उत्पत्ति के नियम |क्रमागत उत्पत्ति हास नियम का महत्त्व | 'सिल्वरमेंन के अनुसार | उत्पत्ति के नियम | ओ . वेन्हम के शब्दों में |क्रमागत उत्पक्ति हास नियम | प्रो मार्शल, मार्शल के शब्दों में | शो. वाघ के शब्दों में | श्रीमती जॉन रोबिन्सन |

उत्पत्ति के नियम |क्रमागत उत्पत्ति हास नियम का महत्त्व | ‘सिल्वरमेंन के अनुसार | उत्पत्ति के नियम | ओ . वेन्हम के शब्दों में |क्रमागत उत्पक्ति हास नियम | प्रो मार्शल, मार्शल के शब्दों में | शो. वाघ के शब्दों में | श्रीमती जॉन रोबिन्सन | BY- MPBOARD.NET |

”उत्पत्ति के नियम”

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1 ”उत्पत्ति के नियम”

 

उत्पत्ति के नियम “किसी एक साधन की मात्रा निश्चित होने की दशा में एक बिन्दु के पश्चात्‌ अन्य साधनों की प्रत्येक अगली वृद्धि के अनुपात से उत्पत्ति में घटती हुई वृद्धि प्राप्त होती है – श्रीमती जॉन रॉबिन्सन 

 

उत्पत्ति के नियम (Laws of origin) –

    • धनोत्पत्ति के लिए भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं साहस इन पाँच साधनों (उत्पादन) की आवश्यकता… होती है, अतः उत्पादन में वृद्धि के लिए इन साधनों को बढ़ाना आवश्यक होता है।उत्पादन के इन उपादानों में शीघ्र वृद्धि करना सरल कार्य नहीं है। प्रत्येक उत्पादक उत्पादन के साधनों में इस प्रकार सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करता है, ताकि उसे न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके।
    • उत्पादन के साधनों में वृद्धि करने पर जितनी उपज बढ़ती है, उसकी मात्रा स्थिर नहीं रहती है। उत्पादन के साधनों में वृद्धि से उत्पादन के भिन्‍न-भिन्‍न परिणाम प्राप्त होते हैं। इन उत्पादन वृद्धि के विभिन्‍न परिणामों को ही हम उत्पत्ति के नियम कहते हैं। जब उत्पादक उत्पत्ति की मात्रा में वृद्धि हेतु अन्य साधनों की मल स्थिर करके एक या दो साधनों की मात्रा में वृद्धि करते हैं, तो निम्म तीन नियम हमारे समक्ष आते हैं-
    1. किसी उद्योग में उत्पादन के किसी एक साधन को स्थिर रखकर यदि हम अन्य साधनों की मात्राबढ़ाएँ, तो सीमान्त उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है, इसे क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम कहते हैं।
    2. जब हम उत्पादन में किसी एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा को बढ़ाते हैं, तो एक स्थिति के बाद सीमांत उत्पादन घटती हुई दर पर प्राप्त होता है, इसे क्रमागत उत्पत्ति हास नियम कहते हैं | यह नियम सभी क्षेत्रों में क्रियाशील होने में अधिक मान्य है।
    3. जब उत्पादन में किसी एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो उत्पादन में वृद्धि साथनों के अनुपात में ही होती है, इसे क्रमागत उत्पत्ति समता नियम कहते हैं। इस स्थिति के अन्दर न तो उत्पादन बढ़ता है और न लागत। दोनों समान रूप से परिवर्तित होती है।
    4. इन तीनों नियमों में क्रमागत उत्पत्ति हास नियम उत्पादन क्रिया में सबसे अधिक लागू होता है। अनेक अर्थशास्त्रियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उत्पादन में क्रमागत उत्पत्ति हास (सीमान्त उत्पत्ति हास) नियम सर्वाधिक लागू होने वाला नियम है और दोनों नियम इसी के अंग हैं।

क्रमागत उत्पक्ति हास नियम (Gradient descent rule)-

  • सर्वप्रथम स्कॉटलैंड के एक कृषक ने अनुभव किया कि जैसे-जैसे भूमि के एक निश्चित भाग पर श्रम तथा पूँजी की मात्रा में वृद्धि की जाती है, तो एक निश्चित समय के बाद उसमें श्रम और पूँजी की इकाइयों के अनुपात से कम उत्पादन प्राप्त होता है । इसी अनुभव ने आगे चलकर क्रमागत उत्पत्ति हास नियम का लगे का कर लिया । परम्परावादी अर्थशास्त्री इस नियम को उत्पादन के सभी क्षेत्रों में क्रियाशील मानने लगे है

प्रो. मार्शल के शब्दों में

“यदि कृषि कला में साथ-साथ उन्नति न हो तो भूमि पर कृषि करने के लिए लगाई गई श्रम तथा पूँजी की मात्रा में वृद्धि करमे से कुल उपज में सामान्यतः अनुपात से कम वृद्धि होती है |”!

