–
पुरापाषाण काल का मानव जंगली पशुओं के समान नग्न अवस्था में यहाँ-वहाँ विचरण करता था और सघन वक्षों के नीचे तथा पहाड़ी गुफाओं एवं कन्दराओं में रहता था। इनके नाखून लम्बे और देह पर लम्बे बाल हुआ करते थे। इनके मस्तिष्क का अधिक विकास नहीं हुआ था। धीरे-धीरे इनमें चेतना, बुद्धि, साहस और चतुराई का विकास हुआ तब वे झील, तालाब और नदी के निकट छोटे-छोटे समूहों में रहने लगे। वर्षा, धूप ठण्ड से बचने के लिए गुफाओं में रहते थे।
भोजन सामग्री-
इस काल में मनुष्य वन के फल, फूल और कन्दमूल तथा आखेट में सरलता से मारे गये पशुओं के मांस और नदियों तथा झीलों से पकड़ी गई मछलियों से अपनी उदरपूर्ति करते थे। कृषि और पशुपालन के अभाव में उनकी खाद्य सामग्री सीमित थी।
आग की खोज –
पुरापाषाण काल के मानवो की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज आग की खोज थी । इन्होंने पहली वार पत्थरों के रगड़ने से आग उत्पन्न होते देखा होगा। आग के सहारे आदिमानव ने जंगली पशुओं से स्वयं की रक्षा की और शिकार किये गये पशुओं के मांस को पकाना सीखा।
औजार और हथियार-
अपने आसपास के हिंसक पशुओं से स्वयं की रक्षा करने एवं छोटे पशुओं के शिकार के लिए आदि मानव ने पाषाण के हथियार बनाए | अपने दैनिक जीवन में वस्तुओं को काटने, तोड़ने, फोड़ने, चीरने, छीलने, खोदने, जोड़ने तथा छेद करने के लिए उन्होंने अनेक प्रकार के औजार बनाये थे। ये हथियार और औजार अनगढ़ और बेडौल होते हुए भी आदि मानव की संजनशीलता के उदाहरण थे । इनकी सहायता से वे पशुओं को मारकर उनकी खाल और हड्डी निकालते थे और उनसे वस्त्र तथा हथियार और औजार बनाते थे।
सामाजिक जीवन-
इस काल का मनुष्य मुख्यत: आखेट और मछलियों को मारने का कार्य करता था। हिंसक और बलशाली पशुओं के आखेट तथा उनसे अपनी रक्षा करने के लिए आदिमानव क्रमश: समूह में रहने लगे विद्वानों के अनुसार इस बात की भी सम्भावना है कि वे पेड़ों की टहनियों और पत्तियों से बनी झोपड़ियों में रहने लगे थे। आरंभ में वे नग्नावस्था में ही रहते थे किन्तु बाद में क्रमश: उनमें लज्जा की भावना का विकार हुआ और वे वृक्षों की छाल, पत्तों या पशुओं की खाल से अपने शरीर को ढँकने लगे। इस काल के मनुष्यों की आवश्यकताएँ सीमित थीं। वे कृषि और पशुपालन से अपरिचित थे।
धार्मिक जीवन-
बर्बर और वन्य जीवन होने से इस काल में धार्मिक या लोकोत्तर भावनाओं का जन्म नहीं हुआ था। दैनिक जीवन में संघर्ष पूर्ण होने के कारण उन्हें चिंतन मनन का समय नहीं मिलता था।
मृतक संस्कार-
उत्खनन से प्राप्त अवशेषों में उनके मृतकों की न तो कोई समाधियाँ प्राप्त हुई हैं न ही दाह के अवशेष, न किसी प्रकार की अन्य जानकारी जिससे उनके मृतक संस्कार से सम्बन्धित विधि का ज्ञान हो संभवत: वे लोग मृतकों के शरीरों को पृथ्वी पर इधर-उधर फेंक देते थे, जिन्हें पशु-पक्षी खा जाते थे कालान्तर में शवों के अवशेष मिट्टी में मिलकर नष्ट हो जाते थे।
मध्यपाषाण काल
पुरापाषाण काल एवं नवपाषाण काल के मध्य का समय मध्यपाषाण काल कहलाता है यह काल लगभग 15000 से 10000 ई. पूर्व तक रहा। इस काल के अवशेष छोटा नागपुर, पंजाब, मध्य भारत, गुजरात और कृष्णा नदी के दक्षिणी क्षेत्र में मिले हैं। मध्यपाषाण कालीन मानव पहाड़ी गुफाओं में, झरनों, नदियों तथा झीलों के तटों में टहनियों और पत्तों से झोपडियाँ बनाकर रहने लगे थे। वे छोटे-बड़े समूहों में भी रहते थे।
