Advertisement

राजनीति विज्ञान परिभाषा, स्वरूप और क्षेत्र, Political Science:Definition Nature and Scope ,

Table of Contents

Toggle

राजनीति विज्ञान परिभाषा, स्वरूप 

 

राजनीति विज्ञान परिभाषा राज्य के संचालन की नीति राजनीति कहलाती है। सामान्यत: नीति ऐसा महत्वपूर्ण अब्यव है जो व्यक्ति, समाज ओर राज्य के वर्तमान स्वरूप, दिशा एवं लक्ष्य को न सिर्फ स्पष्ट करता है अपितु भविष्य के स्वरूप एवं सम्भावनाओं की ओर भी इंगित करता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया एवं व्यवस्था में केन्द्र बिन्दु मानव है। अत: राज्य, व्यक्ति और नीति के मध्य अन्योन्याथाश्रित संबंध है।

Advertisement

राज्य के द्वारा ही, राज्य के सुव्यवस्थित संचालन एवं व्यक्ति के समग्र विकास के लिए नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं। आगे चलकर उसी नीति के अनुरूप राज्य व्यवस्था का संचालन होता है। राजनीति विज्ञान एक विषय के रूप में बहुत ही संवेदनशील, गत्यात्मक एवं महत्वपूर्ण विषय है | इसमें संवेदनशीलता राज्य का भाव पक्ष है और गत्यात्मकता उसकी सहज प्रवृत्ति है।

व्यक्ति मूलतः सामाजिक एवं राजनीतिक प्राणी है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज के साथ ही राज्य एवं राज व्यवस्था पर भी निर्भर करता है। राज्य और समाज की विविध इकाइयाँ व्यक्ति को सहयोग प्रदान करती हैं व्यक्ति उनके सहयोग के बिना अधूरा है। व्यक्ति की पूर्णता के लिए राज्य और नीति अति आवश्यक है।

Advertisement

अत: एक सुव्यवस्थित समाज को राज्य, सामाजिक व्यवहार को नियमित करने वाली नियमावली की नीति तथा इन नीतियों के राज्य में अनुपालन को सुनिश्चित करने वाली तथा उल्लंघन करने वालों को दण्डित करने वाले घटक को सत्ता अथवा सरकार कहते हैं। राज्य और सरकार के साथ मनुष्य के अध्ययन का विषय राजनीति विज्ञान कहलाता है। 

राजनीति विज्ञान परिभाषा एवं अर्थ :-

 राजनीति विज्ञान को परिभाषित करने के प्रयास प्राचीन काल से किए जाते रहे हैं परंतु इसकी गत्यात्मकता एवं विविध अन्त: समूहों के व्यावहारिक प्रभाव के कारण कोई एक स्थाई एवं सर्वमान्य परिभाषा प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। अरस्तू और कोटिल्य के काल से लेकर वर्तमान तक अनेक तरह से राजनीति विज्ञान को परिभाषित किया गया है।

Advertisement

हम जिसे राजनीति विज्ञान कहते हैं;वस्तुत: वह अंग्रेजी शब्द पॉलिटिक्स का हिन्दी अनुवाद है। पॉलिटिक्स शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के तीन शब्दों “पोलिस’ (नगर-राज्य) पॉलिटी ‘ (शासन) तथा ‘पॉलिटिया’ (संविधान) से हुई है। यूनानी, नगरराज्य (उस समय यूनान में छोटे-छोटे नगर राज्य ही होते थे) से संबंधित अध्ययन को ‘राजनीति’ (Politics) का नाम देते थे। सम्भवत: इसी कारण अरस्तू ने अपनी पुस्तक का नाम ‘पॉलिटिक्स’ रखा।

प्राचीन भारत में राजनीति को दण्डनीति कहा गया है। 16वीं शताब्दी मेँ राष्ट्र राज्यों (Nation-State)को स्थापना हुई। तब भी राजनीति को एक विषय के रूप में राज्य और सरकार का ही अध्ययन म्माना जाता रहा। यह स्थिति 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक बनी रही ।