ओ . वेन्हम के शब्दों में

उत्पत्ति के साधनों के संयोग में किसी एक साधन के अनुपात में जैसे ही वृद्धि की जाती है, जैसे ही एक बिन्दु के पश्चात्‌ उस साधन की सीमांत तथा औसत उपज घटने लगती है।’!

शो. वाघ के शखूदों में

“अगर हम लोग उत्पादन के अन्य साधनों की निश्चित भूमि पर वृद्धि करते हैं तो तुरन्त या कुछ देर जाद हम लोग उस बिन्दु पर पहुँचते हैं, जहाँ सीमांत औसत एवं कुल उत्पादन में ढास होने लगता है।”

सिल्वरमेंन के अनुसार-

एक सीमा के बाद उत्पादन में प्रयुक्त श्रम एवं पूँजी में वृद्धि उत्पादन की मात्रा में अनुपात से कम वृद्धि लाती है।

नियम की स्यारध्या-

उपरोक्त परिभाषाओं से भी यह स्पष्ट होता है कि किसी भूमि के टुकड़े पर निश्चित सीमा के बाद सीमांत उत्पादन घटने लगता है । कृषि के क्षेत्र में एक कृषक एक भूमि के टुकड़े पर अधिक श्रम तथा पूँजी की इकाइयों में तंब तक वृद्धि करेगा, जब तक अधिक प्राप्त की हुई उत्पत्ति का मूल्य इसके लगाये हुए श्रम तथा पूँजी के मूल्य के समान न हो जाये |

इसके बाद कृषक श्रम व पूँजी की इकाइयों में वृद्धि नहीं करता है। क्रमागत उत्पत्ति ह़ास नियम को कई नामों से जाना जाता है जैसे-उपज का नियम, सीमांत लागत वृद्धि नियम, क्रमागत उत्पत्ति ह़ास नियम आदि।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण (Explanation by example) –

  • मान लीजिए एक कृषक अपने 10 एकड़ के खेत में उत्पादन बढ़ाने के लिए श्रम और पूँजी की एक इकाई लगाता है, तो उससे 50 क्विंटल चावल पैदा होता है । इसके बाद उत्पादन में वृद्धि के लिए बह दूसरी इकाई लगाता डै, तो उससे 90 क्विंटल चावल पैदा होता है।
  • इसी प्रकार बह तीसरी, चौथी और पाँचयीं इकाई भी लगाता है और क्रमश: उसे 120, 130, 140 क्विंटल चावल प्राप्त होता है, अतः श्रथम इकाई से 50, दूसरी से 40, तीसरी से 30, चौथी से 20 और पाँचवीं इकाई बढ़ाने पर भी 10 क्विंटल चावल पैदा होता है | इस प्रकार हम देखते हैं कि ज्यों-ज्यों श्रम और पूँजी की इकाइयाँ बढ़ती हैं, त्यों-त्यों सीमांत उपज बढ़ती जाती है। यह निम्नलिखित सारणी एवं रेखाचित्र से स्पष्ट है-

मार्शल

“श्रम तथा पूँजी में वृद्धि सामान्यतया संगठन को: अधिक श्रेष्ठ बनाती है जिसके परिणामस्वरूप श्रम तथा पूँजी की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है।” मार्शल का कहना है कि उत्पत्ति वृद्धि नियम केवल निर्माण उद्योगों में ही लायू होता है, परन्तु यह विचार यलत है। आधुनिक अर्धशास्त्रियों के अनुसार, यह नियम कृषि, उद्योग तथा उत्पादन के अन्य सभी क्षेत्रों में लागू होता है

श्रीमती जॉन रोबिन्सन-

जब किसी प्रयोग में किसी उत्पत्ति के साधन की अधिक मात्रा लगायी. जाती है, तो प्राय: संगठन में सुधार हो जाता है जिससे उत्पत्ति के साधनों की ग्राकृतिक इकाइयाँ (मनुष्य, एकड़ या द्वाग्यिक पूंजी) अधिक कुशल हो जाती है। ऐसी स्थिति में उत्पादन को बढ़ाने के लिए साधनों की भौतिक मात्रा में आनुपातिक वृद्धि करने की आवश्यकता नहीं होती ।

क्रमागत उत्पत्ति हास नियम की सीमाएँ इस नियम की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. उत्पादन का एक साधन स्थिरउत्पादनों के साधनों में से किसी एक साधन को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा में परिवर्तन किया जाये  ।
  2. समान अनुपातउत्पादन के साधनों के अनुपात में कोई परिवर्तन न किया जाये।
  3. उत्पादन को महत्त्व… इसमें उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया है, उत्पादन के मूल्य को नहीं।