वनों से प्राप्त कन्दमूल एवं फल, आखेट से मारे गये पशु-पक्षियों के मांस, झीलों एवं नदियों से प्राप्त मछलियाँ उनकी भोजन सामग्री थी। इस काल के हथियार एवं औजार पूर्व की अपेक्षा सुघ्चड़ और सुन्दर थे। इनमें फरसा, बाण, भाला एवं हथौडी, काटने, छीलने एवं तराशने के औजार शामिल थे। मध्यपाषाण काल के प्राप्त भित्तिचित्रों एवं शैलचित्रों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि इस युग के लोग जादू टोने जैसे किसी तरह के धार्मिक कृत्य करते थे। इन लोगों ने शवों को दफनाना आरभ कर दिया था।
मध्य पाषाण काल की विशेषताएँ-
निवास-
इस काल में मानव, समूहों से शैलाश्रयों में स्थायी निवास करने लगा था। इन समूहों में बच्चे, महिलः व पुरुष होते थे। वे नदी, झीलों व झरनों के तटों पर पत्तों की झोपड़ियों में भी रहने लगे थे। गुफाओं में शायद वे अधिक निवास करते रहे होंगे।
औजार व हथियार-
इस काल के औजार पूर्व काल के औजारों से अति सूक्ष्म किन्तु कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ थे। औजारों के निर्माण व आकृति से ही युग विभाजन किया जा सका। औजारों में अब चकमक पत्थर भी उपयोग में लाया जा रहा था। उनके औजार आकार में छोटे, सुन्दर और सुडौल होते थे। इस काल में धारदार तथा नुकीले औजारों का विशेष प्रचलन था जो भालों और तीरों के अग्रभाग के रूप में उपयोग किया जाता था। औजारों में भाला, हथौड़ा, फरसा, गँडासा, कुल्हाड़ी आदि का प्रयोग किया जाता था।
भोजन सामग्री-
वनों से प्राप्त होने वाले कन्द-मूल, फल के अतिरिक्त शिकार किये गये जानवरों के मांस से वे अपनी जिंजीविषा की पूर्ति करते थे। इसके साथ ही मछली भी खाकर अपनी भूख मिटाते थे।
सामाजिक जीवन-
इस काल में मानव समूह कृषि, पशुपालन से अनभिज्ञ था, किन्तु कुछ जानवरों से वह परिचित हो गया था, जिनमें मछली, मगर, कुत्ता, बैल, घोड़ा, गाय आदि प्रमुख हैं । इस समय लोग व्यवसाय व मनोरंजन के रूप में शिकार करते थे। | सम्भवतया वे चकमक पत्थर की प्राप्ति से अग्नि से परिचित हो चुके थे, किन्तु प्रमाण अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। गुफाओं में जहाँ पर वे रहते थे, अपनी दैनंदिनी की कुछ यादगार घटना को रेखांकित अवश्य करते
धार्मिक भावना-
पुरातत्ववेत्ताओं की मान्यता है कि इस काल नें मानव कुछ धार्मिक विश्वास जैसे जादू-टोना आदि सीख रहा था। मृत व्यक्ति के शव को अब गाड़ने (दफनाने) की परम्परा शुरू हो चुकी थी। मृत व्यक्ति को बैठे हुए मुद्रा में दफना दिया जाता शव तथा औजार और खाद्य सामग्री रखना किसी धार्मिक कर्म की ओर प्रवृत्त करते हैं।
अवशेष-
मध्य पाषाण काल के अवशेष- राजस्थान प्रांत के बागोर में, कृष्णा नदी के दक्षिण में, पूर्वी | – भारत, दक्षिणी उ. प्र. तथा मध्य प्रदेश में पाये जाते है। अभी इस क्रम में पुरातत्वदताओं द्वारा अन्य स्थानों पर भी सघन उत्खनन कार्य जारी है।