Advertisement

20वीं शताब्दी के म्मध्य से राजनीतिशास्त्र में व्यवहारवादी क्रान्ति (Behavioural Revolution) के प्रभाव के चलते राजनीतिशास्त्र को विज्ञान का दर्जा देने के प्रयत्न किए गए और अब यह म्याना जाता है कि राजनीति विज्ञान समग्र राजनीतिक प्रक्रिया(Political Process ) का अध्ययन है। इस दुष्टिकोण को आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण की संज्ञा दी जाती है। 

राजनीति विज्ञान एक गतिशील विज्ञान है, अत: इसे समय-समय पर परिभाषित किया गया है। परम्परागत तरीके से राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु को परिभाषित करने का क्रम यूनान के समय से लेकर 19वीं शताब्दी तक प्रचलित रहा। इसे परम्परावादी दृष्टिकोण अथवा संस्थागत दृष्टिकोण भी कहा जाता है। इस दृष्टिकोण से सम्बन्धित विद्वानों द्वारा राजनीति विज्ञान को राज्य, सरकार अथवा दोनों का अध्ययन करने वाले लिषय के रूप में परिभाषित किया गया।

Advertisement

सरकार के बिना कोई राज्य सम्भव ही नहीं है, क्योंकि एक राज्यकारी समुदाय  के रूप सें राज्य के अन्दर आने वाली भूमि का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक कि राज्य की ओर से नियमों का निर्धारण करने वाले और उसका अनुपालन सुनिश्चित करने वाले कुछ व्यक्ति न हों। इन्हीं व्यक्तियों के संगठित रूप को सरकार कहते हैं । इस प्रकार राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओओं को सामान्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया है

    1. राजनीति विज्ञान-राज्य का अध्ययन है।
    2. राजनीतिक विज्ञान सरकार का अध्ययन है।
    3. राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन है।

राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन है –

 

Advertisement

गार्नर –

‘ राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आरम्भ और अन्त राज्य है।

कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानते हैं । इनके विचार में राज्य के अध्ययन में सरकार का भी अध्ययन सम्मिलित है। इस श्रेणी के कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित है-

Advertisement

व्लॉश्त्ती

‘राजनीति विज्ञान वह विज्ञान है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्‍या हैं, इसका तात्विक रूप क्‍या है, इसकी अभिव्यक्ति किन जीवित रूपों में होती है तथा इसका विकास कैसे हुआ है ” 

शैरिस्स

‘ राजनीतिक विज्ञान राज्य के उद्भव, विकास, उद्देश्य तथा समस्त राजनीय सम्मस्याओं का उलंघन करता है।’ 

Advertisement

जकारिया

‘ राजनीति व्यवस्थित रूप से उन आधारभूत सिद्धान्तों के प्रस्तुत करता है जिनके अनुसार एक समाष्टि में राज्य को संगठित किया जाता है तथा संप्रभुता को क्रियान्वित किया जाता है।’ उपर्युक्त परिभाषाएँ मूलतः राज्य के यूनानी दृष्टिकोण पर आधारित हैं जिसके अंतर्गत राज्य को समाज के पर्यायवाची के रूप में सर्वश्रेष्ठ समुदाय माना जाता था। इन विद्वानों ने सरकार  मनुष्य के अध्ययन को राज्य के अध्ययन में ही सम्मिलित किया है। 

राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन है

दूसरे वर्ग के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन करने वाले विषय के रूप में परिभाषित किया है। इसके पीछे एक सामान्य धारणा यह है कि राज्य एक अमूर्त अवधारणा (Abstract Concept) है, जिसे किसी भी प्रकार की सार्थकता प्रदान करने के लिए सरकार अपरिहार्य है। सरकार के कार्य राज्य के होने का आभास कराते हैं अत: इस विचार को केन्द्र में रखकर राजनीति विज्ञान की भी परिभाषाएँ की गई हैं। 

Advertisement

इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नांकित हैं

लीकॉक –

‘ राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित है, शासन जो वृहत अर्थ में सत्ता के मूलभूत विचार पर आधारित होता है।

सीले –

‘ राजनीति विज्ञान के अंतर्गत शासन व्यवस्था का उसी प्रकार अनुशीलन किया जाता है जिस प्रकार अर्थशास्त्र में धन का, प्राणि शास्त्र में जीवन का, बीजगणित में अंकों का एवं रेखागणित में स्थान का तथा दूरी का।!