नियम की क्रियाशीलता के कारण (Because of the action of the rule)-

क्रमागत उत्पलि हाख नियम के क्रियाशील होने के निम्नलिखित कारण हैं-

    1. उत्पत्ति के साधन पूर्णतया स्थानापन्म महीं होते श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के मतानुसार उत्पावन के न साधनों को परस्पर स्थानापनन नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक साधन का अपना अलग महत्त्व है |
    2. साधनों की सीमितता प्रौ, चेपमेन के मतानुसार उत्पत्ति के साधन सीमित होते हैं, उन्हें आवश्यकतानुसार घटाया-बढ़ाया नहीं ब्रा सकता है। अतः साधनों के सीमित होने के कारण यह नियम लागू होता है।
    3. एक या अधिक साधनों की स्थिरता प्रो. बेन्हम के अनुसार सभी साधनों का उचित संयोग अर्थात्‌ सभी साधनों में आनुपातिक वृद्धि सम्भव नहीं होती है, इसलिए यह नियम क्रियाशील होता है। अनुकूलतम बिन्दु के बाद क्रियाशील जहाँ उत्पादन साधनों की लागत के बराबर होता है, उसके पश्चात्‌ साधनों की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं जिससे संतुलन बिगड़ जाता है और उपज घटने लगती है, अतः नियम क्रियाशील होता है।
    4. प्रकृति पर निर्भरता यह नियम कृषि क्षेत्र में क्रियाशील होता है और कृषि में हवा, वर्षा, जलवायु आदि बातों का प्रभाव पड़ता है जो कि त्रकूंति की देन है।
    5. कृषि में सीमित श्रम विभाजन एवं मशीनीकरण – कृषि के क्षेत्र में मशीनों का उपयोग और श्रम विभाजन बहुत अल्प मात्रा में होता है, अतः यह नियम जल्दी लागू होता है।

क्रमागत उत्पत्ति हास नियम का क्षेत्र (Area of ​​gradual descent)-

  • यह नियम निम्नलिखित क्षेत्रों में लागू होता है
  1. कृषिप्रो. मार्शल के मतानुसार यह नियम केवल कृषि में ही लागू होता है, चाहे वह गहरी खेतो का क्षेत्र हो या विस्तृत खेती का। गहरी खेती में भूमि का क्षेत्र निश्चित होता है और उस पर श्रम तथा पूँजी की इकाइयाँ क्रमश: बढ़ाने से एक सीमा के बाद सीमांत उत्पादन कम होने लगता है। विस्तृत खेती में भूमि के क्षेत्रफल को बढ़ा दिया जाता है, किन्तु श्रम और पूँजी की इकाइयाँ यथावत्‌ रहती हैं, अत: उत्पादन कम होता जाता है। इस प्रकार यह नियम प्रकृति प्रधान उद्योगों में शीघ्र.लागू होता है तथा जिन उद्योगों में मनुष्य की प्रधानता रहती है,वहाँ यह बहुत देर से लागू होता है।
  2. खनिज खदानों को खोदने में तो प्रारम्भ में श्रम और पूँजी की उत्तरोत्तर इकाइयाँ बढ़ने से खनिजअधिक निकाल सकते हैं, किन्तु शनैः-शनैः यह उत्खनन कम होता जाता है। क्योंकि खदानों की गहराई हि बढ़ाने से खदान में से माल को ऊपर लाने में समय तथा खर्च अधिक बढ़ता जायेगा। अतः एक सीमा के पश्चात्‌ क्रमागत उत्पत्ति हास नियम लागू होता है।
  3. मत्स्य उद्योग तालाब तथा नदियों से मछली पकड़ने हेतु श्रम और पूँजी की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं तो प्रारम्भ में मछली अधिक पकड़ी जायेगी, किन्तु कुछ समय में ही इनकी पूर्ति कम होती जाएगी क्योंकि संख्या सीमित है, अतः यहाँ क्रमागत उत्पत्ति हास नियम लागू होने लगता है।
  4. मिट्टी के बर्तन बनाने में कुम्हार मिट॒टी के बर्तन जितने अधिक बनाएगा, उसे उतनी ही अधिक मिट्टी की आवश्यकता होगी, अतः उप्त खदान से मिट्टी खोदने में गहराई बढ़ती जायेगी और उसेअधिक श्रम तथा पूँजी की इकाइयाँ लगाने के पश्चात्‌ भी उत्पादन कम होगा और यह नियम क्रियाशील हो जायेगा |
  5. भवनों के निर्माण में-भवनों के निर्माम में यह नियम एक या दो मंजिल तक लागू नहीं होता है, उसके पश्चात्‌ जब कई मंजिला भवन बनाया जाता है तो ऊपर की मंजिलों में श्रम और पूँजी अर्थात्‌ ऊपर ईंट, चूना, सीमेंट, रेती, गिट्टी आदि पहुँचाने में खर्चा बढ़ेगा और निर्माण कार्य की गति धीमी हो जावेगी, अतः यहाँ भी यह नियम लागू होता है।
  6. उद्योग आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार- यह नियम उद्योग व्यवसाय में भी लागू होता है, क्योंकि जहाँ भी एक साधन स्थिर रहेगा और अन्य साधन परिवर्तनशील रहेंगे तो यह आवश्यक नहीं है कि भूमि को ही स्थिर साधन माना जाये। किसी भी एक साधन को स्थिर माना जा सकता है। आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति के तीनों नियमों को न मानकर एक ही नियम अनुपातों को परिवर्तनशील नियम मानते हैं। इस प्रकार सभी उद्योगों में क्रमागत उत्पत्ति हास नियम लागू होता है।