नवपाषाण काल बीस हजार वर्ष पूर्व से छह हजार वर्ष पूर्व के बीच का काल माना जाता है। इस काल के उत्तरार्ध में प्राचीन नदी घाटियों की सभ्यताओं का उदय हो चुका था। भारत में नवपाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष बुर्जहोम (कश्मीर), सिन्धु प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम, मध्यप्रदेश, हैदराबाद, ब्रह्मगिरि (मैसूर), दक्षिणी भारत में वेलारी, अर्काट ‘पट्टावरम (मद्रास) आदि स्थानों में प्राप्त हुए हैं।
नवपाषाण काल की जलवायु प्राचीन पाषाण काल की तुलना में मानव के लिए अनुकूल थी। यह समशीतोष्ण जलवायु थी न अधिक शीत, न अधिक आर्द्र और न ही अधिक गरम | ऐसी अनुकूल जलवायु में मनुष्यों की संख्या में अधिक वृद्धि हुई और उन्होंने अपने परिश्रम और अनुभव से अनेक आर्थिक और वैज्ञानिक परिवर्तन किये। इससे उनकी सभ्यता और संस्कृति का विकास तेजी से हुआ।
औजार-
“इस काल में मानव औजार पाषाण के होते हुए भी पहले की अपेक्षा अधिक सुन्दर, सुडौल व श्रेष्ठ थे। इस समय पत्थर की चिकनी और सुन्दर दिखने वाली कुल्हाड़ी सारे भारत में प्रयोग में लायी जाने लगी थी हिसके अलावा पत्थर कें फलकों का भी उपयोग होने लगा था। ये औजार सुन्दर होने के साथ ही अत्यधिक धारदार होते थे। पत्थरों के साथ ही हड्डियों, सींगों और लकड़ी के औजार और हथियारों का भी प्रयोग किया जाता था।
कृषि-
कृषि कार्य का आरंभ होना नवपाषाण काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इस काल का मानव भोजन का संग्रहकर्ता से उत्पादक बन गया। बीज के मिट्टी में अंकुरित होकर अनाज के दानों का ढेर पैदा होने को प्रक्रिया को मानव ने ध्यान से देखा होगा। इससे उसे भोजन प्राप्ति का आसान तरीका मिला और उसने धीरे-धीरे कृषि करना आरंभ कर दिया। नवपाषाण काल में संभवत: गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का, फल, सब्जियों आदि को खेती करना आरंभ किया गया होगा। कृषि कार्य में काम आने वाले औजारों, कुल्हाड़ी, कुदाल, हँंसिया आदि के आविष्कार के साथ-साथ संभव हैं उन्होंने हल का भी आविष्कार किया होगा।
पशुपालन-
नवपाषाण काल में पशुओं की उपयोगिता को मनुष्य ने समझ लिया और पशुपालन का आरंभ कर दिया था। मानव का सबसे पहला पालतू पशु कुत्ता था। बाद में बकरी, सुअर, भेंडु एवं गाय आदि को भी पालना आरंभ कर दिया गया। समय के साथ आवश्यकता पड़ने पर मानव ने सवारी और माल ढोने के लिए घोड़ों, गधों, खच्चर और ऊँटों को पालना आरंभ किया। पशुपालन से अनेक लाभे प्राप्त हुए जैसे कि कृषि कार्य,माल ढोने, सवारी करने, दूध व मांस प्राप्ति में आसानी हुई।
स्थायी जीवन का आरंभ-
कृषि कार्य ने मानव को एक स्थान में स्थाई निवास करने को विबश कर दिया, व्यवस्थित जीवन कृषि कार्य के कारण ही हो पाया। मानव को खानाबदोश एवं घुमक्कड़ जीवन छोड़कर . एक स्थान में अपना स्थाई निवास बनाना पड़ा। लोगों ने मिट्टी, लकड़ी एवं घास-फूस के सहारे अपने घर बनाने. प्रारम्भ किये। धीरे-धोरे बस्तियों का विकास हुआ।
वस्त्र आभूषण-
नवपाषाण युग में मानव ने चमड़ा, पेड़ की छालों, पशुओं के बालों आदि का उपयोग वस्त्र के रूप में करना प्रारम्भ कर दिया था। स्थाई एवं समूहों में निवास करने के कारण वस्त्रहीन रहने में शायद लज्जा. का अनुभव होने लगा था इसलिए शरीर को ढकना प्रारंभ किया गया।