Advertisement

विलियम रॉब्सन –

राजनीति विज्ञान का उद्देश्य राजनीतिक विचारों तथा राजनीतिक कार्यों पर प्रकाश डालना है, ताकि सरकार का समुन्नयन किया जा सके |! उपर्युक्त परिभाषाएँ एक इकाई के रूप में राज्य के सैद्धान्तिक पक्ष की तुलना में इसके व्यावहारिक पक्ष अर्थात्‌ सरकार को महत्व प्रदान करती हैं।

ये परिभाषाएँ इस अवधारणा पर आधारित हैं कि एक सुसंगठित समाज के रूप में राज्य का परिचालन व्यवहार में उन लोगों की समष्टि पर ही आधारित है जिनके द्वारा कानूनों का निर्माण और क्रियान्वयन किया जाता है। 

Advertisement

राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन है

परम्परागत दृष्टिकोण की तीसरी कोटि में वे परिभाषाएँ आती हैं जो राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय राज्य और सरकार दोनों को मानती हैं, क्योंकि राज्य के अभाव में सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती और सरकार के अभाव में राज्य एक सैद्धान्तिक और अमूर्त अवधारणा मात्र है। इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं- 

विलोबी

‘साधारणतया राजनीति विज्ञान तीन प्रमुख विषयों से सम्बन्धित है-राज्य, सरकार तथा कानून

Advertisement

पॉल जेनेट –

“राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग है जो राज्य के आधारों और सरकार के सिद्धान्तों पर विचार करता है।

गिलक्राइस्ट –

“राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है।

Advertisement

डिमाँक –

राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य और इसके साधन सरकार से हैं।

गेटेल –

राजनीति विज्ञान राज्य के अतीत कालीन, आधुनिक तथा भावी स्वरूप का, राजनीतिक संगठन का, राजनीतिक कार्यक्रम का तथा राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन करता है’ 

Advertisement

राजनीति विज्ञान की परिभाषा विषयक परम्परावादी दृष्टिकोण की तीसरी श्रेणी पहली (जो राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानती है) तथा दूसरी (जो राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन मानती है) श्रेणियों की तुलना में अधिक विस्तृत और स्पष्ट मानी जा सकती है, क्योंकि इस श्रेणी की परिभाषाएंँ राज्य के मूर्त तथा अमूर्त दोनों पक्षों को अपने में समाहित करती हैं । 

राजनीति विज्ञान की परिभाषा के परम्परावादी दृष्टिकोण को इस रूप में अपूर्ण माना जाता है कि यह कमोवेश रूप से औपचारिक संस्थाओं या संरचनाओं के अध्ययन को ही राजनीति विज्ञान के केन्द्र में मानता है। इस श्रेणी के विद्वान इस बात पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं समझते कि राज्य और इसकी संस्थाएँ व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसके कल्याण की किस सीमा तक पूर्ति करती हैं?

Advertisement

दूसरे शब्दों में, यह दृष्टिकोण सीमित अर्थों में ही राज्य तथा अन्य संस्थाओं का अध्ययन करता है। परम्परावादी राजनीतिक विज्ञान व्यक्ति के अधिकारों उसकी स्वतंत्रता, राजनीतिक आज्ञाकारिता के आधार, राजनीतिक प्रतिरोध तथा सत्ता की प्रकृति एवं आधार आदि की कोई चर्चा नहीं करता। इस दृष्टिकोण में मानवीय तत्वों की पूर्ण अवहेलना की गई है, जबकि यह सुस्पष्ट और निर्विवाद है

राज्य या इसकी संस्थाओं के केन्द्र में मनुष्य ही है और उसका समग्र कल्याण ही इनका अभीष्ट है। दूसरी बात यह है कि यह दृष्टिकोण सत्ता के अध्ययन को कोई महत्व नहीं प्रदान करता। सत्ता क्या है? सत्ता के लिए संघर्ष क्यों होता है? इस संघर्ष की प्रक्रिया क्या है? इसके कारण क्या हैं? ये कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।