क्रमागत उत्पत्ति हास नियम का महत्त्व-

  • इस नियम का अर्थशास्त्र में बहुत अधिक महत्त्व है। माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त, रिकार्डो का लगान सिद्धान्त, पूर्ति का नियम, सीमांत उत्पादकता का नियम आदि कई नियम क्रमागत उत्पत्ति हास नियम पर आधारित हैं। इसी नियम से प्रेरित होकर कई आविष्कार हुए हैं, किन्तु वैज्ञानिक आविष्कार तथा उन्नत उत्पादन कला भी इसे कुछ समय रोक सकती है किन्तु पूर्ण रूप से इसे स्थगित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार प्रो. विकस्टीड ने कहा है कि “यह नियम उतना ही सर्वव्यापी है जितना स्वयं का जीवन ।”’

क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम

या

साधन के बढ़ते प्रतिफल का नियम

  • अर्थ एब परिभाषा-जब उत्पादन के किसी एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर हम अन्य साधनों की मात्रा को बढ़ाते हैं तो उत्पादन में वृद्धि साधनों की वृद्धि के अनुपात से अधिक होती है। विभिन्‍न अर्थशास्त्रियों ने इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
  1. कृषि कला के साथ-साथ कोई क्षति न हो कृषि करने की पद्धति में कोई नया सुधार न किया गया हो अर्थात्‌ उत्पादन प्रणाली, तकनीकी ज्ञान तथा संगठन में किसी प्रकार का परिवर्तन न हो तभी यह नियम लागू होगा।
  2. सामान्यतया- प्रो. मार्शल ने अपनी परिभाषा में इस शब्द का प्रयोग किया है अर्थात्‌ एक सीमा के नाद ही यह लागू होता है, प्रारम्भ से नहीं । प्रारम्भ में उस भूमि का पूर्ण साधनों के साथ पूर्ण प्रयोग होना चाहिए। एक स्थिति तक तो सीमांत उपज में वृद्धि होगी, उसके उपरांत यह नियम लागू होगा।
  3. श्रीमती जॉन रोबिन्सन आगे लिखती हैंयह नियम या प्रवृत्ति, उत्पत्ति हास नियम की भाँति, उत्पत्ति के सभी साधनों के सम्बन्ध में समान रूप से लायू हो सकती है, परन्तु उत्पत्ति हास नियम के विपरीत, यह ग्रत्येक दशा में लायू नहीं होती है। कभी साधनों की वृद्धि से कुशलता में सुधार होंगे और कभी नहीं भी होंगे

 उत्पत्ति वृद्धि नियम की व्याख्या उदाहरण तथा रेखाचित्र द्वारा –

  • उत्पत्ति वृद्धि नियम के पीछे मुख्य बात यह है कि साधनों की अधिक इकाइयों के प्रयोग से संगठन में सुधार होते हैं, साधनों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, बड़े पैमाने की बाह्य तथा आन्तरिक बचते प्राप्त होती हैं, स्थिर तथा अविभाज्य साधनों का प्रयोग भली-भाँति होने लगता है। इन सबके परिणामस्वरूप सीमान्त उत्पादन बढ़ता है, अर्थात्‌ कुल उत्पादन बढ़ती हुई गति से बढ़ता है, तथा औसत उत्पादन भी बढ़ता है, जब साधनों के मिलने का अनुपात अनुकूलतम हो जाता है तो उसकेबाढ़ से सीमान्त उत्पादन तथा औसत उत्पादन दोनों ही गिरने लगते हैं अर्थात्‌ उत्पत्ति हास नियम लागू हो जाता है।
  • इस नियम को निम्न उदाहरण तथा रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है

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