वस्त्रों के निर्माण के लिये तकली तथा ‘ कपड़ा बुनने की करघा आदि मशीनों का जन्म भी शायद इसी काल में हुआ। बालों को विभिन्न प्रकार से सँवारना, पत्थर, कौड़ी, सोप, हड्डी आदि के आभूषणों को पहनना भी इस काल में प्रारम्भ हुआ।
मिट्टी के बर्तनों का निर्माण-
इस युग में मानव ने चाक की सहायता से बर्तन बनाना सीख लिया। बर्तनों को आग में पकाकर मजबूत कर उनमें अनाज या द्रव पदार्थ रखने योग्य बना लिया।“पकी मिट्टी न तो पानी में घुल सकती थी और न पानी रखने से उसकी कोई क्षति हो सकती थी।
मिट्टी के बर्तनों का निर्माण नवपाषाण कालीन मानव के लिये एक बड़ी सौगात थी।मट्टी के पके बर्तनों के कारण अनेक प्रकार की सुविधाएँ होने लगीं। तरल पदार्थों अथवा बचे हुए भोजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में आसानी होने लगी।
पहिए का आविष्कार-
इस काल में मानव द्वारा किया गया पहिए का आविष्कार महान श्रेणी में आता है, इस आविष्कार ने मानव के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया इसने जीवन को तीक्र गति प्रदान कर दी सर्वप्रथम शायद मोटी लकड़ी के गोले को काटकर चाक बनाया होगा और इसका उपयोग मिट्टी के बर्तन बनाने में किया गया होगा। कालान्तर में इस काल का मानव लकड़ी के बड़े-बड़े गोलों को लुढ़काकर ले जाने में इसकी के ली होगी और फिर बाद में पहिएदार गाड़ी का निर्माण कर वस्तुओं को ले जाने के काम में उसे लगाया होगा।
सामाजिक जीवन–
कृषि कार्य एवं पशुपालन ने नवपाषाण युग के मानव को स्थायी निवासी बना दिया। निवास के स्थायी होने से उनमें सामाजिक भावना का विकास हुआ हैएकदूसरे के सहयोग की आवश्यकता होने के कारण मानव समूह कबीलों में बदलते गये। धीरे-धीरे एक स्थान में रहने के कारण विवाह व परिवार जैसी स्थिति बनने लगी | विवाह जैसी स्थिति बनने के कारण श्रम विभाजन का सिद्धांत प्रारंभ हुआ। स्त्रियाँ घरों में भोजन पकाने, जंगली फल ग्रा अनाज इकट्ठा करने का काम करती थीं और पुरुष शिकार के लिये जंगलों को जाता था।
राजनीतिक जीवन–
स्थायी निवास के कारण कबीलों का निर्माण हुआ। प्रत्येक कबीले का एक मुखिया या सरदार होता था जिसकी आज्ञा का पालन कबीले के सभी लोग करते थे। यहीं से राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हुआ।
धार्मिक जीवन-
इस युग में मनुष्य ने वृक्षों, चट्टानों आदि को दैवी शक्ति मान कर उसकी पूजा, अर्चना प्रारंभ कर दिया था। इसके अतिरिक्त पृथ्वी, जह तथा सूर्य की पूजा के प्रचलन बढ़ गया था। जैसे-जैसे . जीवन आगे बढ़ता गया वैसे ही धार्मिकता का क्षेत्र भी व्यापक होता गया। कृषि कार्य में फसलों की हानि होने अथवा शारीरिक परेशानी आने पर लोगों ने निराकरण में जब अपने आपको असमर्थ पाया तब धार्मिक भावना बलवत हुई | प्रकृति की प्रक्रिया को समझने में असमर्थ मानव के मन में किसी अज्ञात शक्ति का भय समाया और विभिन दैवी शक्तियों का जन्म होता गया।
इसके अतिरिक्त मानव जादू-टोने पर भी विश्वास करने लगा था। भूत-प्रेत एवं स्वर्ग-नरक आदि की धारणाएं भी इस नवपाषाण युग में पैदा हुई। देवी-देवताओं को प्रसन करने के लिए पशुओं की बलि देने की प्रथा का प्रचलन भी इस युग में हुआ। मर जाने पर मुर्दे को हथियार, मिट्टी के बर्तन एवं खाने-पीने की वस्तुओं के साथ जमीन में गड़ा दिया जाता
OTHER RELATED POST –