Advertisement

राजनीति विज्ञान परिभाषा आधुनिक दृष्टिकोण पर आधारित परिभाषाएँ-

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आए व्यापक परिवर्तन के कारण राजनीति विज्ञान की विषयवस्तु एवं परिभाषाओं के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया है। सामान्यत: इस परिवर्तन को बौद्धिक क्रान्ति अथवा व्यवहारवादी क्रान्ति  के रूप में जाना जाता है। इस क्रांति ने परम्परावादी दृष्टिकोण को ‘संकुचित’  और ‘ औपचारिक ‘  कहकर आलोचना की है।

व्यवहारवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि पारम्परिक दृष्टिकोण मूल रूप से औपचारिक संस्थाओं और उनके बैधानिक प्रतिमानों नियमों तथा विचारों पर केन्द्रित रहा है न कि उन संस्थाओं के व्यवहार कार्य तथा अन्त: क्रिया पर | कैप्लान, जॉर्ज, कैटलिन, एफ.एम. वाटकिन्स, बर्टरेण्ड रसेल, बर्टेण्ड जोवेनल, ज्याँ ब्लाण्डेल, डेविट एप्टर आदि विचारक इसी श्रेणी में आते हैं।

Advertisement

मोटे तौर पर इन विचारकों ने राजनीति विज्ञान को सत्ता का अध्ययन माना है। इसके अंतर्गत वे सभी गतिविधियाँ आ जाती हैं जिनका या तो “सत्ता के लिए संघर्ष से संबंध होता है अथवा जो इस संघर्ष को प्रभावित करती हैं। व्यवहारवादियों ने राजनीति विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार की है: – 

बट्रेण्ड डी. जोवेनल के अनुसार-

“राजनीति का अभिप्राय उस संघर्ष से है जो निर्णय के पूर्व होता है और उस नीति से है जिसे लागू किया जाता है।’ 

Advertisement

डेविड ईस्टन के अनुसार-

“राजनीति मूल्यों के प्राधिकृत विनिधान से सम्बन्धित है।’ 

लासवेल और कैप्लान के अनुसार-

‘एक आनुभविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और बंटवारे का अध्ययन है। 

Advertisement

हसज़ार एवं स्टीवेंसन के अनुसार

राजनीति विज्ञान अध्ययन का वह क्षेत्र है जो मुख्य रूप से शक्ति-सम्बन्धों का अध्ययन करता है। 

वस्तु: आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को राज्य या सरकार जैसी औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन मात्र न मानकर, इसे वृहत आयाम प्रदान करने का प्रयास मानता है। व्यवहारवाद हर उस गतिविधि को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मान लेता है जिसका सम्बन्ध समाज में सत्ता या शक्ति-प्राप्ति से है। यदि राजनीति सत्ता के लिए संघर्ष है तो इसे हर उस स्थिति में देखा जा सकता है जहाँ ‘ इच्छाओं ‘ में संघर्ष है। ऐसी स्थिति में जे.एच. हैलोवल इसके तीन निहितार्थ मानता है। 

Advertisement

1. राजनीतिक अर्थ में सत्ता की अवधारणा में अनिवार्यत: कुछ लोग निहित होते हैं। सत्ता की अवधारणा में दो या दो से अधिक मनुष्यों की कल्पना की जाती है और उनके मध्य सम्बन्धों पर विचार आ जाता है। 

2. सत्ता का रूप केवल क्रिया में व्यक्त होता है। यह निश्चित व्यक्तियों की इच्छाओं और हितों के मध्य अपरिहार्य संघर्ष से सम्बन्धित है। ऐसी स्थिति में राजनीति उस समय सफल कही जाती है जब यह इन विरोधी हितों और इच्छाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके अथवा जब इसके द्वारा सभी पक्षों की स्वीकार्य नीतियों का निर्माण किया जा सके। 

Advertisement

3. राजनीति को कभी-कभी ‘ सामंजस्य की तकनीक’ के रूप में भी परिभाषित किया जाता है। 

इस दृष्टिकोण के अंतर्गत आधुनिकतम विचार यह है कि राजनीति की परिभाषा राजनीतिक क्रिया-कलाप के अध्ययन के रूप में उसी प्रकार की जाए जैसे अर्थशास्त्री मानव की आर्थिक गतिविधियों के अध्ययन के रूप में अर्थशास्त्र की परिभाषा करते हैं।

Advertisement
समाप्त

 

इन्हें भी पड़े :-

 

Advertisement

 

Advertisement

 

Advertisement